ऐसे कई लेखक और विचारक हुए, जिन्होंने महिलाओं को सिर्फ प्रेमियों की प्रेमिका के रूप में अपनी रचनाओं में नहीं देखा है, बल्कि सशक्त माना है, आइए जानते हैं ऐसी कुछ रचनाओं के बारे में।
शक़ील जमाली
अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
मंटो
शराब पीने से औरतों का भी
लिवर ही खराब होता है चरित्र नहीं।
साहिर लुधियानवी
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
मुनीर नियाज़ी
शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
अंजुम सलीमी
रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं