अमूमन जब घरों में लड़कियां कमाल का काम कर जाती हैं, उस समय उन्हें यही कह कर संबोधित किया जाता है कि तू तो मेरा राजा बेटा है। या फिर कई बार माता-पिता अपनी बेटी को बेटा बनाने में तुले रहते हैं। लेकिन लेखिका अपूर्वा पुरोहित ने अपनी किताब ‘लेडी यू आर नॉट अ मैन : द एडवेंचर्स ऑफ ए वुमन एट वर्क’ में स्पष्ट रूप से महिलाओं और लड़कियों तक अपनी बात पहुँचाने की कोशिश की है कि लड़कियों को कोई मर्द बनने की जरूरत नहीं हैं, वे जैसी हैं, बेस्ट हैं। अपूर्वा की इस किताब में और भी कई दिलचस्प पहलू हैं, जो एक महिलाओं के लिए इसे रोचक और पठनीय बना देती हैं। आइए जानें विस्तार से।
लेखिका अपूर्वा पुरोहित की यह किताब रिलीज के कई सालों के बाद भी अपनी लोकप्रियता को बरकरार रख पाने में कामयाब है। लेखिका इस बात की वकालत स्पष्ट रूप से करती हैं कि अपने परिवार और अपने कार्यस्थल में बैलेंस बनाने के लिए बेहद जरूरी है कि हम दोनों जगह खुद को सुपर वुमन बनाने की कोशिश न करें। लेखिका ने एक वर्किंग वुमन और एक कामकाजी माँ के रूप में किस तरह से सामंजस्य बनाया, इसे बखूबी दर्शाया। एक सफल महिला होने का मतलब सिर्फ परिवार के लोगों को खुश करना या पति के लिए टिफिन बना कर रखना नहीं है, आपको अपनी पहचान बनानी है, तो इस सोच से निकलना जरूरी है कि हमें मर्द जैसी सोच का बनना है, सोचना यह चाहिए कि हम खुद महिला होकर भी सबकुछ हासिल कर सकते हैं, इन सोच को भी लेखिका ने अग्रिम स्थान दिया है। किताब की शैली की बात की जाए तो सबसे अच्छी बात यह है कि लेखिका ने कुछ अच्छे उदाहरण दिए हैं, जो बहुत हद तक उनके खुद के जीवन के अनुभव हैं, साथ ही इसे हास्य रस में लिखा गया है, जिसकी वजह से किताब उबाऊ नहीं होती है। लेखिका का मानना है कि किसी भी परिवार में लड़कियों से अधिक लड़कों को घर के कामकाज सिखाने जरूरी हैं, ताकि आगे चल कर वे जबरन अपनी माँ, पत्नी या बहन के लिए एक बोझ न बनें। महिलाओं के जीवन के एक अहम पड़ाव, जब महिला गर्भवती होती हैं, उस समय भी समय प्रबंधन के लिए उन्हें किस तरह से परिवार के साथ बैलेंस करने की योजना बनानी चाहिए, इसके बारे में भी विस्तार से बताया गया है। इस किताब की सबसे बड़ी खूबी यही है कि यह किताब जबरदस्ती की भाषणबाजी और नारी-नारी का नारा नहीं लगाती है, वह कामकाजी पुरुषों को मिलने वाले कम दिनों के पितृत्व अवकाश से जुड़ीं उनकी दुविधा के बारे में भी अपना मत रखती हैं और लड़कियों को भी निष्पक्ष होकर कहती हैं कि उन्हें जो मैटरनिटी लीव्स यानी मातृत्व अवकाश मिलता है, उसका अनुचित लाभ भी न लें। लेखिका पूर्ण रूप से निष्पक्षता से अपने कार्यस्थल में भी लिंग भेद या किसी एक पक्ष के साथ खड़े होने की बजाय, दोनों पक्षों की बात रखती हैं, जो अमूमन महिला लेखिका महिलाओं के बारे में बात करते हुए या उनके बारे लिखते हुए भूल जाती हैं, यही खूबियां इस किताब को और पठनीय बनाती हैं। कुल मिला कर यह किताब एक दिलचस्प रोलर कॉस्टर राइड है, जिसको पढ़ने के बाद निश्चित तौर पर सकारात्मक रूप से कई महिलाओं के जीने के नजरिये में बदलाव होंगे ही।