मोहन राकेश को हिंदी साहित्य का नायक भी माना जाता है। उनकी रचनाएं हमेशा से समाज का आईना रही हैं, जहां अपने हर शब्द और अपने हर वाक्य के साथ वह पाठकों के दिल और दिमाग को बांध कर रखने के गुण बखुबी जानते थे। मोहन राकेश को लिखने की विरासत उनके पिता से मिली है। उनके पिता पेशे से वकील थे, लेकिन साहित्य और संगीत प्रेमी थे। यही वजह है कि पिता की साहित्यिक रुचि का प्रभाव मोहन राकेश पर भी पड़ा है। मोहन राकेश ने बहुत ही कम उम्र में पिता को खो दिया लेकिन अपनी पढ़ाई जारी रखी और पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और अंग्रेजी में एमए किया। शिक्षक के तौर पर उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की और अपने लेखक जीवन की शुरुआत लघु कथाओं से की और इसके बाद उन्होंने कई नाटक और उपन्यास लिख चुके हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
हिंदी साहित्य को मिली नई दिशा
मोहन राकेश ने अपने लेखन में आधुनिक परिवेश से जुड़कर अपनी रचनाओं को हिंदी साहित्य में एक उचित स्थान दिया। अपने प्रतिभा भरे लेखन से उन्होंने हिंदी नाटक को नवीन दिशा दी। आप यह भी मान सकती हैं कि मोहन राकेश के लेखन को हिंदी नाटकों में भारतेंदु हरिशचंद्र और जयशंकर प्रसाद के बाद ऊंचा स्थान मिलता है। यही वजह रही है कि साहित्य के क्षेत्र में समकालीन लोग राकेश को महानायक कह कर पुकारते थे। मोहन राकेश की लेखन भाषा सरल और गंभीर मानी जाती रही है। उन्होंने हिंदी साहित्य की शब्दावली में खड़ी बोली को स्थान दिया। उन्होंने अपनी भाषा के माध्यम से संवेदनाओं को उभारने की कला में माहिर रहे हैं। राकेश जी की खूबी यह रही है कि उनके लेखन में किसी भी व्यक्ति, स्थान या फिर चीज का वर्णन काफी अच्छे तरीके से करते थे। अपनी नाटक शैली में मोहन राकेश अपने पात्रों को भावुकता के साथ बखूबी प्रस्तुत करते थे। अपने लेखन में उन्होंने हमेशा अपनी लिखावट का कमाल का परिचय दिया है। मोहन राकेश ने कई सारे नाटक और उपन्यास लिखे हैं। इसके साथ उन्होंने संस्कृत नाटक और विदेशी उपन्यास का भी अनुवाद किया है।
मोहन राकेश की रचनाएं
मोहन राकेश की रचनाएं आपको अपने आप में समाहित कर लेती है। राकेश के लोकप्रिय उपन्यास इस प्रकार हैं, ‘अंधेरे बंद कमरे’, ‘न आने वाला कल’, ‘अंतराल’, ‘बाकमला’ खुदा का नाम शामिल है। इसके साथ उनके प्रमुख नाटक इस प्रकार है, ‘आधे-अधूरे’, ‘आषाढ़ का एक दिन’ और ‘लहरों के राजहंस’ हैं। मोहन राकेश की रचना ‘आषाढ़ का एक दिन’ सबसे अधिक लोकप्रिय नाटक है। यह सन 1958 में प्रकाशित हिंदी का लोकप्रिय नाटक है। साल 1959 में आषाढ़ का एक दिन को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया। आषाढ़ का एक दिन महाकवि कालिदास के निजी जीवन पर केंद्रीत है। यह मुख्य तौर पर त्रिखंडीय नाटक है। इस नाटक में कालिदास को सफलता और प्रेम में से किसी एक को चुनने का संघर्ष दिखाया गया है। साल 1968 में मोहन राकेश को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया, हालांकि 1972 में उनका निधन हो गया। उन्होंने अपने साहित्य जीवनकाल में 54 कहानियां लिखी और इसके साथ उनकी डायरी ने भी उन्हें साहित्य की दुनिया में अलग पहचान दी। उल्लेखनीय है कि मोहन राकेश की कई सारी रचनाएं कई भाषाओं में अनुवादित की गई हैं।
लहरों के राजहंस
साल 1963 में मोहन राकेश ने ‘लहरों के राजहंस’ को लिखा। इस नाटक में उन्होंने यह दिखाया कि कैसे सांसरिक जीवन और आध्यात्मिक जीवन में से किसी एक को चुनने का संघर्ष कितना जटिल होता है। इस नाटक का हर किरदार रोचक और अलग मानसिक प्रवृत्ति का है। इस नाटक का केंद्रीय पात्र घर छोड़कर सन्यासी होना चाहता है लेकिन वह संसार यानी कि अपनी स्त्री के मोहवश में फंसा हुआ है। इसी मानवीय परेशानी को राकेश मोहन ने अपने नाटक में दिखाया है। इसके बाद 1969 में उन्होंने ‘आधे-अधूरे नाटक’ लिखा। इन नाटक का हर किरदार दिलचस्प है। इसकी वजह यह है कि जिस तरह से मोहन राकेश ने इस नाटक के हर किरदार को अधूरा, टूटा हुआ और पूर्णता की तलाश करता हुआ दिखाया, जो वाकई दिलचस्प है। इस नाटक में मुख्य तौर पर एक मध्यमवर्गीय परिवार की परेशानी और आपसी उलझन को पेश किया है। जहां पर परिवार के बीच बातचीत का अभाव, बदलते परिवेश में परिवार के स्त्री और पुरुष के बीच प्रतीत होने वाली परेशानियां इस नाटक से पाठकों को बांध कर रखती हैं।
‘अंतराल’ नाटक और ‘न आने वाला कल’
मोहन राकेश का तीसरा उपन्यास का नाम ‘अंतराल’ है। आधुनिक युग के स्त्री-पुरुषों के बीच के वैवाहिक संबंधों के बनने और बिगड़ने के पीछे के कई कारण और परेशानियों को अंतराल में बताया गया है। अंतराल में स्त्री और पुरुण के मन का चित्रण बखूबी किया गया है। इसके अलावा मोहन राकेश ने अपने उपन्यास ‘न आने वाला कल’ में स्कूल के वातावरण को चित्रित किया है। इस सामाजिक उपन्यास को आत्मकथा की शैली में लिखा गया है। आप यह समझ सकती हैं, मोहन राकेश ने अपने उपन्यास, नाटक और कहानियों के जरिए न केवल पाठकों के लिए सीख साबित हुई है, बल्कि नए साहित्यकारों को भी नई राह दिखाने का कार्य करती है।
मोहन राकेश के लिए गए किरदार
मोहन राकेश के लिए गए सभी नाटक और उपन्यास के किरदार पूरे होकर भी अधूरे दिखाई पड़ते हैं। एक तरफ, जहां उन्होंने अपने किरदारों के खालीपन और परेशानियों को दिखाया है, तो वहीं यह भी समझाने का काम किया है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है आप इससे कहीं पर भी भाग कर अपनी जिम्मेदारियों को छोड़कर नहीं जा सकते हैं। शायद इसी वजह से मोहन राकेश के लिए गए हर उपन्यास और कहानी के पात्र उस दौर से लेकर वर्तमान तक प्रासंगिक हैं। मोहन राकेश ने अपने लिखे गए हर छोटे-बड़े किरदार को कहानी के अनुसार बांध कर रखा और उनकी बोली-भाषा भी वैसी ही रखी, जैसा परिवेश उन्होंने कहानी में बुना। ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘लहरों के राजहंस’ में मोहन राकेश ने खड़ी बोली भाषा का लेखनी में इस्तेमाल किया। अंग्रेजी शब्दों का यहां पर उन्होंने उपयोग नहीं किया।
मोहन राकेश का आखिरी नाटक
जी हां, मोहन राकेश अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपना आखिरी नाटक लिख रहे थे, हालांकि वह इस बात से अनजान थे कि यह उनका आखिरी अधूरा नाटक होगा, जो कभी-भी पूरा नहीं हो पाएगा। मोहन राकेश अपने आखिरी नाटक ‘पैर तले की जमीन’ को अंतिम पन्नों तक नहीं पहुंचा पाएं। इस बारे में मोहन राकेश की पत्नी का कहना था कि अपने मन में उन्होंने इस कहानी को शुरू करके इसका अंत तक सोच लिया था, केवल उसे कागज पर चढ़ाना बाकी था, लेकिन उनका यह काम अधूरा रह गया। आज भी मोहन राकेश के टाइपराइटर पर उनके इस नाटक का एक पन्ना आधा टाइप और आधा खाली कई दिनों तक पड़ा रहा, लेकिन बाद में मोहन राकेश के दोस्त कमलेश्वर ने इस नाटक को उसके अंजाम तक पहुंचाकर उसे प्रकाशित किया। मोहन राकेश का निधन हिंदी साहित्य की दुनिया के लिए गहरा झटका साबित हुआ, क्योंकि हिंदी साहित्य ने अपना आधुनिक नायक हमेशा के लिए खो दिया। मोहन राकेश की हिंदी साहित्य में खाली नायक की जगह को कोई भी दूसरा साहित्यकार आज तक भर नहीं पाया है।