भारत सांस्कृतिक विविधता वाला देश रहा है। यह हमारी पहचान भी रहा है। ऐसे में कलमकारी के बारे में जानना हम सबके लिए जरूरी है, क्योंकि यह हमारी विरासत से लेकर हमारी परंपरा तक का हिस्सा रही है। कलमकारी यानी कलम से, जिसमें कला को प्रदर्शित किया जाता है, उसे कलमकारी कहते हैं, यह चित्रकला का ही यह एक रूप है, जिसे हम कलमकारी चित्रकला में देखते हैं। यह कलाकारी कागजों, दीवारों, मंदिर को सुंदर बनाने वाले कपड़े तक सीमित नहीं रह गयी है, बल्कि यह हमारे फैशन का भी हिस्सा बन गयी है। कलमकारी वाले प्रिंट का फैशन भी सदाबहार है। आइए जानते है इस कला की अब तक की सबसे दिलचस्प यात्रा के बारे में, जो हमारे विरासत का हिस्सा होने के साथ-साथ मौजूदा दौर के फैशन में भी प्रासंगिक है।
कलमकारी का खास इतिहास
इतिहासकारों की मानें तो मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले अवशेष में भी कलमकारी के सबूत मिले हैं, क्योंकि चित्रकारी के जरिए हमारे यहां देवी-देवताओं की कहानी को सुनाने का इतिहास हमेशा से रहा है। वैसे मूल रूप से इसका संबंध आंध्र प्रदेश से बताया जाता है। 12 वीं सदी में विजयनगर के शासक के समय में इस कलमकारी कला को विकसित होने का मौका मिला था। गौरतलब है कि उस वक्त सूती कपड़े पर जब यह कलाकृति की जाती थी, तो उस कपड़े से मंदिर या मंदिर के अंदर के भागों को सजाया था। इसमें जो विषय वस्तु होते हैं, वो चाहे रामायण हो महाभारत हो या फिर पुराण हो, इन्हीं को आधार बनाकर इसमें तस्वीरों को उकेरा जाता है। यह कलाकारी हाथों से सूती कपड़े पर की जाती है, जिसमें कपड़े के ऊपर एक नहीं, बल्कि अनेकों आकृतियों को उकेरा जाता है।
कलमकारी की है दो खास भारतीय शैली
कलमकारी की मूल शैली की बात करें, तो यह दो तरह से है श्रीकलाहस्ती शैली और मसूलीपट्टनम शैली। श्रीकलाहस्ती शैली को विजयनगर शासकों ने विकसित किया है। यह मंदिर से शुरू हुआ इसलिए हिन्दू धर्म को आधार बनाकर इसमें चित्र बनाया जाता है। यही वजह है कि इसके चित्रों में रामायण, महाभारत और पुराणों के चित्र अंकित दिखते हैं । मसूलीपट्टनम शैली की बात करें, तो पहले गोलकुण्डा के शासक और बाद में मुगल साम्राज्य ने इसे अपनाया और प्रसिद्धि दी। वह अपने राजमहल की दीवारों को सुन्दर बनाने के लिए ठप्पों के माध्यम से ही चित्र बनाते थे।जिसमें मूल रूप से फूल पत्तियों और पेड़- पौधे शामिल होते थे।जिसमे परशिया के आर्ट की भी झलक मिलती है।
मेकिंग है बहुत खास
कलमकारी श्रीकलाहस्ती की पूरी प्रक्रिया 23 अलग-अलग चरणों से होकर गुजरती हैं। कलमकारी के लिए उपयोग किए जाने वाले सूती कपड़े को पहले गाय के गोबर और ब्लीच के घोल में डाला जाता है। इस घोल में कपड़े को घंटों तक रखने के बाद कपड़े को एक समान ऑफ-व्हाइट रंग मिल जाता है। इसके बाद सूती कपड़े को भैंस के दूध और मायरोब्लन्स के मिश्रण में डुबोया जाता है, जिस वजह से जब कपड़े को प्राकृतिक रंगों से रंगा जाता है, तो यह कपड़े में रंगों को फैलने से रोकता है। बाद में भैंस के दूध की गंध को हटाने के लिए कपड़े को बहते पानी में धोया जाता है। कपड़े को कई बार धोकर धूप में सुखाया जाता है। एक बार जब कपड़ा पेंटिंग के लिए तैयार हो जाता है, तो कलाकार कपड़े पर डिजाइनों को चित्रित करते हैं, जिसके बाद कलमकारी कलाकार चित्रों में रंग भरते हैं। खास बात है कि जिन रंगों का इस्तेमाल किया जाता है, वह पूरी तरह से प्राकृतिक रंग होता है। केमिकल रंगों से इससे दूर रखा जाता है। उदाहरण के तौर पर काले रंग को लोहे के चूर, पानी और गुड़ से तैयार किया है। लाल रंग को अनार के बीज फिटकरी और आम के पेड़ की छाल से बनाया जाता है। इसके रंग ही नहीं, बल्कि इसे रंगने वाली कलम भी बहुत खास होती है, जिसमें बांस के टुकड़ों और खजूर के पत्तों के मेल से खास बनाया जाता है। मछलीपट्टनम शैली का पूरा प्रोसेस भी कमोबेश वैसा ही है, बस कलम के बजाय यहां सांचों के इस्तेमाल से चित्र बनाया जाता था और इसमें देवी-देवताओं की चित्र नहीं, बल्कि पेड़, पत्तियों और फूलों को तरजीह मिलती थी।
अतीत से वर्तमान का सफर ऐसे हुआ तय
इतिहासकारों की मानें तो गोलकुण्डा के शासक के वक्त कलमकारी के कपड़ों की मांग भारत ही नहीं, बल्कि इंग्लैंड, नीदरलैंड जापान और फ्रांस तक पहुंच गयी थी। 15वीं शताब्दी से 18 वीं शताब्दी तक पूरे वैश्विक बाजार में कलमकारी के कपड़ों और उससे बनी चीजों की धूम थी, लेकिन 18 वीं के अंत में ब्रिटेन के कपड़ा उद्योग औद्योगिकरण की वजह से विदेशों में भारतीय कपड़ों की मांग कम हो गयी। यूरोप के प्रिंटर और नयी तकनीक आसानी से भारतीय कलमकारी की नकल बनाने लगे, जिससे कलमकारी उद्योग हाशिए पर चला गया था। जिसके बाद यह उद्योग बदलते वक्त के साथ बहुत बुरे दौर से गुजरा, लेकिन आखिरकार आजाद भारत में पुरानी कलाओं को फिर से जीवन दिया गया, जिसमें समाज सुधारक कमला देवी चट्टोपाध्याय की अहम भूमिका थी।1952 में ऑल इंडिया हैंडी क्राफ्ट बोर्ड बनाया, जिसने कलमकारी हस्तकला में फिर से जान फूंकी और गुजरते वक्त के साथ विरासत में खो चुकी यह कला फिर से मुख्यधारा में जुड़ गयी। समय -समय पर कई डिजाइनरों ने इसे फैशन की अहम धुरी बनाया।
कलमकारी साड़ियों की खूब है मांग
कलमकारी के दुपट्टे , कुर्ते भी बहुत डिमांड में रहते है, लेकिन साड़ियों की बात ही कुछ अलग हैं। कलमकारी की साड़ी आपके वार्डरोब को बहुत खास बनाती है खासकर श्रीकलाहस्ती शैली। चूंकि इसमें पूरा काम हाथ से यानी कलम से होता है और यह बहुत ही मेहनत और बारिकी का काम होता है, इसलिए यह बहुत खास माना जाता है। कॉटन कलमकारी में साड़ी आपको 4 से 5 हजार, सिल्क में यह आपको दस से बारह हजार रुपये में मिल सकती है। मिनिस्ट्री ऑफ टेक्सटाइल ने भी कुछ ऐसे आर्टिस्ट की लिस्ट जारी की है, जिनसे आप सोशल मीडिया के जरिए जुड़कर ओरिजिनल कलमकारी वाली साड़ी अपने कलेक्शन में शामिल कर सकती हैं।
ओरिजिनल कलमकारी की ऐसे करें पहचान
कलमकारी प्रिंट की बढ़ती डिमांड की वजह से बहुत से डिजिटल प्रिंटिंग या आउट लाइन स्क्रीन पेंटिंग से भी कलमकारी प्रिंट को बनाया जाता है और उन्हें ओरिजिनल कहकर महंगे दामों में बेचा जाता है, जिनकी असल कीमत एक हजार होती है, लेकिन उसे ओरिजिनल बताकर तीन गुना दाम वसूल किया जाता हैं। ऐसे में कलमकारी की साड़ी या कपड़े को खरीदते हुए कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है।
क्या है ओरिजिनल कलमकारी के पहचान से जुड़ी खास बात
ओरिजिनल कलमकारी के रंग भड़कीले नहीं होंगे, क्योंकि प्राकृतिक रंग कभी भड़कीले नहीं हो सकते हैं। इसकी अपनी सुगंध होती है, क्योंकि वह दूध और प्राकृतिक रंगों के मेल से बनी होती हैं, तो कपड़े की खुशबू से भी आप पहचान कर सकती हैं। आप कलमकारी की साड़ी या कपड़े को उलटकर भी देख सकती हैं कि यह ओरिजिनल कलाकारी है या डिजिटल प्रिंटिंग है। डिजिटल प्रिंट का अलग लुक पीछे दिखेगा। डिजिटल प्रिंटिंग में हर चित्र, फूल और पत्ते एक जैसे दिखेंगे, जबकि ओरिजिनल कलमकारी में थोड़ा बहुत फर्क हो सकता है, क्योंकि आर्टिस्ट ने अपने हाथों से उसे बनाया होता है, तो इस बारीकी का भी ध्यान रख सकती हैं।
कलमकारी आर्ट आपकी ही नहीं घर की खूबसूरती है बढ़ाता
कलमकारी आर्ट अब सिर्फ साड़ी और दीवारों पर सजने वाले खूबसूरत आर्ट पीस तक ही सीमित नहीं हैं। यह कपड़ों के फैशन में साड़ी, कुर्ता, स्कर्ट,दुपट्टा के जरिए अगर आपको खूबसूरत बनाता हैं, तो आपके घर में बेडशीट, तकिए का कवर, पर्दों के कवर, लैम्प शेड के तौर पर भी चार चांद लगाता है। कलमकारी आर्ट की चूड़ियाँ, नेकपीस और दूसरी तरह की ज्वेलरी भी काफी लोकप्रिय है।