संस्कृत के विद्वान महाकवि कालिदास भारत के सबसे प्रतष्ठित और लोकप्रिय कवियों में से रहे हैं। देश के साथ विदेश में भी कालिदास अपनी रचनाओं के लिए लोकप्रिय रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कालिहास ईसा पूर्व पहली शताब्दी के संस्कृत भाषा के महान कवि के तौर पर अपनी लोकप्रियता बढ़ायी है। कई ऐसे विद्वान हैं, जो महा कवि कालिदास को राष्ट्र कवि का स्थान भी देते हैं। कालिदास इतने विद्वान थे कि उन्हें राजा विक्रमादित्य के दरबार के नौ रत्न में शामिल किया गया था। आइए जानते हैं महाकवि कालिदास के बारे में विस्तार से।
कवि कालिदास के बारे में विस्तार से जानकारी
कालिदास के जन्म को लेकर साहित्य के इतिहास में अभी तक कोई तय जानकारी नहीं है, हालांकि कालिदास के बारे में यह कहा जाता है कि अपने शुरुआती जीवन में उन्हें अनपढ़ और मूर्ख माना जाता था। यहां तक कि ये भी बोला जाता रहा है कि 18 साल की उम्र तक उन्हें किसी भी तरह का कोई भी ज्ञान नहीं था। उनके बारे में यह कहा जाता था कि उन्हें अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने की आदत है। कालिदास को लेकर यह भी कहा गया है कि जब सभी ज्ञानी मिलकर किसी अज्ञानी की तलाश कर रहे थे, तभी ज्ञानी लोगों की नजर कालिदास पर पड़ी जो कि पेड़ की जिस टहनी पर बैठे थे उसी को काट रहे थे। साहित्य कहानियों के अनुसार कालिदास को बहुत ही सुंदर व्यक्ति माना गया है। उनके जन्म स्थान को लेकर भी कई तरह की दुविधाएं हैं। कालिदास के बारे में खंड काव्य मेघदूत में कहा गया है क उज्जैन शहर में उनका जन्म हुआ था, वहीं कुछ जानकारों का मानना है कि कालिदास का जन्म उत्तराखंड में हुआ था। इसी वजह से उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्का गांव में कालिदास की प्रतिमा और सभागार का भी निर्माण कराया गया है।
शादी के बाद कालिदास के जीवन में कई सारी चुनौतियां आयीं
इतिहास में मिली जानकारी अनुसार कालिदास का निजी जीवन चुनौती से भरा रहा है, लेकिन इसी से उनके महाकवि कालिदास बनने की शुरुआत हुई थी। एक वक्त के बाद कालिदास की शादी विद्योत्ताम से हुई, लेकिन शादी के बाद विद्योत्ताम को यह अच्छी तरह से ज्ञात हुआ कि कालिदास मंद बुद्धि इंसान है। इससे विद्योत्ताम बेहद नाराज हुईं और कालिदास से कहा कि जब तक तुम ज्ञानी नहीं बन जाते, तब तक घर वापसी मत करना। अपनी पत्नी से मिले इस अपमान के बाद कालिदास बेहद दुखी हुए। कालिदास को गहरी चोट पहुंची और उन्होंने यह प्रण लिया कि जब तक वह ज्ञानी पंडित नहीं बन जाते हैं, तब तक घर वापस नहीं लौटेंगे। इसी सोच और मजबूत विचार के साथ उन्होंने अपने घर का त्याग कर दिया। उन्होंने विद्या हासिल की और महा पंडित, महा ज्ञानी बन गए। उल्खेनीय है कि कालिदास का अर्थ- कालि का सेवक अथवा दास है। माना जाता था कि मां काली का आशीर्वाद उन्हें मिला था। इस वजह से उन्हें काल का दास के उपनाम से भी जाना जाता है। कालिदास ने ज्ञान हासिल कर जितनी भी रचनाएं लिखी हैं, उसे विश्व में लोकप्रियता मिली और उनकी गणना दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नाटककारों और कवियों में होती रही है। देखा जाए, तो कालिदास ने कई रचनाएं लिखी हैं, लेकिन उनकी लिखी हुई 7 रचनाएं सबसे अधिक लोकप्रिय रही हैं। महाकाव्य- रघुवंश, कुमारसंभव, खंडकाव्य- मेघदूत, ऋतुसंहार, नाटक-अभिज्ञान शाकुंतलम्, मालविकाग्रिमित्र, विक्रमोर्वशीय। आइए जानते हैं कालिदास की रचनाओं के बारे में।
ऋतुसंहार
इसे कालिदास की सबसे पहली रचना माना जाता है। यह एक तरह से गीतिकाव्य है। इस काव्य में ऋतु के बारे में वर्णन किया गया है। इसमें कुबेर के श्राप से रामगिरी में मौजूद एक यक्ष बारिश होने पर मेघ के जरिए अपनी प्रवासिनी प्रिया को संदेश भेजता है। इसमें वियोग श्रृगांर का भी रस मौजूद है।
कुमारसंभव
कुमारसंभव को महाकाव्य माना जाता है। इस महाकाव्य में पार्वती विवाह, तारकासुर के वध की कथा प्रमुख रूप से बताई गई है। काफी खूबसूरती के साथ इस काव्य में कई चीजों का वर्णन किया गया है।
रघुवंश
कालिदास का लिखा हुई रघुवंश भी महा काव्य की श्रेणी में आता है। कालिदास ने सूर्यवंशी के 30 राजाओं का इस महाकाव्य के 19 भागों में वर्णन किया है। इस महाकाव्य में एक ही वंश के कई सारे नायकों के बारे में बताया गया है। इसके साथ ही राम और राम के वंशजों के बारे में भी बताया गया है। राम के चार पूर्वजों दिलीप, रघु, अज और दशरथ के बारे में भी बताया गया है। इस काव्य में सभी रसों का सुंदर तरीके से वर्णन किया गया है। वीर रस के साथ करूण रस का प्रवाह भी आपको इस महाकाव्य में पढ़ने को मिलेगा। कई सारे अद्भुत आदर्श के साथ इस महाकाव्य को बखूबी प्रस्तुत किया गया है।
मालविकाग्रिमित्र नाटक
कालिदास ने एक से बढ़कर एक नाटक भी लिखे हैं। उनके इस नाटक के पांच अंक मौजूद हैं। कालिदास का यह पहला नाटक है। इस वजह से इस नाटक में उनका काव्य कौशल सामान्य दिखाई पड़ता है। इसे कालिदास के काव्यात्मक कौशल का सबसे बड़ा उहादरण नहीं माना जाता है। इसके बाद भी इस नाटक को कला के नजरिए से सुंदर रचना माना गया है।
विक्रमोर्यवशियम नाटक
कालिदास की इस नाट्य रचना को भी काफी लोकप्रियता मिल चुकी है। कालिदास की सारी रचनाओं में उनका यह नाटक दूसरे स्थान पर माना जाता रहा है। यह पांच अंकों का नाटक उर्वशी की लोकप्रिय पौराणिक कथा को बताता है। इसमें कवि ने उर्वशी के प्रेम को खूबसूरती से दिखाया है।
अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटक
संस्कृत में मौजूद इस नाटक की गिनती सर्वश्रेष्ठ नाटक में की जाती है। भारतीय पंरपरा में इस नाटक को सबसे प्रसिद्ध माना गया है।। इस नाटक की कथा महाभारत से ली गई है। इस नाटक में शकुंतला के राजा दुष्यंत के प्रेम, वियोग और फिर से मिलने की कहानी के जरिए बयान किया गया है। उल्लेखनीय है कि महाकवि कालिदास ने नाटक के हर किरदार को आदर और सम्मान के नजरिए से प्रस्तुत किया है।
कालिदास और उनकी रचनाओं की खूबी
महाकवि कालिदास और उनकी रचनाओं की खूबी का जितना भी वर्णन किया जाए, उसे कम ही माना जाएगा। कालिदास ने अपने कविता और नाटकों में हमेशा से ही मानव जीवन और संस्कृति को खूबसूरत तरीके से पेश किया है। आप यह भी कह सकती हैं कि कालिदास की रचनाएं हमारे लिए सुंदरता, साहसिक घटनाओं के साथ त्याग के दृश्यों में मानव मन की बदलती स्थितियों को दिखाता और समझाता रहा है। कालिदास की रचनाओं को लेकर यह माना गया है कि उनके कार्यों को हमेशा से मानव जीवन के एक अनोखे चित्रण के लिए पढ़ा और समझा जाएगा। इसकी वजह यह है कि जिस तरह से कालिदास ने अपनी रचनाओं में मानव जीवन को प्रस्तुत किया है, वो हमेशा से ही अद्भुत और अनोखा रहा है। कालिदास का हमेशा से यह मानना रहा है कि हिमालयी क्षेत्र में विकसित हुई संस्कृति दुनिया की संस्कृतियों के लिए उदाहरण बन सकती है। यह संस्कृति मूल तौर पर आध्यात्मिक है। कालिदास का मानना था कि मानव जाति का कल्याण इसी में है कि हम सभी का उद्देश्य होना चाहिए कि हम अपने प्रलोभनों से छुटकारा पाएं और चेतना की उस सच्चाई को प्राप्त करें। यह भी जान लें कि कालिदास में सभी धर्मों के प्रति सहानुभूति रही है। उनका मानना था कि कोई भी व्यक्ति उस मार्ग को चुन सकता है जो उसे अच्छा लगता है। इसके साथ यह भी जान लें कि कालिदास ने अपने जीवन में ज्ञान के साथ जीवन, लोक, चित्रों और फूलों का भी आनंद लिया है। उन्होंने मनुष्य को सृष्टि और धर्म की शक्तियों जैसा ही समझा है।