हिंदी साहित्य में नाटक और नाटककारों का नाता दशकों पुराना है। आप यह समझ सकती हैं कि हिंदी के सौ साल से अधिक के इतिहास के पन्नों में कई सारे लोकप्रिय नाटक दर्ज हुए हैं और इन सभी नाटकों के साथ नाटककारों ने भी लोकप्रियता हासिल की है। मिली जानकारी अनुसार हिंदी साहित्य में नाटकों का प्रारंभ भारतेन्दु हरिश्चंद्र के दौरान से माना गया है। उस दौरान नाटककार सामाजिक समस्याओं को नाटकों के जरिए सबके सामने प्रस्तुत करते थे और जागरूकता फैलाने का सराहनीय कार्य करते थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि साल 1850 से 1868 के बीच हिंदी रंगमंच का का उदय हुआ लेकिन उसे विस्तार अधिक नहीं हो पाया और रंगमंच स्थायी तरीके से आगे नहीं बढ़ पाया। यह भी जान लें कि भारतेंदु के नाटक लिखने की शुरुआत बंगाल के विद्यासुंदर नाटक के अनुवाद से हुई, लेकिन इसके बाद उन्होंने खड़ी बोली में कई सारे नाटक लिखें और हिंदी में नाटक की नींव को मजबूत किया। आइए विस्तार से जानते हैं हिंदी नाटक और नाटककारों के बारे में।
अंधेर नगरी: भारतेंदु हरिश्चंद्र
अंधेर नगरी नाटक के नाटककार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने 6 अंकों में विभाजित करके लिखा है और यह हिंदी के लोकप्रिय नाटकों में से एक है। उल्लेखनीय है कि केवल एक रात में इस नाटक को भारतेंदु हरिश्चंद्र ने लिखा है। आज भी अगर आफ इस नाटक के पन्ने पलट कर देखते हैं, तो यह उतना ही सामयिक और समकालीन है। हर उम्र के लोगों को यह नाटक पसंद आता चला आ रहा है। यही वजह है कि हिंदी रंगमंच पर सबसे अधिक अंधेर नगरी नाटक का मंचन हुआ है। इस नाटक की लोकप्रियता इस कदर रही है कि भारत के 1976 के डाक टिकट पर अंधेर नगरी नाटक के लेखक भारतेंदु हरिश्चंद्र का चित्र भी छापा गया था। इस नाटक का उद्देश्य अंग्रेजी शासन के अंतर्गत भारत की दुर्दशा को दिखाना है। इस नाटक में बताया गया है कि अंग्रेजों ने अपनी नीतियों से भारत को अंधेर नगरी बना दिया था और इस अंधकार मय नगरी में कभी कोई नियम का पालन नहीं किया गया और किसी भी तरह की कोई भी न्याय व्यवस्था भी नहीं थी। लेखक इस नाटक के आधार पर जन चेतना जगाना चाहते हैं। यह बताया गया है कि इस जगह का नाम अंधेर नगरी है और वहां का राजा चौपट है, जहां एक विवेकहीन और मूर्ख राजा अपनी प्रजा के विनाश का कारण बनता है। इस नाटक का मुख्य उद्देश्य यह बताया है कि लालच से दूर रहना चाहिए। लालची इंसान सही और गलत में अंतर नहीं कर पाता और अंधकार की तरफ खुद को आगे बढ़ाता चला जाता है और इस नाटक में राजा का हाल ऐसा ही हुआ था।
ध्रुवस्वामिनी : जयशंकर प्रसाद
इस नाटक को जयशंकर प्रसाद की अंतिम सबसे अच्छी नाटक रचना माना जाता है। इस नाटक का प्रमुख उद्देश्य एक महिला की स्वाधीनता और समता को बताना है। नाटककार प्रसाद ने इस नाटक में एक महिला के अधिकार और उसकी रक्षा करने की जरूरत को समाज के सामने रखा है। इस नाटक में ध्रुवस्वामिनी महिला किरदार का नाम है, जो कि अन्याय और अत्याचार को चुपचाप सह रही है। यह भी जान लें कि नाटककार जयशंकर प्रसाद का यह नाटक ध्रुवस्वामिनी स्त्री पुनर्विवाह की ऐतिहासिक घटना पर आधारित है। इस नाटक का प्रकाशन 1933 में हुआ था। जयशंकर प्रसाद का यह अंतिम नाटक था। इस नाटक की खूबी यह है कि इसमें अन्य नाटकों की जैसी कविता की भावुकता मौजूद नहीं है, बल्कि जीवित संवादो के जरिए इस नाटक को अत्यंत प्रभावशाली तरीके से पेश किया गया है। इस कहानी में यह बताया गया है कि पुरुष के कायर होने पर नारी उसका विरोध भी कर सकती है और साथ ही वह अपने रिश्ते का परित्याग करते हुए अपने प्रिय पुरुष से विवाह भी कर सकती हैं। उस वक्त के दौरान भारतीय समाज के लिए खासतौर से उस समय जब नाटक लिखा गया था, तब महिलाओं के विद्रोह करने के इस तरीके की सोच भी कल्पना से परे थी।
अंधा युग : धर्मवीर भारती
लेखक और नाटककार धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग मानव मूल्यों को दिखाता है। एक तरफ मर्यादा दिखाता है और दूसरी तरफ सत्य की सत्ता को भी सामने पेश करता है। अंधा युग में युधिष्ठिर के अर्धसत्य को आधार बनाकर सत्य की महिमा को दिखाया गया है। इस नाटक का पात्र महाभारत के समय का है। दिलचस्प है कि अंधा युग में आकर ठीक वही नहीं रहते, जैसे कि वे महाभारत में दिखाए गए हैं। इस नाटक में अपने लोगों से युद्ध के पश्चात पांडवों को यह अनुभव होता है कि जो हस्तिनापुर पहले खुशियों से गुलजार रहता था, वह अब पहले जैसा नहीं रहा और खाली खंडहर की तरह डराता है। इस नाटक के अधिकतर वाक्य काव्यात्मक हैं।
आषाढ़ का एक दिन : मोहन राकेश
1958 में साहित्यकार मोहन राकेश ने आषाढ़ का एक दिन नाटक का प्रकाशन किया। आप यह भी जान लें कि आषाढ़ का एक दिन को हिंदी नाटक के आधुनिक युग का प्रथम नाटक भी कहा जाता है। इसके साथ ही साल 1959 में इस साल का सबसे अच्छा नाटक होने के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि 1971 में इस नाटक पर आधारित फिल्म भी बनाई गई थी। यह जान लें कि आषाढ़ का एक दिन महाकवि कालिदास के निजी जीवन पर केंद्रित है। आषाढ़ का एक दिन का मतलब यह भी होता है कि वर्षा ऋतु का एक दिन। मोहन राकेश द्वारा लिखित आषाढ़ का एक दिन एक तरह से त्रिखंडी नाटक है। जान लें कि इस ऐतिहासिक नाटक का उद्देश्य यह बताना है कि कैसे आधुनिक मनुष्य अपने जीवन में कई सारे संशयों और विचारधाराओं से घिरा हुआ होता है। एक तरह से यह नाटक व्यक्ति की उस मनस्थिति को दिखाता है, जहां उसे प्रेम और सफलता में से किसी एक को चुनना होता है। इस नाटक के प्रथम खंड में कालिदास अपनी युवा अवस्था में हिमालय में स्थित गांव में शांतिपूर्वक जीवन गुजार रहे हैं और अपनी कला का विस्तार कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आषाढ़ का एक दिन नाटक हिंदी के लोकप्रिय नाटकों में से एक है, जिसे सबसे अधिक पसंद किया गया है।
बकरी : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना हिंदी कवि, साहित्यकार और नाटककार रहे हैं। यह जान लें कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का लिखा हुआ नाटक बकरी का प्रकाशन 1974 में प्रकाशित हुआ। उनका यह नाटक इतना लोकप्रिय हुआ है कि इसे सभी भाषाओं में अनुवाद किया गया। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखित नाटक बकरी एक तरह से व्यंग्य नाटक है। माना जाता है कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना द्वारा लिखा गया यह नाटक भारतीय लोकतंत्र के उन पहलुओं को रेखांकित करता है, जिसे दुरुस्त करना इस वक्त भी मुश्किल है। यहां पर बकरी केवल एक प्रतीक के तौर पर दिखाया गया है। देखा जाए, तो सर्वेश्वर दयाल सक्सेना लिखा हुआ यह नाटक राजनीति का कुरूर चेहरा दिखाती है। बकरी नाटक की शैली इतनी प्रभावी है कि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का लिखा हुआ यह नाटक रंगकर्मियों और दर्शकों में समान तौर पर लोकप्रिय है।
महाभोज : मन्नू भंडारी
महाभोज को मन्नू भंडारी के साहित्य लेखन में खास जगह प्राप्त है। साल 1979 में मन्नू भंडारी ने इसे उपन्यास के तौर पर लिखा और फिर इसकी नाट्य रचना भी की गई है। इस नाटक में भी राजनीति को मुख्य चिंता बताई गई है। इस नाटक में बताया गया है कि कैसे जातिगत समीकरण भारतीय स्थानीय राजनीति का एक जरूरी अंग बन चुका है। जातियों के आधार पर लोगों को अत्याचार और प्रतिरोध का सामना करना पड़ता है। देखा जाए, तो मन्नू भंडारी के इस उपन्यास में आपातकाल के बाद के भारतीय राजनीतिक परिदृश्य को दिखाया गया है और उसे प्रमाणिक तौर पर उन्होंने दिखाया है। कुल मिलाकर देखा जाए, तो महाभोज नाटक में भारतीय राजनीति में व्याप्त जोड़-तोड़ और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करने के साथ राजनीति अपराध पर भी बात की गई है।