देहरादून में अपने टैरस पर खड़ी आहना की आंखें दूर आसमान में बनी रौशनी की लड़ियों पर टिकी थीं. वो लड़ियां जो सुदूर मसूरी के घरों, बाज़ारों, सड़कों पर जगमगा रही थीं. आहना को अच्छा लगता था रात को टैरेस पर खड़े होकर वे रौनकें देखना, जैसे आसमान में लोगों की सांझा ख़ुशियां झिलमिला रहीं हों. अपने शहर, अपने परिवार से दूर यहां अपने अकेलेपन को वो इन्हीं रौशनियों के साथ संगीत सुनते हुए बांटा करती थी. मगर आज वे रौशनियां उसके दिल में बसा अंधेरा दूर नहीं कर पा रही थी. दो दिन पहले अमावस्या आ कर चली गई थी, मगर अपना अंधेरा आहना के दिल में छोड़ गई थी.
फ़ोन बार बार मॉम के नाम से घनघना रहा था. उसका मन नहीं हो रहा था बात करने का... आजकल उसका किसी से बात करने का मन नहीं होता था. एक बिल खोज रही थी वो, जहां छिप जाए और हर एक पहुंच से दूर हो जाए.
हफ़्तेभर पहले तक सब कितना अच्छा था. पर्फ़ेक्ट लाइफ़ की परिभाषा जैसा. एक बड़े कॉल सेंटर में एचआर मैनेजर थी वह. शांतनु जैसा बॉयफ्रेंड था, जो उसी के ऑफ़िस में एग्ज़ेक्यूटिव था. दोनों की हर बात में ज़बरदस्त फ्रीक्वेंसी मैच किया करती थी. मेड फ़ॉर इच अदर लगते. साथ चलते तो लोगों की आंखों की किरकिरी बन जाते. उसकी कज़न सुरभि तो कह भी दिया करती थी, “दी! एक ही ढंग का लड़का था देहरादून में, उसी पर तुमनें हाथ साफ़ कर लिया, अब मैं किस उम्मीद में यहां टिकूं? मैं तो चली दिल्ली, वहीं किस्मत आज़माऊंगी.”
सुरभि, आहना की चचेरी बहन थी, जो एक आईटी कंपनी में इंटर्नशिप करने उसके पास देहरादून आई थी. सुरभि के पापा यानी आहना के चाचाजी, जो मोदीनगर में किराना स्टोर चलाते थे, थोड़ा रूढ़ीवादी थे. इंजीनियरिंग तो लोकल करा दी थी, लेकिन इंटर्नशिप के लिए अकेली लड़की को अजनबी शहर में भेजने की बात पर बिदक गए थे. तब आहना के पापा ने समझाया,‘मेरी लड़की भी तो घर से दूर नौकरी करती है, तुम्हें क्या समस्या है? और कहीं नहीं तो देहरादून ही भेज दो, बहन के पास रह लेगी.’
आहना के मम्मी-पापा ने नये जमाने के साथ चलना सीख लिया था इसलिए आहना को ऐसी कभी कोई दिक़्क़त नहीं हुई.
सुरभि के आने से आहना को भी सहारा हो गया था. उसका अकेलापन बंट गया था. दोनों बहनों से ज़्यादा दोस्त बन गए थे. आहना ने शांतनु की बात सुरभि से नहीं छिपाई. वो तो ‘जीजू जीजू’ बोलकर साली की तरह उससे हंसी-मज़ाक भी करने लगी थी. तीनों वीकएंड पर अक्सर मसूरी की ओर निकल जाते.
एक दिन आहना ने सुरभि के फ़ोन पर कुछ ईलू-ईलू टाइप मैसेज पकड़ लिए और फिर उसे लंबे हाथों ले लिया.
“अच्छा बेटा! उस्ताद से उस्तादी! मैंने तुम्हें अपनी रिलेशनशिप के बारे में पहले दिन से सब कुछ बता दिया था और तुम सब हज़म कर गईं! चलो डिटेल में बताओ कौन है ये पंकज? उदास है या हंसमुख...? कब से चल रहा है यह सब… चाचा जी को पता है?”
सुरभि के चेहरे का रंग फक्क सफ़ेद पड़ गया.
“देखो दी ग़ुस्सा मत होना.... आपको डर नहीं है ना, कि ताऊजी को पता चलेगा तो क्या होगा? कितने ब्रॉड माइंडेड हैं वे. आपको कुछ नहीं कहेंगें उल्टा रिश्ता पक्का करा देंगें... मगर पापा को तो आप जानते ही हैं, खाल खींच लेंगें मेरी. मैंने सोचा, जब तक जॉब नहीं लगती तब तक चुप ही रहती हूं. डरती थी कहीं ग़लती से भी आपके मुंह से कुछ घर पर निकल गया तो मेरी शामत आ जाएगी. बस, इसीलिए कुछ नहीं बताया...”
“चल अब तो बता दे? शांतनु की कसम खाती हूं मुंह से एक शब्द नहीं फूटेगा कहीं.”
आहना पर भरोसा जम गया तो सुरभि ने उसे अपने अफ़ेयर के बारे में खुलकर बता दिया. पंकज तोमर, इंजीनियरिंग कॉलेज में उसका सीनियर था. कॉलेज में ही दोनों का प्यार शुरू हुआ. आजकल दिल्ली में जॉब कर रहा था.
“अच्छा बेटा इसीलिए दिल्ली जाना था तुझे! एक मैं पागल हूं जो सोच रही थी तेरा प्लेसमेंट कहीं देहरादून में ही करवा दूं, हम दोनों का साथ बना रहेगा. अच्छा एक बात और सच सच बता, वह तुझसे कभी देहरादून मिलने आया है?’’
यह सुनकर सुरभि ने दम साध लिया. कुछ पल रूक कर झिझकती-सी बोली.
“एक बार आया है दी.”
“अरे तो मिलवाया क्यों नहीं?”
“हिम्मत ही नहीं हुई और वैसे भी...” कहते-कहते सुरभि चुप हो गई. उसके चेहरे पर कुछ उदासी छा गई थी.
“वैसे भी क्या? हम उस चांद के चेहरे को देख नज़र लगा देते?” आहाना साली वाले अंदाज़ में आकर चुहलबाज़ियां शुरू कर चुकी थी.
“दी पता नहीं, जब से शांतनु और आपकी केमिस्ट्री देखी है ना, तब से...”
“तब से?”
“प्रेम का एक अलग ही रूप देखा हैं मैंने. जहां पर मर्द और औरत जैसे बराबर के हिस्सेदार हों... कोई किसी से कम या ज़्यादा नहीं... कोई किसी पर हावी नहीं... सच! आप बहुत लकी हो दी, बहुत बैलेंस्ड रिश्ता है आपका.”
“तुम्हारा नहीं है किया?”
“मुझे अब समझ आ रहा है, पंकज मेरे ऊपर बहुत हावी हो कर रहता है. बहुत पूछताछ करता है, अपनी मर्ज़ी चलाता है. पहले तो मुझे उसके हिसाब से चलना अच्छा लगता था, प्यार में पागल जो थी. मगर जब से यहां आई हूं ना दी, पता नहीं क्यों उससे दूर होकर ज़्यादा अच्छा लग रहा है. आज़ादी सी महसूस होती है. उसे तो इस बात से भी दिक़्क़त थी कि मैं आपके और शांतनु के साथ क्यों घूमती हूं...? मुझे बहन के बॉयफ्रेंड के, जीजा-साली के अफ़ेयर के क़िस्से सुनाकर डराने लगा.”
“क्या बात करती है! देख, मुझे लगता है वो तेरे लिए ठीक चॉइस नहीं. जिस रिश्ते में अभी से दम घुट रहा हो, ज़रा सोच! उसमें आगे क्या होगा?”
“यहीं सब तो दिमाग़ में चलता रहता है आजकल...”
“तो फ़िर वो रोमांटिक मैसेज? उसमें तो जान निकाल कर रख रखी थी तूने?”
“अगर नहीं करूं तो उसे और शक़ हो जाएगा कि मैं उसे इग्नोर कर रही हूं, फिर तो सीधा यहीं आ जाएगा...” आहना को सुरभि के चेहरे पर हवाइयां उड़ती दिख रही थीं, जिन्हें देख वह भी सिहर गई.
“मेरी बहन! तुझे पता नहीं, तू कितना बड़ा पंगा ले रही है लाइफ़ से. ज़माने का डर समझ आता है मगर एक दूसरे से डर-डर के प्यार नहीं किया जाता...” सुरभि चुपचाप सुनती रही. वो तो जैसे किसी गहरी झील की तलहटी में जाकर बैठ गई थी. वो खुलकर सांस नहीं ले पा रही थी. इस घुटन का असर उसके चेहरे पर आ रहा था. आश्चर्य की बात यह थी, इसका एहसास उसे आहना और शांतनु के साथ समय बिताकर हुआ था.
पिंजरे का पंछी शायद तब तक सुखी रह सकता है जब तक वो दूसरे परिंदों की परवाज़ नहीं देख लेता. उसके बाद ही उसे अपने बंधनों का एहसास होता है. सुरभि ने आहना की मोहब्बत की परवाज़ देख ली थी. जान लिया था, प्यार में पूरी आज़ादी से जीने का, ख़ुश रहने का जितना हक़ एक को है, उतना दूसरे को भी है और ये हक़ उसे पंकज से नहीं मिल रहा है. आहना के बहुत समझाने पर सुरभि ने भी मान लिया था कि वो एक टॉक्सिक रिलेशनशिप में फंस चुकी है और कैसे भी करके उसे इसमें से निकलना ही होगा.
सुरभि की इंटर्नशिप ख़त्म हो गई थी और गुड़गांव की एक अच्छी कंपनी में जॉब भी मिल गया था. वो दो महीने पहले आहना के पास से गुड़गांव शिफ़्ट हो चुकी थी. तब से फ़ोन पर टच में रहा करती थी. उसे बताया करती थी कि पंकज पीछा नहीं छोड़ रहा है. ब्रेकअप की बात करती हूं तो कभी मरने-मारने पर उतारू हो जाता है, कभी पैरों में गिरकर माफ़ी मांगने लगता है, गिड़गिड़ाने लगता है.
आहना उसे बार बार आगाह कर रही थी कि घर पर सब बता दे और उनका सर्पोट ले, वरना पुलिस की मदद ले. कुछ हो गया तो अकेले संभालना मुश्क़िल हो जाएगा, मगर वो अपने पापा से इतना डरती थी कि कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पाती थी. आहना झल्ला उठती थी, उस पर भी और चाचा-चाची पर भी.
दोनों पूरी रिश्तेदारी में हर जगह अपनी मिसाल दिया करते थे कि कैसे लड़की को भी लड़के की तरह पाला, पढ़ाया-लिखाया, नौकरी करने की आज़ादी दी, मगर क्या इतना ही काफ़ी है? उस विश्वास का क्या, उस तसल्ली का क्या, कि ‘बेटी! तू अकेली नहीं है, हम हैं तेरे साथ... तुझसे गलती हो गई तो डांट लेंगें, फटकार लेंगें मगर हर मुसीबत में तेरे साथ खड़े होंगें?’ ऐसी भी क्या सख़्ती कि ऐसी मुसीबत में लड़की घरवालों की ओर ना देख पाए? बाहर वालों से ज़्यादा घरवालों के डर और रुसवाई मारते हैं इंसान को.
आहना गुड़गांव जाकर हफ़्तेभर सुरभि के पास रुकने की सोच ही रही थी कि ख़ुद उसकी ज़िंदगी में इतना बड़ा भूचाल आ गया. वो भी कहां बताने की हिम्मत कर रही थी घर पर. ये तो जानती थी, घर से सर्पोट मिलेगा मगर उन्हें दुखी भी नहीं करना चाह रही थी.
पिछला सप्ताह किसी सुंदर सपने-सा बीता था. शांतनु ने उसे अपने पैरेंट्स से मिलवाया था. बहुत अच्छे लगे थे उसे अपने भावी सास-ससुर. किस्मत पर इतराने लगी थी कि इतनी प्यारी ख़ुशहाल फ़ैमिली का हिस्सा बनने जा रही है. दोनों ने शादी का मन बना लिया था और इस हफ़्ते आहना शांतनु को अपने परिवार से मिलवाने वाली थी. अच्छी जॉब, मनपसंद जीवनसाथी... इससे ज़्यादा उसने कभी कुछ चाहा ही नहीं था और इतना भी बर्दाश्त नहीं हुआ किस्मत को. टूट गया उसका सपना! तब से बार-बार एक ही ख़्याल दिमाग़ पर काब़िज़ था, मेरे साथ ये सब क्यूं? वो फ़िर जा खड़ी हुई उस सुबह की चौखट पर जिसे लांघ कर आगे नहीं बढ़ पा रही थी वो... जस की तस खड़ी रह गई थी.
एक शानदार वीकऐंड के बाद सोमवार की एक आम-सी सुबह. जब वो ऑफ़िस पहुंची तो लोग उसकी तरफ़ कुछ अजीब नज़रों से देख रहे थें. उन नज़रों में तफ़रीह थीं, ज़िल्लतें थीं, फब्तियां थीं... और शांतनु की आंखों में थी रुसवाईयां... ऐसी आंखें उसने पहले कभी नहीं देखीं थीं. उन आंखों में बहता प्यार का दरिया जैसे सूख चुका था.
‘अचानक ऐसा क्या हो गया जो सब इतना वीयर्ड बिहेव कर रहें हैं...’, वो सोच ही रही थी कि शांतनु उसकी बांह पकड़ उसे कॉन्फ्रेंस रूम में ले गया और अपना मोबाइल उसकी ओर बढ़ाते हुए ग़ुस्से से बोला, “ज़रा देखो इसे!”
मोबाइल पर एक फ़ोटो खुली हुई थी. आहना ने उस फ़ोटो पर उड़ती-सी नज़र डाली. कुछ जानी-पहचानी सी लग रही थी. उसने गौर से वो फ़ोटो देखी तो बुरी तरह कांप गई. फ़ोटो में वो थी और साथ था एक अनजान लड़का था. दोनों आपत्तिजनक स्थिति में आलिंगनबद्ध होकर किस कर रहे थे. आहना को कुछ समझ नहीं आया, ये क्या है, कैसा मजाक है!
“ये सब क्या है आहना! कौन है ये लड़का...और तुम इसके साथ...जानती भी हो आज सोशल मीडिया पर तुम्हारी ये गंदी फ़ोटोज़ कितनी वायरल हो रही हैं! पूरे ऑफ़िस के लोगों के पास पहुंची हुई हैं. अपने बारे में नहीं तो कम से कम मेरे बारे में तो सोचा होता....” शांतनु बुरी तरह झुंझलाया हुआ था. चेहरे पर कभी ग़ुस्से, कभी लाचारी और कभी हिकारत के रंग आ कर जा रहे थे... वो जैसे होश-ओ-हवास खोता जा रहा था. इस वक़्त उसका बस चलता तो शायद आहना की गर्दन दबा देता.
आहना बुत बनी सुनती रही. एकदम सन्न! वो जानती थी ये फ़ोटोग्राफ़ सच्ची नहीं है. किसी ने उसे बदनाम करने के लिए मॉर्फ़िंग कर बनाई हैं... और आजकल तो ये काम इतना आसान हो गया है कि कोई भी कर सकता है. इतने सॉफ़्टवेयर, इतनी इमेज ऐप्स आ गई हैं कि किसी की इज़्ज़त से खिलवाड़ करना बच्चों का खेल हो गया है. शांतनु लगातार बड़बड़ाए जा रहा था. आहना के भीतर घुप्प अंधेरा छा गया था, जिसमें बस कुछ सवालों की बड़ी-बड़ी आंखें चमक रही थी... कोई क्यूं खेल रहा है मेरी इज़्ज़त के साथ? क्या बिगाड़ा है मैं मैंने किसी का? और शांतनु... क्या ये इन्हें सच मान रहा है?
“ये सच नहीं हैं शांतनु! तुम जानते हो... मॉर्फ़ की गई हैं...” जैसे तैसे आहना ने बिखरा वज़ूद इकट्ठा कर रिऐक्ट किया.
“ख़ाली मेरे जानने से क्या होता है आहना! पब्लिकली इंसल्ट तो हो गई ना...क्या सोच रहें होंगें सब तुम्हारे बारे में...? और मैं तुमसे जुड़ा हूं इसलिए मेरे बारे में भी. सब हंस रहे होंगें मेरे ऊपर. मैं तो इस ऑफ़िस में किसी को मुंह नहीं दिखा सकता अब. और इतनी जल्दी दूसरा जॉब कहां से ढूंढ़ू? तुम्हारी वजह से मेरा करियर बर्बाद हो गया... और मम्मी-पापा? अगर उन तक ये फ़ोटो पहुंच गई तो? क्या कहेंगे वे? इस लड़की को मिलवाने लाया था हमसे जो दूसरे की बांहों में...”, शांतनु बदहवासी में ना जाने क्या क्या बड़बड़ाकर उसे वहीं अकेली खड़ी छोड़ ऑफ़िस से बाहर निकल गया था. एक बार पलट कर भी नहीं देखा था उसने...
आहना उस वक़्त ख़ुद को बड़ा लहूलुहान हुआ महसूस कर रही थी. जैसे कुछ हाथ उसे जबरन पकड़ पथरीली ज़मीन पर घसीट रहें हों... और उनमें सबसे आगे बढ़े हाथ शांतनु के थे. आज भी वो ज़ख़्म ताज़ा थे, रिस रहे थे.
शांतनु ने उसके बाद फ़िर कभी उससे बात नहीं की. ना ही आहना ने कोशिश की. वही सब सोचते-सोचते कुछ आंसू फ़िर आंखों से निकल गालों पर बह चले. आहना ने उन्हीं धुंधली आंखों से मोबाइल स्क्रीन को देखा. मॉम के पांच मिस कॉल पड़े थे. एक मैसेज भी डिस्प्ले हो रहा था. मॉम का था- ‘फ़ोन क्यों नहीं उठा रही? सुरभि की परसों मोदीनगर में सगाई हो रही है. तू ऐसा करना, कल सुबह ही निकल पड़ना. थोड़ी शॉपिंग कर लूंगी तेरे साथ.’
‘सुरभि की सगाई! परसों? कुछ बताया क्यों नहीं उसने?’ आहना के चेहरे पर मुस्कान की एक लकीर खिंच गई. ‘चलो, पंकज से पीछा छूटा उसका...’, बुदबुदाते हुए गहरी सांस भरी. उसने बाक़ी सारे मैसेज देखने शुरू किए. तो एक फ़ोटो देखकर हैरान रह गई. पंकज की फ़ोटो थी जो मॉम ने भेजी थी. नीचे लिखा था, ‘इससे हो रही है सगाई. लव मैरिज है, अच्छा कमाता-खाता है. सुंदर दामाद ढूंढा है उसने मां-बाप के लिए, एक तू ही निकम्मी रह गई. आगे मां ने तीन-चार स्माईली इमोजी लगाई हुई थी.
‘हे भगवान! क्या कर रही है ये लड़की! पागल हो गई है क्या?’ आहना ने ग़ुस्से से बड़बड़ाते हुए तुरंत सुरभि को फ़ोन लगाया और जो उसने बताया उससे आहना की दिल धक्क से बैठ गया.
‘‘दी! उसके पास हमारी पर्सनल फ़ोटोज़ हैं. वो मुझे धमकी दे रहा था कि अगर मैंने शादी से मना किया तो वो सब जगह वे फ़ोटो वायरल कर देगा. आप तो पापा के ग़ुस्से को जानती ही हैं, मार डालेंगे मुझे... इसलिए मैंने... वो मेरे पीछे ख़ुद ही घर आकर सारी बात कर गया. बड़ी अच्छी इमेज बिल्डिंग की उसने. ऐसा जादू चलाया कि पापा भी मान गए...” सुरभि यह कहते हुए रोने लगी.
“देख तू यूं हिम्मत मत हार! शादी की डेट आगे बढ़ाती रहना. हम मिलकर करेंगे कुछ!”
“क्या करेंगे दी? कुछ नहीं कर सकते...अब यही मेरा भाग्य है... और क्या पता शादी के बाद वो बदल जाए, बहुत वादे किए हैं उसने...”
“पागल हो गई है क्या? एक दिन वो बदल जाएगा, सब ठीक हो जाएगा...? ये किसी भी बिगड़े रिश्ते का सबसे बड़ा छलावा है, कोई नहीं बदलता, बल्कि रिश्ता और बदतर होता जाता है. जब नीयत सही ना हो तो कुछ सही नहीं होता.”
“दी! अगर उसने कुछ ग़लत कर दिया तो? बड़ी बदनामी होगी… वो बड़ा सिरफिरा है”
“सारी बदनामियों का ठेका हम औरतों ने ही लिया हुआ है क्या? ये आदमी हमें डराते रहें, धमकाते रहें, इस्तेमाल करते रहें... इनकी कोई बदनामी नहीं! देख! तू थोड़ा टाइम दे मुझे, मैं करती हूं कुछ!”
ये ढांढ़स आहना सुरभि को नहीं, ख़ुद को बंधा रही थी. एक विश्वास सुरभि के बहाने अपने भीतर पैदा कर रही थी. परिस्थितियों से टूटने की बजाय उनसे लड़ने का. वैसे भी वो ऐसी अकेली तो थी नहीं, आजकल टेक्नोलॉजी ने मर्दों के लिए औरतों की इज़्ज़त सरेआम उछालना कितना आसान कर दिया था. कहीं भी, कैसे भी, छिप कर वीडियो बनाया, फ़ोटो खींची, मॉर्फ़ की, किसी के साथ भी बैठाया, उठाया, लिटाया... और कर दी वायरल! हो गई औरत की इज़्ज़त तार तार! जैसे इज़्ज़त ना हुई कोई महीन कांच हो जो छूने भर से तिड़क कर भरभरा जाए!
अगली सुबह आहना कुछ सोच कर एक नए विश्वास से उठी. अब बात सिर्फ़ उसकी नहीं थी. उसकी बहन सुरभि की भी थी. और उन सब लड़कियों की. जो आजकल ऐसी जालसाज़ी का बहुतायात में शिकार हो रही थीं. सबसे पहले उसने साइबर क्राइम सेल में अपने मॉर्फ़ फ़ोटो बनाने और वायरल करने वाले अज्ञात इंसान के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज़ करा दी. ऑफ़िस के दो-चार लोग जिन पर उसे शक़ था, उनका नाम लिखाया. फिर घर आकर आगे की रणनीति सोची और सोचकर एक निर्णय लिया.
उसने अपना मोबाइल उठाया. अपनी मॉर्फ़ की गई आपत्तिजनक फ़ोटोज़ खोलीं और उन्हें अपने फ़ैमिली वाट्सऐप ग्रुप पर फ़ारवर्ड कर दिया. उस ग्रुप पर उसके सभी नाते-रिश्तेदार जुड़े हुए थे. सुरभि और उसका परिवार भी.
फ़ोटो भेज कर आहना ने मैसेज लिखा- ‘जानती हूं, आप सबको बुरा लगा होगा देख कर. मगर अब ये सब देखने की आदत डाल लीजिए, क्योंकि आज टेक्नोलॉजी इतनी आसान हो गई है कि कोई भी, कहीं भी ऐसे नक़ली फ़ोटो बना सकता है और उन्हें वायरल कर आपकी बहू-बेटियों को बदनाम कर सकता है. उन्हें ब्लैकमेल कर उनकी ज़िंदगी बर्बाद करने की धमकी दे सकता है.
आज ये मेरे साथ हुआ है, कल इस ग्रुप की किसी दूसरी लड़की के साथ भी हो सकता है. मगर आज मैंने ये फ़ैसला लिया है कि मैं किसी दूसरे इंसान को अपनी ज़िंदगी से खेलने की इजाज़त नहीं दूंगी! इन छिपे अपराधियों से डर कर चुप नहीं बैठूगी. उसके ख़िलाफ़ लडूंगी. इस लड़ाई में आप सब चाहें तो मेरा साथ दे सकते हैं चाहे तो नहीं... मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता, लेकिन अगर साथ देंगे तो इस बड़े से परिवार की दूसरी लड़कियां ख़ुद को सुरक्षित महसूस करेंगी. वे यह विश्वास रखेंगी कि अगर कभी कोई अपराधी उनके साथ ऐसी ग़लत हरकत करता है तो उन्हें डर कर जीने की या आत्महत्या करने जैसा क़दम उठाने की ज़रूरत नहीं. उनका परिवार उनके साथ खड़ा है. वे कभी भी बिना किसी ग़लती के सजाएं नहीं भुगतेंगी. फ़ैसला आप सबके हाथ में हैं.’
ग्रुप पर काफ़ी देर खामोशी छाई रही. नई पीढ़ी के लोगों ने आहना के समर्थन में मैसेज डालने शुरू कर दिए, मगर आहना को सुरभि के मैसेज का इंतज़ार था. उसने सुरभि को पर्सनल मैसेज डाला, ‘या तो अभी या कभी नहीं! मौत से बदतर ज़िंदगी चुनना या आज़ादी के साथ जीना अब तुम्हारे हाथ में है.’
थोड़ी देर बार आहना की पहल ने अपना असर दिखाया. सुरभि ने अपनी आपबीती और पंकज की असलियत पूरे ग्रुप पर कह डाली. पंकज का असली चेहरा सबके सामने आ गया. आहना के चेहरे पर जैसे एक लंबे अरसे बाद मुस्कान खिली. उसने सुरभि को उसी ग्रुप पर मैसेज डाला- ‘आई ऐम प्राउड ऑफ़ यू मॉय ब्रेव लिटिल सिस्टर! आज के बाद इस परिवार की कोई भी लड़की डर-डर कर नहीं जिएगी! हर हाल में सिर उठाकर जिएगी! आज़ादी ज़िंदाबाद!’
सुरभि के हमउम्र भाई-बहनों ने भी उसे भरपूर सर्पोट दिया और पंकज को देख लेने की कसमें भी खाईं. नई हवा को पहचान ग्रुप के बड़े-बुज़ुर्ग भी कोई दकियानूसी बात न कह सके. आहना ने परिवार के भीतर जो छोटा सा ‘मी टू’ मूवमेंट चलाया था उससे सुरभि का भविष्य बच गया.
अब आहना जोश से भर गई थी. एक सबक शांतनु को भी सिखाना था. उसने फ़ोटो मॉर्फ़ करने वाला ऐप डाउनलोड किया शांतनु के फ़ोटो मॉर्फ़ किए और उसके घर चल दी. वो घर पर नहीं था, लेकिन उसके पैरेंट्स थे. पहले अपने फ़ोटो उनको दिखाए, सारी आपबीती सुनाई और फ़िर शांतनु को फ़ोटो भी दिखाए, यह कहते हुए,“देखिए कितना आसान है ये सब करना...”
वे निरूत्तर बैठे रहे.
“बेटा हम बात करेंगें उससे...”
“नहीं, उसकी ज़रूरत नहीं. आपको असलियत दिखाना चाहती थी बस इसलिए आई थी, ताकि अगर ऐसा हादसा आपके आसपास किसी और के साथ हो जाए तो आप उसे ग़लत ना समझें, मदद के लिए उसके साथ खड़े हो जाएं. शांतनु का साथ छूटने का अब मुझे अफ़सोस नहीं. जो लड़का ऐसे समय में मेरे साथ खड़ा नहीं हो पाया, वो आगे क्या साथ निभाएगा? मेरी ओर से उसे शुक्रिया कह दीजिएगा, शादी से पहले ही अपनी असलियत दिखाने के लिए... बाद में पता चलती तो प्रॉब्लम होती.
आहना सिर ऊंचाकर बड़े आत्मविश्वास से वहां से निकल आई. राह में चलते हुए मन में जैसे कोई संगीत गूंज रहा था, जिसके बोल थे, बोल के लब आज़ाद हैं तेरे... आज़ादी ज़िंदाबाद!