केदारनाथ सिंह हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण कवि रहे हैं। उनकी कविताएँ सरल भाषा में गहरी मानवीय भावनाओं के साथ ग्रामीण जीवन, प्रकृति और सामाजिक मुद्दों की अभिव्यक्ति हैं। आइए जानते हैं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध हिंदी कवि केदारनाथ सिंह की 7वीं पुण्यतिथि पर उनसे जुड़ी खास बातें।
वार्तालाप और मुक्त छंदों में भी रहा गीतात्मक लय प्रवाह
समकालीन कविता के सशक्त कवि केदारनाथ सिंह की साहित्यिक यात्रा की शुरुआत मूलत: गीतकार के रूप में हुई थी, जहां वे अज्ञेय के संपादन में प्रकाशित ‘तीसरा सप्तक’ के सात कवियों में से एक थे। सप्तक में शामिल गीतों के जरिए उनका परिचय साहित्यिक दुनिया से हुआ और उन्होंने अपनी पहली कविता संग्रह ‘अभी, बिल्कुल अभी’ के साथ अपनी अमिट पहचान बना ली। इस संग्रह की नवीनता और तात्कालिकता से उन्होंने अपना एक अलग पाठक वर्ग तैयार किया। हालांकि 1960 में प्राकशित हुए इस संग्रह के बाद उनका दूसरा कविता संग्रह 20 वर्ष बाद 1980 में प्रकाशित हुआ, लेकिन उनके पाठक वर्ग में कमी होने की बजाय बढ़ोत्तरी ही हुई। अपनी कविताओं में सरल भाषा के साथ बिंब विधान और शिल्प विधान से वे अपूर्व कवि कहलाए। कविता में वार्तालाप और मुक्त छंदों के होने के बावजूद जिस तरह उन्होंने गीतात्मक लय प्रवाह बनाए रखा, यह उनकी प्रतिभा को दर्शाता है।
प्रारंभिक जीवन और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का मार्गदर्शन
उनकी कविताओं में जो अपनापन रहा है, उसने उनके पाठक वर्गों को लगातार बढ़ने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई। किताबों के साथ-साथ इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी उनकी कविताएं, बेहद चाव से पढ़ी जाती हैं और सच पूछिए तो सोशल मीडिया ने उनकी लोकप्रियता को और बढ़ाया है। यह उसी का नतीजा है कि उनकी कुछ कविताएँ या कविताओं की पंक्तियाँ हिंदी कविता संसार की सबसे अधिक उद्धृत पंक्तियों में शामिल हो चुकी हैं। 7 जुलाई 1934 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले चकिया गाँव में जन्में केदारनाथ सिंह ने गाँव में आरंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए बनारस का रुख किया और आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के मार्गदर्शन में अपना शोध ग्रंथ पूरा किया। उन्हीं की प्रेरणा से उन्होंने न सिर्फ बांग्ला सीखी, बल्कि रवींद्रनाथ टैगोर का बांग्ला साहित्य भी पढ़ा। अध्यापन के पेशे से जुड़े रहे केदारनाथ सिंह ने वर्ष 1976 में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र से जुड़कर आचार्य का पदभार भी संभाला है। सिर्फ यही नहीं उनकी कविताओं पर कई विश्वविद्यालयों में शोध कार्य भी हुए हैं।
उनकी कविताओं में समाई प्रेरक पंक्तियाँ
केदारनाथ सिंह की कविताओं में जीवन के प्रति एक गहरा प्रेम और आशावाद झलकता है। उनकी कविताएँ हमें कठिन परिस्थितियों में भी सकारात्मक रहने और जीवन के हर पल का आनंद लेने के लिए प्रेरित करती हैं। उदाहरण के तौर पर ‘अभी बिल्कुल अभी’ कविता की पंक्तियों “अभी बिल्कुल अभी/थोड़ी देर पहले/एक चिड़िया उड़ी है/और उसने देखा है/धरती का आखिरी छोर।" में केदारनाथ सिंह हमें जहां हर पल को जीने और नई संभावनाओं को तलाशने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, वहीं ‘जमीन पक रही है’ कविता “जमीन पक रही है/आकाश पक रहा है/और पक रही हैं/हमारी आँखें।" में वे हमें प्रकृति के साथ जुड़ने और जीवन के चक्र को समझने के लिए प्रेरित करते हैं। इसी तरह ‘यहाँ से देखो’ कविता की पंक्तियों “यहाँ से देखो/तो सब कुछ दिखाई देता है/पेड़, पहाड़, नदी/और आदमी।" में वे हमें जीवन को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने और हर चीज में सुंदरता खोजने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसके अलावा अपनी चर्चित कविता ‘अकाल में सारस’ की पंक्तियों “अकाल में सारस/उड़ता है/आशा की एक किरण लेकर।” में वे हमें कठिन समय में भी आशावादी रहने और कभी हार न मानने के लिए प्रेरित करते हैं। इसी तरह के कई और उदाहरण आपको ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ’, ‘बाघ’, ‘तालस्ताय और साइकिल’ कविता में भी नज़र आती है।
प्रमुख रचनाएं और पुरस्कार
उनकी प्रमुख कविता संग्रहों में ‘अभी बिल्कुल अभी’, ‘ज़मीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘अकाल में सारस’, ‘उत्तर कबीर और अन्य कविताएं’, ‘बाघ’, ‘तालस्ताय और साइकिल’ और ‘सृष्टि पर पहरा’ शामिल है। कविता के अलावा उन्होंने ‘कल्पना और छायावाद’, ‘आधुनिक हिंदी कविता में बिंब-विधान’, ‘मेरे समय के शब्द’, ‘क़ब्रिस्तान में पंचायत’ के रूप में गद्य में भी अपनी कलम चलाई है। इसके अलावा ‘ताना-बाना’, ‘समकालीन रूसी कविताएँ’, ‘कविता दशक’, ‘साखी’ और ‘शब्द’ उनके संपादन में प्रकाशित पुस्तकें हैं। हालांकि अपनी रचनाओं में अपनी कविता संग्रह ‘अकाल में सारस’ के लिए उन्हें जहां वर्ष 1989 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था, वहीं वर्ष 2014 में उन्हें साहित्य के प्रतिष्ठित पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
केदारनाथ सिंह की प्रसिद्ध कविता ‘यह पृथ्वी रहेगी’
मुझे विश्वास है
यह पृथ्वी रहेगी
यदि और कहीं नहीं तो मेरी हड्डियों में
यह रहेगी जैसे पेड़ के तने में
रहते हैं दीमक
जैसे दाने में रह लेता है घुन
यह रहेगी प्रलय के बाद भी मेरे अंदर
यदि और कहीं नहीं तो मेरी जबान
और मेरी नश्वरता में
यह रहेगी
और एक सुबह मैं उठूँगा
मैं उठूँगा पृथ्वी-समेत
जल और कच्छप-समेत मैं उठूँगा
मैं उठूँगा और चल दूँगा उससे मिलने
जिससे वादा है
कि मिलूँगा।