मीराबाई का जन्म मारवाड़ के कुड़की नाम के गांव में 1498 में एक राज परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम रतन सिंह राठौड़ था, वह एक शासक थे और वीर योद्धा भी। मीराबाई अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी। मीराबाई ने छोटी उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया था, इसके बाद उनका पालन-पोषण दादा राव दूदा जी की देख-रेख में हुआ था। मीरा की रचनाओं में कई तरह की अभिव्यक्ति छुपी है। हालांकि
मीरा ने स्वयं कुछ नहीं लिखा, लेकिन उन्होंने कृष्ण के प्रेम में मीरा ने जो कुछ भी लीन होकर गाया, वे बाद में पद मे संकलित हो गए। पढ़िए उनकी कुछ रचनाएं।
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे
पग घूँघरू बाँध मीरा नाची रे
मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गई दासी रे
लोग कहै मीरा भई बावरी न्यात कहै कुलनासी रे
विष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे
'मीरा' के प्रभु गिरिधर नागर सहज मिले अविनासी रे
हरि तुम हरो जन की भीर
हरि तुम हरो जन की भीर
द्रोपदी की लाज राखी, तुम बढ़ायो चीर
भक्त कारण रूप नरहरि, धरयो आप शरीर
हिरणकश्यपु मार दीन्हों, धरयो नाहिंन धीर
बूडते गजराज राखे, कियो बाहर नीर
दासि 'मीरा लाल गिरिधर, दु:ख जहाँ तहँ पीर
मेरो दरद न जाणै कोय
हे री मैं तो प्रेम-दिवानी मेरो दरद न जाणै कोय
घायल की गति घायल जाणै, जो कोई घायल होय
जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिन जौहर होय
सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस बिध होय
गगन मंडल पर सेज पिया की किस बिध मिलणा होय
दरद की मारी बन-बन डोलूँ बैद मिल्या नहिं कोय
मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जद बैद सांवरिया होय
प्रभु कब रे मिलोगे
प्रभु जी तुम दर्शन बिन मोय घड़ी चैन नहीं आवड़े
अन्न नहीं भावे नींद न आवे विरह सतावे मोय
घायल ज्यूं घूमूं खड़ी रे म्हारो दर्द न जाने कोय
दिन तो खाय गमायो री, रैन गमाई सोय।
प्राण गंवाया झूरता रे, नैन गंवाया दोनु रोय
जो मैं ऐसा जानती रे, प्रीत कियाँ दुख होय
नगर ढुंढेरौ पीटती रे, प्रीत न करियो कोय
पन्थ निहारूँ डगर भुवारूँ, ऊभी मारग जोयमीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, तुम मिलयां सुख होय।