लेखिका गीतांजलि श्री ने भारत की हर महिला को गौरवान्वित होने का मौका दिया है और वह इस लिहाज से कि उनके लिखे उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी ट्रांसलेशन ‘टूम ऑफ सैंड’ को वर्ष 2022 में बुकर प्राइज से सम्मानित किया गया था। हिंदी जगत के लिए यह सबसे अधिक प्रतिष्ठा की बात इसलिए हैं, क्योंकि यह पहली बार हुआ था, जब किसी हिंदी रचना को बुकर सम्मान से नवाजा गया। ये किताब कई मायने में प्रेरणा से भरपूर है और हरेक महिला को इसे एक बार क्यों पढ़ना चाहिए, आइए जानने की कोशिश करते हैं।
‘रेत समाधि’ की पात्र भारतीय महिला है, जो डिप्रेशन से बुरी तरह से शिकार है। ऐसे में वह किस तरह से भारत से पाकिस्तान जाने के लिए बॉर्डर पार करने का फैसला लेती हैं, यह कहानी प्रेम का अलग रूप दर्शाती है, जिसमें जो अहम पात्र हैं, वह 80 साल की हैं और उन्होंने अपने पति को खो दिया है, उनकी मृत्यु के बाद वह घोर निराशा वाली जिंदगी जीना शुरू कर देती हैं। वह इस कदर अपनी जिंदगी में हताश है कि उसे अपने कमरे से भी निकलना गंवारा नहीं है। ऐसे में उनका परिवार उन्हें खुश रखने की तमाम कोशिशें कर रहा है, लेकिन उन्हें इस अवसाद से निकलने में कोई भी कामयाब नहीं हो पा रहा है और फिर एक दिन अचानक नायिका निर्णय लेती है कि वह पाकिस्तान जायेगी, इस बीच उसके जीवन में क्या-क्या बदलाव आते हैं, उनके निजी अनुभव, उनकी जिंदगी से जुड़े रिश्ते-नाते और इन सबके ताने-बाने में जीवन के क्या नए रूप सामने आते हैं, इस उपन्यास का मूल विषयवस्तु यही है। यह उपन्यास अपने ‘धारा प्रवाह’ के लिए हमेशा ही याद किया जाएगा। नायिका ने पूरी कहानी कहने की जिम्मेदारी खुद के ऊपर नहीं रखी है, बल्कि उनके साथ और भी किरदार जुड़ते हैं, कुछ इंसानों के रूप में और कुछ जीवों के रूप में भी, जो इस पूरे उपन्यास को औरों से अलग बनाता है, जहां पक्षियों का चित्रण केवल भावपूर्ण नहीं है, बल्कि उनके भी संवाद हैं और वह प्रतीकात्मक रूप से नायिका के सहपाठी-सहयात्री बन गए हैं और जिस तरह से कहानी आगे बढ़ती है, वह रोचक बनता जाता है और उनका कथन एक अलग रूप दर्शाता है।
लेखिका किसी हड़बड़ी में नहीं है, बड़े ही इत्मीनान से वह जीवन के भाव को दर्शाने की कोशिश करती हैं और दूसरों के अनुभवों को भी साझा करती हैं, लेखिका की इस नायिका की जिंदगी में अँधेरा, उजाला, बेचैनी और बहुत कुछ है, पूर्ण होकर भी खालीपन होने के एहसास को किस तरह रचनाशीलता में तब्दील किया जा सकता है, यह उपन्यास इस बात का खूबसूरत उदाहरण है। इस उपन्यास की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि विभाजन के बाद इस विषय पर हजारों कहानियां, किस्से और फिल्में बनाई गई हैं, लेकिन फिर भी यहां जो प्रेम कहानी दर्शाई गई है, उसमें एक नयापन लगता है। यहां चन्द्रप्रभा से चंदा बनने के ट्रांजिशन में हम विभाजन की पूरी त्रासदी, परिवारों के अलगाव और उस दौर के मर्म को बखूबी देख पाते हैं। एक लड़की जिसने विभाजन से पहले अपनी एक अलग दुनिया के बारे में सोच रखा था, लेकिन उसके लिए जिंदगी क्या मोड़ लेती है, इस पूरे क्रम में वह कितना बदलती है, अपने शब्दों के धागे में अपने पूरे एहसास को पिरोया है। प्रेम की सिर्फ एक ही नीयत होती है कि वह अधूरा रहे, लेकिन कभी पुराना नहीं होता है। यह उपन्यास प्रेम, संवाद, परिवार, दो देश की सीमाएं, लेकिन कभी नहीं मिटने वाली भावनाओं को भी बखूबी दर्शाता है। एक लड़की को अपने जीवन को न चाहते हुए भी कभी समाज, कभी सियासत और कभी परिवार की मर्जी के पुल पर चलना पड़ता है और फिर उसके लिए उस पुल को धराशाई करके अपने लिए किस तरह कच्ची ही सही, लेकिन पगडंगी ढूंढनी पड़ती है, जिसमें उसके लिए एक ही शर्त है कि वह अपने लिए जिए, इस उपन्यास को पढ़ने के बाद, हरेक लड़की के मन में एक न एक बार ये ख्यालात जरूर आएंगे। इस उपन्यास की यह भी खूबी है कि किरदारों को उनके धर्म के आधार पर नहीं बांटा गया है। ज्यों का त्यों पूरे धर्म निरपेक्षता के साथ यह उपन्यास सामने आती है। नि : संदेह यह एक मानवता को सही मायने में परिभाषित करने वाला भी उपन्यास है।
यह उन तमाम महिलाओं के लिए भी एक कुंजी है, जिनके पास लेखन की शैली और शब्द दोनों हैं, लेकिन सिर्फ इस बात से वे घबरा कर लिखना नहीं चाहतीं कि वे लेखन के बने बनाये ढर्रे में फिट नहीं बैठतीं, अपनी शिल्प और शैली कैसे निर्माण करते हैं या गढ़ते हैं, यह उपन्यास यह भी सिखाता है।