हिंदी के गीत और गीतकारों की बात की जाये, तो हिंदी सिनेमा के इतिहास में ऐसे कई गीतकार रहे हैं, जिन्होंने साहित्य को तवज्जो दी है और हमेशा ही सम्मान किया है, कई ऐसे गीतकार हैं, जिन्होंने फिल्मों में लोक गीतों के साथ पूर्ण रूप से न्याय किया है। ऐसे में आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से।
शैलेन्द्र
शैलेन्द्र उन लेखकों में से एक रहे हैं, जिन्होंने आंचलिक गीतों और भाषाओं को अहमियत दी है। उन्हें लोकप्रिय भारतीय उर्दू-हिंदू कवि माना गया है। उन्होंने कई सारी भाषाओं और गीतों का लेखन किया है। खासतौर से फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास ‘मारे गए गुल्फ़ाम’ पर आधारित फिल्म ‘तीसरी कसम’ के गीतों में आंचलिक भाषा की पूरी परछाई नजर आती है। शैलेंद्र के गाने सजन रे झूठ मत बोलो, खुदा के पास जाना है आज भी काफी प्रासंगिक है और इन्हें सुनना कर्णप्रिय है। शैलेन्द्र ने अपने दौर की सामाजिक स्थिति, मध्यम वर्गीय परिवार से जुड़ीं संवेदनाओं और भावनाओं को बेहद अच्छे तरीके से लिखा और बुना है। यही वजह है कि नयी पीढ़ी भी उनके लिखे गीतों से काफी अवगत है। ‘गाइड’ फिल्म का गीत है वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जाना है कहां में भी जीवन का दर्शन छुपा हुआ है तो गीत ‘अल्लाह मेघ दे पानी दे रे’ में भी साहित्यिक गहराई नजर आती है। होंठों पर सच्चाई रहती है वाले गीत में एक सच्चे इंसान की झलक और गुण नजर आते हैं। दिल का हाल सुने दिलवाला के बहाने शैलेन्द्र ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई है। दरअसल, उनके कई गीतों में निष्पक्ष राजनितिक और सामाजिक दृष्टिकोण और मानवतावाद की झलक नजर आती है।
साहिर लुधियानवी
साहिर लुधियानवी मशहूर एक प्रसिद्ध गीतकार और शायर थे। साहिर को ‘युवा जोश का शायर’ माना जाता है। उनके बारे में आपको एक दिलचस्प बात तो जरूर जाननी चाहिए कि वे फिल्मी दुनिया में उर्दू के पहले शायर और गीतकार रहे हैं। उन्हें वर्ष 1970 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया है। उनका जन्म 8 मार्च, 1921 में लुधियाना पंजाब के करीमपुरा में हुआ था। वर्ष 1944 में उनका पहला संग्रह ‘तल्खियां’ प्रकाशित हुई थी, इस संग्रह की वजह से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली। उनके फिल्मी करियर की शुरुआत की बात करें, तो वर्ष 1949 में आई फिल्म ‘आजादी की राह’ से हुई। इस फिल्म के लिए उनके लिखे चार गीत काफी लोकप्रिय भी रहे। वर्ष 1951 में आयी फिल्म ‘नौजवान’ के लिए उन्होंने खूब सारे गीत लिखे। उनकी अगर रचनाओं की बात की जाए, तो अपनी शायरी और गीतों से उन्होंने हिंदी साहित्य और फ़िल्मी जगत में एक पुल का काम किया था और अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी। उनके शायरी संग्रह की बात करें, तो तल्खियां, परछाइयां, गाता जाए बंजारा, आओ कि कोई ख्वाब बनें लोकप्रिय हैं।
आनंद बक्शी
अगर आनंद बक्शी जैसे गीतकार की की जाए, तो उन्होंने 43 वर्षों तक लगातार एक के बाद एक अच्छे और और मनमोहक गीत लिखे। भगवान दादा ने उन्हें फिल्म बड़ा आदमी में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया था। उन्होंने लम्बे समय तक लेखन किया, उन्होंने फिल्म दिल तो पागल है के लिए भी लेखन किया।
नरेंद्र शर्मा
नरेंद्र शर्मा के लेखन की बात की जाए, तो उन्होंने गीतों से साहित्य को तवज्जो दी और एक पुल के रूप में भी काम किया। नरेंद्र शर्मा एक लोकप्रिय गीतकार रहे। उनकी पहली कविता चाँद में छपी थी। धीरे-धीरे उन्होंने एक खास पहचान बना ली थी। नरेंद्र शर्मा ने लगातार फिल्मों में आध्यात्मिक गाने लिखे। ज्योति कलश छलके, यशोमति मैया से बोले नन्द लाला, लाज रखो गिरधारी और नैया को खेवैया के किया हमने हवाले जैसे कई लोकप्रिय गीत लोकप्रिय रहे।
नीरज
नीरज भी उन कवियों और गीतकारों में से प्रमुख रहे हैं, उनका पूरा नाम गोपालदास नीरज रहा है और खास बात यह रही है कि उन्होंने साहित्य को अपनी लेखनी में हमेशा तवज्जो दिए हैं। गोपालदास का जितना लेखन साहित्य के क्षेत्र में रहा है, उतना ही उन्होंने फिल्मों के लिए भी अहम गीत लिखे हैं। उन्हें पद्म भूषण के साथ-साथ कई सारे पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। वे कवि सम्मेलन की जान रहे हैं। उन्होंने फिल्म ‘चंदा और बिजली’ के लिए गाने लिखे हैं, जिनमें काल का पहिया घूमे रे भईया, फिल्म ‘पहचान’ का गीत बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ जैसे उनके लिखे गीत आज भी बेहद पसंद किये जाते हैं और प्रासंगिक भी हैं। नीरज ने एक से बढ़कर एक हिंदी कविताएँ भी लिखी हैं। फिल्म ‘मेरा नाम जोकर’ का गीत ये दुनिया एक सर्कस है, ऐ भाई जरा देखके चलो आज भी सिने प्रेमियों में बेहद लोकप्रिय हैं। गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी 1925 में उत्तर प्रदेश के इटावा में हुआ था। छोटी-मोटी नौकरियां करते हुए उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी पहचान बना ली, फिर उन्हें अपनी लोकप्रियता के कारण मुंबई आने का न्योता मिला और फिर उन्होंने आकर इस कदर लिखा कि उस दौर के लोकप्रिय गीतकारों में उनकी पहचान हो गयी। खास बात यह भी रही कि आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए, अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्त की, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, कारवाँ गुज़र गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिए अंतर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादल बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी आदि उनके प्रमुख काव्य और गीत-संग्रह हैं।
प्रदीप
प्रदीप को कवि प्रदीप के रूप में ही याद किया जाता है। कवि प्रदीप के लिखे गानों को याद करें, तो ‘ऐ मेरे वतन के लोगों’ सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है। गौरतलब है कि इस गीत को स्वरबद्ध किया था लता मंगेशकर ने और इस गीत का सीधा प्रसारण तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में 26 जनवरी 1963 को दिल्ली के रामलीला मैदान में सीधा प्रसारण किया गया। आश्चर्यजनक बात यह थी कि इसे सुनने के बाद नेहरू की आंखें भर आई थीं। आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन इस गाने से कवि प्रदीप ने जो धन राशि मिली थी, उन्होंने उसे विधवा कोष में जमा करने की अपील की थी। इसके अलावा, उनका गीत ‘दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिंदुस्तान हमारा है’ काफी लोकप्रिय रहा।
इंदीवर
कभी लोग उन्हें श्यामलाल बाबू राय के नाम से जानते थे। बाद में उन्होंने अपना पेन नेम इंदीवर रखा। उनका साहित्य से खास लगाव था। उन्होंने कई नग्में लिखे, बाद के दौर में फिल्मों के लिए खूब लेखन किया। उन्होंने 1000 से भी अधिक गाने लिखे। होंठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो जैसे गाने इंदीवर ने लिखा था। उन्होंने चाँद पर भी कई गाने लिखे और जबरदस्त तरीके से लिखे। उन्होंने भारतीय संस्कृति को भी अपने गानों के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की। जब जीरो दिया मेरे भारत ने, दुनिया को तब गिनती आयी जैसे देशभक्ति की भावना से भरपूर गाने अपनी कलम से लिखे।
योगेश
जिंदगी कैसी है पहेली, हाय, कभी ये हंसाये, कभी ये रुलाए, जिंदगी पर आधारित ऐसे कई गीत योगेश ने लिखे हैं। फिल्म ‘आनंद’ का यह गीत आज भी बेहद लोकप्रिय है और योगेश के गीत लोग आज भी काफी गुनगुनाते हैं। उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी और बासु चटर्जी के साथ कई गाने लिखे। उनके गीतों की यह खासियत रही कि उन्होंने जिंदगी के फलसफे को अच्छे से दर्शाया। साथ ही उन्होंने साहित्य से एक खास नाता भी रखा।