इस डिजिटल दुनिया में भी किताबों ने अपनी प्रासंगिकता नहीं खोई है, क्योंकि किताबें कभी पुरानी नहीं होती हैं, उनके पन्ने जब भी पलटते हैं, हमें एक नयी दुनिया में ले जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे घुमक्कड़ी करना, दुनिया घूमना कभी भी, किसी भी जीवन में अप्रासंगिक नहीं हो सकता। इसलिए इस बार पुस्तक गली में एक ऐसी किताब के बारे में आइए जानते हैं, जिन्होंने घुमक्कड़ी को आजादी माना है और आजादी को अपना ब्रांड बनाया है। स्वतंत्र विचारों वाली अनुराधा बेनीवाल की किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ क्यों पढ़नी चाहिए, इसके कई कारण हैं, आइए जानें विस्तार से।
‘घूमना आजादी है और आजादी ही घूमना है’, ये दोनों प्रक्रियाएं एक दूसरे की पर्याय हैं, इस बात को अगर अपनी उम्र के बेहद पूर्व पड़ाव में हर लड़कियां समझ लें, तो वे शायद कई बंधनों से खुद को मुक्त करने में कामयाब हो सकती हैं। अनुराधा बेनीवाल की किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ एक ऐसी ही किताब है, जिसके पन्ने जितने बार पलटें, वे नए से लगते हैं। इस किताब की सबसे बड़ी खासियत यही है कि लेखिका बिना किसी भाषणबाजी के नारीवाद का प्रतिनिधित्व करती हैं, वह घुमक्कड़ी के बहाने महिलाओं और लड़कियों के सम्मान की बात करती हैं। इस किताब को पढ़ते हुए कई बार आपके जेहन में यह बात भी आ सकती है कि ऐसा क्यों है कि जब भी साहित्य में घुमक्कड़ी की बात होती है, तो राहुल सांकृत्यायन की ही चर्चा क्यों होती है, क्योंकि घूमने का तो कोई जेंडर नहीं होता है। घूमना एक निराश जीवन में कैसे मुस्कान ला सकता है, इसकी बाकायदा रेसिपी इस किताब में है।
यह किताब एक यात्रा वृतांत तक सीमित नहीं है, बल्कि यात्रा को लेखिका ने एक जरिया बनाया है, ताकि वह समाज में लड़कियों को लेकर जो जजमेंटल अप्रोच है, समाज का जो एक नजरिया है, उनका वास्तविक चित्रण कर सकें। लेखिका बेवजह लड़कियों की साइड लेने की कोशिश नहीं करती हैं। लेकिन वह इस बात पर जोर जरूर देती हैं कि हमें और समाज को कुछ चीजों की आदत डालने की जरूरत है और अगर समाज इस बात को न समझें, तो उन्हें समझाने की भी हमें ही जरूरत है। लेखिका ने लड़कियों को अपना निजी स्पेस तलाशने की जरूरत क्यों है, इस बात का भी चित्रण बेहद संजीदगी से किया है। उन्होंने इस रूढ़िवादी सोच को कि जो लड़की अपनी शर्तों पर जीना चाहती हैं, उनका चरित्र बुरा नहीं हो जाता है, इस कथन को बेहद खूबसूरती से रखने की कोशिश की है और इन सबके लिए अपने घर से बाहर निकलना क्यों जरूरी है, दुनिया देखना क्यों जरूरी है, इन कथनों की वकालत भलीभांति करने की कोशिश भी है यह किताब। अनुराधा की लेखनी में सबसे अधिक बेफिक्री इस बात में नजर आती है कि वह एक अलहड़ जैसी दुनिया घूम कर यह महसूस करना चाहती हैं कि वे कौन-सी बातें हैं, जो सात समुंदर पार की किसी लड़की को बेपरवाह बना देते हैं, लेकिन यहां लड़कियां उन बातों से अनजान होती हैं। घूमना आपकी आत्मनिर्भरता का प्रमाण पत्र क्यों है, यह समझना बेहद जरूरी है, इस बात को लेखिका स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं। एक लड़की को क्यों सोलो ट्रिप्स करने चाहिए और जहां भी जाएं, वहां आम लोगों की जिंदगी को क्यों एक्सप्लोर करना चाहिए, यह किताब ट्रेवल गाइड की भूमिका निभाती है। दूसरे देशों में वे कौन-कौन से देश हैं, जो काफी सुरक्षित हैं, इसके बारे में भी इस किताब में विस्तार से लिखा गया है। यकीन मानिए, इस किताब को पढ़ने के बाद, अगर आपने अकेले यात्राएं की हैं, तो उसकी फ्रीक्वेंसी और बढ़ने वाली है, वही दूसरी तरफ अगर आपने कभी सोलो ट्रिप्स के बारे में नहीं सोचा है, तो निश्चित तौर पर अकेले दुनिया देखने का तिलिस्म, जज्बा, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास का एहसास और अनुभव आप जरूर महसूस करना चाहेंगी।