Koभारत की परंपरा और संस्कृति का अहम भाग लोकगीत और लोक कथाएं हैं, क्योंकि लोकगीत और लोक कथाओं ने ही देश की संस्कृति, सभ्यता और संस्कारों को जीवित रखा हुआ है। हम चांद पर भले ही पहुंच जाएं, लेकिन लोकगीत और लोक कथाओं के लोक में पहुंचने के लिए हमें केवल दादी और नानी के किस्सों और कहानियों की रात चाहिए। शादी हो या उत्सव या लोकगीत और लोक कथाएं किसी न किसी उत्सव के जरिए हमारे जीवन में दस्तक देती रहती हैं। आइए विस्तार से जानते हैं लोकगीत और लोककथा से जुड़ी हुईं कुछ रोचक जानकारियां।
लोकगीत और लोक कथाओं में समाहित है समाज
लोक गीत और लोक कथाओं का यह मतलब होता है कि जिसमें लोक यानी की समाज जुड़ा हो। ऐसे गीत और कहानियां जहां पर समाज की बातें हो रही हैं, समाज का मार्गदर्शन किया जा रहा है। जो कि केवल एक व्यक्ति या एक परिवार तक सीमित नहीं रहता है। लोक गीतों और कथाओं में बड़ी ही बारीकी और मंनोरंजन के तरीके से समाज और उससे जुड़ी परेशानी जैसे विधवा विवाह, बाल विवाह, शिक्षा, दहेज प्रथा के साथ सही और गलत की सीख दी जाती है। शायद यही वजह है कि एक ही कहानी को दादी और नानी सालों से अपने परिवार में सुनाती आ रही हैं। दादी और नानी के बचपन की कहानी हमारे बचपन की कहानी और गीत हो जाते हैं।
क्यों लोकप्रिय है लोकगीत और लोककथा
लोकगीत और लोककथा की लोकप्रियता सामूहिक अपील से जुड़ी हुई है। प्राचीन समय में राजा-महाराजा अपनी प्रजा के बीच किसी बात को समझाने या फिर किसी बीमारी से सचेत होने के लिए लोकगीत और लोककथा के लिए बाजार कार्यक्रम का आयोजन करते थे। जहां पर संस्कृति और जनजीवन का चित्रण गायन और नाटक के तौर पर किया जाता था। लोकगीतों में कई सारे संस्कार, भारतीय ऋतुओं के साथ धार्मिक कहानियों और वीरगाथाओं को भी शामिल किया जाता रहा है। यही तरीका लोक कथाओं के लिए भी अपनाया जाता रहा है। लोकगीत के दर्शन सबसे अधिक त्योहारों के दौरान होते हैं। लोकगीत की खूुबी यह है कि माटी से जुड़े हुए लोक गायक ही अपने शहर, गांव और सभ्यता का बखान लोक गीतों के जरिए करते हैं। लोकगीत में संगीत और गायक का सबसे अधिक महत्व होता है। कई जगह पर लोक गीत गाने वाली मंडली भी होती है।
लोकगीतों का प्रारंभ और भाषा
लोक गीत को लोक गायक अपनी भाषा में गाते हैं। लोक गीतों की शुरुआत कई दशकों पहले हो चुकी है, विवाह के गीत, पारंपरिक गीतों में इसका ज्ञान मिलता है। लोक गीत लगभग हर भाषा में मौजूद हैं। हिंदी, मराठी, भोजपुरी, अवधि, गुजराती और राजस्थानी के साथ हर समुदाय के लोगों के पास उनके अपने लोक गीत है। फसल की पैदावार, बारिश के आगमन के साथ वसंत ऋतु के लिए भी अलग से लोकगीत और लोक कथाएं मौजूद हैं। लोक गीतों की अपनी एक विशेषताएं हैं, इन्हें गाते वक्त एक उत्साह पैदा होता है। लोक गीतों में गांव और समाज की आत्मा दिखाई देती है। लोकगीतों को ढोलक, मंजीरा और झाल के साथ गाया जाता है।
जानें लोककथा के बारे में जानकारी
लोककथाओं के भी अपने कई भाग मौजूद हैं। लोककथाओं में उपदेशात्मक लोक कथाएं, सामाजिक कथाएं, धार्मिक और प्रेम पधान के साथ मनोरंजन से जुड़ी भी कहानियां समाहित होती हैं। लोक कथा का अर्थ होता है कि किसी व्यक्ति द्वारा रचित जनहित से जुड़ी हुई परंपरागत कहानी, जो कि कई भाषाओं में होती है। दिलचस्प है कि लोक कथा का प्रचार एक कान से दूसरे कान से प्रवाह होता है। पर्व और धार्मिक कार्यों के दौरान लोक कहानियां अपनी लोकप्रियता को बढ़ा लेती हैं। शायद यही वजह है कि एक लोक कथा कई जगहों पर अलग-अलग तरीके से बोली जाती हैं, क्योंकि इसे एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के कान द्वारा याद करते बोला जाता है। यह भी जान लें कि लोक कथा और कहानी में अंतर होता है। कहानी में संदेश होता है और अक्सर कथाएं शिक्षाप्रद होती हैं। कथा कई बार सत्य घटनाओं पर आधारित होती हैं और कहानियां काल्पनिक होती हैं। लोक कथाओं का उद्देश्य यह होता है कि कैसे पौराणिक कथाओं के जरिए लोगों के बीच एकता, आपसी प्रेम, भाईचारे और सक्षम होने का ज्ञान दिया जाता रहा है। इनकी पहचान यही है कि लोक कथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी यात्रा करती हैं। जाहिर सी बात है कि लोक गीत की तरह लोक कथाएं भी मावन जाति को धरोहर के तौर पर प्राप्त हुए हैं, हांलाकि इनका निर्माण कब और कैसे हुआ और कहां से आया, इस बारे में बता पाना मुमकिन नहीं है।
क्या है लोक गीत और लोक कथा की विशेषताएं
लोक गीत और लोक कथा भले ही एक दूसरे से अलग हैं, लेकिन दोनों की सबसे बड़ी खूबी एक है। दोनों की विशेषताओं के बारे में बात की जाए, तो लोक गीत और लोक कथाओं के जरिए आशावादी सोच मिलती है। भूत, राक्षस और किसी भी तरह के भय से बाहर आने की सीख और आशावादी सोच को जन्म देने का काम लोक गीत और लोक कथाएं करती हैं। साथ ही दोनों में ही अश्लीलता का अभाव होता है। लोक गीत और लोक कथाएं भारतीय संस्कृति और परंपरा से जुड़ी होती है, इस वजह से इन दोनों में ही अश्लीलता का अभाव होता है। लोक गीत और लोक कथाओं का सबसे अधिक फोकस बच्चों और महिलाओं से जुड़ा होता है। नारी सम्मान देते हुए अश्लीलता को लोक गीत और लोक कथाओं से दूर रखा गया है।
प्रकृति का महत्व
लोक गीत और लोक कथाओं में प्रकृति की खूबसूरती के साथ उसके महत्व का भी वर्णन किया गया है। लोक गीत और लोक कथाओं में प्रकृति के कई रूप जैसे पेड़, पौधे, पक्षी, नदी और झरने को बताया गया है। साथ ही लोक गीत और लोक कथाओं के पात्र में भी सियार, लोमड़ी, शेर और बकरी के साथ घोड़ा और हाथी भी होते हैं। जो कि कहानी के श्रोता होते हैं, जो कि आपसी परेशानियों के साथ बच्चों से लेकर बड़ों तक को जीवन की सीख मिलती है।
कर्म का महत्व
बताया गया कर्म का महत्व लोक गीत और लोक कथाओं में फल की इच्छा नहीं बल्कि कर्म का महत्व बताया गया है। लोक कथाओं और लोक गीतों के माध्यम से कई दशकों से यह बताया जाता रहा है कि परिश्रम मानव जीवन की ताकत है। हमेशा कर्म को महत्व देना चाहिए। आलस्य की भावना और दूसरों को पीछे करने की सोच हमेशा इंसान को नकारात्मकता की तरफ लेकर जाती है। यह भी सीख मिली है कि भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। भाग्य के भरोसे बैठना वाले व्यक्ति को केवल निराशा हाथ लगती है। बच्चों के लिए ऐसी कई सारी प्रेरणादायक लोक कथाएं मौजूद हैं, जहां पर साहस, आत्मसम्मान, निडर और शिक्षा के महत्व से जुड़ी लोक कथाएं मौजूद हैं। लोक गीतों में वहीं महिला प्रगति से जुड़े कई गीत मौजूद हैं, जहां पर बाल विवाह, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा, महिला शक्ति, विधवा विवाह के साथ सती प्रथा से जुड़े गीत मौजूद हैं। दिलचस्प है कि दुनिया की सभी लोक कथाओं में समानता भी पाई गई है, क्योंकि कहानियों के पात्रों के नाम के अंतर से दूसरे देशों में में भी वहीं कहानी नए रूप के साथ सुनाई जाती हैं।
लोक कथा और लोक गीत में बाल साहित्य का योगदान
कई अध्ययनों में यह भी माना गया है कि लोक कथाओं और बाल साहित्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। इसकी वजह यह है कि लोक कथाओं की शुरुआत बाल जीवन से जुड़े साहित्य से हुई है। लोक गीतों को लेकर यह माना जाता है कि महिलाएं खेती के दौरान या फिर घर के कामों के बीच अपना वक्त बिताने के लिए लोक गीत गाया करती थीं, जो कि उनके हर दिन के जीवन और हालातों से जुड़े रहते थे, वहीं से लोक गीतों का प्रचलन शुरू हुआ। इसके बाद महिलाओं के समूहों के काम जैसे खेती, मसाला कुटाई और शादी और त्योहार के मौके पर लोक गीत गाए जाने लगें और पीढ़ी दर पीढ़ी वहीं पुराने गीत दोहराए जाने लगें और लोक गीतों का स्वरूप बन गए।
लोकप्रिय लोक गीत और लोक कथाएं
सबसे अधिक प्रचलित लोक गीतों की बात की जाए, तो इसमें बिहार का कजरी, संस्कार गीत, गाथा गीत, पर्वगीत, काम से जुड़ा हुआ पेशा गीत, जातीय गीत शामिल है। उत्तर प्रदेश और बिहार में बच्चे के जन्म पर सोहर गाया जाता है। राजस्थान की शादियों में कांमा गीत गाया जाता है। तीज और त्योहार पर पीपली गीत गाया जाता है। भारत के सबसे लोकप्रिय लोकगीत में बिहू गीत शामिल है। बिहू गीत असम राज्य में गाया जाने वाला एक लोकप्रिय और प्राचीन लोक गीत है। जिसे बिहू त्योहार के मौके पर गाया जाता है। लावणी महाराष्ट्र का लोकप्रिय लोक गीत है। पंजाब में माहिया लोक गीत लोकप्रिय है। इसी तरह हर राज्य के अपने अलग लोक गीत मौजूद हैं, जो कि राज्य के उत्सव में अपना रंग जमाते हैं। रहा सवाल लोक कथाओं का, तो पर्व के मौके पर लोक कथाएं अधिक बोली और सुनी जाती हैं। जैसा कि हम बता चुके हैं कि लोक कथाएं अपना रूप बदलती रहती हैं। इसलिए उनके बारे में बता पाना सरल नहीं है।