साहित्य में महिलाओं की भूमिका हमेशा से सर्वोपरि रही है। महिला साहित्यकारों की लंबी फेहरिस्त हिंदी साहित्य में रही है। ऐसे में कुछ चुनिंदा महिला साहित्यकार ऐसी हैं, जिन्होंने साहित्य की धरती पर अपनी कलम से सफल रचनाओं की कहानी लिखी है। आइए जानते हैं विस्तार से।
कृष्णा सोबती
कम लिखना और बेहतरीन होना, कृष्णा सोबती की रचनाओं की पहचान रही है। यही वजह रही है कि साल 2017 में उन्हें भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साल 1980 में उन्हें 'जिंदगीनामा' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उनके लिखने की शैली सहज और सरल होने के साथ व्यवहारिक रही है, कम बातों के साथ कई जरूरी सीख वे अपनी कहानियों के जरिए बयान करती थीं। याद दिला दें कि कृष्णा सोबती को लोकप्रियता उनके उपन्यास मित्रो मरजानी ने दिलाई थी। इस उपन्यास में उन्होंने एक विवाहित महिला का वर्णन किया था। 18 फरवरी 1925 को उनका जन्म गुजरात में हुआ। लाहौर के फतेहचंद कॉलेज में उन्होंने अपनी शिक्षा की शुरुआत की, लेकिन उसी समय देश का विभाजन हुआ और वे भारत लौट आयीं। 70 साल की उम्र में एक लंबी बीमारी के बाद उनका निधन साल 2019 में हुआ। कृष्णा सोबती की प्रमुख रचनाओं के बारे में बात करें, तो ‘मित्रो मरजानी’, ‘यारों का यार’, ‘ऐ लड़का’ आदि है।
अमृता प्रीतम
मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास सब एक नाजायज़ बच्चे की तरह है। यह कहना रहा है अमृता प्रीतम का। अपनी किताब 'रसीटी टिकट' की भूमिका में अपनी रचनाओं का इस तरह अमृता प्रीतम ने जिक्र किया है। अपनी लेखनी से सीधा प्रभाव छोड़ने वालीं अमृता प्रीतम को आज भी सुनना प्रासंगिक लगता है। अमृता प्रीतम की लेखन शैली ने उनकी हर कृति को अमर कर दिया है। अमृता ने 28 उपन्यास, 15 कथा संग्रह और 23 कविताओं का रचनाएं की है। 31 अगस्त 1919 को अमृता का जन्म पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गुजरांवाला में हुआ। अमृता प्रीतम पंजाब की सबसे लोकप्रिय महिला लेखक के रूप में अपनी पहचान कायम की। उनकी प्रमुख रचनाओं की बात करें, तो ‘पिंजर’, ‘आशू’, ‘रंग दा पत्ता’, ‘यात्री’ और आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ सबसे अधिक लोकप्रिय है।
कमला भसीन
नारीवाद को अपनी लेखनी के माध्यम से कमाल भसीन ने उजागर किया है। कमला भसीन एक नारीवादी कार्यकर्ता, कवयित्री और लेखिका रही हैं। कमला भसीन ने महिलाओं के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को अपनी लेखनी के जरिए रोकने की कवायद की है। महिलाओं के आत्मसम्मान और प्रेरित करने वालीं कई सारी रचनाएं उनके नाम हैं। ‘मितवा’, ‘पितृसत्ता क्या है’ और ‘मर्दानगी की खोज’ जैसी कई रचनाएं शामिल हैं। कमला भसीन ने अपने जीवनकाल में केवल महिलाओं के अधिकारों को अपनी लेखनी में सबसे खास और पहली जगह दी है। 24 अप्रैल 1946 को जन्मीं कमला भसीन ने 25 सितंबर 2021 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया और छोड़ गई हैं, अपने पीछे दमदार लेखनी।
सूर्यबाला
वाराणसी में जन्मीं सूर्यबाला का जन्म 1944 में हुआ। पीएचडी तक पढ़ाई पूरी करने के बाद वह स्वतंत्र दिवस लेखन में चली गई। उनकी लेखनी में नारी जीवन दिखाई देता है। बेबाकी और बेपरवाह नारीवाद सोच को सूर्यबाला ने अपनी लेखनी में खास जगह दी है। सूर्यबाला के लोकप्रिय उपन्यास ‘मेरे संधि पत्र’, ‘सुबह के इंतजार’ और ‘दीक्षांत’ जैसी लोकप्रिय रचनाएं लिखी हैं। इसके साथ पांच लंबी कहानियां भी काफी चर्चित हुई हैं। साल 1996 में उन्हें प्रियदर्शनी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया। उल्लेखनीय है कि उनकी कई सारी रचनाओं को आकाशवाणी और दूरदर्शन के कई सारे धारावाहिकों में प्रसारित किया जा चुका है।
मन्नू भंडारी
साल 1931 में मध्यप्रदेश के भानपुर में जन्मीं मन्नू भंडारी की लेखनी में करुणा भाव छलकता है। मन्नू भंडारी हिंदी साहित्य जगत की एक महान लोकप्रिय कहानीकार और लेखिका मानी जाती हैं। इसके साथ वह नई कहानी आंदोलन की एक मुख्य महिला लेखिका भी रही हैं। कोलकाता में अध्यापन के दौरान मन्नू भंडारी ने हिंदी साहित्य को करीब से जाना। शादी के बाद वह कोलकाता से दिल्ली चली आईं। मन्नू भंडारी की प्रमुख रचनाओं की बात करें, तो ‘एक प्लेट सैलाब’, ‘मैं हार गई’, ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘आंखों देखा’ झूठ शामिल है।