सुधा मूर्ति उन लेखिकाओं में से एक रही हैं, जिनके द्वारा लिखी गई किताबें हमेशा प्रासंगिक रहेंगी। ऐसे में उनके द्वारा लिखी गई किताब ‘Three Thousand Stiches’ का हिंदी संस्करण तीन हजार टांके भी काफी लोकप्रिय रही है, किताब में ऐसी कई बातें हैं, जो प्रेरणा देती हैं, तो आइए जानें विस्तार से कि यह किताब हर किसी को एक बार क्यों पढ़नी चाहिए।
सुधा मूर्ति मेरी सबसे पसंदीदा लेखिकाओं में से एक रही हैं। मुझे अब भी याद है कि मेरे जीवन की जो मेरी पहली किताब मैंने पढ़ी “ HOW I TAUGHT MY GRANDMOTHER TO READ, वह उनके द्वारा ही लिखी गई किताब थी। वह जिस सहजता से लेखन करती हैं, किसी आम इंसान को भी उनके लिए भाव समझना बेहद आसान होता है। उनकी कहानियां विषयपरक होती हैं, जो सकारात्मकता से भरपूर होती हैं। उनकी किताबों में जो किरदार होते हैं, आप उन्हें अपने आस-पास तलाश सकती हैं। इन्होंने महिलाओं से जुड़े मुद्दे पर काफी कुछ लिखा है, शायद यही वजह है कि मैं उनके लिखे गए किरदारों से काफी जुड़ाव महसूस करती हूं। उनके किरदार प्रेरणादायी होते हैं और कुछ ऐसी ही प्रेरणा ‘Three Thousand Stiches’ के हिंदी संस्करण ‘तीन हजार टांके’ में भी महसूस करने को मिलती है।
‘Three Thousand Stiches’ यानी तीन हजार टांके को सुधा ने लोकप्रिय लेखक टीजेएस जॉर्ज को समर्पित किया है, यह वही शख्सियत हैं, जिन्होंने सुधा को अंग्रेजी में किताबें लिखने के लिए प्रेरित किया, वरना इससे पहले कन्नड़ भाषा में ही वे लिखा करती हैं। इस किताब में कुल 11 कहानियां हैं और सभी प्रेरणादायक हैं। ये 11 अध्याय पूर्ण रूप से उनकी खुद की जिंदगी के अनुभव पर आधारित है।
इस किताब के एक महत्वपूर्ण अध्याय की बात करूं, तो सुधा ने देवदासी कुप्रथा के खिलाफ अपनी आवाज अपने शब्दों के माध्यम से उठाई है और किस तरह उन्होंने तीन हजार देवदासी और उनके परिवारों को इस कष्ट से उबरने में साथ देने की कोशिश की है, इस अनुभव को भी साझा किया है। वाकई, इसे पढ़ते हुए इस बात का एहसास होता है कि एक महिला के लिए कितना जरूरी है कि वह महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ मोर्चा उठाएं, यह अध्याय इस लिहाज से भी प्रेरक है कि महिलाओं को कुप्रथाओं से निबटने के लिए एक साथ आने की जरूरत है, इस अध्याय में सुधा एक जिम्मेदार महिला के रूप में नजर आती हैं और एक भावनात्मक महिला के रूप में भी, जो कई महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बनती हैं। इस पुस्तक में उन्होंने अपने जीवन से जुड़ीं उन ग्यारह ऐसी घटनाओं का वर्णन किया है, जो मनुष्य को नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं। वहीं ‘विचार हेतु भोजन’ वाले अध्याय में उन्होंने अपनी सहेली के वनस्पति विज्ञानी पिता के बहाने फल और सब्जियों के विषय से जुड़ीं जानकारियों को रोचक तरीके से दर्शाना और उसमें जीवन का सार तलाशने की कोशिश की है। इसमें उनका सेन्स ऑफ़ ह्यूमर भी झलकता है, जिसमें इस बात का उल्लेख है कि देसी सब्जियों की जगह विदेशी सब्जियां क्यों लोकप्रिय हैं? उन्होंने यहां हास्य के साथ-साथ व्यंग्यात्मक लेखनशैली अंदाज को अपनाया है। दिलचस्प बात यह है कि जैसे-जैसे हम कहानी के साथ आगे बढ़ते हैं, हमें विविध नजरिये को देखने का मौका मिला है। ‘त्रयांजलि नीर’ में हमें जीवन की आध्यात्मिक फलसफे के बारे में जानने का मौका मिलता है। सुधा ने इसके लिए बनारस (वाराणसी) को चुना है और अपनी इस यात्रा विवरण में वह हमें बनारस का एक ऐसा रूप दिखाती हैं, जिससे हम वाकिफ नहीं हैं। वहीं ‘कैटल क्लास’ में एक ऐसे विशेष वर्ग के बारे में उन्होंने अपने अनुभवों को दर्शाया है, जिसमें वह एक ऐसे वर्ग पर कटाक्ष करती हैं, जो दिखावे की दुनिया में ही विश्वास करते हैं, उन्होंने इसे ऐसे रोचक तरीके में दर्शाया है कि अपनी बात भी रख दी जाए और किसी को चोट न पहुंचे। एक अगले अध्याय ‘ एक अलिखित जीवन’ की बात करें, तो उन्होंने अपने पिता और उनकी जिंदगी के अनुभव को जिस तरह से शेयर किया है, हर एक लड़की उससे एक कनेक्शन महसूस करेगी। सुधा ने इस किताब के माध्यम से विदेश में भारतीय लोगों को लेकर क्या सोच है और किस तरह से हिंदी सिनेमा से जुड़े लोग भारतीय संस्कृति के वाहक बनते हैं, इसके बारे में भी काफी विस्तार से वर्णन किया है, जो दर्शाता है कि वह सिनेमा को भी किसी देश के लिए एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानती हैं। ‘रासलीला और स्विमिंग पुल’ वाले अध्याय में सुधा ने दिलचस्प तरीके से अपने पोते-पोतियों की कहानियों के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी की सोच में आये अंतर के बारे में बताया है, जो कि बेहद रोचक पहलू है। साथ ही उन्होंने जिस तरह से पौराणिक कथाएं सुनाई है, वह भी रोचक है। उल्लेखनीय है कि,पुस्तक में शामिल की गई हर घटना हमें संघर्ष का संदेश देती है और विपरीत परिस्थितियों से जूझने और हँसते हुए इसका सामना करने की भी सीख देती है। यह किताब मूल रूप से अंग्रेजी में है, लेकिन अनुवादक बधाई के पात्र है कि यह किताब हिंदी भाषी लोगों के लिए रोचक बनाया। इस किताब की सबसे अच्छी बात जो आपके साथ रह जाती है कि यह पढ़ने के बाद, आप आशावादी बनते हैं जीवन के प्रति और आपके चेहरे पर एक मुस्कान होती है और जाहिर है सुधा मूर्ति ने इसी सोच के साथ इसे लिखा भी होगा।