गर्मी की छुट्टियां ख़त्म हो चली थीं. क़रीब डेढ़ महीने बाद कॉलेज खुले थे. इतने दिनों से वीरान पड़ा कॉलेज अनायास ही रंग-बिरंगी तितलियों के कोलाज सा दिखने लगा था. सारी सखियां यूं हुलस रहीं थीं, जैसे वर्षों बाद मिल रही हों. सबके पास जाने कितनी बातें थीं साझा करने को, कोई हिल स्टेशन घूम कर आई थी, तो कोई विदेश का चक्कर लगा आई थी. किसी की सगाई हो गई थी तो किसी की शादी. रौनक ही रौनक थी पूरे कैम्पस में, कहीं ज़ोरदार ठहाके थे तो कहीं झुंड में गपशप. मेहा की नज़रें भी किसी को ढूंढ़ रही थीं. ढूंढ़ते-ढूंढ़ते वहीं फूलों की क्यारियों के पास बने चबूतरे पर बैठ, एकटक आती-जाती बनी संवरी लड़कियों को निहारने लगी.
अस्सी के दशकों में कॉलेज का माहौल, ज़ाहिर तौर पे आज से इतर था, पर हवा में प्रेम की सुगंध उतनी ही मादक थी, जैसी सदियों से चली आ रही है. फ़ैशन बदला, परिधान बदले, हाव-भाव बदले... पर प्रेम? प्रेम तो हर बार अपने नए कलेवर में अपनी चिरपरिचित सुगंध बिखेरता रहा... मदहोश करता रहा. जैसे धागे के कच्चे रंग का रेशा-रेशा पानी का स्पर्श पाते ही घुलने लगता है, छोड़ने लगता है रंग, कुछ ऐसे ही मेहा घुल सी रही थी उस मोहक फ़िज़ा में, हाथों की लकीरों को एकटक देखती, जाने किन ख़्यालों में डूबी...
तभी चहकती हुई जूही की खनकती चूड़ियों ने उसकी तंद्रा तोड़ी, धप्प से बगल में आकर बैठ गई और दोनों एक दूसरे को देख ज़ोर से खिलखिला पड़ीं.
सारी छात्राएं इकट्ठा हो रही थीं. पोर्टिको में ज्यों ही कोई कार रुकती दोस्तों की भीड़ इकट्ठी हो जाती. बमुश्क़िल कार ड्राइवर वहां से कार निकाल पाता, हार्न मार-मार कर हलकान हो जाता, पर मजाल जो ढीठ लड़कियां फ़ौरन रास्ता दे दें. और तो और जो कोई हैंडसम सा नौजवान गाड़ी चला रहा हो तो फिर तो बेचारे की शामत, पग-पग पर हसरत भरी आंखों का सामना उसे काले चश्मे चढ़ाने को मजबूर कर देती और फिर कार के शीशे चढ़े होते तो क्या उस बेचारे तक लड़कियों की फब्तियां न जाती होगी? अरे जाएं भी तो कौन सी क़यामत आ जाएगी , जनाब दोबारा गर्ल्स कॉलेज में घुसने से पहले एक दफ़ा सोचेंगे ज़रूर. बेचारा भला मानस और ये आवारा बालाएं…!
‘‘अरी मेहा तू यहां है और जूही तू भी? चल देख ना मेघना आने वाली है, मेन गेट के पास वाले लॉन में चल कर बैठते हैं. उसे भी वहीं बुला लेंगे,’’ भावना ने कहा.
तीनों सखियां वहीं घास पर बैठ गईं, क्लासेज़ घंटेभर बाद थे, सो इत्मिनान से तीनों गप्पें मारते हुए मेघना का इंतज़ार करने लगीं. वहीं आसपास गोल घेरे में दूसरी लड़कियां भी बैठ सड़कों पर आती-जाती फ़ैशनेबल लड़कियों को निहार रही थीं. तभी कॉलेज के गेट पर एक सफ़ेद ऐम्बेसेडर कार रुकी और एक नई-नवेली, सजी-धजी नवयौवना उतरी. सबकी नज़रें तो उधर थीं ही, मेहा अनायास ही चीख़ पड़ी,‘‘अरे मेघना!’’ तीनों सहेलियां लगभग दौड़ पड़ीं और मेघना से दौड़ कर लिपट गईं. चारों इतनी भाव-विह्वल थीं कि कौन क्या कह रहा है, स्पष्ट ही नहीं हो रहा था. आख़िर संयत हो कर चारों कैंटीन के पास वाली बेन्च पर जा बैठीं.
मेहा और मेघना हमेशा से बेहद क़रीब थीं, आज मेघना का रूप मेहा को बेहद लुभा रहा था. हमेशा सादगी में रहने वाली उसकी सखी कैसी सलोनी लग रही थी. हल्दी रंग की शिफ़ॉन की साड़ी और चूड़ियों से भरे-भरे हाथ, लाल रंग की लाख की चूड़ियां, हाथों में मेहंदी, माथे पर बड़ी सी बिंदी और भरी मांग, प्रेम पगे गुलाबी होंठ... ये तो उसकी मेघना न थी, इतना लावण्य, ये अद्भुत रूप, तिस पर सर से पांव तक प्रेम रस में घुलीमिली मेघना को निहारते हुए मेहा जाने किन कल्पनाओं में डूबी जा रही थी.
सखियां आपस में बातें कर रही थीं पर मेहा कहीं और विचर रही थी. बॉय आकर चार छोटे ग्लास चाय रख गया और मेघना ने समोसे का भी ऑर्डर दे दिया. तभी मेहा की नज़र मेघना के पैरों पर पड़ी. अहा! कितने सोह रहे थे लाल महावर मेघना के गोरे-गोरे खूबसूरत पांवों पर! और उस पर चौड़ी पट्टी की पायल और चांदी की बिछिया… कुल मिला कर मेघना का रूप मेहा में ढेरों अरमान जगा गया था और उसकी अंतरंग बातों को सुनकर तो तीनों ही सखियों के चेहरे पर हल्की सी लालिमा दौड़ गई थी, जैसे ललछौंही आभा लिए एक नहीं कई चांद उग आए हों आसमान में… बातों का सिलसिला ख़त्म ही नहीं हो रहा था, पर अब क्लास जाने का समय हो गया. जूही ने सबकी किताबें उठा कर दीं, मेहा की किताबों को उसकी ओर बढ़ाया ही था कि उसमें से एक कार्डनुमा काग़ज़ नीचे ज़मीन पर गिरा, जूही ने झुक कर उठाया तो चौंक गई, ‘‘ये तस्वीर!’’
मेहा ने झट से छीन लिया जूही के हाथ से.
‘‘ओह! तभी मोहतरमा इतनी संजीदा हैं. ये माजरा है, पर तूने बताया क्यों नहीं?’’ मेघना ने पूछा.
‘‘अरे चलो जल्दी क्लास में ज़रा भी देर हुई कि सिस्टर मार्गेट अलाऊ ही नहीं करेंगी...’’ यह बोलती हुई मेहा सरपट चलने लगी तो उसकी तीनों सहेलियां भी अपनी-अपनी क्लास में चली गईं.
क्लासेज़ ख़त्म कर मेहा जब क्लास से बाहर निकली तो कॉरिडोर में उसकी नज़र जूही और मेघना को तलाशने लगी. फिर उन्हें ढूंढ़ते हुए पोर्टिको तक आ गई, पर दोनों को न मिलना था और न मिलीं. मेहा को तेज़ ग़ुस्सा आ रहा था. तभी उधर से गुज़रती हुई लड़कियों के झुंड में से एक ने कहा, ‘‘मेहा तू जूही और मेघना को ढूंढ़ रही है ना? उन दोनों को मैंने लाइब्रेरी की तरफ़ जाते देखा था.’’
इतना सुनना था कि मेहा लाइब्रेरी की ओर लपकी. कॉलेज की लाइब्रेरी तीनों सहेलियों की पसंदीदा जगह थी. वैसे भी विमेन्स कॉलेज की लाइब्रेरी पूरी यूनिवर्सिटी की नामी लाइब्रेरी थी, जहां घंटों रेफ़रेंस वर्क करतीं ये सहेलियां और चुपके-चुपके ख़ूब मस्ती भी करतीं.
लाइब्रेरी तक पहुंचते ही सबसे पहले उसने अपना बैग काउंटर पर पटका और झट से टोकन लेकर तेज़ी से भीतर घुस गई. चुपचाप एक स्थान पर खड़े होकर चारों ओर नज़र घुमाने लगी, पर कहीं न तो जूही दिखी न ही मेघना. चारों तरफ ढूंढ़ कर हार गई. भारी मन से काउंटर पर बैग कलेक्ट करने आई तो उसका अनमना उदास सा चेहरा देख कर सिस्टर ने पूछा, ‘‘वॉट हैपन्ड मेहा ? इज़ समथिंग रॉन्ग?’’
‘‘नो सिस्टर! नथिंग लाइक़ दैट,’’ मेहा ने लाइब्रेरियन से कहा और बाहर की ओर निकल गई. अब किससे कहती फिरे कि अपनी नालायक, आवारा सहेलियों को ढूंढ़ रही है, सो चुपचाप बाहर की ओर जाने लगी. कल ख़बर लेती हूं दोनों की , सोचते हुए कॉरिडोर की दाईं ओर झटके से मुड़ी ही थी कि किसी से टकराते-टकराते बच गई. संभल कर चेहरा उठा कर देखा तो अवाक् रह गई.
अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा, ‘‘अ्अमित तुम?’’
‘‘जी मैं!’’ अमित ने कहा. ‘‘अभी तो सर फूटते-फूटते बचा. ऐसा भी क्या बेज़ार होना?’’ कह कर अमित ने उसे प्यारभरी नज़रों से देखा और उसके होंठों पर वही चिरपरिचित मुस्कान पसर गई. ‘‘मेहा मैं बाहर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा हूं, फ़ौरन आओ.’’ इतना कह कर अमित तेज़ी से सीढ़ियां उतरते हुए कॉलेज से बाहर निकल गया.
मेहा ने आसपास देखा. लगभग सारी लड़कियां जा चुकी थीं, दो-तीन किसी के इंतज़ार में लॉन की घास पर बैठी गप्पें मार रही थीं. अमित बाहर इंतज़ार कर रहा होगा सोचकर थोड़ा सा मन गुदगुदाया और मुस्कुराते हुए वह बाहर गेट की ओर चल दी.
वहां पहुंचते ही उसने देखा कि अमित आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए अपनी बाईक पर बैठा लगभग स्टार्ट करने को है. बस उसी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है. बग़ैर कुछ बोले मेहा बाइक पर बैठ गई और बड़ी बेतकल्लुफ़ी से अमित के कंधे पर हाथ रख दिया. अमित ने बाइक स्टार्ट की और तेज़ रफ़्तार में चलाने लगा.
मेहा को अमित के संग यूं हवा में उड़ना बड़ा रूमानी लगता, पर मेहा ने कभी ज़ाहिर नहीं किया. वो भी कम चुप्पा बदमाश न थी. अमित की देह से आती मादक गंध उसे मदहोश करती हर बार, पर मजाल है कि मेहा अपने दिल की बात ज़ाहिर कर दे? कभी तो अमित के पीछे बैठी सपनों में खो जाती कभी उसका जी चाहता अमित की पीठ में अपना चेहरा छुपा कर उसे हाथों के घेरे में ले, कस कर भींच ले… पर संकोची दिल हमेशा आड़े आ जाता और दिल की बात रह जाती दिल में ही. मेहा चुपके-चुपके अभी लम्हों को पी ही रही थी कि बाइक हिचकोले खाकर रुक गई. देखा तो क्लब आ गया.
‘‘चलो थोड़ी देर गंगा किनारे बैठते हैं, वैसे अभी इस वक़्त भीड़ भी नहीं रहती तो इत्मिनान से बातें करेंगे,’’ अमित ने कहा.
मेहा ने चुपचाप हामी भरी और अमित के साथ हो ली. भीतर घुसते ही ठंडी हवा का झोंका आया और मेहा के दुप्पटे को लहरा गया. गंगा के किनारे से सटी क्लब की यह खुली-खुली जगह हरी दूब पर बिछी कुछ कुर्सियां और वहीं क़तार में खड़े हवा में लहराते नारियल के पेड़… प्रकृति, रूमानियत के फलक पर जैसे नई इबारतें लिख रही हो.
दोनों चुपचाप वहीं कुर्सी पर बैठ गए. अमित ने अपनी कुर्सी मेहा के बहुत क़रीब खींच ली और वहां खड़े वेटर से वेज कटलेट और कॉफ़ी लाने को कहा. वैसे भी एकांत पाने के लिए उसे वहां से हटाना ज़रूरी था.
वेटर के जाते ही अमित ने मेहा की हथेली अपने हाथों में ले ली और पूछा,‘‘मेहा! कुछ बोलोगी नहीं?’’
‘‘क्या कहूं?’’ मेहा ने धीमे से कहा.
‘‘पता है मेहा, बचपन से आज तक, जबसे तुम्हें देखा है, तुम्हारी ये सादगी जैसी की तैसी है. मैं न तुम्हारी इसी भोली सूरत पर मर मिटा. याद ही नहीं कब से इतनी बेइंतहा मोहब्बत करने लगा तुमसे. अच्छा बताओ मेहा, हमारी शादी में हमारी जाति तो आड़े नहीं आएगी न! तुम्हारे ख़ानदान में ऊंची जाति होने पर नीची जाति से ब्याह करना तो गुनाह ही होगा?’’
अमित की बातें मेहा को आंदोलित कर रही थीं. ख़ुद को संयत करती हुई बोली, ‘‘यही डर तो मुझे भी है अमित… पता नहीं पापा और भैया को कैसे मना पाऊंगी?’’
तभी वेटर स्नैक्स और कॉफ़ी टेबल पर रख गया और अमित ने रसीद पर साइन कर दिए और उसे टिप भी दे ही दी, ताकि दोबारा उसे आने की ज़रूरत ना पड़े.
कटलेट की प्लेट मेहा की ओर बढ़ाते हुए अमित ने कहा,‘‘हो सकता है मुझे एमबीए करने को बाहर जाना पड़े. मैं लौट कर आऊंगा मेहा, मेरा इंतज़ार करना.’’
मेहा ने अपनी सवालिया निगाहों से अमित की ओर देखा, उसे यक़ीन नहीं हुआ कि अमित उससे दूर चला जाएगा. अनायास ही सोच कर सिहर उठी कि जाने कब लौट कर आएगा वो. बिछोह की बात सोचकर, उसकी आंखें छलछला गईं. मेहा निशब्द थी. अमित भी भावुक हो उठा. बस हाथों में हाथ लिए दोनों जड़ बैठे रहे. सांसों आवाज़ सन्नाटे को भेद रही थी. दूर गंगा की लहरों में भी हलचल थी.
तभी अमित की नज़र कलाई घड़ी पर पड़ी, ‘‘अरे पाँच बज रहे हैं, मेहा. अब तुम्हें घर जाना चाहिए.’’
अमित की यही बात मेहा को बेहद पसंद है. परिस्थितियों को बहुत सही तरीक़े से समझना, महसूस करना उसकी विशेषता है.
दोनों उठे. अमित मेहा का हाथ थामे चलने लगा. मेहा को मोड़ पर रिक्शा मिल गया और अमित अपनी बाइक ले कर चल पड़ा.
घर पहुंचते ही मेहा ने देखा भाभी सबके लिए चाय बना रही हैं. उसे देखकर भाभी ने चाय के लिए पूछा तो उसने मना कर दिया, ‘‘नहीं भाभी, अभी कुछ देर पहले ही सहेलियों संग कॉफ़ी पी कर आई हूं.’’ इतना कह कर सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर अपने कमरे में चली गई . दरवाज़ा बंद कर निढाल बिस्तर पर पड़ गई. अमित का दूर जाना उसे साल रहा था. भीतर जैसे भूचाल आ गया था. उसका जी कर रहा था दौड़ कर जाए और अमित के गले लग कर ज़ोर-ज़ोर से रो ले. मेहा ने अपनी डायरी उठाई और आज की तारीख़ वाले सफ़हे पर लिखने लगी…
सूरज के ढलते ही उसकी हथेली मेरी उंगलियों के बंधन से छूट गई. नम पलकें ख़ामोश लंबी रातें, बेज़ार मन फूट ना सका, फफक कर रो ना सका, सूरज ढल गया! वीरान रात की रुपहली चांदनी भी मन को बहला न सकी. पल-पल विरह में जलती, मैं रोज़ कल का इंतज़ार करती, रोज़ तुम मिलते तो कैसा खिल जाता मन. आसमान में जैसे विहंसता चांद... फिर बिछोह के दंश को भी उतनी ही शिद्दत से झेलता मन… सदियां बीत गईं और जाने कितनी सदियों तक चलता रहेगा ये सिलसिला.
मेहा की आंखें नींद से बोझिल थीं. वह थक चुकी थी, डायरी बंद कर, वहीं तकिए के पास रख गहरी नींद में सो गई.
सुबह नींद खुली तो घडी सात बजा रही थी. अलसाई सी मेहा, जम्हाई लेते हुए, थोड़ी देर और सोने के फ़िराक़ में थी कि अचानक उसे याद आया कि आज तो हिस्ट्री के असाइन्मेंट्स जमा करने हैं. याद आते ही उसने झट से अपने लिहाफ़ को एक तरफ़ फेंका और फ़्रेश होने भागी. आनन-फानन में तैयार होकर पैर में कोल्हापुरी चप्पल डाली, स्टडी टेबल पर रखी फ़ाइल और बैग उठाया और धड़ाधड़ सीढ़ियां उतर कर नीचे आ गई.
बाहर निकलने ही वाली थी कि अम्मा ने टोका,‘‘अरी मेहा! बिना खाए-पिए ही कॉलेज चल दी?’’
‘‘हां मां, वहीं कैंटीन में कुछ खा लूंगी. मुझे जल्दी जाना है,’’ मेहा ने कहा.
तभी बिना कुछ बोले ही भाभी, ग्लास में ऑरेंज जूस लेकर आ गईं और मेहा के हाथ में थमाते हुए बोलीं, ‘‘पी लीजिए ख़ाली पेट घर से नहीं निकला करते.
भाभी का मनुहार मेहा टाल न सकी झट से गिलास लिया और खड़े-खड़े ही जूस गटक गई और गिलास डाइनिंग टेबल पर रखा और ‘थैंक यू भाभी’ कहते हुए झटक कर बाहर निकल गई. रिक्शा पकड़ा और कॉलेज चल दी.
कॉलेज पहुंचते ही बेल बजने की आवाज़ आई. थैंक गॉड ! टाइम से पहुंच गई, वरना आज तो सिस्टर मॉरी मॉरग्रेट जान ही निकाल लेतीं, सोचती हुई, लगभग भागती हुई क्लास पहुंची. सिस्टर अभी नहीं आई थीं, लड़कियों के शोर और गपशप के बीच उसने चुपचाप क्लास के पिछले दरवाज़े से एंट्री ली और जाकर पिछली बेंच पर बैठने ही वाली थी कि सिस्टर क्लास में घुसीं. पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया. पिनड्रॉप साइलेंस. सिस्टर ने अपनी संक्षिप्त प्रेयर के बाद क्लास मॉनीटर को सबके असाइंमेन्टस कलेक्ट करने को कहा और फिर नोट्स डिक्टेट कराने लगीं. पीरियड ओवर होने के बाद सबने गहरी सांस ली. सिस्टर मॉरी मार्गेट का पीरियड ओवर मतलब मस्ती.
अगली दो क्लासेज़ फ्री थीं, सो मेहा इत्मीनान से लाइब्रेरी जाने लगी. तभी सामने से मेघना और जूही आती दिखाई दीं, मेहा ने उन्हें अनदेखा किया पर वो कब मानने वाली थीं. मेहा को खींच कर पोर्टिको की ओर ले गईं, बाहर बने चबूतरे पर तीनों बैठ गईं. मेहा को चुप देख कर मेघना ने उसे ख़ूब गुदगुदाया और ‘सॉरी’ बोला, क्योंकि पिछले दिन मेहा का बग़ैर इंतज़ार किए वे दोनों कॉलेज से निकल गईं थीं. मेहा ने भी माफ़ किया और तीनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.
तीनों सखियों ने बातें तो ख़ूब की पर मेघना और जूही शायद मेहा की किताब से तस्वीर गिरने वाली बात भूल गईं. तभी उन दोनों ने उस विषय में न कोई बात की न ही कुछ पूछा. मेहा मन ही मन ख़ुश हुई चलो बला टली. सारी क्लासेस ख़त्म होते-होते शाम होने लगी थी. घर जाने का समय हो चला था.
घर पहुंचते ही मेहा ने देखा अम्मा बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रही हैं. पहले तो माजरा समझ में नहीं आया. मां ने जब पीछे के दरवाज़े से घर में घुसने को कहा तो उसका माथा ठनका. पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए, पीछे के किचन गार्डन से घुसकर वह आंगन में आ गई. चप्पल बदल कर ऊपर वाले अपने कमरे में जाने के लिए ज्यों ही सीढ़ियां चढ़ने ही वाली थी कि भाभी जल्दी से उसके क़रीब आईं और कहा, ‘‘मेहा जी! ऊपर जा कर, जल्दी से फ्रेश होकर साड़ी पहन लीजिए और तैयार हो जाइए. लड़के वाले आए हैं, नीचे आपका इंतज़ार हो रहा है.’’
मेहा को काटो तो ख़ून नहीं. अवाक् सी, ख़ुद को ठगा सा महसूस कर रही थी. भाभी से कुछ पूछती कि इससे पहले भाभी भीतर चली गईं.
मन में तूफ़ान लिए बोझिल क़दमों से सीढ़ियां चढ़ते हुए अपने कमरे में पहुंची. वहां देखा बेड पर साड़ी-ब्लाउज़, चूड़ियां, मैचिंग बिंदी वगैरह भाभी पहले ही वॉर्ड्रोब से निकाल कर रख गईं थीं.
इतना देखना था कि ग़ुस्से से दरवाज़ा ज़ोर से बंद कर, मेहा दरवाज़े से सट कर ही धम्म से ज़मीन पर बैठ गई. सिर चकराने लगा था उसका मन कर रहा था कि ज़ोर-ज़ोर से चीख़े, पर उसके मुंह से आवाज़ नहीं निकली. समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, किससे कहे मन की बात. सचमुच! कितनी ज़्यादती थी, एक बार पूछा तक नहीं. कम-से-कम भाभी तो पूछ सकती थीं न! कि आपकी क्या मर्ज़ी है? अब विरोध करे तो कैसे करे, घर आए मेहमानों के सामने? मेहा ऊहापोह में थी कि बाहर से दरवाज़ा पीटने की आवाज़ ने उसकी तंद्रा भंग की.
‘‘मेहा जी! तैयार हो गईं दरवाज़ा तो खोलिए,’’ ये भाभी थीं.
मेहा ने धीरे से चिटकिनी खोल दी और चुपचाप बेड के कोने पर बैठ गई.
‘‘अरे! अभी तक तैयार भी नहीं हुईं? चलिए जल्दी हम पहना देते हैं साड़ी.’’
मेहा बेमन से उठी और तैयार होने लगी. भाभी मुस्तैदी से तैयार करवाने में जुट गईं. मेहा के हाथों में चूड़ियां डालते हुए बड़े प्यार से कहने लगीं, ‘‘बड़ा अच्छा घर-बार है. बहुत ही सज्जन परिवार है. लेन-देन की बात है ही नहीं, उन लोगों ने पहले ही स्पष्ट कह दिया है. और लड़का तो ऐसा सुदर्शन है कि मुझे तो पहली नज़र में ही भा गया. बहुत अच्छे जॉब में भी है. आप भी देखेंगी तो एक नज़र में ही प्यार हो जाएगा…’’ भाभी मगन थीं, बोलती जा रहीं थीं. मेहा की चुप्पी देख कर उन्हें लगा कि वह शरमा रही है सो मेहा को अपनी कोहनी से हल्की सी ठुनक देकर हंस पड़ीं, पर मेहा जस की तस जड़ बैठी रही.
मेहा को तैयार करा कर भाभी उसके साथ ही नीचे उतरने लगीं, एक सीढ़ी उतरी ही थीं कि मेहा ने भाभी का हाथ कस कर पकड़ लिया और कातर स्वर में बोली, ‘‘बस करो भाभी, मुझे नहीं करनी ये शादी. प्लीज़.’’
मेहा का यह व्यवहार देख कर भाभी बिफर पड़ीं, ‘‘क्या तमाशा है मेहा? नीचे सब लोग आपके इंतज़ार में बैठे हैं और क्यों नहीं करनी शादी? लड़का, घर- परिवार सब इतना बेहतरीन है. लड़के की सैलरी इतनी अच्छी है,आख़िर कमी कहां है? दोनों ननद-भाभी की खुसुर-पुसुर सुन कर अम्मा वहां आ गईं.
उन दोनों को देखते बोलीं, ‘‘अरे जल्दी करो. वो लोग कब से इंतज़ार कर रहे हैं.’’
अम्मा को सामने देखकर दोनों सामान्य होने की कोशिश करने लगीं. मेहा के हाथ में चाय की ट्रे थमा कर, भाभी उसके साथ लिविंग रूम तक गईं और ख़ुद ही सबको चाय सर्व कर दी. मेहा वहीं सोफ़े पर बैठ गई. थोड़ी-बहुत बातचीत के बाद लड़के की मां ने कहा कि बिटिया को अंदर जाना है तो जाने दीजिए. भाभी मेहा के साथ ही थीं, दोनों भीतर कमरे में चली गईं.
मेहा तो उदास थी ही, भाभी भी मेहा की बातों से अनमनी थी. भीतर आते ही मेहा अपने कमरे में चली गई और भाभी भी उसके पीछे-पीछे हो लीं. बग़ैर कपड़े बदले ही मेहा बिस्तर पर औंधे मुंह लेट कर तकिए में मुंह छुपा कर सुबकने लगी. मेहा की ये हालत देख भाभी से रहा नहीं गया.
मेहा के सिरहाने बैठ उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए कहने लगीं, ‘‘मेहा! आख़िर ससुराल तो हर लड़की को ही जाना पड़ता है न! यूं दुखी न होईए. देखिए आपके साथ मैं भी कितनी उदास हूं.’’ भाभी की बातों का मेहा ने कोई जबाब नहीं दिया.
दोनों चुप थीं. कमरे में सन्नाटा था. ऊपर रौशनदान पर थोड़ी हलचल थी. गौरैय्ये का जोड़ा घोंसले बनाने में मशगूल था. उनकी चीं-चीं हवा के तारों को छेड़ रही थीं, जैसे कोई अनाड़ी उंगलियां सितार बजा रही हों. चिड़ा-चिड़िया दोनों बारी-बारी तिनका लाते रौशनदान पर रखते, कुछ नीचे भी गिर जाते किन्तु उनके प्रयास में कोई कमी नहीं थी. बड़ा ही प्यारा लग रहा था उनका तिनका-तिनका जोड़ कर घोंसले को तैयार करना. मेहा तो औंधे मुंह लेटी थी किन्तु भाभी एकटक गौरय्यों को देखती जा रही थीं. शायद लौटने लगी हों भीतर अपने, सिकुड़े आकाश को विस्तार देने.
तभी मेहा झटके से उठ बैठी. उसके मुरझाए हुए चेहरे को देख भाभी बोली, ‘‘मेहा! क्या हुआ? तबियत तो ठीक है न!’’
मेहा सेकेंड भर रुकी फिर बोली, ‘‘भाभी एक बात पूछूं?’’
‘‘हां, पूछिए न! इजाज़त लेने की क्या ज़रूरत है?’’
‘‘नहीं ऐसे नहीं,’’ यह कह कर भाभी की हथेली खींचते हुए अपने सिर पर रख कर बोली, ‘‘खाइए मेरी सौगंध कि आप सच-सच बताएंगी.’’
भाभी ने लगभग अपना हाथ खींचते हुए कहा, ‘‘क्या बचपना है मेहू? बात क्या है?’’
‘‘नहीं, ऐसे नहीं. पहले खाइए मेरी सौगंध,’’ मेहा बोली.
’’ओफ़्फ़हो आप भी न! चलिए खाई सौगंध,’’ अब तो बोलिए.
‘‘भाभी!’’ मेहा ने उनकी आंखों में आंखें डाल कर कहा, ‘‘सच बताना भाभी, शादी से पहले आपने कभी प्यार किया है?’’
भाभी मेहा को परे धकेलती हुई बोलीं, ‘‘ये क्या बचपना है मेहा? जब जो जी में आया बोलती हो…’’ उनकी आवाज़ में तल्ख़ी थी.
‘‘देखो भाभी, आपने सौगंध खाई है. मैंने कई बार आपकी आंखों में एक तड़प देखी है. ये और बात है कि आप भैया को बहुत चाहती हैं, उनका ध्यान रखती हैं. मां-पापा को आप इतना आदर देती हैं, पूरा घर संभालती हैं पर क्या आप अपने पिछले प्यार को भूल पाईं भाभी? क्या आज भी आपके भीतर कुछ छूटा हुआ, पिघलता नहीं है, टीसता नहीं है...?’’
‘‘बस करो मेहा,’’ भाभी अपने कानों पर हाथ रख कर चीख़ीं, ‘‘आख़िर चाहती क्या हैं आप?’’
‘‘भाभी नाराज़ ना हो… आप से बेहतर मुझे कौन समझेगा? भाभी, आप ही मां-पापा और भैया को मना सकती हैं, अमित से मेरी शादी के लिए.
मैं अमित से प्यार करती हूं भाभी. हम दोनों शादी करना चाहते हैं. घर में सभी अमित को बचपन से जानते हैं. हम लोग पड़ोस में रहा करते थे. आपने भी तो अपनी शादी में उसे देखा होगा, भैया का कितना चहेता था वो. पर जब से मां- पापा को भनक लगी है कि मैं उससे शादी करना चाहती हूं, तबसे मेरे लिए लड़के देखे जा रहे हैं, ताकि जल्दी से मेरा ब्याह कर सब गंगा नहा लें. भाभी, अमित का घर-बार संपन्न है. ख़ुद भी इतना हैंडसम है और पढ़ने में मेधावी रहा है. जब एमबीए कर, जॉब करेगा तो कमी कहां है? कमी शायद उसकी जाति में है, उसमें नहीं. भाभी,बताइए ये जात-पात के चक्कर में दो प्यारभरे दिलों की समाधि बन जाएगी. अमित के बग़ैर ना मैं ख़ुश रह सकूंगी, ना ही मेरे बग़ैर अमित… क्या हुआ जो वो नीची जाति का है, मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता. पर इतना तो तय है कि मैं उसके बग़ैर जीते जी मर जाऊंगी, भाभी. प्लीज़ कुछ करो भाभी…’’ कहते-कहते मेहा फफक कर रो पड़ी.
भाभी का भी मन छलनी हो गया. मन ही मन सोचा इसके प्यार की बलि नहीं होने दूंगी. मेहा को चुप कराते-कराते ख़ुद की आंखों से कब आंसू झरने लगे पता ही न लगा. दोनों ननद-भाभी गले लग कर ख़ूब रोईं. तभी किसी के सीढ़ी चढ़ने की आवाज़ आई. आवाज़ सुनते ही दोनों संभल गईं और बनावटी बातें कर खिलखिलाने का अभिनय करने लगीं. तब तक भैया ऊपर आ चुके थे, भाभी को आवाज़ लगाते हुए . शायद मेहमानों को विदा करना था. भाभी ने जल्दी से अपने को सहज किया और भैया के पीछे सीढ़ियां उतर कर मां के पास चली गईं.
शाम हुई. मेहा मन बहलाने के लिए टैरेस पर गई तो देखा, भाभी झूले पर बैठी हौले- हौले झूल रही हैं और जाने किन ख़्यालों में खोईं हैं कि मेहा के आने का भी भान नहीं हुआ. मेहा धीरे से झूले पर उनके बग़ल में जब बैठी तो भाभी चौंक गईं, पर कुछ नहीं बोलीं. वातावरण ज़रा बोझिल तो था ही, मेहा भी समझ नहीं पा रही थी कि बात कहां से शुरू करे.
तभी भाभी चुप्पी तोड़ते हुए बोलीं, ‘‘मेहा! मैंने बहुत सोचा अपने अतीत के बारे में, आपके भविष्य के बारे में, बीता हुआ तो कभी नहीं लौटता न मेहा! समय पर यदि सही निर्णय नहीं लिया गया तो ज़िन्दगी भर पछतावे के सिवा कुछ हासिल नहीं होता. बार-बार जाने लोग प्यार का गला क्यों घोंटना चाहते हैं? हमसे तो अच्छे ये आज़ाद ये परिंदे हैं. प्रेम करते हैं बिना किसी रोक-टोक. प्रेम है तो संसार है, फिर भी सभी प्रेम के दुश्मन बने बैठे हैं मसला चाहे कोई हो, कहीं गोत्र, कहीं जाति तो कहीं धर्म आड़े आ जाता है और दो प्यार करने वाले बिछोह में बिता देते हैं पूरा जीवन… जाने क्यों?’’
भाभी बोलती जा रही थीं, मेहा चुपचाप सुन रही थी.
‘‘…हां तुमने सही कहा मेरे मन की बात भी दफ़्न हो कर रह गई मेरे मन में, लेकिन मैंने सोच लिया है, तुम्हारी लड़ाई मैं ज़रूर लड़ूंगी और तुम्हें हारने नहीं दूंगी. शायद तभी मेरे दहकते मन को शीतलता पहुंचे. वरना मेरी आत्मा मुझे बहुत धिक्कारती ही रहेगी. आप इत्मीनान से रहिए आपके भैया को मैं इस रिश्ते के लिए मना लूंगी आपके भैया मां-पापा को.’’
इतना सुनना था कि मेहा ने भाभी को अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ कर, उनके गाल पर एक चुंबन जड़ दिया और उनके कंधों पर अपना सर रख कर आंखें मूंदे ख़्यालों में खो गई. बंद आंखों से मेहा, मेघना के पैरों के पायल और महावर को याद करने लगी.