हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यास की फेहरिस्त लंबी है। ऐतिहासिक उपन्यास हमेशा से हिंदी साहित्य की धरोहर का हिस्सा रहे हैं। ऐसे में उनकी व्याख्या करना हमेशा हिंदी साहित्य के जानकारों के लिए सुखद रहा है। हिंदी साहित्य के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए, तो एक नहीं, बल्कि अनगिनत ऐतिहासिक उपन्यास अपनी रौनक से चमकते रहे हैं। यह भी जान लें कि ऐतिहासिक उपन्यास साहित्य की वह विधा है, जहां किसी भी कालखंड विशेष के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है। ऐतिहासिक कहानियों में रुचि रखने वाले लोगों के लिए आज हम यह बताने जा रहे हैं कि कौन से ऐतिहासिक उपन्यास है, जो जरूर पढ़े जाने चाहिए। आइए जानते हैं विस्तार से।
ऐतिहासिक उपन्यासों की भाषाएं
भाषा के आधार पर देखा जाए, तो हिंदी साहित्य में ऐतिहासिक उपन्यास की भाषाएं प्रगतिशील और प्रभावी रही हैं। आप यह भी कह सकती हैं कि भाषा की नजर से सारे के सारे ऐतिहासिक उपन्यास समर्थ और सबल रहे हैं। इन सारे ऐतिहासिक उपन्यासों की खूबी यह रही है कि इतिहास से जुड़े रहने के बाद भी पाठकों के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना हमेशा सुखद रहा है। एक लंबी यात्रा तय करने के बाद भी ऐतिहासिक उपन्यास आपके वक्त के लिए कीमती बन जाते हैं। कई सारे ऐसे परिणाम पर यह सारे उपन्यास ले जाते हैं, जहां से मानव जाति को इतिहास की जानकारी के साथ जीवन,समाज और मानव जाति से जुड़ी सीख मिलती है। कहीं न कहीं यह सारे उपन्यास बताते हैं कि समस्याएं कैसी भी क्यों न हो, लेकिन उनका समाधान जरूर मिलता है।
आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित ‘वयं रक्षामः’
इतिहास का मतलब यह होता है कि किसी भी ऐतिहासिक जगह, चीज या फिर इंसान के बारे में वर्णन करना। ठीक ऐसी ही छवि रावण की रही है। यह ऐतिहासिक उपन्यास पूरी तरह से रावण के जीवन पर आधारित है। रावण के गुण के साथ उनमें व्याप्त कमी के साथ रावण के महाज्ञानी होने का भी वर्णन इस उपन्यास में किया गया है। रावण के शुरुआती जीवन से लेकर उनके ज्ञान और संघर्ष के साथ रावण के विजयी होने की अमरगाथा को इस उपन्यास में विस्तार पूर्वक शामिल किया गया है। भले ही इस उपन्यास को प्रकाशित हुए लगभग 70 साल के करीब हो गए हैं, लेकिन अगर आप आज भी इस ऐतिहासिक उपन्यास के पन्नों को पलटती हैं, तो यह उपन्यास अपने सालों पुराने होने की महक का अनुभव नहीं कराता है। आधुनिक विचारों के साथ इस उपन्यास को आचार्य चतुरसेन ने लिखा है, जो आज भी प्रासंगिक लगता है।
रांगेय राघव द्वारा रचित ‘मुर्दों का टीला’
रांगेय राघव ने अपने साहित्य के सफर के दौरान कई सारे ऐतिहासिक उपन्यास का लेखन किया है। उनके खाते में ऐतिहासिक उपन्यासों की लंबी सूची तैयार है। रांगेय राघव की खूबी यह रही है कि उन्होेंने ऐसे ऐतिहासिक उपन्यास लिखे हैं, जिनके होने के कोई प्रमाण नहीं है। उसे प्रागौतिहासिक काल कहा जाता है, इसी काल में उन्होंने ‘मुर्दों का टीला’ की रचना की। इस उपन्यास को कल्पना के आधार पर लिखा है, जहां एक नगर डूबता है और बताया गया है कि कैसे पूरी की पूरी एक संस्कृति जल में खुद को डूबा रही है। देखा जाए, तो पूरी तरह से कल्पना पर यह उपन्यास आधारित है, जो कि लेखक की लेखनी को ऐतिहासिक उड़ान देता है।
हजारीप्रसाद द्विवेदी रचित ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’
हजारीप्रसाद द्विवेदी की भी कई सारी रचनाएं ऐतिहासिक हैं। उन्होंने इसके साथ पौराणिक उपन्यास भी लिखे हैं, जो कि इतिहास की ही श्रेणी में आते हैं। ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ भी ऐतिहासिक रचना है, जो कि प्रेम के ईद-गिर्द घूमती है। इसके अलावा हजारीप्रसाद द्विवेदी की ऐतिहासिक रचना ‘चारुचंद्रलेख’ और ‘पुनर्नवा लोककथाओं पर आधारित रचनाएं हैं। ठीक इसी तरह ‘पुनर्नवा’ की आगे बात की जाए, तो यह एक बेहतरीन ऐतिहासिक उपन्यास है। इसमें 1600 साल पूर्व समुद्रगुप्त के शासन का लेखा-जोखा बताया गया है। कई भागों में बटी हुई होने के बाद भी इस उपन्यास की खूबी है कि यह आपको खुद से जोड़े रखने में सफल होती है। दिलचस्प है कि कई सारे भाग होने के बाद भी पाठक इसे पढ़ने के दौरान उपन्यास की धारा में भटकते नहीं हैं। सारे भाग केंद्र में आकर अपनी सुखद समाप्ति का अहसास पाठकों को कराते हैं, खासकर तब जब कठिन भाषा के बाद भी यह ऐतिहासिक उपन्यास आपके दिल और दिमाग में खास जगह लेता है।
नरेंद्र कोहली द्वारा रचित ‘तोड़ो कार तोड़ो’
इस उपन्यास का पहला खंड 1992 में प्रकाशित हुआ। इसके बाद साल 2004 तक इसे चार खंड प्रकाशित हो चुके हैं। नरेंद्र कोहली द्वारा रचित ‘तोड़ो कार तोड़ो’ पूरी तरह से स्वामी विवेकानंद के बारे में लिखी गई है। स्वामी विवेकानंद के जीवन के हर उतार- चढ़ाव को इस उपन्यास में बताया गया है। यह ऐतिहासिक उपन्यास बताता है कि अध्यात्म की उपेक्षा करते हुए केवल संसार की पूजा करते हुए कोई भी देश या फिर समाज कभी भी खुश नहीं रह सकता है। ठीक इसी तरह कोई भी देश केवल आध्यात्म को अपनाकर अपना विकास कर सकता है।
शिवाजी सावंत द्वारा रचित ‘मृत्युंजय’
साल 1974 में इस ऐतिहासिक उपन्यास की रचना शिवाजी सावंत ने की है। इतिहास की दृष्टि से इसे सबसे अहम ऐतिहासिक उपन्यासों में माना जाता है। इसे कर्ण के जीवन पर लिखा गया है और इस दृष्टि से इसे एक काबिल पुस्तक माना गया है। यह भी जान लें कि साहित्य जानकारों का मानना है कि खुद शिवाजी सावंत के साहित्य सफर की सबसे लोकप्रिय और यादगार रचना मृत्युजंय रही है, जो कि भारतीय इतिहास का मजबूत हिस्सा बनाई गई है। यह माना गया है कि कर्ण के जीवन के संघर्ष को इस उपन्यास में बारीकी और प्रभावी तरीके से दिखाया गया है। साहित्य जानकारों का मानना कर्ण पर लिखा हुआ यह साहित्यिक उपन्यास हिंदी साहित्य में सबसे विशिष्ठ जगह पर आता है।
वृदांवन लाल वर्मा द्वारा रचित ‘मृगनयनी’
यह ऐतिहासिक उपन्यास ग्वालियर राज्य के प्रतापी राजा मानसिंह तोमर और रानी मृगनयनी की प्रेम कथा पर आधारित है। इसमें प्रेम कहानी के अलावा ग्वालियर की ऐतिहासिक परिस्थितियों का भी विस्तार से विवरण मिलता है। इस उपन्यास में प्यार, परिवार और रियासत के बारे में विस्तार से बताया गया है।
यशपाल द्वारा रचित ‘अमिता’
यशपाल ने इस उपन्यास का केंद्र कलिंग की बालिका राजकुमारी अमिता को बनाया है। जान लें कि जिस समय अशोक ने कलिंग को अपने साम्राज्य में शामिल करने के लिए पहला आक्रमण किया था, तब अशोक के आक्रमण में से एक साल पहले महारानी कई साल के प्रयत्न के बाद गर्भाधारण किया था और महारानी ने प्रथम संतान राजकुमारी को जन्म दिया और इस कन्या का नाम अमिता रखा गया। इसी पर यह उपन्यास आधारित है। जाहिर- सी बात है कि किसी भी ऐतिहासिक उपन्यास का आधार वास्तविक घटनाओं पर आधारित होता है, लेकिन कुछ अन्य तत्वों को भी लेखन के दौरान समावेश किया जाता है।