बेटियाँ तो बाबुल और मांओं की रानियां होती हैं, घर में बेटियां हों तो घर की रौनक बरक़रार रहती है। बेटियों और लड़कियों पर लिखी गयीं ऐसी कई कविताएँ हैं, जो प्रेरणादायी हैं, तो आइए पढ़ें ऐसी कुछ कविताएँ।
पिकासो की पुत्रियाँ-केदारनाथ अग्रवाल
कठोर हैं तुम्हारे कुचों के
मौन मंजीर,
ओ पिकासों की पुत्रियो!
सुडौल हैं तुम्हारे नितंब के
दोनों कूल,
ओ पिकासी की पुत्रियो!
निर्भीक हैं
चरणों तक गईं
कदली—खंभों-सी प्रवाहित
कुमारीत्व की दोनों
नदियाँ,
ओ पिकासो की पुत्रियो!
ओ री चिरैया- स्वानंद किरकरे
ओ री चिरैया
नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे
ओ री चिरैया
नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे
अंधियारा है घना और लहू से सना
किरणों के तिनके अम्बर से चुन्न के
अंगना में फिर आजा रे
हमने तुझपे हज़ारों सितम हैं किये
हमने तुझपे जहां भर के ज़ुल्म किये
हमने सोचा नहीं तू जो उड़ जायेगी
ये ज़मीन तेरे बिन सूनी रह जायेगी
किसके दम पे सजेगा अंगना मेरा
ओ री चिरैया, मेरी चिरैया
अंगना में फिर आजा रे
तेरे पलकों में सारे सितारे जड़ूं
तेरी चुनर सतरंगी बनूं
तेरी काजल में मैं काली रैना भरूं
तेरी मेहंदी में मैं कच्ची धूप मलूँ
तेरे नैनों सज़ा दूं नया सपना
ओ री चिरैया
अंगना में फिर आजा रे
ओ री चिरैया नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे ओ री चिरैया …
रामधारी सिंह दिनकर की कविता
माथे में सेंदूर पर छोटी
दो बिंदी चमचम सी
पपनी पर आंसू की बूंदें
मोती सी, शबनम सी।
लदी हुई कलियों में मादक
टहनी एक नरम सी
यौवन की विनती सी भोली
गुमसुम खड़ी शर्म सी।
पीला चीर, कोर में जिसके
चकमक गोटा-जाली
चली पिया के गांव उमर के
सोलह फूलों वाली।
पी चुपके आनंद, उदासी
भरे सजल चितवन में
आँसू में भिंगो भींगी माया
चुपचाप खड़ी आंगन में।
आँखों में दे आँख हेरती
हैं उसको जब सखियाँ
मुस्की आ जाती मुख पर
हंस देती रोती अँखियाँ
पर, समेट लेती शरमा कर
बिखरी सी मुस्कान
मिट्टी उकसाने लगती है
अपराधिनी समान।
भींग रहा से
दिल का कोना-कोना
भीतर-भीतर हंसी देख लो
बाहर-बाहर रोना
तू वह, जो झुरमुट पर आयी
हंसती कनक कली सी
तू वह, रचकर प्रकृति
ने अपना किया सिंगार
तू वह जो धूसर में आयी
सुबज रंग की धार।
मां की ढीठ दुलार! पिता की
ओ लजवंती भोली
ले जायेगी हिय की मणि को
अभी पिया की डोली
मेरी बिटिया रानी -सुभद्रा कुमारी चौहान
मैं बचपन को बुला रही थी
बोल उठी बिटिया मेरी।
नंदन-वन-सी खिल उठी वह
छोटी-सी कुटिया मेरी॥
‘माँ ओ’ कहकर बुला रही थी,
मिट्टी खाकर आई थी।
कुछ मुँह में कुछ लिये हाथ में
मुझे खिलाने लाई थी॥
मैंने पूछा ‘यह क्या लाई’
बोल उठी वह ‘माँ काओ!’
फूल-फूल मैं उठी खुशी से,
मैंने कहा ‘तुम्हीं खाओ’॥