उर्दू के लोकप्रिय लेखक सआदत हसन मंटो ने अपनी लेखनी में महिला सशक्तिकरण की ऐसी पाठशाला पढ़ाने की शुरुआत की, जो कई सालों बाद जाकर महिला शक्ति की परिभाषा बन गयी। मंटो ने कई ऐसी कहानियां लिखीं, जो औरत से औरत की मुलाकात कराते हुए पुरुष के रुढ़िवादी सोच पर पलटवार करती है। तो यहां हम मंटों की उन कहानियों पर चर्चा करेंगे, जहां उन्होंने महिलाओं को देखने का नया नजरिया समाज के सामने पेश किया। साथ ही औरतों के सशक्त किरदारों के जरिए समाज के मुंह पर तमाचा भी जड़ा है। आइए जानते हैं विस्तार से मंटो की ऐसी ही चुनिंदा कहानियों के बारे में।
मोज़ेल
इस कहानी में मंटो ने आज़ाद ख़्याल की लड़की का ज़िक्र किया है, जो अपने जीवन के हर फैसले पर खुद की हामी को सबसे अहम मानती है। इस कहानी में उनके स्त्री पात्र का नाम ‘मोज़ेल’ है। कैसे दंगों के हालात में खुद की परवाह न करते हुए मोजेल कृपाल नाम के पात्र को बचाती है, इसे बखूबी दिखाया गया है। इस कहानी के जरिए यह भी बताया गया है कि कैसे एक स्त्री खुले तौर पर आकर बयान करती है इसे दिखाया गया है। इस कहानी में प्यार के बीच धर्म की दीवार को देखना दिलचस्प है। मोज़ेल के जरिए मंटो ने एक ऐसी महिला को प्रस्तुत किया है, जो कि साहसी व स्वतंत्र होने के साथ बेबाकी से अपनी बात रखने में यकीन रखती है। धर्म की पाबंदी को स्वीकार नहीं करने वाली है।
खोल दो
मंटो की बेहतरीन कहानियों में एक कहानी ‘खोल दो’ है। जहां पर भारत के विभाजन के साथ एक पिता और बेटी के बीच के दर्द को बखूबी बयान किया गया है। इस कहानी में मंटो ने विभाजन के समय महिलाओं के हालात पर भी खुल कर बात की है। बलात्कार के साथ अमानुष घटनाओं को खोल दो की कहानी के जरिए मंटो ने बयान किया है। ‘खोल दो’ पूरी तरह से बंटवारे के बाद एक पिता की अपनी बेटी को तलाश करने की कहानी बताता है। इस कहानी के जरिए मंटो ने न केवल बंटवारे के दौरान महिलाओं पर हुए अत्याचार को कड़े शब्दों में बयान किया है, बल्कि महिलाओं को लेकर समाज में व्याप्त रुढ़िवादी सोच पर भी प्रहार किया है, जो कि आज भी प्रासंगिक है।
ठंडा गोश्त
इंसानियत की ढही हुई इमारत के बीच धार्मिक हिंसा किस तरह हावी होती है, मंटो ने ‘ठंडा गोश्त’ के जरिए इसे बयान किया है। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान महिलाओं के साथ हुई यौन हिंसा को ‘ठंडा गोश्त’ कहानी में बड़े ही सलीके से बयान किया गया है कि कैसे अपनी वासना बुझाने के लिए किरदार अपने कंधे पर एक लड़की को उठा लाता है, जो कि डर के कारण उसके कंधे पर ही मर जाती है और उसके पास पड़ा होता है, लड़की का ‘ठंडा गोश्त’। कैसे उस लड़की के बेजान देखकर आदमी की वासना पानी में बह जाती है, इसे बड़ी ही संजीदगी के साथ बयान किया गया है।
सौ कैंडल पॉवर का बल्ब
नारी की सहनशीलता की सीमा को मंटो ने इस कहानी के जरिए बखूबी बयान किया है। इस कहानी में पुरुष द्वारा नारी पर सहनशीलता के मर्यादा को पार करके किए जाने वाले अत्याचार को लेखक ने भावुक और तेज-तर्रार तरीके से पेश किया है। इस कहानी का शीर्षक भी नारी पर हुए अत्याचारों को बखूबी बयान करता है कि कैसे नारी के जीवन की त्रासदी सौ कैंडल पावर के बल्ब के समक्ष भी अंधकार में डूबी हुई नजर आती है। उल्लेखनीय है कि मंटो ने नारी के जीवन की भयावह स्थिति को अपनी लाजवाब किरदार गढ़ने की शैली और लिखावट से रोशनी में लाने की कोशिश की है।
मैडम डिकॉस्टा के साथ सुरमा और महमूदा
नारी का दूसरा अर्थ मानवता और ममता से भरा होता है। ‘मैडम डिकॉस्टा’ में लेखक ने नारी के मन के हालातों को बड़े ही सहज और प्रेम रूप में व्यक्त करने का अचूक प्रयास किया है। नारी के जीवन के विविध पहलूओं को किरदार के माध्यम से दिखाया गया है। ‘मैडम डिकॉस्टा’ के जरिए लेखक ने नारी जीवन की पूर्णता और अधूरेपन का भी बखूबी वर्णन किया है। ठीक इसी तरह मम्मी की कहानी में भी नारी के जीवन की मुश्किलों में मानवता के कई रूपों का वर्णन लेखक ने इस कहानी मे कई सारे किस्सों के जरिए किया है। इसके अलावा, जानकी, सुरमा, मेरा नाम राधा और महमूदा की कहानी और भिन्न-भिन्न नारी किरदारों के जरिए मंटो ने समाज में नारी की दुर्दशा, अकेलेपन और मजबूरी और आत्मविश्वास को आईने की तरह पेश किया है।