साहित्य एक सृजन है और एक मां के लिए उनकी बेटियां सबसे बड़ी सृजन होती हैं, ऐसे में ऐसा मेल, जब मां से उनकी बेटियों ने विरासत में लेखन की कला ली है। आइए ऐसी कुछ मां-बेटियों की जोड़ियों के बारे में जानें, जिन्होंने कई कहानियां और कविताएं रची हैं।
शिवानी- मृणाल पांडे
कहते हैं पढ़ने-लिखने का माहौल जब घर में होता है, तो एक परिवार को पीढ़ी दर पीढ़ी लेखक मिलते चले जाते हैं। शिवानी को यह माहौल बचपन में अपने पिता से मिला। शिवानी के पिता अंग्रेजी के लेखक थे। अपने पिता से विरासत में मिली लेखनी की कला को उन्होंने खुद के जीवन में शामिल किया। उनका वास्तवकि नाम गोरापंत था। उन्होेंने 12 साल की उम्र में नटखट नाम की बाल पत्रिका में अपनी प्रथम रचना अल्मोड़ा से लेखनी की शुरुआत की और बतौर साहित्यकार उनका सफर कृष्णकली, कालिंदी और मायापुरी के साथ कई लोकप्रिय उपन्यास के साथ सतत आगे बढ़ गया। मां शिवानी की लेखनी से मृणाल पांडे का परिचय बचपन में किताबों के बीच हुआ। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एमए की डिग्री हासिल की। लेखनी ने उन्हें पत्रकारिता के क्षेत्र में लेकर आयीं। कई साप्ताहिक अखबारों में कार्यकारी सम्पादक होने के साथ उन्होंने अपनी गवाही, हमको दियो परदेस और देवी जैसे लोकप्रिय उपन्यास से साहित्य को नवाजा है।
महाश्वेता देवी-धरित्री देवी
साहित्य की दुनिया की ईमानदार छवि के तौर पर महाश्वेता देवी का नाम प्रख्यात है। इसकी वजह यह रही है कि उनकी परवरिश में कविता और कहानी की ईमानदार सोच उनके माता-पिता के जरिए प्रवाहित होती रही है। बचपन में उन्हें नानी, दादी और मां ने महाश्वेता को साहित्य पढ़ने के संस्कार दिए थे। उनके पिता मनीष घटक एक कवि और उपन्यासकार थे। उनकी माता धरित्री देवी एक लेखिका होने के साथ सामाजिक कार्यकता थीं। बचपन में सुनी गई नानी और मां से छोटी कहानी और किस्सों ने उन्हें लघु कथाओं की जननी बना दिया। उनका प्रथम उपन्यास नाती 1957 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होेंने जंगल के दावेदार, ग्राम बांग्ला समेत सौ से अधिक विषयों पर उपन्यास लिखें। बांग्ला भाषा में उनके उपन्यास आज भी प्रासंगिक हैं।
अनिता देसाई- किरण देसाई
अंग्रेजी साहित्यकार अनिता देसाई के बचपन में अंग्रेजी भाषा से प्यार हो गया। उन्होंने स्कूल में अंग्रेजी को पढ़ना और लिखना शुरू किया। उनकी यह आदत उन्हें लेखनी की तऱफ लेकर आयी। सात साल की उम्र से उन्होेंने लिखना शुरू किया। नौ साल की उम्र में उनकी पहली कहानी प्रकाशित हुई। साहित्य की दुनिया में अपना सफर जारी रखते हुए उन्होंने साल 1963 में अपना पहला अंग्रेजी उपन्यास क्राई द पीकॅाक प्रकाशित किया। विश्व स्तर में उन्हें लोकप्रियता द क्लियर लाइट ऑफ द डे, फास्टिंग से मिली। अनिता के लेखनी की कला उनकी बेटी किरण देसाई को भी मिली। उन्होेंने कोलंबिया से लेखन क्रिएटिव राइटिंग की पढ़ाई 35 साल की उम्र में बुकर पुरस्कार पाने वाली सबसे कम उम्र की महिला बनीं। इसकी वजह साल 2006 में प्रकाशित उनकी दूसरी किताब द इनहेरिटंस ऑफ लॉस बनीं। इस किताब को एशिया और यूरोप में सराहा गया। उनके पहले उपन्यास Hullabaloo in the Guava Orchard ने भी काफी लोकप्रियता बटोरी।