देश के महान कवि में तुलसीदास का नाम शामिल है। हिंदी साहित्य की दुनिया में तुलसीदास की रचनाएं अमर हैं, जो कि वर्तमान के समय में भी प्रासंगिक लगती हैं। तुलसीदास एक तरफ जहां महान कवि रहे हैं, तो वहीं समाज सुधारक के तौर पर भी उन्हें लोकप्रियता हासिल हुई। तुलसीदास का जन्म सन 1532 में उत्तर प्रदेश के राजापुर नामक गांव में हुआ। तुलसीदास का बचपन कष्ट में बीता। शादी के बाद पत्नी के बातों से पीड़ित होकर उन्होंने अपना अधिकांश जीवन चित्रकूट, काशी और अयोध्या में बीता और इसके बाद उन्होंने अध्ययन किया और तकरीबन 39 ग्रंथों की रचना की। उनकी सभी रचनाओं में मुख्य तौर पर ‘रामचरित्र मानस’, ‘कवितावली’, ‘विनयपत्रिका’, ‘दोहावली’, ‘गीतावली’, ‘जानकीमंगल’, ‘हनुमान चालीसा’ और ‘बरवै रामायण’ का खासतौर पर उल्लेख किया गया है। आइए विस्तार से जानते हैं तुलसीदास की रचनाओं के बारे में।
रामचरितमानस
तुलसीदास की सबसे प्रमुख और विश्व लोकप्रिय रचना रामचरित मानस है। 1631 ई. में उन्होंने इसकी रचना की थी। यह रचना अवधी भाषा में लिखी गई है और इस रचना में छंद, चौपाई और दोहे के साथ राम के जीवन की यात्रा का सुंदर वर्णन किया गया है। इसे राम का चरित-काव्य भी कहते हैं। खास तौर पर राम के जीवन का पूर्ण विवरण राम चरित मानस में समाया है। अगर संक्षिप्त में राम चरित मानस को देखा जाए, तो बचपन में राम, कैकयी और कोपभवन, राम और रावण युद्ध के साथ राम के जीवन की सारी घटनाएं आवश्यक विस्तार के साथ के साथ राम के चरित्र को सुंदर कृति के साथ वर्णन किया है। काव्य की नजर से रामचरित मानस एक अति उत्कृष्ट महाकाव्य है। रामचरित मानस में छंदों की गिनती की जाए, तो 9388 चौपाई, 1172 दोहा, 87 सोरठा, 47 श्लोक, 208 छंद को शामिल किया गया है। रामचरित मानस को तुलसीदास ने सात विभाग में प्रदर्शित किया है। बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तराकाण्ड।
कवितावली के बारे में जानें
सोलहवीं शताब्दी में तुलसीदास ने कवितावली की रचना की। रामचरित मानस की तरह ही कविता वली में भी सात खंड मौजूद हैं। बृज भाषा में इसे लिखा गया है। देखा जाए, तो तुलसीदास ने राम के जीवन को भावनात्मक तरीके से प्रस्तुत किया है। इस पूरी कवितावली में राम के शौर्य के वर्णन के साथ हनुमान के लंका दहन को भी बताया गया है। इस कवितावली का दूसरा नाम उत्तरकाण्ड भी है, हालांकि कवितावली का संकलन कब किया गया, यह विचारणीय है। इसकी वजह यह है कि रचना तिथि का उल्लेख नहीं किया गया है। इसलिए यह कहा जाता है कि कवितावली का संकलन कवि तुलसीदास ने अपने जीवन काल में ही कर चुके थे। कवितावली को भी कई विभागों में बांटकर राम की जीवन यात्रा को बाल काण्ड, अयोध्या कांड, अरण्य काण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुंदर काण्ड, लंकाकाण्ड और उत्तरकाण्ड के जरिए दिखाया गया है।
गीतावली के बारे में जानें
ब्रज भाषा में तुलसीदास ने गीतावली की रचना की है। गीतावली भी पूरी तरह से राम के जीवन पर आधारित है। माना जाता है कि गीतावली रामचरित मानस की तरह होते हुए भी गीतों के सांचे में पिरोई हुई राम कथा है। गीतावली को भी सात काण्डों में विभाजित किया गया है। इसमें राम रूप वर्णन, राम-हिंडोला, अयोध्या की रमणीयता, दीपमालिका, वसंत विहार, अयोध्या का आनंद, राम राज्य और आदि का वर्णन झांकियों के साथ किया गया है। गीतों के जरिए राम-कथा कही गई है। इसमें मुद्रित संग्रह 328 पद है। यह भी माना गया है कि गीतावली में कई सारे ऐसे पद मौजूद हैं, जो कि सूरसागर से मिलते हैं। सूरसागर की रचना सूरदास द्वारा रचित है।
दोहावली के बारे में जानें
कविता की रचनाओं के बाद तुलसीदास की प्रमुख रचना दोहावली मानी गई है। दोहावली पूर्ण रूप से तुलसीदास के दोहों का एक संग्रह ग्रंथ है। दोहावली की खूबी यह है कि विभिन्न प्रतियों में उसके कई पाठ भी मिलते रहे हैं। दोहावली में कुल मिलाकर 478 दोहे हैं। इनमें से भी 6 ऐसे दोहे हैं, जो मुद्रित पाठ में नहीं मिलते हैं। इससे यह ज्ञात होता है कि कवि ने दोहावली का संपादन अपने जीवन काल में नहीं किया है। माना गया है कि अलग-अलग तरीके से अलग-अलग व्यक्तियों ने संकलित कर दिया है। यह भी माना जाता है कि दोहावली में किसी एक विषय की रचना नहीं की गई है। इस दोहावली में चौपाई पद्धित से वर्णन किया गया है। अवधी भाषा में तुलसीदास ने दोहे का वर्णन किया है। इन दोहों में सामान्यत नीति- धर्म, भक्ति- प्रेम, राम-महिमा, खल- निन्दा,सज्जन- प्रशंसा आदि वर्णित। यह भी माना गया है कि इस ग्रंथ का काव्य - गुण उच्चकोटि का है। तुलसीदास की दोहावली के प्रमुख दोहे इस प्रकार हैं-
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक।
साहस प्रकृति सुसत्य व्रत, राम भरोसे एक।
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर।
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए।
बरवै रामायण के बारे में जानें
बरवै रामायण में भी राम के जीवन का वर्णन किया गया है। दोहे की ही तरह बरवै रामायण में दो पद, चार चरण तथा लय के लिए विख्यात छंद नंदा दोहा भी मौजूद है। बरवै में मात्रिक छंद है। यह भी माना गया है कि रहीम ने बरवै नायिका भेद की रचना की है, जो कि हिंदी साहित्य में बहुत ही समृद्ध माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी छंद से प्रभावित होकर बरवै रामायण की रचना की थी। एक तरफ जहां रामचरितमानस को तुलसीदास ने सात काण्डों में विभक्त किया है। बाल काण्ड, अयोध्या काण्ड,अरण्य काण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, युद्धकाण्ड और उत्तरकाण्य शामिल है। बरवै रामायण श्रृंगार रस में शामिल है। बरवै रामायण में राम के बाल जीवन की व्याख्या सुंदर तरीके से की गई है। राम के चेहरे का वर्णन इस तरह से किया गया है कि बड़े नयन कुटि भृकुटी भाल बिसाल, तुलसी मोहन मनहि मनोहर बाल। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं कि बारक श्रीराम के नेत्र बड़े-बड़े हैं, भौंहे टेढ़ी हैं, ललाट विशाल, चौड़ा है, यह मनोहर बालक को मोह लेता है। यह भी जान लें कि इस ग्रंथ में 69 बरवैं छन्दों में रामचरितमानस की पूरी कथा वर्णित है। यह भी माना गया है कि तुलसी जैसे महाकवि के हाथ में पकड़कर यह उत्कृष्ट काव्य सौंदर्य से बन गया है।
जान लें कि ‘रामलला नहछू’ भी भगवान राम के जीवन पर आधारित महाकवि तुलसीदास की रचना है। इसे उनकी सारी रचनाओं से अलग एक लघु रचना मानी गई है। जिसमें श्रीराम के नहछू यानी कि पैर के नाखून काटे जाने का पारंपरिक संस्कार का वर्णन है। तुलसीदास की सारी रचनाओं के बीच रामलला नहछू काफी विशेष इसलिए भी माना जाता है कि इसे तुलसीदास ने सोहर शैली के साथ अवधी भाषा में लिखा है। कई ऐसे विद्वान है, जो कि रामलला नहछू को खंड काव्य का दर्जा देते हैं। बता दें कि नहछू दो शब्दों से बना हुआ है- नख और क्षुर। नहछु की रस्म में ससुराल जाते समय दूल्हे के पैर से नख, नहनी से काटती है, इसके उपरांत उसके पांवों के महावर लगाती हैं। कई लोग इसे तुलसीदास की प्रथम कृति भी मानते हैं। उल्लेखनीय है कि तुलसीदास के रामचरितमानस की गरिमा के आगे उनकी अन्य कृति दबी हुई सी मालूम होती है।