महिला कवयित्रियों ने साहित्य की दुनिया में अपनी रचनाओं से जादू बिखेर रखा है। भले ही नए जमाने के कितने भी कवि क्यों न आ जाए, लेकिन जो बात और हुनर क्लासिकल महिला कवयित्री की रही है, उस रिक्त स्थान को अभी तक कोई भी नहीं भर सका है। इन सभी महिला कवयित्रियों की बोली, भाषा और सोच सदाबहार और संगीतमय है। अपनी लेखनी में जीवन, पर्यावरण, समाज और देश के साथ नारीवादी सोच को शामिल करके सभी क्लासिकल महिला कवयित्रियों ने अपनी पैठ साहित्य की दुनिया में बैठा ली है। आइए जानते हैं विस्तार से।
अक्का महादेवी
अगर कन्नड़ साहित्य की बात करें, तो भारत में दक्षिण भारत से भी ऐसी कई साहित्यकार रही हैं, जिन्होंने एक बड़ी पहचान पूरे भारत में बनाई है, ऐसे में कन्नड़ साहित्य काफी अग्रणीय रहा है और महिला साहित्यकार के रूप में भी कई लेखिकाओं और कवयित्री ने योगदान दिया है। उल्लेखनीय है कि कम लोगों को यह जानकारी होगी कि अक्का महादेवी एक लोकप्रिय कवयित्री मानी गयी हैं और उन्होंने अपने 430 प्रचलित वचनों (सहज रहस्यमय कविता) का मुख्य योगदान दिया है। आपको यह भी जानकर हैरानी होगी कि उन्होंने पुरुषवादी क्षेत्र में अपनी एक खास पहचान बनाई है और लोग एक सुधारवादी आंदोलन की मुख्य प्रतिनिधि और लीडर के रूप में मानते आये हैं।
लाल देद
लाल देद के साहित्यक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है। उनका ताल्लुक कश्मीर से रहा, लेकिन उनके काम की तारीफ पूरी दुनिया में हुई। गौरतलब है कि कई वर्षों के बाद भी उन्हें खास सम्मान दिया जाता है और सम्मान की नजर से देखा जाता है, क्योंकि उन्होंने एक मुख्य काम किया, जिसे वक अर्थात शब्द के नाम से जाना जाता है, और यह लोक परंपरा के माध्यम से आया है और इसे कश्मीरी साहित्य की नींव माना जाता है। उनके काम में धर्म निरपेक्ष की छवि हमेशा ही नजर आयी।
अमृता प्रीतम
पंजाब की कवयित्री अमृता प्रीतम ने अपनी कविता से साहित्य की दुनिया में ख्याति प्राप्त की है। उनके लेखन में प्रेम के साथ महिलाओं के खिलाफ हिंसा और युद्ध जैसे कई विषय समाहित दिखाई दिए। अपने 60 साल के लेखन के करियर में उन्होंने 28 उपन्यास, 18 खंड कविताएं और 16 खंड लघु कहानियां लिखीं। उनके लेखन कार्य को देखते हुए साल 1956 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया। इस पुरस्कार को पाने वालीं वह पहली महिला साहित्यकार बनीं। उन्हें साहित्य के सबसे सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ से भी नवाजा गया है। उनका नाम साहित्य के सुनहरे पन्नों में सदा के लिए दर्ज हो चुका है।
तोरु दत्त
तोरु दत्त की बात की जाये, तो वह भारतीय मूल की ऐसी कवयित्री रहीं, जिन्होंने अंग्रेजी और फ्रेंच दोनों भाषाओं में लिखने का श्रेय हासिल किया। वह ऐसा करने वालीं पहली भारतीय कवयित्री या साहित्यकार रहीं। उनका सबसे बड़ा योगदान और उल्लेखनीय काम यह रहा कि उन्होंने ए शीफ ग्लीन्ड इन फ्रेंच फील्ड्स, गीतकारिता में लोकप्रियता हासिल की।
मुद्दुपलानी
मुद्दुपलानी तेलुगु भाषा की लोकप्रिय कवयित्री रहीं। वह एक कवयित्री के रूप में भी और विद्वान के रूप में भी जानी जाती हैं। उनकी रचनाएं अपने दौर से बेहद आगे की रही हैं और उनकी रचनाओं में गहराई रही।
कमला सुरैया
निडर और साहसी लेखिका के रूप में उन्होंने अपनी पहचान बनाई है। छह साल की उम्र से ही उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। अंग्रेजी और मलयालम की लोकप्रिय लेखिका और कवयित्री का खिताब कमला सुरैया को मिला। केवल 15 साल की उम्र में उन्होंने कविता लिखने की शुरुआत कर दी थी। कमला सुरैया की मां बालमणि अम्मा भी एक बहुत अच्छी कवयित्री थीं और मां की लेखनी का असर बेटी कमला सुरैया पर भी हुआ। साहित्य जगत में अपनी पहली कविता संग्रह समर इन कोलकाता ( तब कलकत्ता) से उन्होंने ख्याति बटोरी और एक के बाद एक अपने कविता लेखन के बाद उन्हें क्रांतिकारी कवयित्री के तौर पर पहचान मिली। उनकी एक और कविताएं ‘ऐन इंट्रोडक्शन’, ‘द डिसेंडेंट अल्फाबेट ऑफ लस्ट ‘ और ‘ओनली सोल नोज हाऊ टू सिंग’ भी अंग्रेजी में उनकी लोकप्रिय कविताओं में से एक है। साल 1984 में साहित्य के नोबल पुरस्कार के दावेदारों की सूची में भी उन्हें स्थान मिला। इसके साथ कई सारे प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान से उन्हें नवाजा जा चुका है।
सरोजिनी नायडू
एक कवयित्री और राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर सरोजिनी नायडू ने भारत के इतिहास में अपनी पहचान बनाई है। सरोजिनी नायडू एक प्रख्यात लेखिका होने के साथ अपनी कविता संग्रह से भी पहचान बनाई है। साल 1905 में उन्होंने अपनी कविता संग्रह ‘गोल्डन थ्रेशोल्ड’ के प्रकाशन पर बुल बुले हिंद के तौर पर पहचान हासिल की। सरोजिनी नायडू ने अपनी कविताओं में महिला सशक्तिकरण को नए रूप से सामने लाया। उनका यह कहना था कि यदि पुरुष देश की शान हैं, तो महिलाएं उस देश की नींव हैं। उल्लेखनीय है कि सरोजिनी नायडू को भारतीय और अंग्रेजी साहित्य जगत की स्थापित कवयित्री माना जाता था, लेकिन उन्होंने कभी खुद को कवि नहीं माना था। जान लें कि अपने कविता लेखन के बलबूते पर सरोजिनी नायडू को खासतौर पर भारत कोकिला और राष्ट्रीय नेता होने के साथ नारी मुक्ति आंदोलन के समर्थन के तौर पर हमेशा याद किया जाता रहा है।
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा आधुनिक साहित्य की कवयित्री रही है। यह भी माना जाता है कि आधुनिक हिंदी की सबसे मजबूत और सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से लोकप्रियता मिली है। महादेवी वर्मा न सिर्फ हिंदी में, बल्कि संस्कृत भाषा की भी लोकप्रिय कवयित्री रही हैं। उनकी भाषा में साहित्यिक खड़ी बोली महसूस होती है। महादेवी वर्मा के कई सारे काव्य रचनाओं को लोकप्रियता मिली, लेकिन प्रमुख तौर पर ‘आत्मिक’, ‘परिक्रमा’, ‘सन्धिनी’, ‘यामा’, ‘गीतपर्व’, ‘दीपगीत’, ‘स्मारिका’ और ‘नीलांबरा’ आदि नाम शामिल है। अपनी कविताओं के जरिए महादेवी वर्मा ने समाज के जीवन के साथ भारत वर्ष की ग्रामीण जनता के दुख दर्द का चित्रण किया है और इसके साथ ही उनके काव्य में आत्मा-परमात्मा के मिलन विरह तथा प्रकृति के व्यापारों की छाया स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, वहीं महादेवी वर्मा की काव्य कृतियों के बारे में बात की जाए, तो ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरजा’, ‘सांध्य गीत’ , ‘दीपशिखा’, ‘’साधिनी और अन्य नाम शामिल हैं ।
बालमणि अम्मा
साहित्य के इतिहास में बालमणि अम्मा ने अपनी कविताओं से जादू बिखेरा है। साल 1930 में उनकी पहली कविता कूप्पुकाई प्रकाशित हुई थी। मलयालम भाषा में बालमणि अम्मा ने कई सारी कविताएं लिखी हैं। उनकी लोकप्रिय कविताओं के नाम इस प्रकार है- ‘अम्मा’ ( मां), ‘मथुस्सी’(दादी), ‘मजुविंते’ ( कुल्हाड़ी की कहानी) अन्य रही हैं। उल्लेखनीय है कि बालमणि अम्मा को उनके कविता लेखन के लिए और साहित्य में उनके अमूल्य योगदान के लिए पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार के साथ सरस्वती सम्मान के साथ कई अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया है। यह जान लें कि बालमणि अम्मा अपनी कविताओं को लेकर इतनी लोकप्रिय रही हैं कि केरल के पुन्नारयुरकुलम में जन्मीं बालमणि अम्मा को सम्मानपूर्वक मातृभूमि की कवयित्री की भी उपाधि दी गई है। उनकी कविताएं इतनी लोकप्रिय हुई कि उनकी कविताओं के 20 से अधिक संकलन के साथ अनुवाद कार्य को भी पूरा किया गया है।
विश्व जगत की लोकप्रिय कवयित्री
हिंदुस्तान के अलावा पूरे विश्व में भी कई ऐसी कवयित्री रही हैं, जिनकी लेखनी की चर्चा पूरी दुनिया में रही, आइए एक नजर उन पर भी डाल लेते हैं।
हन्ना स्जेनेस
हन्ना स्जेनेस एक यहूदी कवयित्री रहीं, जिनका जन्म 1921 में हंगरी में हुआ था। उन्हें अपने जन्म के साथ ही कई सारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उत्पीड़न के कारण हंगरी से भागने के बाद स्जेनेस ब्रिटिश वायु सेना में शामिल हो गए। लेकिन एक युद्ध में स्जेनेस को सीमा पर पकड़ लिया गया और कैद कर लिया गया। कई सारी यातनाएं सहने के बाद 23 साल की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गयी थी। जेल में रहते हुए, अपनी जेल यात्रा के दौरान उन्होंने लेखन का सहारा लिया। स्जेनेस ने जेल में रहते हुए अपने मौत का इंतजार किया और कई सारी कविताएं लिखीं।
सोर जुआना डनेस डे ला क्रूज
साल 1651 में मेक्सिको में जन्मीं सोर जुआना कवयित्री, लेखिका और संगीतकार थीं। उन्होंने हमेशा धर्म, नारीवाद और प्रेम पर सबसे अधिक कविताएं लिखी हैं। सोर जुआना डनेस एकांत में रही हैं। अपनी कविता से उन्होंने इतनी लोकप्रियता हासिल की कि उन्हें मेक्सिको में राष्ट्रीय आइकॉन माना जाने लगा और मैक्सिन मुद्रा पर उनकी छवि भी लगाई गई है।
गैब्रिएला मिस्ट्रल
गैब्रिएला मिस्ट्रल को साहित्य में नोबेल पुरस्कार पाने वाली पहली लैटिन अमेरिकी लेखिका का सम्मान से नवाजा गया। इसके बाद अपने कविता लेखन के लिए उन्हें 1951 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि कविता के अलावा गैब्रिएला ने अपने पूरे जीवनकाल में 800 से अधिक निबंध का प्रकाशन किया।
लियोना फ्लोरेंटिनो
फिलीपींस कवि लियोना ने बहुत कम्र उम्र में कविता लेखन की शुरुआत की। उनके लेखन में अक्सर नारीवादी विषयों को गढ़ा गया, जो जनमानस तक पहुंचा। इस वजह से उनके पति और परिवार ने उन्हें त्याग दिया। 35 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। लियोना के निधन के बाद उनकी कविता को महिलाओं के कार्यों के लिए अंतरराष्ट्रीय विश्वकोश में शामिल किया गया। ऐसा माना जाता है कि लियोना इस तरह का सम्मान पाने वालीं पहली फिलीपींस महिला हैं। इसके साथ, उन्हें फिलीपीन महिला साहित्य की जननी भी माना जाता है।
एमी लोवेल
एमी लोवल एक अमेरिकी कवयित्री थीं। उनके निजी जीवन में उन्हें परिवार के विरोध के कारण कॉलेज जाने का अवसर नहीं मिला, उन्होंने घर पर ही पढ़ाई करना शुरू किया। नतीजा यह हुआ कि लेखन में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी और अपने 12 साल के लेखन करियर में उन्होंने तकरीबन 650 कविताएं लिखीं और प्रकाशित भी कीं।