“इतना काम पूरा करना है. पूरा हो जाए तभी क्लास अटेंड करने को मिलेगी, नहीं तो नहीं. जिसे ऑब्जेक्शन हो वो इस गोले में आकर बोले.” सीनियर अविचल अपनी ज़ोरदार घुड़की से डरे चेहरों को देख रहा था कि एक बला का ख़ूबसूरत और चंचल चेहरा भोलेपन, बेचारगी और मायूसी का नक़ाब ओढ़े धीरे-धीरे चलकर सीनियर्स के बनाए गोले पर आकर खड़ा हो गया.
“ऐज़ यू विश योअर ऑनर, हम एक टाइम-टेबल बनाकर सारा काम पूरा करेंगे. पर आप लोग तो हमारे वेल विशर हैं. हमारी पर्सनालिटी ग्रूम करने के लिए ही तो ये सब कर रहे हैं. आप हमारी क्लास थोड़े ही छुड़ाएंगे.”
मेधा की झुकी नज़रों से भी सतर्कता, गुरूर और चपलता की बिजलियां कौंधती देख अविचल के चेहरे पर ओढ़ी नकली सख्ती को परे धकेल रीझी सी मुस्कान आ गई, “हूं, गुड कॉन्फिडेंस. कीप इट अप!”
एक फ्रेशर को बात काटने के बावजूद इतनी आसानी से जाने देने पर ऑब्जेक्शन तो बाक़ी सीनियर्स को होना था. लेकिन अविचल ने सबको टोक दिया, “जाने दे यार. इंटेलिजेंट भी है और स्वीट भी.” सुनकर कूलर के टुल्लू ने एक मीठी फुहार छोड़ी और पंखे के कान में शरारती वाक्य फूंक दिया– “फ़र्स्ट साइट लव, देख लेना”
अविचल की निगाहें मेधा के इर्द-गिर्द घूमती रहीं. मेधा ने भी उसके ऊंचे क़द, सीधी तनी चाल, आकर्षक चेहरे से प्रभावित होकर अपने क्लोज़ सर्कल में उसे मिस्टर हैंडसम का नाम दे दिया था. रेगिंग ख़त्म हुई, फ्रेशर पार्टी भी हो गई, अविचल ने अपने पुराने नोट्स भी मेधा को ही दिए, बहुत से फ़ेवर भी किये और भी बहुत से मौक़े आए-बातों और मुलाक़ातों के. लेकिन घड़ी की सुइयां अपने नीरस एकचकरे में घूमते जीवन से तंग आकर जब भी उनकी कहानी पर कान लगातीं, उन्हें मायूसी ही हाथ लगती.
मेधा की खोई हुई सी आवाज़ में मायूसी थी, “सोच रही थी आज लैब का एक्सपीरियंस कितना थ्रिलिंग था. सारे ऑर्गन्स… नैचुरल ऑर्गन्स. पर शीशे में! पता है दिल को तो मुझे छूकर देखने का मन कर रहा है, कहीं से एक हार्ट मिल जाए…’’
कैंटीन के एक रुटीन में घूमते पंखे की उत्सुकता बढ़ गई. उसने सुकेश के उत्तर पर कान उचका दिए, ‘‘हाय! हाय! एक हार्ट? तुम इशारा तो करो मेधा, मेडिकल कॉलेज का गार्डेन दिलों से पट जाएगा.”
पर मेधा की चिढ़ ज़्यादा रोमांचक थी, “कम ऑन गाइज़. फ़्लर्ट का ही मूड है तो कुछ नए तरीक़े ईजाद करो. क्या वही घिसा-पिटा पुराना जुमला. मेडिकल के स्टूडेंट्स होकर तुम दिल के बारे में ऐसे कैसे इल्लॉजिकल बात कर सकते हो? हुंह… दिल बिछ जाएंगे.’’
इस पर सुकेश नीचे घुटनों के बल बैठ गया और पंखे के साथ बाक़ी सारी कुर्सी-मेजों के कान भी उधर लग गए, “ओके. मैं ट्राई करता हूं. मेधा, जबसे तुम्हें देखा है. मेरे सपने इंद्रधनुषी हो गए हैं...”
लेकिन उसके हाथ पकड़ते ही मेधा ने झटक दिया, “अब ये क्या नया ड्रामा है?”
‘‘अभी-अभी तो तुमने फ़्लर्ट की इजाज़त दी. शर्त इतनी ही तो रखी थी कि डायलॉग्स नए होने चाहिए. कसम से हफ़्ते में दो फ़िल्में देखता हूं, अभी तक ये डायलॉग्स नहीं सुने कहीं.’’
मेधा सिर हिलाती चल दी तो सुकेश की आवाज़ ने उसका पीछा किया, ‘‘अरे मेधा, दिस इज़ नॉट फ़ेयर. मेरे पास एकदम नए डायलॉग्स हैं, एक बार मौक़ा तो दो.’’
मेधा ने मुड़कर देखा. कांटे, चम्मच, प्लेट के पार्श्व संगीत सुनकर उसका स्वर शरारती हो गया, “और अगर नए न हुए तो...”
‘‘तो… तो, तो ब्रेकअप कर लेना. लगी शर्त?’’
मेधा के चेहरे पर एक गुरूर भरी मुस्कान बिखर गई, “तुम नहीं सुधरोगे, मिस्टर हीरो” और वो तेज़ क़दमों से आगे बढ़ गई.
शाम को नियत समय पर वीडियो कॉल किया तो मां की हंसी बोली, “देख जैसे ही प्यार तेरे दिल की दहलीज़ पर दस्तक दे, मुझे बताना ज़रूर.”
“मैं आज तक कभी हारी नहीं. मुझे ज़िंदगी से दि बेस्ट चाहिए इसीलिए सात तालों में बंद करके रखा है अपना दिल. उस पर दिमाग़ का पहरा है. मेरी तस्दीक पूरी होने से पहले जो भी आएगा; ताले देखकर ही लौट जाएगा. दस्तक की नौबत नहीं आएगी.”
मां की अनुभवी पलकें मुस्कुरा उठीं, “अब तो ताले खोल दे बेटा, धूप तो दिखा ले, कहीं सील न जाए…”
पर मेधा फ़ोन काट चुकी थी. घड़ी ने कह दिया था- मां से बात करने का समय ख़त्म, नोट्स बनाने का शुरू.
“अगर ये सारे सिमटम्स हैं, जो कि अक्सर एक साथ ही होते हैं तो ये चार टेस्ट एक साथ कराने होंगे. और एंटीबॉयटिक का कोर्स रिपोर्ट आने के तुरंत बाद ही शुरू करना होगा. एनी क्वेश्चन?”
लेक्चरर ने येस बोला तो मेधा ने पलटकर देखा. लास्ट बेंच से एक हाथ उठा था.
‘‘सर, हम लोग सिमटम्स को टेस्ट के साथ बायफ़रकेट कर के समझ सकते हैं क्या? मैं ये इसलिए कह रहा हूं क्योंकि कई बार महंगे टेस्ट सबके लिए अफ़ोर्डेबल नहीं होते. फिर एक साथ चार?” वो लास्ट बेंचर सकुचाते हुए बोला.
“नाइस क्वेशचन. मुझे ख़ुशी है कि नई जेनरेशन में इतनी संवेदनशीलता है. आज भी मरीज़ के पैसों के बारे में सोचने वाले लोग हैं. बट आई ऐम सॉरी माई चाइल्ड, हम एक-एक टेस्ट करा कर इलाज शुरू करने में देर करने का रिस्क नहीं उठा सकते.’’
‘ये लास्ट बेंचर क्वेश्चन बड़े रेलेवेंट पूछता है’ मेधा के दिल में उसे जानने की जिज्ञासा रहती है, पर बातचीत में पहल करना उसके गुरूर को गंवारा नहीं.
झा सर अपने मज़ाकिया अंदाज़ में ब्लैक बोर्ड पर ब्रेन का डाइग्राम पूरा कर के बोले, “तो ये हैं हमारे ब्रेन मास्टर. इन जनाब का वेट पूरे शरीर का दो प्रतिशत होता है पर पूरे शरीर की बीस प्रतिशत ऑक्सीजन और पानी अकेले सटक जाते हैं ये.”
“बस सर? हमारी मेधा तो पूरे लेक्चर्स का अस्सी प्रतिशत ज्ञान अकेले सटक जाती है” सविनाश की टिप्पणी पर क्लास में हंसी का दौर चल पड़ा और हर्ष ने जोड़ा, “और हमारे अकिंचन पूरी क्लास का अस्सी प्रतिशत पुण्य अकेले सटक जाते हैं.”
‘अस्सी प्रतिशत पुण्य? क्या मतलब? कौन है ये अकिंचन?’ हुंह, कोई भी हो.’ लेक्चरर बोलना शुरू कर चुके थे और जिज्ञासु मेधा की जिज्ञासा उधर मुड़ चुकी थी.
“आज क्लास में कुछ अधूरापन है. हां, मेधा दिखाई नहीं दे रही?” झा सर के पूछने पर निधि ने बताया, “उसे बुखार है.” निधि को पता नहीं था कि लास्ट बेंचर अकिंचन का चेहरा कितना उदास हो गया है.
अकिंचन फुर्ती से स्टेशनरी स्टोर गया और अगले पीरियड्स में अपने पेपर के नीचे कार्बन पेपर रखकर लिखता रहा. अंतिम लेक्चर के बाद निधि को दिया. निधि ने शरारत से मुस्कुराकर उसे देखा तो उसने झेंपकर सिर झुका लिया.
नोट्स पाकर मेधा एक्साइटेड हो गई, “थैंक यू, सो मच. दिल चाहता है तेरे हाथ चूम लूं.”
निधि की शरारत इठलाई, “तो चूम लेना अकिंचन के हाथ, जब मिलना तो…”
मेधा के चेहरे पर उलाहना पगा प्रश्न आ गया, “ये अकिंचन कौन है? अरे हां, ये नाम मैंने हमेशा अपने नाम के नीचे देखा है. एक बार तो मुझसे एक ही नंबर कम आया है. मैं बाई फ़ेस इसे नहीं पहचानती. मगर मेरा कम्पिटीटर होकर मेरी मदद क्यों कर रहा है?”
निधि का चेहरा शरारत के साथ उपेक्षा भरी शिकायत में हिला, “क्योंकि मदद इसकी हॉबी है. तुझे याद है जो लड़का एक दिन माली की सहायता कर रहा था, ये वही है. गांव में लगने वाले हेल्थ कैंप में भी ज़रूर जाता है और हर्ष उस दिन पुण्य सटकने वाली बात इसी...”
नोट्स की पड़ताल करती मेधा की जिज्ञासा दूसरी ओर मुड़ चुकी थी, “मगर फ़र्स्ट पीरियड के नोट्स कहां हैं?”
अब निधि के सिर पीटने की बारी थी.
अकिंचन ने अपने नोट्स दूसरे कागज़ पर उतारे, फिर दूसरे दिन के कार्बन लिखे नोट्स के साथ निधि को पकड़ाए, “ये जो हैंड रिटेन वाला है वो कल के फ़र्स्ट पीरियड का है.” निधि ने आश्चर्य से देखकर ‘दोनों एक से हैं’ के भाव में सिर हिलाया फिर शरारती निगाहें उस पर टिका दीं, “मेधा ने पूछा है कि उसका कॉम्पिटीटर होकर उसकी मदद क्यों कर रहे हो?”
“मैं कभी अपने अलावा और किसी से कॉम्पिटीशन नहीं करता.” लापरवाह सा उत्तर देकर वो मुड़ गया.
मेधा मां के साथ वीडियो कॉल पर थी, “ये लड़का बिल्कुल तुम्हारी तरह है मम्मी. निधि से उसकी बात सुनकर बचपन की याद आ गई. तुम कहा करती थीं न ‘यू शुड कॉम्पीट विद योअरसेल्फ़ ओनली.’ मेधा के चेहरे पर भावुकता पढ़ते ही मां की बांछें खिलीं, उसे दखते ही मेधा ने मन का झरोखा झटके से बंद किया, “प्रभावित नहीं हुई हूं उससे, बस लग रहा है कि दोस्त अच्छा बन सकता है शायद, वो भी ज़रूरतों के लिए.”
मां खिलखिला उठीं, “तो दोस्त बना ले. लेकिन दोस्ती में भी पहल करने में एक दिक्कत आएगी.” मां ने गंभीरता ओढ़ी पर मेधा ने देख लिया कि वो नकली थी. “तुझे अपना भारी-भरकम अहंकार धक्का देकर सरकाना पड़ेगा थोड़ा. मेरे पास एक आइडिया है. तू अपने ईगो की ट्राली में व्हील्स लगवा ले..” मां खिलखिला रहीं थीं और मेधा फ़ोन रख चुकी थी.
अगले दिन मूसलाधार बारिश हो रही थी और निधि बिस्तर में गरमाई अपने नए बॉयफ्रेंड की फ़ैंटसी में खोई थी कि मेधा ने उसे झिंझोड़ दिया, “उठ निधि, तुझे जाना नहीं है?”
“सोने दे यार. आज तो बारिश हो रही है.”
“उठ न. स्कूल थोड़े ही है जो रेनी डे हो जाएगा?”
“हां यार. स्कूल थोड़े ही है, जो टीचर कल ऐब्सेंट होने का कारण पूछेंगे.”
“यार. मेरी खातिर चली जा. मेरे नोट्स भी तो लाने हैं.”
“ओहो. तो ये बात है मेरी आइंसटाइन, इसलिए मेरी फ़ैंटसी ख़राब की.” निधि मुंह आगे करके मद भरी शरारत से मुस्काई, “जा, नहीं जाती मैं और तेरे अकिंचन को आना हो तो ख़ुद आए नोट्स देने.”
बेचारा तकिया मुफ़्त में निधि और चिढ़ी मेधा के बीच पिटता रहा.
ठीक छः बजे मेधा ने खिड़की से देखा. तूफ़ानी बारिश में बरसाती पहने एक लड़का, हां, लड़का ही था..वार्डन का बुलावा..उसके हाथ से नोट्स पकड़ते हुए कैसे आश्चर्य का भाव उनके चेहरे पर… फिर नोट्स लेकर अविश्वास से आगे-पीछे अच्छी तरह चेक करना… लड़के को प्रशंसा से देखकर जाने की इजाज़त देना… मेधा को नोट्स पकड़ाते हुए मुस्कान छिपाने के प्रयत्न में रहस्यमई हो गई आंखें…लड़कियों का छेड़ना…
“ये ज़माना फालतू में साधारण चीज़ों को रोमांटिक बना देता है…” मेधा की भंगिमा वीडियो कॉल पर मां से सारे ज़माने की शिकायत में उलझी थी, “कोई लड़की मेरे लिए ये सब करती तो..”
“तो तू ठीक होते ही उसे जादू की झप्पी देने जाती और...” कहना न होगा घड़ी का आदेश मेधा से फ़ोन कटवा चुका था.
कॉमन रूम में नोट्स बनाते अकिंचन से मेधा मिलने गई. ओह! रेलेवेंट क्वेश्चन करने वाला लास्ट बेंचर! मेधा ने उसे एक कार्ड दिया. उसमें कलात्मक ढंग से स्माइली के साथ थैंक यू और फिर नीचे लेट्स बी फ्रेंड्स लिखा था. अकिंचन सकुचा गया और मेधा ने उसकी ओर मुस्कुराकर हाथ बढ़ा दिया. बहुत झिझकते हुए अकिंचन ने हाथ मिलाया. “इतने इंटेलिजेंट होकर तुम लास्ट बेंच पर क्यों बैठते हो?”
“वो कुछ स्टूडेंट्स ऐसे हैं, जो रीजनल लैंग्वेज से पढ़कर आए हैं; मेरे दोस्त हैं वो. उन्हें इंग्लिश कुछ कम समझ आती है. मेरे साथ होने से उन्हें अच्छा लगता है, कॉन्फ़िडेंस मिलता है.” मेधा प्रशंसा में मुस्कुराकर उठ गई.
कमरे में आकर अकिंचन उसका कार्ड बहुत देर तक देखता रहा. फिर सीने पर रखकर सो गया. उसे आज इतनी जल्दी ऑफ़ कर दिए जाने से चिढ़ने वाले टेबिल लैंप की जलन से कोई मतलब न था.
“स्साला इस सेमेस्टर का शेड्यूल ही बकवास है. अब तो छः महीने तक यही रहने वाला है. जल्द ही एक चटाखेदार रंगीन पार्टी नहीं की तो हम सब खच्चर बन जाएंगे.” सुकेश ने सोडे की चुसकी लेते हुए मुंह बिचकाया तो हर्ष ध्वनि से पूरी कैंटीन भर गई. मेधा के गुरूर को पता था कि अकिंचन दूर उन लास्ट बेंचर्स के साथ बैठता है पर उसकी निगाहें मेधा को निरखती रहती हैं. उसने निगाहों में ही उससे पूछने के लिए उधर देखा तो वो उठकर जा रहा था.
“प्रोग्राम बना लो, पर पहले फ़िल्म चलेंगे.” फ़िल्म रोमांटिक थी. हॉल की सीटों को तो सुकेश की नेहा को एकटक निहारती निगाहों से सहानुभूति और मेधा की उपेक्षा से ग़ुस्सा आना ही था.
अविचल भी किसी न किसी बहाने मेधा को बुलाता रहता. पार्टियों में प्रशंसा का या उपहार का कोई मौक़ा न छोड़ता. घड़ी की सुइयां और कलेंडर के पन्ने दूसरे जोड़ों को मस्ती करते देख अक्सर मेधा को डांटते, ‘तय कर ले, अब तो तय कर ले, किसी दिन अविचल या सुकेश ने स्पष्ट पूछ लिया तो क्या जवाब देगी?’ तभी अकिंचन का सकुचाया हुआ चेहरा उनके चेहरों को ढकेल देता, ‘मैं नहीं पूछ पाऊंगा, तुम ही पूछ लो’ तभी मेधा का पेन, उसका नोट-पैड और उसकी डिजिटल टाइम-टेबल डायरी मिलकर उन्हें धमका देते – ‘ऐसी भी क्या जल्दी है? पूरी उम्र पड़ी है सोचने के लिए. लेकिन अगर पढ़ाई से ध्यान भटका तो टॉप हॉस्पिटल के कैंपस इंटरव्यू में सेलेक्शन का सपना…
वैलेंटाइंस डे और ऐसी ही कई पार्टियों पर लाल गुलाब और मंहगे कार्ड मेधा को जीवन की ख़ुशकिस्मती से भागने का उलाहना देते, अविचल और सुकेश की वक़ालत करते. और उसकी निगाहें अकिंचन को ढूंढ़ती रहतीं. जब कॉमन रूम की कुर्सी अकिंचन की वक़ालत करती तो मेधा की अपनी ही नज़र शिकायती हो जाती, ‘मैं बात करती हूं तो वो सिर हिलाकर मुस्कुराता रहता है. जाने बोलना कब सीखेगा ये नीरस, घोंचू..’
वो बोलना सीखता, उससे पहले कलेंडर के पन्नों ने अविचल को धमका दिया और उसने मेधा को बुला भेजा, “मेधा, मैं कॉलेज छोड़ने से पहले तुमसे कुछ कहना चाहता हूं. तुम्हें तो पता ही है कि मैं यूएस में सेटल होना चाहता था और मुझे वहां से ऑफ़र मिल भी गया है. जब तक परमानेंट सेटलमेंट नहीं हो जाता, मैरिज के बारे में तो सोचना भी नहीं है. तब तक तुम्हारी पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी.” अविचल को सीधे अपनी आंखों में देखते देख मेधा की आंखों में प्रश्न आ गए.
“फ़ॉर मैरिज, यू आर माई फ़र्स्ट चॉइस. आज से नहीं, जिस दिन से तुम्हें पहली बार देखा है उसी दिन से. मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा. आई लव यू मेधा…”
मेधा की पलकें झुक गईं और अविचल उसके हाथ में एक महंगा और ख़ूबसूरत कार्ड पकड़ाकर निकल गया, जिस पर आई लव यू लिखा था.
मेधा के चेहरे पर ख़ुशी भी है, सकुचाहट भी, उलझन भी. पलकें मूंदी तो अकिंचन का चेहरा सामने आ गया फिर सुकेश का. फिर अकिंचन का चेहरा जैसे अविचल और सुकेश के चेहरे को धकेल कर स्थिर हो गया. घड़ी की सुइयां असमंजस में टिकटिकाती रहीं और कलेंडर के पन्ने उहापोह में फड़फड़ाते रहे..
और एक दिन लगता था सुकेश की घड़ी ने भी उसे अल्टीमेटम दे दिया कि अब उसने साफ़ नहीं बोला तो वो अपने चकरे पर घूमते हुए उसे देखना बंद कर देगी. तो उसने मेधा को कैफ़े में इनवाइट किया और सीधे उसकी आंखों में देखकर, भाव उड़ेल दिए, “तुम जानती हो कि मैंने पहले भी बहुत तरीक़ों से कहने की कोशिश की है पर आज मैं तुमसे साफ़-साफ़ कहना चाहता हूं. आई लव यू मेधा.‘‘ यह कहते हुए वह मेधा के और क़रीब आ गया, ‘‘तुम्हें तो पता है, मेरे पापा का नर्सिंग होम है. मैं उनकी अकेली संतान हूं और सेटलमेंट को लेकर न मुझे कोई प्रॉब्लम है और न ही तुम्हें होगी. मैं तुम्हें बहुत ख़ुश रखूंगा. इस आत्मविश्वास के साथ उसका चेहरा रोमांटिक ढंग से मेधा के चेहरे के क़रीब आ गया जैसे मेधा की हां तो श्योर है.
मेधा ने झटके से उठकर दूरी बना ली, “मैं तुम्हें सोचकर बताती हूं.”
“क्या मम्मी, मिस्टर हैंडसम ने तो दो साल पहले प्रपोज़ कर दिया था. आज मिस्टर हीरो ने भी कर दिया.”
“और तू दोनों के व्यक्तित्व और यूएस की और यहां की ज़िंदगी में अपने सपनों के हिसाब से बराबर के प्लस-माइनस आंक रही है. तो क्या सोचा है तूने?”
“सोचना क्या है! क्या मैं जानती नहीं कि ये लोग प्यार के लव्ज़ों में लपेटकर ‘डील’ फ़ाइनल करना चाहते हैं. इतने साल साथ रहे हैं, लेकिन हैं सिर्फ़ मस्ती के साथी. मेरे दुख, तकलीफ़ से कभी मतलब नहीं रहा इन्हें. संवेदनशीलता, जो जीवन के लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है, वही नहीं है किसी में. अगर डील ही करनी है तो स्टैब्लिश होने के बाद भी बहुत मिलेंगे. उनकी तथाकथित व्यावहारिकताओं से ये ख़लिश तो नहीं होगी कि ये जो व्यापारी है, वो कभी प्यार करता था... मनपसंद करियर और लाइफ़-स्टाइल तो मैं अपनी प्रतिभा से ही अर्जित कर लूंगी. उसके लिए मुझे किसी डीलर की क्या ज़रूरत! ”
“और अकिंचन? क्या नाम रखा है तूने उसका? हां, गोब्दू?”
“वो नीरस घोंचू? हैंडसम नहीं है तो चलो कोई बात नहीं, चाल-ढाल झल्लों जैसी, चलो कोई बात नहीं, पर लगता नहीं वो कॉलेज छोड़ने के पहले कुछ बोल पाएगा...गोब्दू कहीं का…”
“तो तू तो बेबाक, बिंदास है. तू उसकी पूरक है. अपनी ख़ुशी अपने दामन में समेटने में तू क्यों हिचकिचाती है? तू बोल दे…”
“बिल्कुल नहीं. उसने कभी ऐसी कोई हिंट तक नहीं दी… ऐसे कैसे मैं…”
“जब भी तू बीमार पड़ती है, तेरे नोट्स बनाता है, कोर्स कवर करवाता है, और भी बहुत सहायताएं... तूने ही बताईं हैं. उसके आधे अधूरे वाक्य और तुझे ख़ुश होते देख उसकी निगाहें… ये सब भी तो हिंट्स ही हैं…”
“मदद…? वो तो शायद इसलिए कि मदद करना उसकी हॉबी है. जैसे वो किसी को दुखी नहीं देख सकता, वैसे ही मुझे भी नहीं. शायद वो मुझसे प्यार नहीं करता मम्मी. वो इनकार भी कर सकता है, जो मैं सुन नहीं सकती..” मेधा की पलकें भर आईं पर इतनी गहरी मायूसी प्रकट होते ही जैसे दिमाग़ ने डपटा, “और फिर मेरे अपने सपने हैं. मुझे ज़िंदगी से सब कुछ चाहिए. वो बोलेगा, तभी तो अपनी शर्तें रख पाऊंगी. नहीं, मैं पहले नहीं बोलूंगी.”
पर मां तो मां होती है. वो मेधा की मायूसी की गहराई नाप चुकीं थीं. उनकी पलकें भर आईं. तभी उन्होंने उनका पानी झटककर मेधा का ध्यान खींचा, “ले तेरी बातों के चक्कर में अपना एक काम कहना तो मैं भूल ही जाती हूं.”
“बताओ, बताओ” मेधा की मायूसी भी अपनी निराशा से भागने का मौक़ा देख चहक उठी.
“तूने फ्री टाइम में कोडिंग सीखी है और ऐप बनाती है. मेरे लिए एक ऐप बना देगी? समय है?”
“बिल्कुल मम्मी, तुम्हारे लिए समय कैसे नहीं होगा? बताओ अपनी रिक्वायरमेंट्स..”
और मम्मी शुरू हो गईं,‘‘ देख,…”
“इंपॉसिबिल मम्मी, ऐसी ऐप नहीं बन सकती.”
“क्यों? तू तो कहती है तेरे लिए कुछ भी इंपॉसिबिल नहीं?”
“अरे मम्मी, तुम जो फ़ीचर्स बता रही हो, वो अपोज़िट हैं. एक ऐप में नहीं आ सकते. देखो…”
ये तो इनसानी बुद्धि से सामने वाले को समझकर बनाई जाने वाली चीज़ है. इसमें सारे मनपसंद फ़ीचर्स नहीं हो सकते तो सोच एक इनसान में, एक ज़िंदगी में कैसे तेरे सारे मनपसंद फ़ीचर्स हो सकते होंगे. विचार करना.”
बात मेधा के मन में गहरे उतर गई. आज बिस्तर उसकी उहापोह का ख़ामोश गवाह था. तकिया, टेबल लैंप, नोट-पैड, सब परेशान थे.
नींद शायद सारी रात आई नहीं. तीनों चेहरे एक-दूसरे को धकेलते रहे. सुबह उठा नहीं गया. थर्मामीटर मुंह से निकला तो कांप उठा और निधि इमरजेंसी की ओर दौड़ी. क्लास जाने लायक़ होने में चार दिन लग गए.
“जितना समझा था, सब बता दिया. अब बस भी कर.” निधि झुंझलाई. “फिर मैं क्या करूं? झा सर छुट्टी पर गए हैं. लास्ट सेमेस्टर है. मैं सेकेंड आकर अपना रिकॉर्ड नहीं तोड़ना चाहती.” मेधा की फ्रस्टेटेड आवाज़ अकिंचन के क़दम वहां खीच लाई.
“कौन सा डाइग्राम है जो नहीं समझ आ रहा? मुझे बताओ. ठीक है, देखो…”
“दो-तीन चीज़ें समझ नहीं आईं.”
“ऑफ़-कोर्स, अब मैं झा सर जैसा तो नहीं समझा सकता, सॉरी…”
“नो, नो, इट्स ऑल राइट, तुमने निधि, सुकेश और प्रथम से तो बहुत अच्छा समझाया, थैंक्स. अच्छा बस एक बात और बताओ…”
अकिंचन की रीझी निगाहें समझाने में व्यस्त थीं और मेधा का फ़र्स्ट आने का जुनून समझने में. उन्हें क्या मतलब कि कॉमन रूम के झरोखे, खिड़कियां क्या देख, सुन और समझ रहे थे.
हां, फर्स्ट आकर ख़ुशी से उछलते हुए ख़ुद पर एकटक गड़ी अकिंचन की मुस्काती नज़र मेधा के दिल में गहरे उतर गई. वो कुछ अलग ही ख़ुशी थी, जो उसकी आंखों में झलक रही थी. इन चार दिनों में भी जब बाक़ी स्टूडेंट्स फ़ाइनल एग्ज़ाम्स की तैयारियों में व्यस्त थे, अकिंचन सिक रूम में उसके सिरहाने एक बित्ते भर के स्टूल पर बैठा ही रहा था. कितना भावपूर्ण चेहरा लिए, कितनी बोलती आंखें लिए. इन बातों का ऐसा क्या असर पड़ा मेधा पर, जो उसके भाव कैंटीन की गपशप, कॉरीडोर के झगड़ों, हॉस्टल की नोकझोंकों को समझ नहीं आ रहे. मेधा को लग रहा था दिमाग़ पहरेदारी छोड़कर फ़िज़ूल के प्रश्नों में उलझा पड़ा है और अकिंचन नाम की हवा दिल के ताले तोड़ने लगी है. कुछ ताले टूट भी गए हैं क्या?
सुकेश की ईर्ष्या ने सूंघ लिया और चिंतित हो गई. तुरंत एक पार्टी ऑर्गनाइज़ की और एक ख़ूबसूरत गिफ़्ट आर्चीस गैलरी से कलात्मक बॉक्स में क़ैद हुआ और मेधा की स्टडी टेबिल पर आज़ाद हो गया. अविचल तक भी ख़बर पहुंचती रहती थी. यूएस के गिफ़्ट की क़ैद बहुत लंबी थी. पर वो भी कोरियर की ठोकरें खाता-पीता भी सही सलामत मेधा की टेबिल पर आज़ाद होकर ख़ुश था. उन्हें ख़ुद को ताकती, लेकिन अकिंचन के ख़यालों में खोई मेधा की निगाहों की समझ जो नहीं थी.
कलेंडर के पन्ने कुछ दिनों से उत्सुकता में ज़्यादा फड़फड़ाने लगे थे. बिदाई के दिन क़रीब आ रहे थे. दोनों हॉस्टल, कॉरीडोर्स, कॉमन रूम और क्या बताया जाए कौन-कौन इस प्रेम कहानी का अंत जानने को व्याकुल हो चुका था कि एक दिन ऐसा क्या हुआ कि दीवारों ने कुछ रोमांटिक सुनने की उत्सुकता में कान खड़े कर दिए.
“मेधा,” अकिंचन ने बड़े प्रयत्न से शब्दों को धक्का देकर मुंह से निकाला तो मेधा उत्सुकता से तुरंत पलट गई .
“कुछ देर बातें करने का मूड है?”
“हां, बिल्कुल. परसों से फ़ाइनल एग्ज़ाम्स हैं, उसके तुरंत बाद वापसी. फिर जाने कब मुलाक़ात हो. पर क्या बातें का मतलब हमेशा की तरह यही होगा कि मैं बोलूं और तुम सिर हिलाकर मुस्कुराओ?”
“नहीं, आज मैं बोलूंगा. आई मीन मुझे कुछ कहना है. तुम सिर हिलाकर मुस्कुरा सकती हो.”
मेधा उसे बोलने का इशारा करके बैठ गई और पूरे कैंपस के कान खड़े हो गए.
अकिंचन थोड़ी देर का चेहरा, नहीं पूरा व्यक्तित्व जैसे रुककर हिम्मत जुटाता रहा. थोड़ी देर बाद मेधा ने कान आगे करके भावों से ऐसा इशारा किया जैसे कह रही हो तुमने कुछ कहा क्या जो मुझे सुनाई नहीं दिया?
अकिंचन सिर हिलाकर मुस्कुरा दिया.
“ओके. आज हम दोनों सिर हिलाकर मुस्कुराते हैं. ठीक?”
“नहीं, आज तो मुझे कहना ही होगा. मेधा मैं तुमसे तुम्हारे सपनों के बारे में...मेरा मतलब है जीवन से तुम्हारी अपेक्षाओं के बारे में..मेरा मतलब है मैं तुमसे…मैं तुम्हारे साथ...’’
लेकिन दीवारों के कानों की किस्मत में कुछ तो खोट था. “शर्मा सर ने स्पेशल क्लास बुलाई है, तुरंत” चपरासी ऐसे प्रकट हुआ जैसे परियों की प्रेम-कथा में राक्षस…
“कल ही इसी टॉप हॉस्पिटल का कैंपस इंटरव्यू जिसमें जाना मेरा सबसे बड़ा सपना है? एक ही दिन में तैयारी करनी है? क्या तमाशा है? कितना टफ़ होगा..? कैसे होगा..? हद है...” मेधा ने नर्वसनेस और एक्साइटमेंट में अकिंचन के दोनों हाथ कसकर पकड़ लिए. उसके तनाव से दुखी अकिंचन की भावपूर्ण निगाहें और हाथों की थरथराहट पूरे हॉस्टल ने देखीं, सिवाय मेधा के.
पूरे एग्ज़ाम्स मेधा सोचती रही कि एग्ज़ाम्स के बाद अधूरी बात पूरी करने को कहेगी गोब्दू से...
पर उसका कमरा किसी अनजान कारण से एग्ज़ाम्स ख़त्म होते ही अचानक लौट जाने की ख़बर बताते हुए मेधा से ज़्यादा मायूस था.
“कम, कम माई चाइल्ड, आई ऐम प्राउड टु हैव स्टूडेंट लाइक यू, जो एक डाइग्राम में दो मार्क्स कटने पर उसे दोबारा समझना चाहते हैं. वो भी फ़ाइनल एग्ज़ाम्स और कैंपस सेलेक्शन के बाद.”
पूरा उत्तर समझने के बाद भी मेधा का जाने का मन नहीं हुआ. कैंपस काटने दौड़ रहा था. पता नहीं, कल फ़्लाइट तक का समय कैसे कटेगा.
“बेटा, मेरा एक काम करवा दोगी? मेरे ही सुझाव से तय हुआ है कि टॉप स्टूडेंट्स के एग्ज़ाम्स में बनाए डाइग्राम्स एक फ़ाइल बनाकर लाइब्रेरी में रखवा दिए जाएं, ताकि बच्चे उसे देखकर प्रेरणा ले सकें कि इतने कम समय में इतने अच्छे डाइग्राम्स बनाए जा सकते हैं. तो कॉपीज़ से उन्हें अलग करके फ़ाइल में अटैच करना है.” अनमनी मेधा को झा सर के आग्रह में समय काटने का बहाना मिल गया.
....ये क्या? अकिंचन की कॉपीज़ देखने पर ये कौन से खुलासे हो रहे हैं? ये क्या पहेली है. सारी कॉपीज़ में सारे प्रश्नों में पूरे अंक और एक प्रश्न छोड़ा हुआ? इनमें से कई उसके साथ डिस्कस कर चुका है वो. उसको आते थे ये सब. एक पूरा-पूरा प्रश्न हर एग्ज़ाम्स में छोड़ा हुआ! मेधा एक के बाद एक अगली कॉपी पर झपटती रही, फिर उंगलियां उस कॉपी पर पहुंच ही गई, ‘क्या नहीं समझ आ रहा बताओ’
‘जो डाइग्राम मुझे इतनी अच्छी तरीक़े से समझाया वो ख़ुद छोड़ आया? क्यों?’ मेधा की बुदबुदाहट झा सर ने सुन ली.
“क्योंकि उसे फ़र्स्ट आने से ज़्यादा ख़ुशी किसी को फ़र्स्ट आकर ख़ुश होते देखकर मिलती थी. बार-बार ऐसा होने पर मैंने उसे बुलाकर पूछा है और सिर झुकाए खड़ी उसकी संकोची आंखों में ये जवाब पढ़े हैं.”
मेधा की पलकों में अनुभूतियां गहराती जा रही थीं और उसकी मुस्कान विस्तारित होती जा रही थी. उसकी चेतना में मां के वाक्यों की अनुगूंज शोर मचाने लगी. “तूने वो गाना सुना है न, कोई शर्त होती नहीं प्यार में”
“जब कस्टमाइज़ कही जाने वाली ऐप में सारे फीचर्स नहीं हो सकते तो..” उसकी चेतना में बहुत कुछ स्पष्ट हो गया था. तीन अलग व्यक्तित्व और तीनों के साथ भविष्य में अलग जीवन, अलग धनात्मकताएं और ऋणात्मकताएं. अब वो अपनी शर्तों पर डील फ़ाइनलाइज़ करेगी या प्रेम-पहेली सुलझाने आगे बढ़ेगी, स्टाफ़-रूम की दीवारों के कानों की किस्मत में ये जानना नहीं लिखा था. पर मेधा जानती थी कि आज उसकी वो तलाश मुक़म्मल हो गई थी, जिसका उसे सालों से इंतज़ार था. बस उसे दामन में समेटने के लिए क़दम ख़ुद बढ़ाने की ज़िम्मेदारी उसकी थी. ‘तुम्हारे जैसी बेबाक, बिंदास, मेधावी और बहिर्मुखी लड़की के लिए कोई मुश्क़िल टास्क तो नहीं है ये’ झा सर की मुस्कान शायद यही कह रही थी.