नैना ख़ामोश सर झुकाए बैठी थी. जैसे उसने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. हालांकि गुनाह किसने किया था यह अभी तय होना बाक़ी था. और इसी गुनाह की जांच पड़ताल के लिए यह सभा बैठी थी. सभा में नैना के माता-पिता, चाचा-चाची, दादा, छोटा भाई और और दो कज़न मौजूद थे.
सभा को दिल्ली में रहने वाले उसके एक मामा के घर पर बुलाया गया था. मामा और मामी भी इस तमाशे के एक हिस्सेदार बने हुए थे. और यह सब हो रहा था नैना और साजिद के आपसी झगड़े को लेकर. साजिद चौकी नैना का पति है. उसे नैना से बहुत शिकायतें हैं. उसका कहना है कि नैना उसकी कोई बात नहीं मानती. जैसा वह करने को कहता है वैसा नहीं करती. और ज़्यादा डांटने पर ख़ामोश हो जाती है. बोलना बंद कर देती है. साजिद अगर ज़्यादा पूछता है तो रोना शुरू कर देती है.
जबकि नैना की शिकायतें इनसे बहुत अलग थी. नैना का कहना है कि साजिद उसे इंसान का दर्जा नहीं देता. हर वक़्त अपनी मर्जी उस पर थोपता है. यहां तक कि वह उसे अपनी मर्जी का खाना तक नहीं खाने देता. कुछ और भी शिकायतें थीं, जिन्हें वह सिर्फ़ अपनी मां से कह सकती थी और लोगों से नहीं. ख़ुद नैना की मां भी खुलकर सबके सामने नहीं कह पा रही थी.
पिछले हफ़्ते ही नैना अपने पिता के यहां कुछ दिनों के लिए रहने आई थी. सभी लोग दोपहर का खाना खा रहे थे इस बीच साजिद का फ़ोन आ गया. नैना ने फौरन हाथ का कौर थाली में छोड़कर फ़ोन उठा लिया. नैना के पिता इमरान ने कहा भी कि अभी रुक जाओ खाना खाने के बाद बात कर लेना मगर नैना घबराकर उठ खड़ी हुई और दूसरे कमरे में जाकर बात करने लगी.
उसकी दबी-दबी आवाज़ से इमरान को कुछ शक़ हुआ और वह उठकर दूसरे कमरे के दरवाज़े तक गया तो अंदर से नैना के सिसकने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. इमरान फौरन कमरे में दाख़िल हुआ और नैना के हाथ से फ़ोन ले लिया. उस तरफ़ साजिद था.
इमरान ने कहा,"साजिद मियां! ऐसा आपने क्या कहा है कि मेरी बेटी रो रही है."
साजिद कुछ घबरा गया.
"नहीं पापा मैंने तो कुछ नहीं कहा. बस यूं ही उसे शायद मेरी याद आ रही है."
इस पर इमरान को थोड़ा ग़ुस्सा आया. उसने कहा,“मुझे तो बात कुछ और लग रही है. और बरखुरदार ऐसा है इस वक़्त हम सब खाना खा रहे हैं. बाद में नैना आपसे बात कर लेगी."
इस पर साजिद तैश में बोला, “यह क्या बात हुई? आप फ़ोन दीजिए उसे मुझे अभी बात करनी है.”
"ऐसी क्या बात है जो कुछ देर इंतज़ार नहीं किया जा सकता?”
"यह मियां बीवी का आपस का मामला है आप इसमें ना पड़े."
साजिद की आवाज़ में जो तल्ख़ी थी वह इमरान को पसंद नहीं आई. लेकिन वह चुप रहा.
फिर उसने सख़्त आवाज़ में कहा,"अभी वह खाना खा रही है आप बाद में बात करिएगा.” और फ़ोन काट दिया
खाना तो अब क्या खाना था. नैना और इमरान तो उठ ही चुके थे. सबा भी खाना छोड़ कर उठ खड़ी हुई. तीनों चुपचाप ड्रॉइंग रूम में बैठ गए. नैना की सिसकियां बंद होने का नाम नहीं ले रही थीं. सबा ने नैना को अपने आगोश में ले कर चुप कराने की कोशिश की.
"चुप हो जा बेटा बताओ हुआ क्या है? क्या बात है? क्यों इतना परेशान हो तुम?"
काफ़ी देर रो चुकने के बाद जब नैना को थोड़ा चैन मिला तो उसने कहा, "क्या बताऊं मम्मी? कोई एक बात हो तो बताऊं…"
"फिर भी बेटा बताना तो पड़ेगा ना. ऐसे कैसे चलेगा. अभी तुम्हारी शादी को दो ही महीने हुए हैं और यह हाल है. ये वक़्त बहुत मोहब्बत भरा होता है बच्चे. क्या बात है किस बात से परेशान हो? और वह क्यों चिल्ला रहा था?"
"मम्मी. यह बात तो मुझे भी समझ में नहीं आती कि वह क्यों चिल्लाता है. जैसा कहता है वैसा करती हूं तब भी उसके मिज़ाज उखड़े रहते हैं. हर बात में मीनमेख निकालता है.”
इमरान कुछ सोच रहा था. उसे मालूम है साजिद की जब शादी हुई थी तब वह एक मल्टीनैशनल कंपनी के एचआर डिपार्टमेंट में अच्छा-ख़ासा जॉब कर रहा था. मगर इस बीच जाने क्या हुआ कि उस नौकरी से उसकी छुट्टी हो गई. फ़िलहाल उसके पास कोई काम नहीं है. ज़ाहिर है ऐसे में आमदनी भी नहीं है. साजिद के माता-पिता नहीं है. बैंगलुरु में जिस फ़्लैट में रह रहे थे वह छोड़ना पड़ा है. दिल्ली आए हैं.
कुछ दिन तो नैना साजिद के साथ साजिद की बहन के एक छोटे-से घर में रही. दो कमरों के इस घर में साजिद की बहन, उसके पति, उनके चार बच्चे और साजिद की दो और बहनें और साजिद का छोटा भाई भी रहते हैं. इस तरह नैना को रहने में बहुत परेशानी हो रही थी तो अपने माता-पिता के पास रहने चली आई. जबकि साजिद की ज़िद है कि वो उसके साथ ही रहे. और नैना का मानना है कि साजिद पहले कोई जॉब ढूंढ़ ले और रहने का ठिकाना हो तो वे दोनों साथ रहें. इस बात पर इमरान की भी सहमति है. सबा से इन मामलों से कोई सलाह मशवरा नहीं किया जाता.
आज जिस बात को लेकर झगड़ा हुआ वह इतनी परेशानीभरी और शर्मनाक बात थी, जो नैना अपने पिता से कह भी नहीं सकती.साजिद बहुत दिनों से उसके पीछे पड़ा है कि उन्हें अपना परिवार बढ़ाना चाहिए. वह नैना पर बच्चा करने का दबाव डाल रहा है. नैना इस बात को बिल्कुल समझ नहीं पाती कि ना तो जॉब है ना रहने को घर. ऐसे में एक नई जान की ज़िम्मेदारी कैसे ली जा सकती है?
‘जब दोनों के विचार ही न मिल रहे हों तो वह क्या सोचकर परिवार आगे बढ़ाएं?‘ उसने यह बात साजिद से कही तो वह उबल पड़ा. उसका कहना था कि वो कुछ सुनना नहीं चाहता. नैना फौरन वहां आ जाए. वे दोनों कुछ दिनों के लिए घूमने चलेंगे. और अपने परिवार की नींव डालेंगे.
नैना ने कहा कि पहले जॉब और घर का इंतज़ाम हो जाए उसके बाद इस बारे में सोचेंगे. इस पर साजिद का जवाब था कि हर जान अपनी किस्मत अपने साथ लेकर आती है. हमारा बच्चा भी हमारी किस्मत लेकर आएगा. उसके आने से हमारे हालात बेहतर हो जाएंगे. नैना इस तर्क को नहीं समझ पाती. पिछले 15-20 दिनों से इन्हीं बातों को लेकर दोनों में टकराव बेहद बढ़ गया है. हर बार जब भी मिलते हैं या फ़ोन पर बात होती है उसका अंत साजिद के चिल्लाने और नैना के रोने पर होता है.
इस बीच जब नैना चुप हो गई तो सबा ने इशारे से इमरान को वहां से जाने से कहा. इमरान भी समझ गया था कि कोई ऐसी बात है जो उसकी मौजूदगी में नैना बता नहीं पा रही. इमरान के जाने के बाद सबा ने कहा,“अब बताओ बेटा क्या बात है? खुलकर बोलो आपके पापा चले गए हैं बाहर.”
नैना की रुलाई फिर से फूट पड़ी.
"मम्मा क्या बताऊं मैं बहुत परेशान हूं. यह आपने मुझे कहां धकेल दिया है. यह आदमी न कुछ करता है, न करने की सोचता है. मुझे जो पैसे आप देते हैं वह सब ख़र्च हो जाते हैं. खुले हाथों से ख़र्च करता है. बहन के घर में पड़ा हुआ है. मैं यहां तो आ गई, लेकिन बार-बार मुझसे वहीं रहने की ज़िद कर रहा है. आप बताओ छोटे से घर में हम इतने सारे लोग कैसे रहें? और अब यह कहता है कि मुझे बच्चा करना चाहिए,” यह कहते-कहते नैना फिर रो पड़ी.
सबा सकते में आ गई. कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद नैना को चुप करा कर वह उठ खडी हुई.
उसने नैना से कहा,“तुम अब कुछ मत कहो साजिद से. अब हम बड़े लोग इस बात का फ़ैसला करेंगे. तुम फ़िक्र न करो. उठकर खाना खाओ. चाय बनाओ हम सबके लिए. मैं आपके पापा से बात करती हूं. इस बात को किसी तरह सुलझाना ही होगा.”
नैना को कुछ तसल्ली हुई और वह किचन में चाय बनाने चली गई. पानी को गैस पर रखकर खामोश आंखों से वो पानी को देखने लगी. इस बीच पिछले कई साल उसकी आंखों के सामने किसी फ़िल्म की तरह गुज़र गए.
आज उसे शिद्दत से संजय की याद आई. संजय कॉलेज में नैना का सीनियर था. अक्सर बातचीत होती थी और इस बीच दोस्ती गहरी होती चली गई. कब वे एक दूसरे से प्यार करने लगे उन्हें ख़ुद भी मालूम नहीं हुआ. संजय एक बहुत खुले विचारों वाले परिवार से आता है. उसके पिता सरकारी अफ़सर है. मां कॉलेज में प्रोफ़ेसर. नैना का विजातीय होना उसके लिए कोई समस्या नहीं था. लेकिन नैना अक्सर सशंकित हो जाती थी. उसे मालूम था उसके परिवार का माहौल खुला हुआ नहीं है. संजय कई बार नैना को अपने घर भी लेकर गया. संजय के माता-पिता उसके सभी दोस्तों से मिलते रहते थे. संजय के दोस्तों का उसके घर पर आना-जाना लगा रहता था.
नैना को कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि उसके मुसलमान होने से वहां किसी तरह की कोई दिक़्क़त हो. परिवार में हमेशा उसका स्वागत ही हुआ. हालांकि संजय के पिता को इन दोनों के रिश्ते के बारे में कुछ एहसास नहीं था. मगर मां को कुछ एहसास था कि दोनों के बीच कुछ अपनापन है. उन्हें यह लड़की अच्छी लगती थी. प्यारी-सी. दरम्याने क़द की. खिलता हुआ रंग. मीठी आवाज़ में बात करने वाली. कुल मिलाकर एक तमीज़दार लड़की, जो हर घर को अच्छा बना सकती है.
संजय एमफ़िल करके यूनिवर्सिटी में असिस्टैंट प्रोफ़ेसर लग गया था. ज़ाहिर है अब उसे अपने जीवन को आगे बढ़ाने की फ़िक्र हो रही थी. उसने नैना से शादी करने का प्रस्ताव दिया तो नैना को लगा कि ज़्यादा परेशानी नहीं होगी. उसके परिवार वाले ना-नकुर करने के बाद मान ही जाएंगे. संजय में कोई कमी किसी को क्या नज़र आएगी सिवाय इसके कि वह विजातीय है.
लेकिन नैना का अनुमान ग़लत निकला. जैसे ही नैना ने घर में बात की और संजय का नाम लिया, इमरान ने दहाड़ कर उसे चुप करा दिया. जब नैना ने कहा कि वह से प्रेम करती है और उसी से शादी करेगी और अगर वे नहीं मानेंगे तो कोर्ट में जाकर शादी कर लेगी. इमरान ने साफ़ शब्दों में कह दिया कि उस सूरत में उसे अपने बाप की अर्थी देखनी होगी.
इमरान ने साफ़ कहा कि उसका अपनी बिरादरी में बहुत मान-सम्मान है. वह हमेशा से ग़ैर-जाति में शादी का विरोध करता आया है. अगर उसकी अपनी ही बेटी हिंदू से शादी कर लेगी तो उसकी नाक कट जाएगी. ऐसे में वह मर जाना बेहतर समझेगा और आत्महत्या कर लेगा.
उसने इतने स्पष्ट शब्दों में इतना शांत रह कर यह सब कहा कि नैना समझ गई कि वह सिर्फ धमकी नहीं थी. इमरान जो कह रहा था वह कर भी सकता है.
एक पूरी रात जागते हुए, संजय से बात करते हुए रोते हुए उसने हाथ जोड़कर माफी मांग ली थी. संजय अपना टूटा हुआ दिल लेकर यूनिवर्सिटी की अपनी नौकरी छोड़ कर विदेश चला गया था अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए. और यह चैप्टर यूं ख़त्म हो गया था.
नैना अपने कमरे में पड़ी रहती. न ढंग से खाती, ना पहनती, ना कहीं आती-जाती. एमफ़िल बीच में छोड़ दिया. कॉलेज जाना भी छोड़ दिया. किसी का फ़ोन आता तो अपना फ़ोन ऑफ़ कर देती. कोई सहेली यां दोस्त मिलने आता तो कहलवा देती कि सो रही हूं बाद में मिलूंगी.
हार कर इमरान और सबा ने सोचा कि जल्द ही नैना की शादी करवा दी जाए तो वह संभल जाएगी. और उसका जीवन पटरी पर आ जाएगा. उम्र भी उसकी शादी की हो चली थी. वह 23 पार कर चुकी थी. उनके परिवार में तो वैसे भी लड़कियों की शादी 17-18 पर कर दी जाती थी. ख़ुद सबा की शादी 15 वर्ष की उम्र में हो गई थी. कॉलेज का तो कभी उसने मुंह भी नहीं देखा था. बेटी को पढ़ाया-लिखाया, लेकिन हिन्दू लड़के से प्यार करके उसने भी रुसवा ही किया. यही सब सोचकर सबा को बहुत अफ़सोस होता था. और अब बस उसकी पूरी कोशिश थी कि किसी अच्छे लड़के से नैना की शादी करवा दी जाए.
और वह अच्छा लड़का ढूंढ़ा था सबा की भाभी ने. सबा की भाभी की मामी के भाई का बेटा था साजिद. माता-पिता का देहांत हो चुका था. चार बहनों और दो भाईयों वाले परिवार का मंझला बेटा था साजिद. जायदाद वगैरह कुछ ख़ास नहीं थी. अलबत्ता दो बहने शादीशुदा थी. साजिद ख़ुद पढ़-लिख कर एक मल्टीनैशनल कंपनी में जॉब कर रहा था. बहनों ने साजिद की नैना के साथ बहुत अच्छी धूमधाम से शादी करवाई. सभी बहनों ने मिलकर सब कामकाज किए. बियाह कर नैना मुज़फ़्फ़रनगर में साजिद की बहन के घर गई. चार दिन वहां रहने के बाद वह साजिद के साथ बैंगलुरु चली गई. कुछ दिन सब ठीक रहा. लेकिन जल्दी ही साजिद के मिज़ाज का पता नैना को लगने लगा. बेहद शॉर्ट टैंपर्ड साजिद ज़रा सी बात पर ग़ुस्सा हो जाता. तब उसे ख़ुद भी होश नहीं रहता. वह ऊट-पटांग बोलता हुआ और पैर पटकता हुआ घर से निकल जाता. एक-दो दिन घर ही न आता. नैना परेशान होकर फ़ोन करती तो फ़ोन ऑफ़ कर देता.
फिर एक दिन इसी ग़ुस्से और गर्म-मिज़ाज की वजह से नौकरी भी छूट गई. और बोरिया बिस्तर बांध कर दिल्ली अपनी बहन के घर नैना को लेकर आ गया.
कुछ दिन नैना उस घर में रही. मगर वहां नहाने-धोने से लेकर सोने तक की हर तरह की समस्या थी. दो कमरे का छोटा सा घर और उसमें रहने वाले 11 लोग. आख़िर घबराकर नैना अपने माता-पिता के घर आ गई. साजिद यूं तो उसे छोड़ने आया था. दो दिन रहा भी. फिर चला गया. नैना ने ही उसे जाने को कहा. वह नहीं चाहती थी कि उसकी तल्ख़ मिज़ाज का पागलपन उस पर भूत की तरह सवार हो गया था. नैना ने बहाना बनाकर अपनी मां के साथ सोना शुरू कर दिया था. वह बुरी तरह डर गई थी.आज जब बात खुल गई थी तो इमरान बेहद ग़ुस्से में भरा हुआ था. वह उस समय इंतज़ार कर रहा था दूसरे कमरे में बैठा हुआ. सबा ने आकर जब सारी बात इमरान को बताई तो वह ग़ुस्से से पागल हो गया. उसने फ़ोन उठाकर साजिद को मिलाना चाहा तो सबा ने उसे रोक दिया.
"देखो इमरान मुझे लगता है कि इस तरह से बात नहीं करनी चाहिए. फ़ोन पर बात करने का कोई मतलब नहीं है. अब हमें साजिद को बुलाकर आमने-सामने बैठाकर उससे बात करनी चाहिए.”
सबा ने साजिद को फ़ोन लगाया. साजिद ने जैसे ही हेलो कहा सबा ने कहा,”सलाम वालेकुम बेटा.”
"जी अस्सलाम वालेकुम मम्मी. कैसी हैं आप?”
"मैं ठीक हूं आप कैसे हैं.”
"मैं कैसा हूं आप तो जानती हैं. मेरी हालात तो आप जानती हैं. मेरी तो अपनी बीवी मुझे छोड़कर वह आपके पास बैठी हुई है.”
एक बारगी तो वह समझ नहीं पाई कि वह क्या कहे. साजिद को फिर ग़ुस्सा चढ़ गया. उसने नैना से बात करने को कहा, मगर सबा ने फ़ोन नैना को नहीं दिया.
उसने शांत स्वर में कहा, "बेटा मैं समझती हूं आपके मसले को. बेहतर होगा कि आप यहां आए और हम से बात करें. इस मसले का कोई हल तो निकालेंगे.”
"जी बिल्कुल मैं हाज़िर होता हूं. अभी आ जाता हूं. मैं भी अपना घर बसाना चाहता हूं. निकाह किया है मैंने. नैना मेरी बीवी है. उसे मेरे साथ रहना चाहिए.”
"जी साजिद बेटा हम भी यही चाहते हैं. आप आएं तो बात करते हैं.”
लेकिन जब साजिद पहुंचा तो उसके साथ उसका एक दोस्त भी था. जो उसे अपनी कार से लेकर आया था. ज़ाहिर है, बाहर के आदमी के सामने ज़्यादा बात तो हो नहीं सकती थी. साजिद बार-बार ज़िद करने लगा कि नैना को उसके साथ भेज दिया जाए. मगर नैना ने जाने से साफ़ इनकार कर दिया. कुछ झड़प हुई. अपने दोस्त और नैना के मां-बाप की मौजूदगी में ही साजिद ने चिल्लाते हुए कहा,“ तुझे तलाक़ दे दूंगा मैं समझती क्या है ख़ुद को?”
नैना रो रो कर थक चुकी थी. इस बार उसे रोना नहीं आया. हारे हुए मन से उसने इतना कहा,“ हर तीसरे दिन मुझे कहते हो कि तलाक़ दे दूंगा. दे दो ना फिर. निजात मिले मुझे इस ज़िंदगी से.”
इतना सुनना था कि साजिद तैश में उठ खड़ा हुआ. वह आपा खो चुका था. उसने आगे बढ़कर नैना को थप्पड़ लगाना चाहा तो इमरान लपककर बीच में आकर खड़ा हो गया. और उसने बेहद तेज़ आवाज में कहा,“ बेहतर होगा कि आप इस वक़्त यहां से चले जाएं. मेरे घर में मेरी बेटी से आवाज़ ऊंची कर बात करने और हाथ उठाने की आप आपने जो हिमाकत की है, इसका ख़ामियाज़ा आपको भुगतना पड़ेगा.”
साजिद मानो एकाएक होश में आया. वह समझ गया कि बात बहुत आगे बढ़ गई. एकदम ठंडा हो गया और मुलायम स्वर में बोला,“नहीं पापा सॉरी पापा. ग़लती हो गई. मुझे ग़ुस्सा आ गया था. आइंदा ऐसा कभी नहीं होगा. आप नैना को मेरे साथ भेज दें. चलो उठो नैना. अपना सामान लो. चलते हैं. कुछ दिन के लिए घूमने चलते हैं बाहर कहीं. जहां तुम कहोगी वही चलेंगे.”
साजिद को गिरगिट की तरह रंग बदलते इमरान जैसे फटी-फटी आंखों से देखता रहा. आख़िर उसे होश आया. उसने बाजू से साजिद को पकड़ा और बाहर के दरवाज़े की तरफ़ ले गया और बोला,‘‘बरखुरदार अब आप अपनी बहनों और बहनोईयों को इकट्ठा कीजिए. सब मिल बैठकर बात करेंगे कि आगे क्या होना है. मेरी बेटी तुम्हारे साथ आज कहीं नहीं जाएगी.’’
और उसी का नतीजा था, जो यह बैठक बैठी थी. सब ख़ामोश थे.
इमरान ने चुप्पी तोड़ी,"देखिए मैं सब बातें तो क्या ही कहूं आप सब लोग जानते ही हैं. इन दोनों के बीच क्या-क्या चल रहा है. शादी हुए तीन महीने नहीं हुए और इस तरह की बातें हो रही हैं.”
साजिद की बहन सइमा ने कहा, "क्या बातें हो रही है इमरान भाई? हमें तो कुछ नहीं पता. सब ठीक तो है. मियां बीवी में खटपट तो हो ही जाती है. भरा पूरा परिवार है. कई बर्तन होते हैं तो बजते ही हैं. आप तो बात का बतंगड़ बना रहे हैं. हम सब को बुलाने की क्या ज़रूरत थी. आपस में ही निपटा लेना था.
इस पर नैना के दादा बोले,“देखो बीवी मामला बहुत ज़्यादा बढ़ गया है. यह आपस में निपटने वाला नहीं है. आपका भाई बहुत ज़्यादती कर रहा है हमारी बच्ची के साथ. दिन भर उसे डांटता है. रुलाता है.”
सइमा ही बोल रही थी,“अब आपकी बच्ची बहुत नाज़ुक मिज़ाज है ना, छोटी-छोटी बात पर रोने लगती है. कोई बात नहीं हम संभाल लेंगे. हमारे साथ रहेगी तो हम उसे सख़्त जान बना लेंगे. छोटी-छोटी बातों का बुरा मानना छोड़ देगी. यह सब तो होता रहता है ना.”
अब सबा को बोलना पड़ा,“ क्या सब होता रहता है? हम भी परिवार में रहते हैं. हमारे यहां तो इस तरह की बातें नहीं होती. मुझे तो कोई इस तरह नहीं डराता. हंसी-ख़ुशी रहते हैं. हर वक़्त तो नहीं रोते रहते कोई. मेरी बेटी तो जब से शादी हुई है मैंने रोते ही देखा ऐसे. ऐसे कैसे चलेगा? और उस दिन हमारे सामने ही कहने लगा कि तलाक़ दे दूंगा. और नैना ने बताया कि हर तीसरे दिन वो कह देता है कि तुझे तलाक़ दे दूंगा. ऐसा थोड़े ही होता है?”
इस पर साइमा से हंसते हुए कहा,"अरे यह भी आपने क्या बात कही. यह तो हमारे शौहर कहते ही रहते हैं. दाल में नमक ज़्यादा पड़ गया तो कह देंगे तलाक़ दे दूंगा. किसी दिन कपड़े इस्त्री ना किए तो कह देंगे कि तलाक़ दे दूंगा. उनकी ज़ुबान पर रखा रहता है. यह सब तो सुनना ही पड़ता है ना हम औरतों को.”
एक पत्थर-सी ख़ामोशी वहां छा गई. किसी को कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या कहें. साइमा फिर बोल पड़ी, “हां यह तो है. मर्द लोग यह बात तो कहते ही रहते हैं. यह तो हम पर है न कि घर को कैसे बचा कर रखें. कभी एक-आध थप्पड़ पड़ भी गया तो क्या है शौहर ही तो है. कल को दूसरी बीवी ले आएगा तो क्या कर लेंगे? कम से कम दूसरा निकाह तो नहीं कर रहा ना.”
इमरान ने सबा को इशारा किया तो सबा ने नैना को हाथ पकड़कर उठाया और लेकर अंदर चली गई. उसके पीछे-पीछे सबा के परिवार की दूसरी औरतें भी चली गईं.
नैना के दादा ने कहा, “बीबी आप यहीं बैठें. हमारी बात सुनें.”
कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद वे आगे बोले,“ देखो बीवी ऐसा है कि अब यह बात बहुत बढ़ गई है. अब तो नैना ही फ़ैसला करेगी कि उसे क्या करना है. साजिद के साथ रहना चाहती है कि नहीं. उस पर ज़बरदस्ती नहीं की जा सकती.”
साजिद फिर तैश में आ गया,"वह कौन होती है फ़ैसला करने वाली? मैं कहता हूं मेरी बीवी है उसे मेरे साथ रहना होगा. आप उसे भेजिए मेरे साथ. आप मुसलमान होकर कैसी बातें करते हैं? आप बुज़ुर्ग हैं आपको तो समझना चाहिए यह बात. मैं खाबिन्द हूं उसका. मेरे साथ ही रहना होगा उसे.”
इस बार इमरान बोला,“आप मेरे वालिद के साथ इस तरह बात मत करें. नैना आपकी बीवी बाद में है पहले मेरी बेटी है. और वही फ़ैसला करेगी कि उसे क्या करना है. आप तो फ़ैसला कर चुके हो ना कि तलाक़ देना चाहते हो. आप एक बार उसे भी फ़ैसला करने दीजिए कि वह क्या चाहती है.”
"नहीं पापा मैंने तो ऐसे ही ग़ुस्से में कह दिया था. ऐसे थोड़ी ना कोई मैं तलाक़ दे दूंगा. मेरी बीवी है मैं चाहता हूं उसे.”
इस पर किसी ने कुछ नहीं कहा. इमरान उठकर अंदर गया. जाकर नैना के सामने बैठ गया.
"मेरी बेटी. मैं जैसा भी हूं तुम्हारा बाप हूं. तुम्हारा दुख और नहीं देख सकता. मुझे बताओ तुम क्या चाहती हो? आज फ़ैसला करना होगा. क्या तुम इसके साथ जाना चाहती हो? वो शौहर है तुम्हारा, तुम्हें साथ ले जाना चाहता है.”
कुछ देर के लिए कमरे में ख़ामोशी छाई रही. नैना ने मुंह खोला लेकिन बिना कुछ बोले बंद कर लिया. फिर मुंह खोला फिर चुप हो गई. इमरान समझ गया कि वो कुछ कहना चाहती है लेकिन डर रही है.
"डरो नहीं बेटी बताओ क्या चाहती हो?"
इस बार नैना हिम्मत बटोरकर बोली,“ मैं नहीं रहना चाहती साजिद के साथ. मैं खुला चाहती हूं.”
कमरे में जैसे कोई भारी पत्थर सब पर आकर गिर गया था. सबा तड़प कर बोली, “हमारे ख़ानदान में किसी औरत ने आज तक खुला नहीं मांगा. तू कैसे मांग सकती है?”
नैना चिल्ला पड़ी,“वह मुझे हर तीसरे दिन कह सकता कि तलाक़ दूंगा. नहीं मांग सकती? मैं खुला नहीं मांग सकती? लड़की हूं इसलिए. तुम मुझे छत पर चढ़ा कर वहां से धक्का दे दो. फेंक दो नीचे. ख़ुदकुशी तो मैं करूंगी नहीं. आप ही मेरी हत्या कर दो. आपको भी छुटकारा मिलेगा. मुझे भी. लेकिन अब मैं इस आदमी के साथ नहीं रहूंगी. आपको जो करना है कर लो.”
इमरान ने सबा को शांत कराया. कुछ देर अंदर बहस मुबाहिसा चलता रहा. जब काफ़ी देर तक कोई बाहर नहीं आया तो दादा भी अंदर आ गए.
सूरतेहाल जान कर कुछ देर सोचने के बाद बोले, “बात तो नैना की ठीक है. अभी ही ये सब होना है तो ठीक है हो जाए. कुएं में तो नहीं फेंक सकते लड़की को. और लड़की ना जाना चाहे शौहर के साथ तो ज़बरदस्ती भी नहीं भेज सकते. उसको बोलते हैं कि वही तलाक़ दे दे इसको.”इस पर नैना तुरंत बोल पड़ी,"नहीं वह नहीं देगा तलाक़ मैं खुला दूंगी उसे. मैं मांगती हूं खुला. मैं इस बात की इजाज़त उसको नहीं देती कि वह मुझे तलाक़ दे. मैं इस बात की इजाज़त ख़ुद को देती हूं कि मैं खुला मांगूं. मैं खुला मांगती हूं साजिद से. आप यह बात जाकर उसे कह दीजिए.”