मेरे फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी. कोई नंबर था. मैंने नहीं उठाया.
किसे सपना आया होगा कि मेरे जिगरी दोस्त करण की गर्लफ्रेंड मुझसे बात करना चाहती है? मेरे पास ज़ाहिर है उसका फ़ोन नंबर सेव्ड नहीं था.
अपने दोस्त की गर्लफ्रेंड का नंबर सेव्ड होना भी क्यों चाहिए?
लगातार दो-तीन कॉल. मैंने नहीं उठाया. मेरा मोबाइल बता रहा था किसी एलएस का कॉल है.
शाम से ले कर रात तक पांच कॉल. मैं ब्लॉक करने ही वाला था कि मैसेज आ गया: अभि, मैं लतिका शरण. तुमसे मिली थी करण के साथ. तुमसे ज़रूरी काम है. प्लीज़ कॉल करो.
करण… मेरा जिगरी यार. लतिका उसकी एक्स गर्ल फ्रेंड. लगभग तीन महीने पहले करण ने बताया था कि उसका लैटी के साथ ब्रेकअप हो गया है. मैंने इस बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया. करण ने यह भी बताया था कि अब वो शादी करना चाहता है. उसकी मम्मी उसके लिए लड़की देख रही है. मैं हंसने लगा था, ‘यार, ये क्या चक्कर है? तू अरैंज्ड मैरिज करेगा?’
वो थोड़ा नाराज़ हो गया, ‘तो? इसमें ग.लत क्या है? मम्मी जानती है मेरी पसंद. फिर लड़की को भी तो फ़ैमिली में एडजस्ट होना होगा.’
‘तूने लतिका को अपनी मम्मी से मिलाया है कि नहीं?
’करण ने मुझे घूर कर देखा, ‘मतलब? मैं पागल हूं, पर उतना भी नहीं. लतिका को मम्मी से मिलवाने की बात कहां से आ गई?’
‘तूने ही कहा था. तुम दोनों भोपाल जाने की सोच रहे थे.’
‘अभि, मेरे भाई, वो अलग दिन थे. मैं लैटी को ले कर सीरियस हो गया था. पर ब्रो, एक बात बता. जिस लड़की ने अपने ऊपर बारह टैटू बना रखा हो, क्या उस पर यक़ीन किया जा सकता है?’
मैं भड़क गया, ‘यू आर सो स्टुपिड. अब तू टैटू गिन कर कैरेक्टर सर्टिफिकेट देगा? उसने तेरे नाम का भी एक टैटू बना रखा था स्साले…’
इस बात का करण के पास कोई जवाब नहीं था. लतिका के दाएं कंधे पर करण लिखा था, काले रंग से, एन के ऊपर तितली बनी थी. करण ने बताया था कि उसके जन्मदिन के दिन लतिका उसे टैटू पार्लर साथ ले कर गई थी. उसके सामने अपने कंधे पर उसका नाम लिखवाया. वह दर्द से होंठ भींचे बैठी थी. करण ने घबरा कर कहा भी, बेबी, ज़्यादा दर्द हो रहा है तो रहने दो. क्यों कर रही हो यह सब?
लतिका ने मुस्कराने की कोशिश की थी और धीरे से बोली थी, ‘स्टुपिड, तुम्हें इम्प्रैस कर रही हूं.’
पर उसने कभी करण से यह नहीं कहा कि वो भी उसके नाम का टैटू बनवा ले.
उस लड़की से अपने ब्रेकअप की बात करण कितनी आसानी से कह रहा था. उसके चेहरे पर कोई दुख नहीं था, ना कोई पछतावा. ज़ाहिर था, वो तय कर चुका था.
–
रात को लगभग साढ़े ग्यारह बजे मैंने लतिका के फ़ोन पर कॉल किया. दो रिंग जाते ही कट कर दिया. दो सेकेंड में उसका कॉल आ गया, ‘‘अभि… तुमने फ़ोन काट क्यों दिया?’’
‘‘मुझे लगा, तुम सो गई होगी.’’
‘‘नहीं, मैं तुम्हारे फ़ोन का इंतज़ार कर रही थी.’’
‘‘हम्म. कुछ बात करनी थी?’‘
‘‘हां, ये बता, करण कहां है? उसका फ़ोन कई दिनों से स्विच्ड ऑफ़ आ रहा है. मैं उसके फ़्लैट में गई थी, वो भी बंद है. वॉचमैन बता रहा था कि करण ने वो घर छोड़ दिया है. ऑफ़िस भी नहीं आ रहा. तुम्हें उसके बारे में कुछ पता है क्या?’‘
‘‘नहीं. करण से काफ़ी दिनों से बात नहीं हुई.’‘
‘‘अच्छा. पर अभि, तुम दोनों तो बहुत क्लोज़ हो… कुछ तो बताया होगा तुम्हें?’‘
‘‘हां, बताया था, ब्रेकअप के बारे में. दो महीने की बात है.’‘
‘‘ब्रेकअप? अभि, तुम्हारा दोस्त एक नंबर का झूठा है. ऐसा कुछ नहीं हुआ था. बस हम दोनों के बीच थोड़ी बहस हो गई थी. और उसने ब्रेकअप समझ लिया?’‘
‘‘लतिका, ये सब मुझे क्यों बता रही हो? मुझे जो पता था, बता दिया.’‘
‘‘नाराज़ मत हो यार. मैं तो बस एक बार उस उल्लू के पठ्ठे से मिलना चाहती हूं.’‘
मैं चुप हो गया. मेरे पास लतिका को बताने के लिए और कुछ नहीं था. सच तो यह था कि मैं लतिका को उतनी अच्छी तरह जानता भी नहीं था. जब भी मिला, करण के साथ मिला. हम तीनों पार्टी करते, खाते-पीते, पिक्चर देखते. मनमौजी थी लतिका. करण की तरह घर-घुस्सू नहीं. उसने करण का भी हुलिया बदल दिया था. गदबदे करण को रोज़ सुबह पांच किलोमीटर दौड़ा देती, जंक फ़ूड बंद. सालभर में करण ने पंद्रह किलो वज़न कम कर लिया. एकदम सही लगने लगा था.
‘‘अभि, तुम चुप क्यों हो गए?’‘
मैं धीरे से बोला, ‘‘लतिका, आइ एम रियली सॉरी. पर मुझे करण के बारे में कुछ नहीं पता. कल फ़ोन करूंगा.’‘
लतिका ने फ़ोन रख दिया. मैंने करण को फ़ोन लगाया, वाक़ई उसका नंबर बंद था.
कमरे में आ कर मैंने टीवी चला लिया. सीरीज़ का पहला एपिसोड अभी ख़त्म भी नहीं हुआ था कि दरवाज़े पर घंटी बजने लगी. मैं चौंक गया. इतनी रात गए कौन हो सकता है? मैंने खाने-पीने के लिए कुछ मंगवाया भी नहीं है जो कोई डिलीवरी देने आया होगा.
की होल से झांक कर देखा, सामने लतिका खड़ी थी. अपने कंधे पर बैग उठाए, उत्सुकता से दरवाज़े की तरफ़ देख रही थी. मेरे दरवाज़ा खोलते ही चहक कर बोली, ‘‘अभि, तुम सो तो नहीं गए? मुझे लगा फ़ोन पर बात करने से अच्छा है सामने मिल कर करूं. मैं तुम्हारे घर के पास अपने एक दोस्त के साथ ठहरी हूं.’‘
मैंने अंदर आने का रास्ता बनाया. वो आराम से कमरे में आ गई. कंधे पर टंगा बैग पैक खोल कर नीचे रखा और खुद ही जा कर फ्रिज से पानी की बोतल उठा लाई और बोतल मुंह में लगा कर गटागट पीने लगी.
पीले रंग के बैगी पैंट और क्रॉप टी शर्ट में वो टीनएजर सी लग रही थी. अपने घुंघराले बालों की उसने दो चोटी बनाई हुई थी. आंखों में ख़ूब सारा काजल लगा रखा था, जो अब आंखों के अंदर-बाहर फैल गया था.
पानी पी कर वो नीचे बिछे गद्दे पर फैल कर बैठ गई. आश्चर्य की बात थी कि इस समय उसके शरीर पर बारह क्या, एक भी टैटू नजर नहीं आ रहा था.
मैं मोढ़ा खींच कर उसके सामने बैठ गया, ‘‘लतिका, तुम कल भी तो आ सकती थी? इतनी रात को क्या काम पड़ गया?’‘
‘‘क्यों? नहीं आना चाहिए? अगर मेरी जगह करण होता तब भी यही कहते? यार, दोस्त टाइम और दिन पूछ कर थोड़े ही आते हैं!’‘
मैं चुपचाप सिर हिलाने लगा. लतिका कुछ देर चुप रही, फिर अचानक बोली, ‘‘यार अभि, मुझे करण से बात करनी है. मिलना है. ज़रूरी है. मैंने सब करके देख लिया. फिर लगा, तुम ही हो जो मेरी मदद कर सकते हो.’‘
‘‘मैंने उसका नंबर लगाया था, बंद है.’‘
‘‘तुम्हारा बचपन का यार है. कुछ तो जानते होगे उसके बारे में?’‘
मैं सिर हिलाने लगा.
जानता था. उसके घर के बारे में, परिवार के बारे में. उसके पापा का नंबर भी होना चाहिए मेरे पास. पर मैं लतिका को क्यों दूं? मेरा दोस्त करण है, लतिका नहीं.
लतिका अपना बैग खोलने लगी. उसमें से उसने एक पैकेट निकाला, मेरे सामने रखती हुई बोली, ‘‘खोल कर देखो.’‘
‘‘क्या है इसमें?’‘
‘‘कुछ है. देखोगे तो समझ जाओेगे, मैं करण को क्यों ढूंढ रही हूं.’‘
मैंने आगे बढ़ कर पैकेट खोला. ब्राउन रंग के पैकेट में एक लाल रंग का लहंगा था और उसी रंग का नेट का दुपट्टा था.
‘‘ये क्या है?’‘
‘‘नहीं समझे? लहंगा है बाबा. मेरे हॉस्टल वाले ऐड्रेस में पिछले हफ़्ते कोरियर से आया है.’‘
‘‘किसने भेजा है?’‘
‘‘देखो ना. करण शंकर का नाम लिखा है. कोई राजस्थान का कारीगर है, उसे तीन महीने पहले ऑर्डर किया था.’‘
मैं सिर हिलाने लगा.
लतिका मेरे पास आ गई, ‘‘करण ने मेरे लिए लाल लहंगा बनवाया है. इसका मतलब तो यही हुआ ना कि वो मुझे प्रपोज़ करना चाहता था. मुझसे ग़लती हो गई यार. मैंने बेकार उससे झगड़ा कर लिया. मुझे पता ही नहीं था कि वो मुझे इतना चाहता है.’‘
मैं चिढ़ गया, ‘‘ये उसने कहा?’‘
वह मेरा चेहरा देखने लगी और झल्ला कर बोली, ‘‘तुम्हें समझ नहीं आ रहा? कोई बंदा एक लड़की को लाल लहंगा प्रेजेंट कर रहा है, तो क्यों कर रहा है? होली जलाने?’‘
मैं चुप हो गया. लतिका ने लहंगा वापस पैकेट में रख दिया और थोड़ा रिलैक्स हो कर बोली, ‘‘देखो अभि, हम दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई. मैंने उसे गाली दी, उसने मुझे. ऐसा हमेशा होता है. पर उस दिन बात थोड़ी बढ़ गई. उसने कुछ ऐसा कह दिया जो मुझे बुरा लग गया. मैं तुरंत अपना बैग ले कर उसके घर से बाहर निकल आई.’‘
‘‘यानी ब्रेकअप तुमने किया था?’‘
‘‘ब्रेकअप जैसा कुछ नहीं था ब्रो. बहसबाजी थी. दोनों को एक चेंज की ज़रूरत थी. मैं अपने घर चली गई. पिछले हफ़्ते ही लौटी हूं.’‘
‘‘उसके बाद करण ने तुमसे बात नहीं की?’‘
‘‘मैंने उसका नंबर ब्लॉक कर दिया था. मुझे पता नहीं. करण वैसे बहुत सेंसिटिव बंदा है. उसने ज़रूर फ़ोन किया होगा. मुझे उसे सॉरी कहना है, और भी बहुत कुछ. मैंने घर में बता दिया है कि मैं और करण एक-दूसरे से प्यार करते हैं, लिव इन में भी रह चुके हैं. वो मान गए हैं. पापा करण से वैसे मिल चुके हैं. वे कह रहे थे जल्द ही करण के घर जाएंगे बात करने.’‘
‘‘बात? कौन सी बात?’‘
‘‘क्या तुम हमेशा से इतने स्टुपिड हो अभि? मेरे पापा करण के घर जा कर और क्या बात करेंगे? उनके घर की बंद नाली के बारे में बात करेंगे या ये पता करने जाएंगे कि उनके घर में जो पालतू कुत्ता है वो मेल है या फ़ीमेल?’‘
मैं खिसिया कर चुप हो गया. करण भी अजीब है, जब लड़की से अलग होना था तो उसे लहंगा वो भी लाल रंग का देने की क्या ज़रूरत थी?
लतिका ने अचानक पूछा, ‘‘क्या आज रात को मैं यहां रह सकती हूं?’‘
मैं अचकचा गया. ना कहते नहीं बना, हां कहने का मन नहीं हुआ. पर लतिका ने मेरे कुछ ना कहने को हां मान लिया.
वो वॉशरूम में जाकर कपड़े बदल आई. शॉर्ट्स और टीशर्ट में मेरे सामने आ कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं ड्राइंग रूम में सोफ़े पर सो जाऊंगी. तुम सुबह कितने बजे उठते हो?’‘
‘‘कल छुट्टी है. आराम से उठूंगा.’‘
‘‘तब तो ठीक है. प्लीज़ कल मेरा काम कर देना. करण को किसी भी हाल में ढूंढना है. अभि, मैं बहुत तनाव में हूं. मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा. मैं ऑफ़िस भी नहीं जा पा रही. एक बार करण से मिल लूं, तो सब ठीक हो जाएगा.’‘
मैं सिर हिलाते हुए अपने कमरे में आ गया. रात के एक बज रहे थे. पता नहीं, इस समय किसी को फ़ोन करना चाहिए भी नहीं. पर मैंने कुछ सोच कर भोपाल में करण के पड़ोसी और मेरा भी दोस्त सोम को फ़ोन कर दिया. सोम ने फ़ोन बहुत देर बाद उठाया.
‘‘यार अभि, सब ठीक है ना? क्या तू हॉस्पिटल में है? इतनी रात को फ़ोन कर रहा है?’‘
मैंने अपनी आवाज़ को नीचे रखते हुए कहा, ‘‘सॉरी यार सोम. वो मैं टीवी देख रहा था, पता ही नहीं चला कि इतनी रात हो गई. क्या करण के बारे में कोई ख़बर है? वो वहीं है ना भोपाल में?’‘
‘‘हां, है तो. आज शाम को ही मिला था उससे.’‘
‘‘उसने अपना नंबर बदल लिया है.’‘
‘‘ऐसा क्या?’‘
‘‘मुझे उससे काम था. तेरे पास है उसका नंबर?’‘
‘‘हां, अभी भेजता हूं. सुबह हम मिल रहे हैं. उससे कह दूंगा. तू आ रहा है ना उसकी एंगेजमेंट में?’‘
मैंने बड़बड़ाकर कुछ कहा और फ़ोन रख दिया. स्साला, कमीना, मुझे बताए बिना सगाई कर रहा है!
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अगले दिन सुबह मेरी आंख जल्दी खुल गई. समझ नहीं आया, कहां हूं. मेरे कमरे तक एक अच्छी-सी ख़ुशबू आ रही थी. थोड़ी देर में समझ आया कि मसालों की ख़ुशबू है. मैं हड़बड़ा कर उठा. मेरे कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ था. मैंने झांक कर बाहर देखा, किचन में एप्रन पहन कर लतिका लगी हुई थी कुछ बनाने में.
कानों में उसने ईयर प्लग रखा था, गाना सुनते हुए झूम रही थी. थोड़ा पास जाने के बाद मैंने देखा, वो कड़ाही में गर्म-गर्म पूरियां तल रही थीं. दूसरी तरफ पैन में मसालेदार सब्ज़ी खदक रही थी.
क्या ये मेरा ही घर और किचन है? यहां इससे पहले पूरियां कब बनी थीं? याद ही नहीं आ रहा. शायद सालभर पहले जब मां कुछ दिनों के लिए मेरे पास रहने आई थीं.
ये मेरे उम्र की लड़की सुबह-सुबह पूरियां बना रही हैं? क्या हम ज़ोमैटो और स्विगी वाली जनरेशन नहीं हैं, जो बनाने से ज़्यादा मंगाने पर यक़ीन करते हैं और जिन्हें गर्म खाने से एलर्जी होती है?
नाचती-कूदती लतिका फ्रिज खोलने लगी. अचानक उसकी निगाह मुझ पर पड़ी. कानों से ईयर प्लग निकाल कर उसने कुछ ज़ोर से कहा, ‘‘अभि, तुम्हारे फ्रिज में नीबू है?’‘
मैंने नहीं में सिर हिलाया.
‘‘चलो, कोई नहीं, बिना नीबू को काम चला लूंगी. तुमने अगर ब्रश कर लिया हो तो आ जाओ, नाश्ता करते हैं.’‘
इतनी सुबह खाने की मुझे आदत नहीं थी. पर खाने की ख़ुशबू कुछ ऐसी थी कि मैं फटाफट मुंह धो-पोंछ कर आ गया.
लतिका ने मेरे हाथ में फूली हुई पूरियों की प्लेट थमा दी. एक कटोरी में सब्ज़ी, साथ में प्याज़ और हरी मिर्च.
‘‘यार अभि, ना तुम्हारे घर में अचार है ना दही. फ्रिज के तो क्या ही कहने. ब्रेकफ़ास्ट के बाद मैं उसकी सफ़ाई करने वाली हूं. तुम्हें आयडिया नहीं होगा कि तुम्हारे फ्रिज में सौ साल पुरानी दाल, पांच सौ साल पुराना पिज़्ज़ा और…’‘
मैं मुस्कराने लगा, ‘‘पांच सौ साल पहले पिज़्ज़ा कहां होता था?’‘
‘‘हम्मम… सच कह रही हूं अभि, इतनी सारी पुरानी चीज़ें हैं, तुम क्या कुछ फेंकते नहीं हो?’‘
‘‘महीने में एक बार सर्वेंट को कह देता हूं.’‘
‘‘गनीमत है, आधे घंटे की तलाशी के बाद मुझे फ्रिज के एक कोने में आटा और वॉशिंग मशीन कर बास्केट में आलू मिल गए… ‘‘
मैं चुपचाप बैठ कर खाने लगा. मैं तो इस बात पर अभी भी चौंका हुआ था कि इस घुन्नी लड़की को मेरी किचन में आटा और आलू कैसे मिल गया? एक साल पहले मां आई थीं, उसी वक्त लिया था थोड़ा-बहुत राशन.
लतिका ने सब्ज़ी वाक़ई दमदार बनाई थी. मैं एक के बाद एक नौ पूरियां खा गया. उसने चाय भी बना कर पिलाई. अपना कप ले कर वो मेरे सामने आ कर बैठ गई.
‘‘मेरी रिश्वत कुछ काम आएगी या नहीं?’‘
मैं चाय का घूंट भरने लगा.
अचानक मेरे मुंह से निकल गया, ‘‘चलो, चलते हैं.’‘
‘‘कहां?’‘
‘‘भोपाल!’‘
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मैं और करण भोपाल में एक ही स्कूल में पढ़ते थे. भोपाल में मेरी बुआ रहती थीं. उनकी तबीयत भी कुछ दिनों से ठीक नहीं थी. रायपुर में रहने वाली मेरी मां कई बार कह चुकी थीं कि टाइम मिले तो उनसे एक बार मिल आ.
मैंने मोबाइल में चेक किया. दोपहर को भोपाल जाने वाली फ़्लाइट में टिकट मिल रही थी. मैंने दो टिकट बुक कर लिए.
लतिका ने मुझसे पलट कर नहीं पूछा कि हम कहां जा रहे हैं. वह तैयार हो कर आ गई. उस लड़की की यह बात मुझे जम गई, उसे ज़िंदगी में किसी भी स्थिति में लड़ना आता था. कोई सवाल नहीं, कोई नखरा नहीं.
हम भोपाल पहुंचे तो शाम हो चुकी थी. सीधे ऑटो ले कर बुआ के घर पहुंचे.
बुआ वाक़ई बीमार थीं. मुझे देख कर ख़ूब ख़ुश हुईं. काम करने वाले मंजी काका को बुला कर रात के खाने पर ना जाने कितनी डिशेज़ बनाने को कह दिया.
मैंने बुआ से कहा कि मैं ऑफ़िस के काम से आया हूं, एम महिला कलीग के साथ. बुआ ने बिना रुके कहा, ‘‘हां, तो? इस बहाने आया तो सही. तेरी दोस्त यहां रुक जाएगी तो कोई दिक़्क़त नहीं. इतना बड़ा तो घर है.’‘
मेरे पास करण का नंबर आ गया था. मैंने करण को फ़ोन लगाया. वो उछल गया, ‘‘ओ अभि, मैं तुझे याद कर रहा था. तू है कहां? यार, तुझसे मिलना है.’‘
मेरी आवाज शांत थी, ‘‘तू चाहे तो अभी मिल सकता है. बुआ से मिलने भोपाल आया हूं.’‘
‘‘क्या? रुक स्साले. मैं एक घंटे में आ रहा हूं.’‘
मैंने लतिका को नहीं बताया कि करण घर आने वाला है. लतिका बुआ के पास बैठी उनसे गप लड़ा रही थीं. बुआ बैंक से हाल-फ़िलहाल रिटायर हुई थीं. उनके पास बातों का ख़ज़ाना था. मेरी बुआ ने शादी नहीं की थी और परिवार में खुसफुसाहट थी कि वो अपनी एक गर्ल फ्रेंड की वजह से शादी नहीं कर रहीं. वैसे हम में से किसी ने उनके साथ कभी कोई महिला दोस्त कभी देखी नहीं.
हमारे साथ खाना खाने बुआ भी उठ कर बाहर आ गईं. बुआ के घर के आंगन में लगी कुर्सियों पर बैठ कर हमने खाना खाया.
बुआ देर तक हमारे साथ बैठी रहीं. थकने लगीं तो उसे लतिका कमरे में लिटा कर आ गई.
लौटते समय वो हम दोनों के लिए कॉफ़ी बना लाई.
केन की कुर्सी पर उकड़ू बैठते हुए लतिका ने मेरी तरफ़ सवाल उछाला, ‘‘तुम्हें यहां रहने का मन नहीं करता? इतना सुंदर घर है…’‘
‘‘मेरा बचपन यहीं बीता है…’‘
‘‘और तुम्हारा दोस्त, वो कहां रहता है?’‘
मैं लतिका के चेहरे पर कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा, ‘‘क्या तुम अभी भी करण को ले कर सीरियस हो?’‘
‘‘क्यों पूछ रहे हो?’‘
‘‘ऐसे ही. मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं. बहुत प्रैक्टिकल बंदा है. जहां फ़रयदा नज़र नहीं आता, वहां उंगली भी नहीं रखता.’‘
‘‘मैं प्रॉफ़िट ऐंड लॉस अकाउंट हूं क्या?’‘
मैं चुप हो गया.
‘‘अभि, तुम मुझसे कुछ छिपा तो नहीं रहे?’‘
‘‘हां, थोड़ी देर में समझ जाओगी. पर लतिका, मुझे लगता है तुम बहुत इमोशनल हो रही हो. रिश्तों को ज़बरदस्ती पकड़ कर रखोगी तो बेवजह खिंच जाएंगे.’‘
‘‘ज्ञान के लिए शुक्रिया दोस्त. पर मैं ना एक नंबर की ज़िद्दी हूं. जो सोचती हूं, वही करती हूं. इसलिए तुम्हारी नसीहतों का कोई बहुत इस्तेमाल नहीं करने वाली.’‘
कॉफ़ी पी कर मैं कप रखने अंदर चला गया.
कप धो कर वापस आने में मुझे दस मिनट लग गए. लौटा तो मैंने करण और लतिका को एक-दूसरे के आमने-सामने पाया. करण का चेहरा उतरा हुआ था. लतिका थोड़ा परेशान लग रही थी.
मुझे देखते ही करण लपक कर मेरी तरफ़ आया, ‘‘स्साले अभि, तूने मुझे ये सरप्राइज़ देने के लिए बुलाया था?’‘
मेरे गले लग कर वो धीरे से मेरे कान के पास आ कर फुसफुसाया, ‘‘तू इसे यहां ले कर क्यों आया?’‘
धीरे बोलते-बोलते भी मेरी आवाज थोड़ी लाउड हो गई, ‘‘करण, ये तुझे ढूंढ़ रही है. बात कर ले.’‘
लतिका सहज थी. करण नर्वस था. लतिका के सामने मोढ़ा खींच कर बैठते हुए बोला, ‘‘लैटी, ये क्या है? सब ख़त्म हो गया था ना हमारे बीच? क्या कहना है तुम्हें, जल्दी से बताओ?’‘
लतिका चुप थी. मैं फ़िजूल सा वहां खड़ा था. मैं चलते हुए बोला, ‘‘मैं अंदर जा रहा हूं. जब ज़रूरत लगे, बुला लेना.’‘
करण ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया, ‘‘तू कहां जा रहा है? मैंने तुझे सब बताया था ना!’‘
लतिका मेरा चेहरा देखने लगी. मेरी बात गले में अटक गई, ‘‘करण, तुम दोनों के बीच की बात है, तू ही बता.’‘
करण नर्वस था, वो जल्दी से लतिका की तरफ़ घूम कर बोला, ‘‘मैंने अभि को उसी दिन बता दिया था यार. हो गया ना, ख़त्म हो गया सो हो गया. नो हार्ड फ़ीलिंग्स. पर देख लैटी, मेरे मम्मी-पापा की भी कुछ ख़्वाहिशें हैं. मैं उनका इकलौता बेटा हूं. मुझे…’‘
‘‘वो तो तुम पहले भी थे ना करण. अभी अचानक तो इकलौते बेटे नहीं हो गए?’‘ लतिका की आवाज़ में हल्का-सा इरिटेशन था.
‘‘हम्म. सही है. पर लैटी, क्या हमने कभी शादी की बात की थी? तुम कहती थी कि तुम्हें रिलेशनशिप में स्पेस चाहिए. मैं पज़ेसिव होता तो तुम नाराज़ हो जाती थीं. तुम ही बताओ, ऐसे रिश्ता चल सकता है क्या?’‘
‘‘हम तीन साल से साथ हैं करण. हमने कई बार बात की कि आगे की लाइफ़ कैसे होगी? शादी क्या है? यही तो है कि हम एक साथ ज़िंदगी कैसे बिताते हैं. वो तुमने मुझे लाल लहंगा और चुन्नी भेजा था, तो मुझे लगा…’‘
‘‘ओह शिट. वो जयपुर वाला? अभी आया तुम्हारे पास?’‘
लतिका चुप हो गई. उसकी आंखों में हल्का सा तनाव आ गया, ‘‘तुमने ही भेजा है ना? क्यों?’‘
‘‘तुमने कहा था तुम्हें लहंगा पसंद है. मैं जब ऑफ़िस के काम से जयपुर गया था, तो मुझे वो कारीगर मिल गया था. मुझे लगा कि…’‘ करण आगे कुछ बोल नहीं पाया.
दोनों चुप थे. मेरा पक्का यार और उसकी गर्लफ्रेंड. मैं उन दोनों के बीच बुद्धू की तरह खड़ा था. समझ नहीं आ रहा था कि कैसे रिऐक्ट करूं.
करण ने मेरी तरफ़ देखा, जैसे उसे उम्मीद हो कि मैं कुछ कहूं. मैंने चेहरा फेर लिया. वैसे इस समय लतिका से कहने का मन कर रहा था कि ये बंदा तुम्हारे प्यार के लायक़ नहीं है.
लतिका की आवाज़ बेहद धीमी थी, ‘‘तो तुम क्या चाहते हो करण?’‘
करण सकपका गया, ‘‘मैं क्या चाहता हूं? हम बात कर चुके हैं ना? जिस दिन ब्रेकअप कर रहे थे, तुमने कहा था कि अब तुम अपनी ज़िंदगी जीने के लिए आज़ाद हो. और मैं भी…’‘
‘‘हां, कहा था. मैं अहमदाबाद चली गई थी. सोचा था वहां जा कर मैं तुमसे आज़ाद हो जाऊंगी. नहीं कर पाई. मुझे लगा, मैं तुम्हारे साथ कुछ ज़्यादा ही रूड हो गई थी. मेरी ग़लती थी.’‘
‘‘ग़लती तुम्हारी तो नहीं थी. वो बस… देखो लतिका, तुम फ़ैंटास्टिक पार्टनर थी. हम दोनों ने ख़ूब मज़े किए. पर ज़िंदगी में इससे आगे भी तो सोचना है. मेरे मम्मी-पापा…’‘
‘‘वो क्या चाहते हैं करण?’‘
‘‘मेरी शादी. मतलब उनको लगता है कि मुझे ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिए जो उनकी पसंद की हो…’‘
लतिका कुछ बोलने को हुई, पर उसने अपने होंठ भींच लिए. लगा, उसके अंदर कुछ टूटने सा लगा है. अपने आपको संभालती हुई बोली, ‘‘तुमने उन्हें मेरे बारे में बताया है? मैंने पापा को सब बता दिया करण. यह भी कि हम लिव इन रहते थे.’‘
‘‘स्टुपिड. क्यों बता दिया? वो भी पापा को?’‘ करण हल्का सा चीख़ा.
‘‘मुझे लगा बताना चाहिए. वो चाहते थे तुम्हारे मम्मी-पापा से मिलना. मुझे लगा, हमारा जो झगड़ा है वो हमेशा की तरह का है. जब मिलेंगे तो सब ठीक हो जाएगा. हम पहले भी तो झगड़ते थे. पर इस बार तुमने…’‘
लतिका चुप हो गई. उसकी आवाज़ भर्रा गई. करण उठ कर उसके पास आ गया. उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला, ‘‘लैटी, आइ एम सॉरी यार. तुम समझ क्यों नहीं रही? मेरी मम्मी बहुत सिंपल हैं. उन्हें ऐसी बहू चाहिए जो घर संभाले. रिश्ते संभाले.’‘
लतिका बस सिर झुकाए बैठी रही.
मेरा मन हुआ, पीछे से करण की पीठ पर मुक्का मारूं औ ज़ोर से कहूं कि अबे घोंचू, जो लड़की किसी अनजान के घर जा कर किसी खोह से आटा और आलू निकाल कर पूरी-सब्ज़ी बना सकती है, वो घर नहीं संभालेगी तो कौन संभालेगा? वो रिश्ते ही तो बनाने आई है यहां. हर किसी से सहजता से बना रही है. तुझे दिख क्यों नहीं रहा?
लतिका बस बैठी-बैठी सिर हिलाती रही.
करण उठ गया. मेरे पास आ कर मेरा हाथ पकड़ कर घर के बाहर ले आया. उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ी थी. उसने जेब से एक सिगरेट निकाल कर सुलगाया और बड़ा सा कश लेने के बाद बोला, ‘‘अजीब लड़की है यार. पीछे ही पड़ गई.’‘
‘‘करण, मेरे ख़्याल से तू उसे समझ नहीं पाया. वो अभी भी तुझे चाहती है.’‘
करण ने सिर उठाया, ‘‘चाहना-वाहना ठीक है यार. मैंने भी उसे हजारों बार आई लव यू कहा होगा. मुझे अच्छी लगती थी वो. पर अब लगता है मुझे ज़िंदगी से कुछ और चाहिए.’‘
उसका यह ज़िंदगी से कुछ और चाहने का फ़लसफा समझ नहीं आया. करण वाक़ई लतिका से दूर निकल चुका था.
‘‘कल मेरी एंगेजमेंट है यार. तू आएगा? प्लीज़ लैटी को मत ले कर आना. मम्मी ने तेरे बारे में पूछा भी था. देख यार, दिल पर मत लेना. पर तेरा लतिका को यहां ले कर आना मुझे नहीं जमा. मैंने तुझे बताया था, मैं शादी कर रहा हूं और तू इसे यहां ले आया?’‘
मुझे अचानक जम कर ग़ुस्सा आ गया, ‘‘करण, तू बचपन से एक नंबर का ख़ुदगर्ज़ है. हमेशा अपने बारे में सोचता है. कल मैं लतिका को तेरी एंगेजमेंट में ले कर आऊंगा. देखता हूं. तू क्या कर लेगा बे?’‘
करण ने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मैं कोई अजनबी हूं. उसने ज़ोर से कहा, ‘‘क्रेज़ी…’‘
सड़क के उस पार खड़ी अपनी गाड़ी में बैठ कर उसने यू टर्न किया और वहां से निकल लिया.
गेट के दूसरी तरफ हाथ बांधे लतिका खड़ी थी. मेरी तरफ़ देख कर बोली, ‘‘देखना, वो वापस आएगा.’‘
मैं चिढ़ गया, ‘‘और तुम क्या करोगी?’‘
उसके होंठों पर भीगी सी मुस्कराहट थी, वो मुड़ गई.
मंजी काका ने मेरा बिस्तर गेस्ट रूम में लगाया और स्टडी में एक कैंप कॉट लगा कर लतिका के सोने का इंतज़ाम कर दिया.
मैं कपड़े बदल कर सोने ही जा रहा था कि लतिका दरवाज़े को नॉक करके अंदर आ गई. मेरे बिस्तर पर लहंगे वाला पैकेट रखते हुए उसने कहा, ’‘कल सुबह जब करण यहां आएगा तो उसे दे देना.’‘
‘‘कल सुबह करण यहां आएगा? तो तुम ख़ुद उसे मिल कर क्यों नहीं देती?’‘
मेरी बातों का जवाब दिए बिना लतिका वहां से निकल गई.
अगले दिन आंख देर से खुली. उठ कर बुआ के पास आया. वो चाय पी रही थीं. मुझे देख कर आंखों में चमक आ गई, ‘‘अभि, वो तेरी दोस्त दिखाई नहीं दे रही? अभी तक सो रही है क्या?’‘
मंजी काका मेरे लिए चाय ले कर आ रहे थे, उन्होंने कहा, ‘‘वो लड़की तो सुबह-सुबह निकल गई.’‘
मैं चौंका, ऐसे-कैसे बिना बताए चली गई?
मैंने उसके नंबर पर फ़ोन लगाया, फ़ोन बंद था.
ठीक दस बजे जब मंजी काका मेरे और बुआ के लिए आलू के परांठे का नाश्ता लगा रहे थे, दरवाज़े पर घंटी बजी. करण था.
ऐसा लग रहा था, पूरी रात नहीं सोया.
वह बेचैनी से अंदर आया, ‘‘लैटी कहां है? फ़ोन क्यों नहीं उठा रही?’‘
‘‘अब क्या हुआ?’‘ ना चाहते हुए मेरी आवाज़ की खीझ बाहर आ गई.
‘‘बात करनी है यार.’‘
‘‘वो तो चली गई. सुबह. कुछ बता कर नहीं गई.’‘
करण सिर पकड़ कर बैठ गया.
बुआ की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वो कभी करण को कभी मुझे देख रही थीं. अचानक वो बोलीं, ‘‘लतिका कहां गई मुझे पता है…’‘
करण कूद कर बुआ के सामने आ गया, ‘‘आपको पता है, बताइए ना.’‘
‘‘कह रही थी अपने बॉय फ्रेंड से मिलने जा रही है…’‘
करण ने चौंक कर मेरी तरफ़ देखा. मैंने बुआ की तरफ़. बुआ सिर हिलाने लगी, ‘‘अच्छी लड़की है. मैंने उससे कहा है अपनी शादी में मुझे ज़रूर बुलाना. अभि, मुझे ले चलना उसकी शादी में.’‘
मैंने करण को समझाते हुए बाहर ले आया, लतिका का दिया पैकेट उसके हाथ में देते हुए बोला, ‘‘अब तुझे क्या काम पड़ गया लतिका से? अपनी शादी में बुलाना है क्या?’‘
‘‘यार, मज़ाक क्यों उड़ा रहा है? देख भई, ग़लती हो गई मुझसे. रात भर ख़ूब सोचा. फिर लगा, लतिका ऐसी लड़की है, जिसके साथ रहते हुए मुझे अपने बारे में सोचना नहीं पड़ता. मैंने पापा से बात की. उन्होंने कहा कि एंगेजमेंट कैंसल कर दो.’‘
‘‘मतलब…’‘
‘‘मेरी फ़ैमिली लतिका से मिलने को तैयार है. मतलब मैंने ही कहा… तो…’‘
‘‘उसके बारह टैटू? उसका क्या होगा?’‘
‘‘पागल हो गया है क्या अभि? मैं यहां ज़िंदगी की बात कर रहा हूं और तू टैटू की बात कर रहा है.’‘
मैं चुप हो गया.
करण लगातार लतिका का नंबर लगा रहा था. हर बार नंबर बंद आता और वो भन्ना जाता. बिलकुल वैसे जैसे दो दिन पहले लतिका का हाल था. मेरे चेहरे पर मुस्कराहट आ गई. मैंने तो पहले ही कहा था, ये लव स्टोरी है. आप ही नहीं माने…