यह हमेशा से माना गया है कि वेद मानव जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं, इसलिए शास्त्रों में वेदों का महत्व जानना उसे समझना मानव जाति के लिए अहम बताया गया है। वेद को भारतीय संस्कृति का सबसे अलौकिक साहित्य माना जाता है, जो कि प्राचीन समय से मानवजाति का हिस्सा रहा है। यह भी जान लें कि वेद प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रंथ भी है, जिसे जीवन का सत्य माना गया है,क्योंकि वेद का महत्व जानकर जीवन को सुखदपूर्वक व्यतीत किया जा सकता है, कई लोग ऐसे हैं,जो कि वेदों को पढ़कर उसे अपने जीवन में उतारकर कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से हमारे जीवन में वेदों का महत्व।
जानिए वेद के होते हैं चार मुख्य अंग
भारतीय संस्कृति में वेद को प्राचीन और मूल ग्रंथ माना गया है। वेद के चार अंग है और इसी में मानव जीवन की संस्कृति को बांधा हुआ रखा है। वेद के चार अंग की बात की जाए, तो इसमें ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थवेद का नाम आता है। वेदों के बारे में बारीक जानकारी हासिल करने के लिए वेदों के चार अंगों के बारे में भी जानना जरूरी हो जाता है। इसकी शुरुआत ऋग्वेद से करते हैं। ऋग्वेद में मंत्रों की लंबी फेहरिस्त है और इनकी संख्या अनगिनत है। आप यह समझ लीजिए कि ऋग्वेद में मंत्रों के अक्षरों की संख्या कई लाख अधिक है। ऋग्वेद में कई सारे देवताओं और ईश्वर का वर्णन श्लोक और मंत्रों द्वारा किया गया है। इसके साथ ऋग्वेद के 10 से अधिक अध्याय में कई हजार मंत्र के साथ 100 से अधिक औषधियों के बारे में भी जिक्र किया गया है, जो कि मानवजाति के कल्याण से जुड़ी हुई है। देखा जाए, तो ऋग्वेद में हमारी पूरी संस्कृति, व्यवहार और ज्ञान से संबंधित सभी विषयों के बारे में जानकारी दी गई है। ऋग्वेद को ऋग वेद के नाम से भी जाना जाता है, जो कि वैदिक संस्कृत भजनों का एक प्राचीन भारतीय संग्रह है। उल्लेखनीय है कि ऋग्वेद का दूसरा लोकप्रिय नाम पवमान मण्डल है।
यजुर्वेद के बारे में जानें
यजुर्वेद में यज्ञ की विधि और उससे जुड़े सारे सवालों का जवाब मिलेगा। साथ ही कई सारे मंत्रों का वर्णन भी यजुर्वेद में किया गया है। इन सारे वेद में कई सारे शाखाएं और उसमें मंत्रों के बारे में व्याख्या की गई है। यजुर्वेद में खास तौर पर यज्ञ संपन्न कराने वाले और आहुति देने वाले मंत्रों की पुस्तिका भी शामिल की गई है। यह भी जान लें कि प्राचीन काल में यजुर्वेद की कुल 101 शाखाएं थीं। अगर साफ शब्दों में समझा जाए, तो यजुर्वेद संस्कृत के मंत्रों और छंदों का एक प्राचीन संग्रह है। इसका सबसे अधिक उपयोग हिंदू पूजा के दौरान किए जाने वाले धार्मिक कार्यों के दौरान किया जाता है। खुद यजुर्वेद के नाम में इस वेद की व्याख्या मिल जाती है। यजुर्वेद को संस्कृत के अक्षरों से लिया गया है। यजुर का अर्थ होता है पूजा और वेद का मतलब होता है ज्ञान। इसलिए यजुर्वेद में धार्मिक कार्यों से जुड़ी हुई प्राचीन जानकारी मिलती है।
सामवेद के बारे में जानें
हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथों मं से एक माना गया है। उल्लेखनीय है कि इस पूरे वेद को गाने के तौर पर लिखा गया है। साम का अर्थ भी गाना ही होता है। सामवेद में शामिल सभी गीतों को मुख्य तौर पर देवी-देवताओं के प्रति अपनी भावना व्यक्त करन के लिए लिखा गया है। आप इसे सभी वेदों का एक स्वरूप भी मान सकते हैं। सामवेद सभी वेदों का एक तरह से सार स्वरूप है। आपको सभी वेदों के चुने हुए अंश सामवेद में आसानी से मिल जायेंगे, हालांकि सामवेद बाकी के वेदों की तुलना में छोटा है। सामवेद में भी कई सारे मंत्र मिलते हैं। आसान भाषा में समझा जाए, तो सामवेद का आशय यह है कि एक ऐसा ग्रंथ जिसके मंत्र गाए जा सकते हैं।
अथर्व वेद के बारे में जानें
यह एक पवित्र वेद माना जाता है। कई जगहों पर कहा जाता है कि अर्थवेद ब्रह्मावेद भी है। इसमें आपको खूबसूरत वर्णन के साथ देवताओं की स्तुति, चिकित्सा, विज्ञान और दर्शन के भी कई सारे मंत्र मिलेंगे। यह माना जाता है कि जो भी अथर्व वेद को अपनाता है, उसे जीवन में शांति मिलती है। इसमें भी कई सारे कवितामयी मंत्र मौजूद हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि रोगों को ठीक कैसे किया जाए, साथ ही पापों के प्रभावों से कैसे खुद को मुक्त किया जाए, साथ ही धन प्राप्त करने के क्या साधन होते हैं इसकी व्याख्या भी अथर्व वेद में की गई है। यह माना गया है कि अथर्ववेद में 7260 मंत्र होते हैं। यह भी माना गया है कि यह हिंदू धार्मिक साहित्य का केंद्रीय ग्रंथ भी है।
वेदों को माना जाता है : प्राचीन पवित्र ग्रंथ
यह हम आपको पहले भी बता चुके हैं कि वेद प्राचीन पवित्र ग्रंथ है। कई ऐसे विद्यवान हैं, जो कि वेदों को पाषाण काल का भी मानते हैं। यह भी जान लें कि वेदों के बारे में यह मान्यता है कि वेद सृष्टि के शुरुआत से ही परमात्मा द्वारा मानव मात्र के कल्याण के लिए समर्पित किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि वेदों की उत्पति चुनिंदा ऋषियों ने की है। ऋग्वेद का निर्माण अग्नि नामक ऋषि ने किया है। यजुर्वेद का निर्माण वायु नामक ऋषि ने किया है। सामवेद का निर्माण आदित्य नाम के ऋषि ने किया है। अथर्ववेद का निर्माण अंगिरा नामक ऋषि ने किया है। कई विद्यवानों का कहना है कि जिस प्रकार सूर्य का प्रकाश सभी के लिए ठीक उसी तरह वेद का ज्ञान भी सभी के लिए है। कई लोग वेद को मां कहकर भी संबोधित करते हैं। कई ऋषियों द्वारा वेदों को वेदमाता कहा जाता है। साथ ही यह भी माना गया है कि वेद की सत्ता अनंतकाल तक रहने वाली है। वेदों में शुद्ध ज्ञान मौजूद है, जो कि हिंदू धर्म की जननी मानी गई है और यह ग्रंथ किसी भी व्यक्ति विशेष की कल्पना पर आधारित नहीं है। वेदों के मंत्रों में पद्य, गद्य और गान के तीन विभाग भी मौजूद हैं। वैदिक परंपरा भी दो प्रकार की है। पहला ब्रह्मा परंपरा और दूसरा आदित्य परंपरा। दोनों परंपराएं प्राचीन काल से ही लोकप्रिय हैं।