साहित्य की दुनिया में अवधी साहित्य का विशेष महत्व है, लेकिन हम सभी के लिए अवधी साहित्य से पहले अवधी भाषा के महत्व को जानना जरूरी है। आपको यह जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि अवधी भाषा पूर्वी हिंदी सबसे प्रमुख बोली है। अवधी शब्द का विकास अवध यानी कि अयोध्या से हुआ है और हिंदी साहित्य में कई सारे विशेष साहित्य ऐसे हैं, जो कि अवधी भाषा में ही मौजूद हैं। खासतौर सूफी साहित्य को अवधी में खास स्थान दिया गया है। सूफी कवियों में कई सारे कवियों ने अवधी भाषा में ही साहित्य की रचना की है। आइए जानते हैं विस्तार से।
कैसे हुआ अवधी साहित्य का विकास
अवधी भाषा से तुलसीदास का नाता गहरा रहा है। राम काव्यधारा में गोस्वामी तुलसीदास ने अवधी भाषा को विशेष स्थान दिया है। तुलसीदास ने अवधी बोली में रामचरित मानस के जरिए विश्व कीर्ति प्राप्त की है। कई सारे ऐसे संत रहे हैं, जैसे मोहन साईं, जगजीवन साई और अन्य कवियों ने अवधी भाषा में ही अपनी रचनाएं लिखी है। अवधी का प्राचीन साहित्य अपनी लेखनी के लिए लोकप्रिय रहा है। यह भी जान लें कि अवधी का प्राचीन साहित्य काफी संपन्न रहा है। साथ अवधी साहित्य सबसे अधिक भक्ति काव्य में दिखाई पड़ता है। यह भी जान लें कि प्राचीन अवधी साहित्य की दो शाखाएं भक्ति काव्य और प्रेमाख्यान काव्य है।
जानिए क्या है भक्ति काव्य और अवधी साहित्य का रिश्ता
गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना अवधी भाषा में की है। इसके साथ ही तुलसीदास की रचना रामचरित मानस को अवधी भाषा की सबसे प्रमुख और लोकप्रिय रचना का सम्मान प्राप्त हुआ है। तुलसीदास ने न सिर्फ रामचरित मानस बल्कि कई सारी रचनाओं को अवधी भाषा में लिखा है, जो कि अवधी साहित्य की सबसे प्रमुख रचनाएं हैं। आप यह भी कह सकते हैं कि अवधी साहित्य की शुरुआत तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ से हुई थी और इसकी शब्दावली पूरी तरह से संस्कृत भाषा से भरी हुई दिखाई पड़ती है। भक्ति काव्य इसलिए भी खास माना जाता है, क्योंकि इसी साहित्य में ‘अवधबिलास’ का भी नाम शामिल है। इसकी रचना 1700 के दशक के करीब की गई थी। तुलसीदास के बाद कई सारे कवियों ने अवधी साहित्य के चलन को आगे बढ़ाया है। इसमें एक नाम शामिल है बाबा मूलकदास का। मूलकदास अवधी क्षेत्र से ताल्लुक रखते थे, इसलिए उन्होंने भक्ति काव्य की रचना भी अवधी भाषा में की। मूलकदास के जितने शिष्य हुए है, उन्होंने भी अवधी भाषा में कई सारे भक्ति काव्य की रचनाएं की। इसमें से एक नाम उनके शिष्य मथुरादास का भी रहा है। मूलकदास के बाद धरनीदास बाबा ने भी अवधी भाषा में अपने कई सारे काव्य जिसे बानी कहा जाता है, उसकी रचनाएं की। इसके साथ उस दशक के कई सारे अन्य संतों ने भी अपने भक्ति काव्य की रचना अवधी भाषा में की है। अवधी साहित्य अपने शुरुआती दौर में भक्ति आधारित रहा है, जहां संतों ने अपने मन के भक्ति भाव को अवधी भाषा में बतौर बानी के तौर पर प्रस्तुत किया।
जानिए क्या है प्रेमाख्यान काव्य
प्रेमाख्यान काव्य में मुख्य तौर पर सूफी का वर्चस्व दिखता है। प्रेमाख्यान के अंतर्गत आने वाली सबसे लोकप्रिय ग्रंथ मलिक मुहम्मद जायसी रचित ‘पद्मावत’ है, इसकी रचना तुलसीदास की ‘रामचरितमानस’ से चौंतीस साल पहले हुई थी। उल्लेखनीय है कि प्राचीन अवधी साहित्य का दायरा काफी बड़ा रहा है। प्राचीन अवधी साहित्य की रचनाएं देशप्रेम, समाजसुधारक, महिला विकास जैसे चर्चित विषयों पर आधारित रही है, जो कि खास तौर पर व्यंग्यात्मक लिखावट के साथ अवधी में लिखी गई है। प्राचीन अवधी साहित्य के कवियों पर गौर किया जाए, तो इसमें प्रतापनारायण मिश्र, वंशीधर शुक्ल, रमई काका और शारदाप्रसाद का नाम शामिल है। दूसरी तरफ अगर वर्तमान के अवधी साहित्य की बात की जाए, तो इसमें विश्वनाथ पाठक, रमई काका, विकल गोंडवी, जुमई खां आजाद, जगदीश पीयूष विक्रम मणि त्रिपाठी और डॉक्टर शिवम तिवारी के साथ कई अन्य अवधी साहित्यकारों का नाम शामिल है।
कब मिले अवधि साहित्य के पहले चिन्ह
अवधी के प्राचीनतम निशानी सातवीं शताब्दी में मिले हैं। इसे अवधी साहित्य का शुरुआती समय माना गया है। इसकी अवधी 1400 ई. के करीब की रही है। आपको बता दें कि अवधी साहित्य के मध्यकाल को इसका सबसे श्रेष्ठ काल माना जाता है। अवधी साहित्य का मध्यकाल 1400 से 1900 ई के बीच का रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि अवधी साहित्य के मध्यकाल में ही भक्ति काव्य और प्रेमाख्यान काव्य का उद्य और विकास भी हुआ है। दिलचस्प है कि प्रेमाख्यानक काव्य से ही प्रेरित होकर एक नए काव्य की रचना हुई जिसे चरितात्मक काव्य कहा जाता है। चरिताम्क काव्य में सबसे अधिक चर्चा राम,कृष्ण के साथ सीता, हनुमान पर की गई है और इन सभी रचनाओं और लोकगाथाओं की रचना अवधी में ही की गई है।
अवधी भाषा का आधुनिक युग
उन्नीसवीं सदी के दौरान अवधी साहित्य का आधुनिक युग रहा है। 1857 के दशक के दौरान कवियों ने आधुनिक अवधी साहित्य में सभ्यता, संस्कृति, जीवन और समाज पर रचनाएं लिखीं। अवधी माटी की भाषा है, शायद इसी वजह से अवधी में किसान काव्य सबसे अधिक लिखे गए हैं। किसान काव्य के जरिए कवियों ने खेती की व्याख्या अपने शब्दों में अवधी भाषा में की है। यहां पर लहराते हुए खेत, ग्रामीण व्यवस्था के साथ प्रकृति को लेकर कई सारी रचनाएं अवधी में लिखी गई है। आधुनिक अवधी साहित्य में बलभद्र प्रसाद दीक्षित यानी कि पढ़ीस का नाम चर्चा में रहा है। पढ़ीस ने आकाशवाणी लखनऊ में अवधी में कई सारे कार्यक्रम शुरू किए। पढ़ीस जी को अवध के पहले किसान कवि के तौर पर पहचाना जाता है। उन्होंने ग्रामीण मजदूर, किसान, महिलाओं के साथ खेती और उसके विकास को लेकर कई सारे काव्य अवधी में लिखे हैं। रमई काका ने अवधी साहित्य को नई साहित्यिक समृद्धि प्रदान की है। यही वजह है कि उन्हें अवधी के आभूषण की उपाधि दी गई थी। रमई काका मुख्य रूप से व्यंग्य कवि थे। उनकी सबसे लोकप्रिय अवधी कविता हास्य के छींटे और दो छींकें रही हैं। उल्लेखनीय है कि उनकी कई रचनाएं खड़ी बोली में हैं, लेकिन उनकी पहचान हमेशा अवधी साहित्य से रही है।
अवधी साहित्य के निशान
अवधी साहित्य के निशान प्राचीन ग्रंथों में कई जगह दिखाई दिए हैं। हिंदी के प्राचीनतम ग्रंथ रोडा कृत राउरबेल में साहित्यिक अवधी के उदाहरण दिखाई देते हैंं। इसे 11वीं शताब्दी के प्रथम चरण में रचा गया था। दूसरी तरफ हेमचंद के व्याकरण और काव्यातुशासन में भी प्राचीन अवधी का प्रयोग किया गया है। अवधी भाषा के साथ अवधी साहित्य का उल्लेख अमीर खुसरो ने अपने ग्रंथ खालिकबारी में किया है। उल्लेखनीय है कि साहित्यिक भाषा के तौर पर अवधी को खुल कर बाहर आने का अवसर मलिक मुहम्मद जायसी को जाता है। उन्होंने ठेठ अवधी भाषा का प्रयोग करते हुए चौदह ग्रंथों की रचनाएं की है।
आसान अवधी भाषा का प्रयोग
अवधी भाषा की ध्वनियां उच्चारण में काफी सहज होती है। इसी वजह से इसे अवधी भाषा के जानकार साहित्यकारों के साथ उन साहित्यकारों ने भी अपनाया जो कि अवधी भाषा से अनजान थे। इसी वजह से गैर अवधी क्षेत्र के साहित्यकार भी अवधी भाषा में साहित्य रचते थे और अपनी क्षेत्रीय भाषा को उसमें शामिल करते थे। शायद यही वजह है कि अवधी साहित्य की लोकप्रियता अवक्ष क्षेत्र के बाहर के शहरों में भी रही है। अपने साहित्य के चलते अवधी ने पुरानी हिंदी को भी कई स्तरों पर भी प्रभावित किया।