यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हिंदी साहित्य ने महिला लेखकों की लंबी फेहरिस्त समाज को उपहार में दी है। उल्लेखनीय है कि कई सारी ऐसी महिला लेखक रही हैं, जो कि अपने विचारों को बेबाक तरीके से रखने में कामयाब रही हैं और अपनी अमिट छाप भी छोड़ी है। देखा जाए, तो हिंदी साहित्य की दुनिया में बेबाक विचारों वाली महिलाओं की फेहरिस्त लंबी रही है, लेकिन इन सबके बीच कुछ चुनिंदा महिला साहित्यकार ऐसी रही हैं, जो कि अपनी लेखनी से समाज में महिलाओं को नई दिशा दिखाने में कामयाब रही हैं। आइए जानते हैं विस्तार से मैत्रेयी पुष्पा, इस्मत चुगताई और सुभ्रदा कुमारी के साथ मन्नू भंडारी और कृष्णा सोबती के लेखनी के बारे में।
मैत्रेयी पुष्पा
मैत्रेयी पुष्पा ने हमेशा से ही अपनी कलम की ताकत दिखाई है। उनकी लिखी हुई लेखनी ने महिलाओं को प्रेरणा दी हैं। उन्होंने महिलाओं के मुद्दे पर काफी गहन अध्ययन के साथ काम किया है। मैत्रेयी पुष्पा की लेखनी की यह खासियत रही है कि उन्होंने महिलाओं के मुद्दे पर काफी गहन अध्ययन और अनुभव के साथ लिखा है, वह ऊपरी तौर पर नहीं, बल्कि तर्कपूर्ण बातें करती हैं। इसी वजह से हिंदी की बेबाक महिलाओं में मैत्रेयी पुष्पा का नाम रहा है।मैत्रेयी पुष्पा की लेखनी में सच्चाई झलकती है। उन्होंने हमेशा से अपनी लेखनी में ग्रामीण भारत को साकार कर दिखाया है। ग्रामीण महिलाओं की स्थिति को मैत्रेयी पुष्पा ने बड़ी ही शालीनता के साथ प्रस्तुत किया है। उनके लोकप्रिय लेखन के बारे में की जाए, तो अल्मा कबूतरी, बेतवा बहती रही, चाक, झूला नट, कहै ईसुरी फाग, फरिश्ते निकले शामिल है। इतना ही नहीं अपनी लेखनी में उन्होंने माटी की खूशबू भी लेकर आयी हैं। उनके साहित्य में बुंदेलखंड औऱ ब्रज प्रदेश के परिवेश की झलक दिखाई देती है। उनकी सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि नारी जीवन के ईद-गिर्द उनका साहित्य दिखाई देता है। उन्होंने लोक जीवन, लोक संस्कृति, ग्रामीण भाषाएं, रीति रिवाज, लोक मान्यताओं के साथ नारी संघर्ष और नारी से जुड़े हर मुद्दे को हर जीवन को बारीकी से अपनी लेखनी में जगह दी है। उनकी लेखनी में नारी जीवन को जीवित इसलिए भी अधिक देखा जाता है, क्योंकि आर्थिक समस्या के कारण उनका जीवन संघर्ष से भरा रहा है। यहां तक कि लड़की होने के नाते उन्हें हर जगह पर उपेक्षित भी किया गया है। लेखनी में अपने करियर की शुरुआत मैत्रेयी पुष्पा ने साल 1990 में की। उनके पहले उपन्यास स्मृति दंश का आगमन उसी दौरान हुआ। उन्होंने उपन्यास के साथ कहानी और आत्मकथाएं भी लिखी हैं। आधुनिका हिंदी साहित्य में अपनी प्रेरणादायक रचानओं के लिए मैत्रेयी पुष्पा को कई सारे पुरस्कारों से नवाजा गया है। साहित्य कीर्ति सम्मान, महात्मा गांधी सम्मान, प्रेमचंद सम्मान के साथ कथा पुरस्कार सम्मान से सम्मानित किया गया है, जो कि उनके साहित्य कार्य को धनी बनाता है।
इस्मत चुगताई
महिलाओं को अपनी कहानी में एक प्रबल स्थान देकर में इस्मत चुगताई ने विश्व में महिलाओं के पंखों को अपनी लेखनी के जरिए उड़ान देने का सराहनीय कार्य किया है। खासतौर पर महिलाओं से जुड़े हर बड़े और छोटे मुद्दे पर इस्मत चुगताई ने बखूबी अपनी बात रखी है। अपनी लेखनी से उन्होंने उर्दू साहित्य को नए मुकाम पर पहुंचाया है। अपनी लेखनी में उन्होंने यह बात स्प्ष्ट तौर पर लिखी है कि औरतों को औरतों से समझने का दावा न करें, और इसी के साथ वह बताती हैं कि कैसे उनकी लेखनी और विचारों की पकड़ मजबूत रही है। इसी वजह से इस्मत चुगताई उर्दू साहित्य की सर्वाधिक विवादास्पद और प्रमुख लेखिकाओं में से एक रही हैं। खासतौर पर उनकी लिखी हुई कहानी लिहाफ को लेकर लाहौर के हाईकोर्ट में मुकदमा चलाया गया था। यहां तक कि समलैंगिकता जैसे विषय पर भी उन्होंने काफी लिखा है। अपनी दमदार सोच के कारण उन्हें उर्दू साहित्य की दुनिया में इस्मत आपा नाम से लोकप्रियता मिली है। अगर आप इस्मत चुगताई की लोकप्रिय रचनाओं पर नजर डालते हैं, तो इसमें जिद्दी, टेढ़ी लकीर, अजीब आदमी, गुनहगार, एक बात, दो हाथ, सॅारी मम्मी, चिड़ी की दुक्की, आधी और आधा ख्वाब का नाम शामिल है। उल्लेखनीय है कि अपने विचारों में बेबाकपन लाने की प्रेरणा उन्हें बचपन में ही मिल गई थीं। इस्मत वो सारे काम करती थीं, जो उनके भाई करते थे। फुटबॅाल और गिल्ली डंडा को उस दौर में लड़कों का खेल माना जाता था, उसे भी इस्मत चुगताई ने खेला और यह बताया कि खेल में लड़का या लड़की नहीं होता है। यह भी जान लें कि आधुनिक उर्दू के चार आधार स्तंभ में एक नाम इस्मत चुगताई का भी है। इस चार स्तंभ में मंटो, कृशन चंदर,राजिंदर सिंह बेदी और चौथा नाम इस्मत चुगताई का है।
सुभ्रदा कुमारी चौहान
कलम को तलवार बनाने का प्रभावकारी कार्य सुभ्रदा कुमारी चौहान ने अपनी लेखनी से किया है। बताया जाता है कि देश की आजादी में सुभ्रदा कुमारी चौहान की भूमिका बड़ी रही है। उन्होंने अपनी कविताओं और लेखनी के जरिए आदाजी के आंदोलन में आगे बढ़कर हिस्सा लिया है। ज्ञात को केवल 9 साल की उम्र में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी। इसके बाद काफी लंबे समय बाद उनकी रचनाएं बिखरे मोती और उन्मादिनी को काफी पढ़ा और पसंद किया गया। उनके कविता संग्रह में मुकुल और त्रिधारा सबसे अधिक लोकप्रिय है। आजादी के माहौल को समझते हुए और उसमें अपनी भूमिका को दिखाते हुए सुभ्रदा कुमारी चौहान ने वीर रस की कई सारी कविताएं लिखीं। अपने जीवनकाल में उन्होंने तकरीबन 88 कविताएं और 46 कहानियां लिखी हैं। झांसी की रानी, वीरों का कैसा हो वसंत, यह कदंब का पेड़ जैसी कई सारी कविताएं शामिल हैं। अपनी कविता और कहानी के जरिए उन्होंने महिलाओं के अधिकार और सम्मान के लिए भी कई बार आवाज उठाई। सरल भाषा में लिखी गई सुभ्रदा कुमारी चौहान की लेखनी सीधे दिल में जगह बनाती है और दिमाग में छाप छोड़ जाती है। गद्य में उनकी लोकप्रिय रचानओं की बात की जाए, तो मेरा परिवार, बिखरे मोती को सबसे अधिक पसंद किया गया।साहित्य और आजादी के आंदोलन में उनके योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया। हालांकि उन्हें अपनी रचनाओं के जरिए अधिक लिखने का अवसर नहीं मिला। केवल 44 साल की उम्र में गाड़ी हादसे का शिकार होने के कारण उनका निधन हो गया।
मन्नू भंडारी
हिंदी सरल और सहज भाषा मानी जाती है और हिंदी साहित्य में लेखिका मन्नू भंडारी ने इसे बखूबी संजो कर रखा है। उनकी रचनाओं की खूबी यह रही है कि उनकी भाषा सहज और स्वाभाविक रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी के साथ उर्दू और अंग्रेजी भाषा को भी शामिल किया। उनकी खूबी यह रही है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में लघु लेखन का प्रयोग किया है। ‘महाभोज’, ‘एक कहानी यह भी’, ‘आपका बंटी’ और ‘अकेली’ उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। खासतौर पर उनकी रचना एक कहानी यह भी इस विषय पर रही है कि किसी भी व्यक्ति को उसके बाहरी रूप के आधार पर परखना नहीं चाहिए। उन्होंने अपनी रचनाओं में भावनाओं और विकसित समाज को प्रस्तुत किया है। उन्हें कई बार राज्य हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है। उनकी लोकप्रिय रचनाओं में एक प्लेट सैलाब,मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर,यही सच है, आंखों देखा झूठ शामिल है। उपन्यास में आपका बंटी के अलावा महाभोज, स्वामी,एक इंच मुस्कान,एक कहानी यह भी है का नाम शामिल है।
कृष्णा सोबती
कृष्णा सोबती ने भी सहज और सरल हिंदी का उपयोग अपनी रचनाओं में किया है। उनके द्वारा लिखे गए कई हिंदी उपन्यासों का का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। ‘जिंदगीनामा’ और ‘ऐ ‘उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उनकी खूबी यह रही है कि उन्होंने अपने लेखनी की गरिमा को हमेशा बनाए रखा। खासतौर पर उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में मिले जाने वाले कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से खुद को दूर रखा है। उन्होंने कम लिखने के साथ विशिष्ठ लेखनी को अपनाते हुए मुखर तरीके से अपने विचारों को प्रस्तुत किया है। कृष्णा हमेशा लिखने के दौरान कई बार हिंदी, पंजाबी और उर्दू मुहावरों का उपयोग किया करती थीं। उनकी कहानियों में महिला किरदार हमेशा से सशक्त दिखाई दिए हैं।