हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के जरिए पाठकों को वास्तविक दुनिया से रूबरू करवाया है। आप यह भी कह सकती हैं कि परियों की कहानियों से एक महिला को बाहर निकालकर वास्तविकता में उसकी दशा, उसके संघर्ष को बखूबी बयान किया है। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में स्त्री की स्थिति उसकी परिस्थिति के हिसाब से कभी निखरती रही है, तो कभी बिखरती रही है। साथ ही समाज के समक्ष यह सवाल भी उठाती रही है कि किसी भी महिला का महिला होना उसकी ताकत को दर्शताा है, न कि मजबूरी को, हालांकि प्रेमचंद के उपन्यासों में महिलाएं निर्णायक भूमिका में न रहकर भी समाज के लिए बाल विवाह, विधवा विवाह और आर्थिक सुरक्षा जैसे गंभीर मुद्दों को ज्वलंत बनाकर उभारती रही हैं। आइए विस्तार से जानते हैं कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में स्त्री की परिभाषा कैसी रही है और महिला किरदारों ने किस तरह का सवाल उठाया है।
प्रेमचंद के उपन्यासों में नारी
प्रेमचंद के उपन्यासों में नारी एक तरफ हताश और निराशा से भरपूर दिखाई देती थी, लेकिन खुद के सम्मान के प्रति उसकी कोशिश और संघर्ष आईने की तरह साफ दिखाई पड़ता रहा है। प्रेमचंद के उपन्यासों में नए ढंग के नारी पात्रों को इस तरह रचते थे कि जहां वह अन्याय सहते हुए दिखाई पड़ती थी, तो वहीं वह विरोध करते हुए भी दिखती थी। अपनी एक रचना में इस संवाद के जरिए प्रेमचंद ने नारी की व्याख्या कुछ इस तरह की है कि ‘नारी का आदर्श है एक ही स्थान पर त्याग, सेवा और पवित्रता का केंद्रित होना’ यह भी दिलचस्प है कि अपने महिला किरदारों के जरिए प्रेमचंद ने संकुचित महिलाओं के साथ मजबूत महिला किरदारों को भी अपने साहित्य में अहम स्थान दिया है।
महिलाओं पर लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य
‘प्रेमा’ उपन्यास में प्रेमचंद एक आदर्श प्रेमिका को दिखाया है, जो परिवार की खुशी के लिए किसी दूसरे से शादी कर लेती है। एक समय ऐसा आता है, जब अपने पूर्व प्रेमी को भूलाकर वह विवाह के बंधन को स्वीकार करती है, ऐसे में पति की मृत्यु के बाद वह फूल का त्याग कर, एक आदर्श भारतीय महिला को प्रस्तुत करती है, जो कि प्रेम, बलिदान और दर्द में लिपटी हुई है, लेकिन समाज के लिए आदर्श है। ठीक इसी तरह ‘वरदान’ उपन्यास में भी सुशाली और विरजन दोनों मां-बेटी सुवाना के बीमार होने पर दोनों मिलकर उसकी सेवा करती हैं, जो कि एक बार फिर से भारतीय नारी की परिभाषा को दर्शाता है, इसके उलट जमींदार की कन्या मीनाक्षी अपने अय्याश पति को दंड देना सही मानती है। हमारे कहने का तात्पर्य यही है कि प्रेमचंद ने अपने किस्सागोई में महिला किरदारों को विकट हालातों में तपते हुए सोने की तरह दिखाया है।
प्रबल नारी और प्रेमचंद
प्रेमचंद के करीब दो दर्जन से अधिक ऐसे उपन्यास जैसे- ‘कर्मभूमि’,’गबन’ , ‘प्रतिज्ञा’ और ‘मंगलसूत्र’ ऐसी कहानियां रही हैं, जो पूरी तरह से नारी चरित्रों पर ही केंद्रित हैं, वहीं उनकी कुछ लोकप्रिय महिला किरदारों से परिपूर्ण कहानियों की बात की जाए, तो ‘पूस की रात’,’बड़े घर की बेटी’,’ बूढ़ी काकी’, ‘दूध का दाम’, ‘कफन’ और ‘ठाकुर का कुआं’ सबसे प्रबल महिला किरदारों को प्रस्तुत करती हैं। प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में नारी को हमेशा से भारतीय महिला की तरह पेश किया है, जो कि अपने किरदारों के साथ कभी प्रबल दिखाई दी है, तो कभी असहाय होकर भी मजबूत दिखाई पड़ी हैं। ‘गबन’ में जालपा के किरदार को पढ़कर आपको आश्चर्य होता है कि जो बिना किसी विवाद के भी अपनी जिंदगी की परेशानियों का सामना करती है। वो अपनी समझ से मुश्किल हालातों पर खुद के लिए फैसले लेती है और उस पर अडिग खड़ी रहती है। उल्लेखनीय है कि प्रेमचंद के नारी किरदार रिश्तों के घेरे में घिरे दिखाई देती हैं। उन्होंने नारी पात्रों को एक तरफ वेश्या के तौर पर स्वाभिमानी दिखाया गया है, तो दूसरी तरफ समाज सुधारक, देश प्रेमी, मां और आधुनिक महिला को बखूबी पेश किया है।
प्रेमचंद के उपन्यास में विधवा महिलाएं
प्रेमचंद के सबसे लोकप्रिय उपन्यास ‘गबन’, ‘वरदान’ और’ प्रतिज्ञा’ में विधवा जीवन के दृष्टिकोण को प्रस्तुत किया है। विधवा का प्रेम करना, सौंदर्य होने के बाद भी विधवा बनकर निराश जीवन यापन करना भी शामिल है, तो दूसरी तरफ ‘स्वामिनी’ और ‘धुनिया’ उपन्यास में उन्होंने एक महिला को अपनी इच्छा अनुसार वर खोजने और खुद के फैसलों के आधार पर एक खुशनुमा जीवन जीने वाली महिला के रूप में दर्शाया है। ‘प्रतिज्ञा’ उपन्यास में उन्होंने विधवा पुनर्विवाह सही है गलत यह सोचने का अधिकार अपने पाठकों को दिया है। प्रेमचंद ने स्त्री के आर्थिक निर्भरता पर भी ‘मंगलसूत्र’ उपन्यास में खुलकर बात की है। उन्होंने ‘मंगलसूत्र’ में नारी किरदार के जरिेए यब बताया है कि एक महिला किसी की आश्रित नहीं है। वो अपना निर्वाह भी कर सकती हैं। प्रेमचंद ने महिलाओं को अपनी रचनाओं के जरिए सशक्त दिखाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। त्याग की मूर्ति बताने के साथ उन्होंने महिलाओं को देश भक्त के तौर पर भी पेश किया है। ‘कर्मभूमि’ उनके लोकप्रिय उपन्यासों में से एक है। ‘कर्मभूमि’ उपन्यास भारत की राजनीति पर लिखी गई है, इस उपन्यास में उन्होंने नारी को पुरुषों के बराबर का स्थान दिया है। उन्होंने ‘कर्मभूमि’ में नारी को संघर्षशील महिला का स्थान देते हुए कर्मठ बताया है, वहीं ‘रंगभूमि’ उपन्यास में सोफिया किरदार को प्रेमचंद ने दमदार दिखाया है। इस उपन्यास में देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को बताया गया है, ऐसे में सोफिया मुख्य तौर पर आकर खुद का स्थान बनाती है और राजनीति की तरफ खुद को अग्रसर दिखाती है। प्रेमचंद ने इस किरदार के जरिए यह भी बताया है कि एक नारी धार्मिक भी हो सकती है, लेकिन धर्म से जुड़े अंधविश्वास का हिस्सा नहीं बनना चाहती है। आप यह भी कह सकती हैं कि मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में नारी संघर्ष के जरिए कैसे खुद की प्रगति की मिसाल भी जला रही है। प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में सामाजिक परिस्थितियों के उठा-पटक के बीच सशक्त महिला किरदारों को अपनी कहानियों में ऊपरी स्थान दिया है।
दमदार कहानियों के बीच महिला संवाद
प्रेमचंद ने न केवल महिला किरदारों के ईद-गिर्द अविस्मरणीय कहानियां बुनी हैं, जो कि वास्तविकता दिखाती है, वहीं इसी के साथ उन्होंने अपने महिला किरदारों से जुड़े कुछ यादगार संवाद भी दिए हैं, जो कि एक महिला के हालातों को सशक्त दिखाते हैं। ‘गबन’ में विधवा रतन कहती हैं कि न जाने किस पापी ने यह कानून बनाया था कि पति के मरते ही हिंदु नारी इस प्रकार स्वत्व- वंचिता हो जाती है। ‘मंगलसूत्र’ उपन्यास में पुरुष किरदार अपनी पत्नी से कहता हैं कि जो स्त्री पुरुष पर अवलंबित हो उसे पुरुष की हुकुमत माननी पड़ेगी। इस पर नारी किरदार जवाब देती है कि मैं जितना काम तुम्हारे घर में करती हूं ,उतना अगर किसी दूसरे के घर में करूँ, तो अपना निर्वाह कर सकती हूं। तब जो कमाऊंगी, वो मेरा होगा। तुम जब चाहो मुझे निकाल सकते हो। ‘कायाकल्प’ उपन्यास में नायक पूछता है कि नारी के लिए पुरुष सेवा से बढ़कर कोई विलास, भोग और श्रृंगार नहीं है, परंतु कौन कह सकता है कि नारी का यह त्याग उसकी सेवा भाव ही आज उसके अपमान का कारण नहीं हो रहा है। ‘सेवासदन’ उपन्यास में नारी किरदार कहती है कि मैं जानती हूं कि मैंने अत्यंत निकृष्ण काम किया है, लेकिन मैं विवश थी। इसके सिवाय मेरे लिए कोई रास्ता न था। मेरे मन में बस यही चिंता रहती है कि आदर कैसे मिले।
नारी पात्र और उनकी समस्याएं
प्रेमचंद के आदर्श नारी पात्र अपनी लेखनी के कारण अमर हो गए हैं। सुखदा, मुन्नी, सलोनी, सकीना, कल्याणी, मनोरमा, सुमित्रा, मालती, सोफिया और पुष्पा के महिला किरदारों के जरिए प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में महिला को त्याग, सेवा, आधुनिक, मजबूत और प्रगतिशील महिला के दृष्टिकोण से पेश किया है, जो कि समाज के सामने एक प्रगतिशील महिला का उदाहरण पेश करती हैं। प्रेमचंद ने महिलाओं से जुड़ी उन प्रमुख और प्रासंगिक समस्याओं को अपनी रचनाओं में पेश किया है, जो महिला की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बयान करती हैं। उन्होंने विवाह पूर्व की समस्याएं, सामाजिक अवरोध की बेड़ियां, दहेज प्रथा, अनमेल विवाह, बाल विवाह,नारी का चरित्र संदेह, नारी का शोषण, कुप्रथा, पर्दा करना जैसे कई ज्वलंत मुद्दों पर रोशनी डालते हुए महिलाओं को दिक्कतों से बाहर आने का रास्ता भी दिखाया है।
प्रेमचंद आभूषण को नारी की गुलामी की जंजीर मानते थे, उनका मानना था कि ये सारी चीजें नारी को विकास करने से रोकती हैं। कहीं न कहीं प्रेमचंद के नारी किरदार गुलामी से आजादी की चाह रखती हैं। नारी के प्रति उनका दृष्टिकोण यह रहा है कि जब भी पुरुष अपने पथ से भटकता है, तो एक नारी उसे सही मार्ग पर लाती है। फिर चाहे वो ‘सेवा सदन’ की सुमन , ‘निर्मला’ की निर्मला, ‘गोदान’ की धनिया हो या फिर ‘रंगभूमि’ की सोफिया। यही वजह है कि प्रेमचंद का संपूर्ण साहित्य जीवन महिलाओं के जीवन को गरिमामय और आदर्श के तौर पर प्रस्तुत करता है।