उत्तर छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन अपनी अनगिनत रचनाओं के बावजूद ‘मधुशाला’ से अपने पाठकों में लोकप्रिय हैं। आइए जानते हैं प्रथम आधुनिक कवि डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन से जुड़ी कुछ ख़ास बातें।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन
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27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के निकट अमोढ़ा गाँव में जन्में डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन ने यूं तो अपने साहित्यिक जीवन में करीब 60 पुस्तकें लिखीं, लेकिन लोकप्रियता उन्हें वर्ष 1935 में लिखी दूसरी पुस्तक ‘मधुशाला’ से मिली। मात्र 28 वर्ष की आयु में हालावाद के प्रवर्तक डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन देश के युवा लोकप्रिय कवि बन गए थे। गौरतलब है कि हिंदी कविता के अंतर्गत छायावाद में जब हर रोज़ नए प्रयोग हो रहे थे, तब डॉक्टर हरिवंराय बच्चन ने किसी भी धारा का समर्थन न करते हुए अपनी एक अलग धारा बनाई और वे कहलाए आधुनिक कवि। हालांकि बचपन से ही वे उमर ख़ैय्याम की रुबाइयों और सूफी मत से प्रभावित थे ऐसे में ‘शराब-ए-मारिफ़त’ के रूप में उन्होंने प्रेम की तरह इसे भी अलौकिक बना दिया। यदि आप गौर से देखें तो शराब को जीवन का प्रतीक बनाकर उन्होंने अपनी कविताओं में जिस तरह का जीवन दर्शन दिया, वो बिरले ही कहीं नज़र आता है। विशेष रूप से हाला के माध्यम से उन्होंने जीवन की कटुताओं, विषमताओं, कुंठाओं, अतृप्तियों के साथ जीवन के विक्षोभ को प्रकट किया है, न कि शराब पीने की हिमायत की है।
डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन का प्रारंभिक जीवन
उत्तर छायावाद के प्रमुख कवियों में से एक रहे डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन को बच्चन नाम उनकी दाई माँ से मिला था, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बच्चा या संतान। बाद में उन्होंने इसे ही अपना उपनाम बना लिया और इसी नाम से रचनाएँ लिखने लगे। बच्चन आज प्रसिद्धि का पर्याय बन चुका है, क्योंकि अपनी साहित्यिक विरासत से अपने पाठकों के दिलों में बस चुके डॉक्टर हरियवंश राय बच्चन के बाद भारतीय सिनेमा में महानायक बन चुके अमिताभ बच्चन ने देश दुनिया में वो नाम बना लिया है, जिसकी धमक अगले सौ सालों तक कायम रहेगी। कायस्थ परिवार में जन्में डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की शुरुआती शिक्षा कायस्थ पाठशाला में हुई, जहाँ उन्होंने उर्दू और हिंदी की प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद इलाहबाद यूनिवर्सिटी से अंग्रेजी में एमए करने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से अंग्रेज़ी साहित्य के सुविख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर पीएचडी की। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ रहे डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन, राज्य सभा के मनोनीत सदस्य भी रह चुके हैं।
पारिवारिक जीवन की विसंगतियाँ
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डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की कविताओं ने अनगिनत नौजवानों को जीवन जीने के मायने दिए, क्योंकि उनकी रचनाओं में छायावादी कवियों जैसी लच्छेदार भाषा नहीं, बल्कि सीधी, सहज भाषा हुआ करती थी। यही वजह है कि उनकी सीधी, सपाट, किंतु प्रेरणादायी रचनाओं ने युवाओं को अपना दीवाना बना लिया और चार दशक तक अपनी गरिमामयी आवाज़ से वे कवी सम्मेलन मंचों का केंद्रबिंदु बने रहें। इसी के बरक्स अगर यह कहें तो गलत नहीं होगा कि हिंदी में वाचिक परंपरा की नींव डालनेवाले डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन ही हैं। गौरतलब है कि मात्र 28 वर्ष की आयु में लोकप्रिय कवि बनने के साथ-साथ उनका सामजिक जीवन भी काफी बेहतरीन चल रहा था, लेकिन उसी दौरान उनकी पहली पत्नी श्यामा की असामायिक मृत्यु से उनका पारिवारिक जीवन तहस-नहस हो गया। हालांकि उनकी मृत्यु के पाँच साल बाद अवसाद से निकलकर न सिर्फ उन्होंने तेजी सूरी से दुबारा विवाह किया, बल्कि अपनी रचना ‘नीड़ का निर्माण फिर’ के माध्यम से अपने पाठकों को सकारात्मकता का पाठ पढ़ाया।
'बच्चन' परिवार और 'फ़िल्में'
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हिंदी साहित्य में जहाँ डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन का एक विशेष स्थान है, वहीं भारतीय फिल्मों में महानायक की कुर्सी पर विराजमान अमिताभ बच्चन और उनका पूरा परिवार भारतीय फिल्मों में अपने सफल योगदान के लिए जाना जाता है। अमिताभ बच्चन की पत्नी जया बच्चन ने जहाँ ‘गुड्डी’, ‘अभिमान’, ‘अनामिका’ और ‘शोले’ जैसी सुपरहिट फिल्मों के बाद घर और बच्चों की ज़िम्मेदारी संभाली, वहीं पुत्र अभिषेक बच्चन और बहू ऐश्वर्या राय बच्चन सफल फिल्म कलाकार हैं। हिंदी, मराठी, बंगाली के साथ इंग्लिश फिल्मों का हिस्सा रह चुका पूरा बच्चन परिवार हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का एक सम्माननीय परिवार है। गौरतलब है कि अभिनय के क्षेत्र से जुड़ा यह परिवार साहित्य से भी जुड़ा हुआ है। विशेष रूप से अमिताभ बच्चन जहाँ अक्सर अपने पिता डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की कविताओं का पाठ करते रहते हैं, वहीं उनकी सुपुत्री श्वेता बच्चन नंदा ने अपने दादाजी के पदकमलों पर चलते हुए एक पुस्तक भी लिखी है। ‘पैराडाइज़ टावर्स’ नामक यह अंग्रेज़ी पुस्तक उन्होंने 2018 में लिखी थी, जिसे काफी सराहा गया था। इसके अलावा कई अखबारों के लिए भी वे लिखती रहती हैं। अमिताभ बच्चन के अलावा डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन के दुसरे सुपुत्र अजिताभ बच्चन और उनका परिवार, साहित्य और फिल्मों से दूर बिजनेस में सक्रिय है। प्रतिभा, जूनून और सफलता से भरपूर बच्चन परिवार, सही मायनों में एक आदर्श परिवार है।
मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा
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अपने पिता डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन की इन पंक्तियों को अपने जीवन सफलता का मूलमंत्र माननेवाले अमिताभ बच्चन ने पिता की विरासत को संजो रखा है। वर्ष 2011 में उन्होंने अपने द्वारा चयनित, अपने पिता की कुछ चुनिंदा रचनाओं को एक पुस्तक ‘कविताएँ बच्चन की, चयन अमिताभ बच्चन का’ के माध्यम से उनके पाठकों को भेंट किया था। गौरतलब है कि भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित इस पुस्तक का संपादन मशहूर साहित्यकार धर्मवीर भारती की पत्नी और लेखिका पुष्पा भारती ने किया था। अक्सर अपने पिता की कविताओं को उद्धृत करनेवाले अमिताभ बच्चन ने इस पुस्तक के बारे में कहा था, “मैं यह नहीं कहता कि मुझे उनकी कविताएं पूरी तरह समझ आ जाती हैं, हाँ यह ज़रूर है कि उन कविताओं को बारे-बार सुनते-सुनते उनके जो बोल हैं, वे मेरे अंतर्मन में बस चुके हैं। यही वजह है कि मैं जब भी उन्हें पढ़ता हूँ, तो मुझे लगता है कि मैं इन्हें सदियों से सुनता आ रहा हूँ। सो इन्हें गाने या बोलने में मुझे कोई तकलीफ नहीं होती। मैंने उनकी कविताएं बैठकर कभी रटी नहीं, वे बस अचानक मेरे अंदर से निकल पड़ती हैं।
एक दूसरे के पूरक हैं ‘बच्चन’ और ‘मधुशाला’
वर्ष 1933 में उनकी रचना ‘मधुशाला’ का प्रकाशन पहली बार ‘सरस्वती’ के हीरक अंक में हुआ था, जो उस समय की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका हुआ करती थी। तब से लेकर आज तक ‘मधुशाला’ का अनुवाद दुनिया के तमाम भाषाओं में हो चुका है और उसके कई संस्करण निकल चुके हैं, लेकिन आज भी ‘बच्चन’ और ‘मधुशाला’ एक दूसरे के पर्याय बने हुए हैं। ‘मधुशाला’ के अलावा उनकी लोकप्रिय रचनाओं में ‘निशा निमंत्रण’, ‘सतरंगिनी’, ‘खाड़ी के फूल’, ‘सूत की माला’, ‘सोपान’और ‘मिलन यामिनी’ नामक कविता संग्रहों के साथ ‘क्या भूलूँ, क्या याद करूँ’, ‘नीड़ का निर्माण फिर’, ‘बसेरे से दूर’ और ‘दशद्वार से सोपान तक’ उनकी आत्मकथा के चार अद्भुत खंड प्रकाशित हो चुके हैं, जो विश्व साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं। गौरतलब है कि अपनी साहित्यिक रचनाओं से अमर हो चुके डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन उन चुनिंदा साहित्यकारों में से हैं, जिनके लिखे खत भी साहित्य का हिस्सा बन चुके हैं। सिर्फ यही नहीं, उनके द्वारा स्वरचित रचनाओं के अलावा दूसरी भाषाओं की रचनाओं के अनुवाद और उनके द्वारा संपादित और संकलित रचनाओं की भी अच्छी खासी तादाद है।
साहित्यिक रचनाओं के लिए मिले पुरस्कार
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अपनी आत्मकथा के चारों खंडों में जिस तरह डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन ने बेबाकी, साहस और सद्भावना से अपने जीवन का यथार्थ प्रस्तुत किया था, उसके लिए उन्हें साहित्य का प्रतिष्ठित ‘सरस्वती सम्मान’ मिला था। उनकी कविता संग्रह ‘दो चट्टानें’ के लिए उन्हें वर्ष 1968 में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। हालांकि इसी वर्ष उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ और ‘एफ्रो-एशियाई सम्मेलन’ का ‘कमल पुरस्कार’ भी दिया गया था। इसके अलावा वर्ष 1976 में उन्हें ‘पद्म भूषण’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। हालांकि 96 वर्ष की आयु में 18 जनवरी 2003 को मुंबई में अपने निवास स्थान पर डॉक्टर हरिवंशराय बच्चन का निधन हो गया, लेकिन अपनी रचनाओं के माध्यम से अपने पाठकों के बीच हैं। उत्साह, जीवन, उम्मीद और आत्मबल से भरपूर उनकी रचनाएँ आज भी घोर निराशा के क्षणों में रोशनी की किरण समान रास्ता दिखा रही हैं।
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