सवाई माधोपुर से संबंध रखने वालीं युवा कवित्री माधुरी ने एनवायरनमेंटल साइंसेस के साथ-साथ मास्टर ऑफ जर्नलिज़्म भी किया। उनकी पहली रचना प्रकाशित 17 साल की उम्र में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद लगातार उनकी रचनाएं अख़बारों और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। उन्हें रेडियो लेखन में भी महारत हासिल है। साथ ही वह ऑल इंडिया रेडियो में न्यूज़ रीडर के पद पर भी कार्यभार संभाल चुकी हैं। साथ ही कई ऑडियो प्रॉडक्शन कंपनी में बतौर वॉइस ओवर आर्टिस्ट, हिन्दी सीरियल्स में डबिंग और कई सारे पॉडकास्ट प्रोजेक्ट्स से भी वह जुड़ी हुई हैं। दूरदर्शन के कई कार्यक्रमों में भी उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से योगदान दिया है। हाल के दिनों में सोशल मीडिया पर उनकी लघु कविताएं काफी लोकप्रिय हो रही हैं, तो आइए पढ़ते हैं उनकी कुछ रचनाएं।
1.चाहती हूं घर पर मेरे क़ब्ज़ा कर ले बोगनविलिया
कृष्णकमल करे मुझसे हाथापाई
निकाल दे घर बाहर मुझे मधुमालती
अपराजिता दरवाज़े पर खड़ी रहे गार्ड की तरह
रंगून लता मुझसे मांगे मेरे ही घर में रहने का किराया
मालिक वे हों और मैं उनकी बेशर्म किरायेदार
2 . मत काटो
जंगल तो रहें
कि कभी मैं लिटिल रेड राइडिंग हुड की तरह वहाँ से गुज़रूँ, फूल चुनूँ
और कोई भेड़िया आ जाये
कि लकड़हारे की तरह लकड़ी काटती होऊँ और मेरी कुल्हाड़ी गिर जाए तालाब में
लगाये डुबकी पानी में मेरी ख़ातिर, जो वह वन देवी आ जाये
कि मेरा जी चाहे बन के सुदामा सखा कृष्ण के साथ वृक्ष पर बरसाती रात बिताने को
चाहे फिर क्यूँ न भूख से कुड़कुड़ाती हों आँतें
कि कोई अज्ञातवास हो पांडवों के जैसा या किसी पोखर में पानी पी रही हूँ युधिष्ठिर की तरह
कोई यक्ष तो पूछ ले प्रश्न मुझसे
कि वनवास में सीता बन कर कुटिया में रहूँ , लक्ष्मण रेखा लाँघ लूँ
स्वयं राम मुझे बचाने आयें
कि किसी राजकुमारी की तरह नित्त नेम से उमड़ती नदी पार कर
शिवलिंग को जल चढ़ाने जाऊँ तड़के-तड़के
कि बेताल की तलाश में अँधेरी रात को वन में जाऊँ, उसे कांधे पर लादे ले आऊँ
उसके सवालों के हल खोजूँ विक्रम बनके
कि मोगली की कहानी में कोई बूमरैंग मैं भी बनाऊं या डाकुओं के किसी ख़ेमे में कोई गब्बर तो दिखे मुझे
या एक मुलाक़ात वीरप्पन से हो जाये
कि सर्द रात में महबूब के साथ भटक जाऊँ, पत्थर टकरा कर हम आग बनाएं
बैकड्रॉप में बज उठे फ़िल्मी नग़मा और जिस्म का अलाव जलाएं
जंगल में मोर नाचा किसने देखा पर इतरा के कह सकूं, मैंने देखा, मैंने देखा
कभी चिनार के हों कभी ओक या तेंदू के जंगल
या फिर छितरे हुए धोंक के
हरे हों, सूखे पीले हों
घने हों छितरे हों
जंगल हों बस..
कथाएं बची रहें
कथाएं बनती रहें !!
3. कविता करने वाली लड़की से प्यार करना आसान नहीं होता
उसके पास दर्द की पूरी होमियोपैथी हिस्ट्री होती है
कोई जितना भी चाहे परफ़ेक्ट दवा निकाल नहीं सकता
फ़िक्र उसे उसकी भी है जो उसके लिए नापर्वा है
वह स्टार्ट होता हुआ कंप्यूटर है, जिसे दस सैकंड में एनी की प्रेस न करो तो रीबूट मोड में चला जाता है
वह भले ही नज़र न आये महसूस की जा सकती है
और गर दिखाई दे जाए तो भी गुम ही रहती है
वह हल्की है जैसे निर्वात में गिरता हुआ पंख
गुरुत्व की टी शर्ट पहने है, ताकि प्रेम में गिरता रहे उसके कोई
वह शब्द लिखती है रात, दिन की दराज़ में रख कर भूल जाती है
वह समंदर की रेत पर नाम लिखकर महबूब का, तावीज़ में भर लेती है
वह पहाड़ पर जाकर इतना बहना चाहती है कि मैदान में झील बनकर पड़ी रहे
वह कविता को लिखकर दिखाने के बजाए पढ़कर सुनाना चाहती है
और अपनी आवाज़ को शिराओं में दौड़ते देखना चाहती है
उसे प्यार करना आसान नहीं
4. मुस्कान आई थी
चुपके से मेरी हथेलियों में दे गयी छुपा कर लाए हुए दो सीताफल
प्रीति के जाने के बाद देखा
मेरी बाइक पर रखीं थी दो चॉकलेट
ख़ुशी ने आते ही
मुझे दिए पोटली भर बेर
स्वप्न ने किसी रोज़
मेरी टेबल पर रख दी थी मेलोडी
किसी ने बना कर ला दी थी मेरी पसंदीदा सब्ज़ी ,
रूठने पर मुझे मनाने को कोई ले आया गाजर का हलवा
प्रेम है सर्वत्र
प्रेम है अति संक्रामक
बस वैक्सीन नहीं है, जो मुझे इससे बचा सके
5. जीवन एक फ्लॉप फ़िल्म इन मेकिंग-सा लगने लगा है
न किरदार जी पा रहे हैं
न एक्टिंग ठीक से होती है
कहानी लचर है
क्लाइमैक्स का पता नहीं
गीत मधुर नहीं
डेट्स के अभाव में शूट टल रहा है
बस इसलिए फ़िल्म को पूरी किये जा रहे हैं
कि कुछ प्रेम दृश्य हैं हिस्से में