हिंदी दिवस के मौके पर यह जानना जरूरी है कि हिंदी साहित्य में हिंदी की क्या भूमिका रही है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि बिना साहित्य में हिंदी का न होना उसकी आत्मा का शून्य होना है। तभी तो हिंदी साहित्य की शुरुआत आठवीं शताब्दी से हुई है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिंदी साहित्य का जनक माना जाता है। हिंदी में तीन प्रकार का साहित्य मिलता है, इसे गद्य, पद्य और चम्पू कहते हैं। हिंदी साहित्य पर वैसे की इतिहास मौजूद हैं, लेकिन आचार्य रामचंद्र शुक्ल द्वारा लिखित हिंदी साहित्य का इतिहास प्रमाणिक माना जाता है। उल्लेखनीय है कि साहित्य के बढ़ते वक्त के साथ हिंदी साहित्य में महिलाओं का कद भी सतत बढ़ता चला गया है। हिंदी साहित्य में महिलाओं ने अपनी लेखनी के जरिए हिंदी भाषा की अहमियत को विश्व पटल पर एक प्रमुख स्थान देने के साथ महिला सशक्तिकरण के लिए अपनी आवाज भी बुलंद की। आइए जानते हैं विस्तार से।
महादेवी वर्मा
महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाती हैं। उन्हें साहित्य की आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में मानव जीवन की दर्द और पीड़ा को बखूबी बयान किया है। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों की बात की जाए, तो ‘नीहार’, ‘रश्मि’, ‘नीरज’, ‘सांध्यागीत’, ‘दीपशिखा’ व ‘यामा’ है। उन्होंने अपने गद्य साहित्य में समकालीन समाज का भी यथार्थ वर्णन भी किया है। अपनी लेखनी के जरिए उन्होंने गरीबी, जाति प्रथा,भेदभाव और धर्म पर विस्तृत चर्चा की है। महादेवी वर्मा की लेखनी में महात्मा बुद्ध और विवेकानंद स्वामी के विचारों का गहरा प्रभाव भी पढ़ने को मिलता है। उन्होंने अपने गद्य साहित्य में महिला शिक्षा का भी भरपूर समर्थन करते हुए नारी शोषण और बाल विवाह जैसी कुरीतियों का भी विरोध किया है।
राजेंद्र बाला घोष
राजेंद्र बाला घोष हिंदी साहित्य की पहली लेखिका रही हैं। उन्होंने अपनी लेखनी से पुरुष रुढ़िवादी सोच पर कड़ा प्रहार भी किया। अपनी लेखनी के जरिए उन्होंने नारी-मुक्ति की लड़ाई भी जारी रखी। उनकी लेखनी में महिलाओं के लिए आजादी वाला युग दिखाई देता था, जहां पर महिलाओं के सम्मान, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण की सोच से समाज को रूबरू करवाया। आप यह भी जान लें कि राजेंद्र बाला घोष ने हिंदी साहित्य के लिए जिस जमीन को तैयार किया उस पर स्थापित होने का बड़ा अवसर कहानीकार प्रेमचंद को भी मिला। उनकी प्रमुख कहानी ‘दुलाई वाली’, ‘भाई-बहन’ और ‘हृदय परीक्षा’ रही है।
मन्नू भंडारी
हिंदी सरल और सहज भाषा मानी जाती है और हिंदी साहित्य में लेखिका मन्नू भंडारी ने इसे बखूबी संजो कर रखा है। उनकी रचनाओं की खूबी यह रही है कि उनकी भाषा सहज और स्वाभाविक रही है। उन्होंने अपनी रचनाओं में हिंदी के साथ उर्दू और अंग्रेजी भाषा को भी शामिल किया। उनकी खूबी यह रही है कि उन्होंने अपनी रचनाओं में लघु लेखन का प्रयोग किया है। ‘महाभोज’, ‘एक कहानी यह भी’, ‘आपका बंटी’ और ‘अकेली’ उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। खासतौर पर उनकी रचना एक कहानी यह भी इस विषय पर रही है कि किसी भी व्यक्ति को उसके बाहरी रूप के आधार पर परखना नहीं चाहिए। उन्होंने अपनी रचनाओं में भावनाओं और विकसित समाज को प्रस्तुत किया है। उन्हें कई बार राज्य हिंदी साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
कृष्णा सोबती
कृष्णा सोबती ने भी सहज और सरल हिंदी का उपयोग अपनी रचनाओं में किया है। उनके द्वारा लिखे गए कई हिंदी उपन्यासों का का अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है। ‘जिंदगीनामा’ और ‘ऐ ‘उनकी प्रमुख रचनाएं हैं। उनकी खूबी यह रही है कि उन्होंने अपने लेखनी की गरिमा को हमेशा बनाए रखा। खासतौर पर उन्होंने साहित्य के क्षेत्र में मिले जाने वाले कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से खुद को दूर रखा है। उन्होंने कम लिखने के साथ विशिष्ठ लेखनी को अपनाते हुए मुखर तरीके से अपने विचारों को प्रस्तुत किया है। कृष्णा हमेशा लिखने के दौरान कई बार हिंदी, पंजाबी और उर्दू मुहावरों का उपयोग किया करती थीं। उनकी कहानियों में महिला किरदार हमेशा से सशक्त दिखाई दिए हैं।
शिवानी
शिवानी यानी कि गौरा पंत ने हमेशा से ही अपनी लेखनी में प्रभावशाली महिला किरदारों को प्रस्तुत किया है। उनकी कहानी हमेशा से महिला प्रधान होने के साथ उनकी कहानियों में लोक संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती थी। उन्होंने कई बार लघु और लोकप्रिय उपन्यास लिखे हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं की बात करें, तो ‘मायापुरी’, ‘कैंजा,’अतिथि’ और ‘चौदह फेरे’ उनकी लोकप्रिय रचनाएं हैं।