बनारसी सिल्क की साड़ियां भारत के बनारस शहर में बनती हैं जिसे वाराणसी भी कहा जाता है. भारत साड़ियों का चलन नया नहीं हैं बल्कि आदिकाल से ही महिलाओं का वस्त्र साड़ी ही रहा है. बनारसी साड़ियां सबसे बेहतरीन साड़ियों में मानी जाती हैं. बनारसी सिल्क साड़ियों में एक परंपरा का चलन होता है इन साड़ियों को आप कभी भी किसी भी उत्सव पर पहन सकती हैं चाहे आप किसी की शादी में शामिल हो रहे हों या फिर आप अपनी शादी में क्यों न इसे पहनना चाहें बनारसी साड़ियां किसी भी लुक को और ज्यादा अच्छा बना देती हैं. आज कल बनारसी लहंगे भी काफी चलन में हैं. बनारसी साड़ियां भारत के कई हिस्सों में दूल्हनों की पसंद होती है. यही कारण है की बड़े से बड़े डिज़ाइनर भी आज कल बनारसी सिल्क को अपनी साड़ियों में शामिल करते हैं. अनुष्का शर्मा हो या दीपिका पादुकोण अपने रिसेप्शन में आजकल लाल बनारसी साड़ी पहनने का यह ट्रेंड बॉलीवुड में भी खूब चला है. जो लोग साड़ी पहनते हैं या पहनना पसंद करते हैं उन सभी के पास एक या दो बनारसी साड़ियां तो होनी ही चाहिए. लेकिन आखिर बनारसी साड़ी की पहचान कैसे करें? बनारसी साड़ी पहने कैसे? घबराइए नहीं ! बस ये लेख पूरा पढ़िए.
बनारसी साड़ियों का इतिहास
बनारसी साड़ी मुगल काल के दौरान अस्तित्व में आई जब मुस्लिम कारीगरों और शिल्पकारों ने बनारस को अपनी संस्कृति के साथ अच्छी तरह से मिश्रित जगह के रूप में चुना और वहां रेशम बनारसी साड़ियों की बुनाई शुरू कर दी. उनकी विशेषताएं मुग़लों से प्रेरित डिज़ाइन हैं जैसे फूलों के बूटे, कलगी, बेल और बाहरी किनारों पर जिन्हें झालर कहा जाता है उन पर पत्तियां बनाना. डिज़ाइन और पैटर्न के हिसाब से किसी भी साड़ी को बनाने में 15 दिनों से छह महीने तक का समय लग सकता है. इस साड़ी की अन्य ख़ास बात यह है कि इसमें सोने से भी डिज़ाइन बनायीं जाती थी और बारीक बुनाई की जाती थी जिसमें कई धातुओं का प्रयोग किया जाता था. ज़री से बनी इन साड़ियों का चलन उन्नीसवीं सदी में ज्यादा शुरू हुआ. 1603 के अकाल के दौरान गुजरात से रेशम बुनकरों के प्रवास के साथ, यह संभावना है कि रेशम ब्रोकेड बुनाई सत्रहवीं शताब्दी में बनारस में शुरू हुई और 18वीं और 19वीं शताब्दी के दौरान उत्कृष्टता में विकसित हुई लेकिन इसकी शुरुआत मुग़ल काल से ही मानी जाती है.
लेकिन बनारसी साड़ियां भी कई तरह की आती हैं. केवल रेशम की ही नहीं बल्कि कई तरह की आती हैं जैसे कांजीवरम, रेशमी, शत्तीर, ऑर्गेंजा, जॉर्जेट, जंगला बनारसी साड़ी, बूटीदार बनारसी साड़ी इत्यादि. लेकिन बनारसी साड़ियों को पहना कैसे जाता है? आइये जानते हैं.
बनारसी साड़ी पहनने का सही तरीका
बनारसी साड़ियां किसी भी महिला के सौंदर्य में चार चांद लगा देती है इसीलिए ध्यान रखें कि आप उन्हें इसी तरह से पहने की उसका आकर्षण बना रहे. आप बनारसी साड़ी को किस तरह से पहनना है इस बात का निश्चय अपनी उम्र, शरीर के प्रकार और वजन के हिसाब से कर सकती हैं. बनारसी साड़ी को कई तरीकों से पहना जा सकता है जैसे प्लेट्स के साथ, खुले हुए पल्ले के साथ, गुजरती स्टाइल में, धोती की तरह, बेल्ट के साथ, लहंगे की तरह, स्कर्ट ड्रेप, बंगाली स्टाइल में, आगे पल्ला कर के. इन सभी के लिए आप यूट्यूब पर वीडियो देख सकते हैं. आप अपना स्टाइल अपने बॉडी टाइप के साथ से चुन सकते हैं.
बनारसी साड़ी को किस तरह से स्टाइल करें
आप अपनी बनारसी साड़ी को निम्न तरह से स्टाइल कर सकते हैं -
अपने बनारसी साड़ी को कॉन्ट्रास्टिंग ब्लाउज़ के साथ पेयर करें.
अपने पारंपरिक ड्रेपिंग स्टाइल से साड़ी को पहनते हुए पल्लू को दुपट्टे या दुपट्टे के साथ गले में गोल कर सकती हैं.
भारी बनारसी सिल्क की साड़ी पहनते समय अपने लुक को ज़्यादा एक्सेसराइज़ न करें. इसके बजाय, अपनी रेशम की साड़ी को कुछ हल्के और फैशन के आभूषणों के साथ जोड़े.
अपने ब्लाउज को सामान्य से अलग स्टाइल करें जैसे बोट नेक, फुल स्लीव्स, होल्टर नेक ब्लाउज़, क्रॉप टॉप, बिग एल्बो स्लीव आदि.
आरामदायक दिखने के लिए सही हील्स चुनें.
अपने ड्रेप में ट्रेंच कोट लगाकर अपने लुक को और निखारें.
आप डबल पल्लू के साथ भी अपने लुक को फ्लॉन्ट कर सकती हैं.
अगर आप अपनी बनारसी साड़ी को सामान्य तरह के रूप में पहन कर बोर हो चुकी हैं तो आप इसे पारंपरिक गाउन, लंबी स्कर्ट, लंबी जैकेट, कोट, पलाज़ो पैंट, लहंगा-चोली, डिज़ाइनर ब्लाउज़, कोर्सेट, दुपट्टा, और कई अन्य फैशनेबल चीज़ों में भी बदल सकती हैं.
असली बनारसी साड़ी की पहचान कैसे करें?
असली बनारसी साड़ी किसी भी भारतीय महिला के लिए किसी बेशकीमती चीज़ की ही तरह है बिल्कुल उस गहने की तरह जिसे कोई भी महिला बहुत संभाल कर रखती है. बनारसी साड़ियां कई सालों तक भी ख़राब नहीं होती हैं और असली बनारसी साड़ियों की गुणवत्ता हमेशा बानी रहती हैं. बेहतरीन रेशमी धागों से बुनी गई, जिसमें प्रतिभाशाली कारीगर बुनकरों द्वारा बारीकी से ध्यान दिया गया है, शुद्ध बनारसी साड़ियां अपनी तरह की अनूठी हैं.
हालांकि, बनारसी साड़ियों की सस्ती नकल भी बाजार में उपलब्ध है. ये ख़राब-गुणवत्ता वाली साड़ियां ग्राहक को यह विश्वास दिला सकती हैं कि यह असली चीज़ है.
फिर भी, आपको बनारसी साड़ी असली है या नकली यह पहचानने के लिए एक्सपर्ट होने की आवश्यकता नहीं है. आप केवल साड़ी के पीछे की तरफ देखकर ही प्रामाणिकता की जांच कर सकते हैं. करघे पर बनी बनारसी साड़ियों में हमेशा ताना और बाने के ग्रिड के भीतर फ्लोट होंगे, जबकि मशीन से बुनी हुई साड़ियों में एक चिकनी फिनिश होगी.
बनारसी साड़ियों की विशेषता मुगल-प्रेरित रूपांकनों जैसे डोमक, अमरू और अंबी द्वारा की जाती है. इसमें ज़री से कलगी और बेल जैसे सुंदर पुष्प और पत्ते के रूपांकन भी शामिल हो सकते हैं. डुप्लीकेट साड़ियों पर आपको ये बेहतरीन मोटिफ्स नहीं मिलेंगे.
सूती बनारसी साड़ी और सिल्क बनारसी साड़ी में क्या अंतर है?
सूती कपड़ा हल्का होता है वहीँ रेशमी कपड़ा भारी होता है. सूती साड़ियों को आप आराम से गर्मियों में पहन सकते हैं और सूती साड़ियां गर्मियों में पहनना मुश्किल हो सकता है. सूती बनारसी साड़ी में उतनी चमक नहीं होती है जितनी की रेशमी बनारसी साड़ी में. रेशमी बनारसी साड़ी में जिस तरह के बेल और बूटे बने होते हैं उस तरह की डिज़ाइन सूती साड़ियों में नहीं होती है.
कांजीवरम साड़ियों और बनारसी साड़ी में क्या अंतर है?
यह दोनों ही सिल्क साड़ी हैं. जबकि बनारसी बुनाई वाराणसी से निकलती है, उत्तर भारत और कांजीवरम अपनी जड़ें कांचीपुरम, दक्षिण भारत से प्राप्त करते हैं. जहां जरी का काम बनारसी साड़ियों की सुंदरता है, वहीं कांजीवरम साड़ियों में, जटिल विवरण के लिए सुनहरे धागों का उपयोग किया जाता है. इनके अलावा, बनारसी साड़ियां ड्रेपिंग, स्टाइलिंग के तरीके में भिन्न हैं, और इन खूबसूरत साड़ियों के एक दर्जन विभिन्न प्रकार हैं.
बनारसी साड़ी पर फूलों के रूपांकन और पत्ते बने ज़री-काम से बने होते हैं. वहीं, कांजीवरम रेशम की साड़ियों में सोने या चांदी के धागों से बुने हुए मंदिरों, रूपांकनों, पट्टियों और चेक के डिजाइन होते हैं. ये दोनों साड़ियां विभिन्न रंगों और संयोजनों में आती हैं.
बनारसी साड़ी को हमेशा नए जैसा कैसे रखें?
बनारसी साड़ियाँ रेशम की साड़ियाँ हैं, जिन्हें आपकी ओर से बहुत अधिक रखरखाव की आवश्यकता होती है. यहां कुछ टिप्स दिए गए हैं जो मदद कर सकते हैं:
साड़ी को हैंगर पर ज्यादा देर तक लटकाकर न रखें क्योंकि इससे क्रीज स्थायी हो सकती है.
मलमल के कपड़े में लपेट कर अपनी अलमारी में रखने की कोशिश करें.
मलमल का कपड़ा हवा को कपड़े से गुजरने देता है लेकिन नमी को दूर रखता है जो साड़ी को नुकसान पहुंचा सकती है.
इन्हें एक अंधेरे कोने में रखने से साड़ी का रंग खराब होने से बचा जा सकता है.
साड़ी को बेहद सावधानी से लो सेटिंग पर आयरन करें या स्टीम आयरन करवा लें.
कुछ बनारसी साड़ियों पर पानी और इत्र का छिड़काव नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे उन पर दाग लग सकते हैं.
इन महंगी साड़ियों को घर पर साफ करने की कोशिश करने की तुलना में पेशेवर रूप से ड्राई क्लीनिंग करना एक बेहतर तरीका है.
सवाल और जवाब
बनारसी साड़ियाँ इतनी प्रसिद्ध और हमेशा चलन में क्यों हैं?
बनारसी साड़ियाँ अपने हथकरघा, सोने या चांदी से बने ज़री के काम और शुद्ध प्राकृतिक रेशम के कारण प्रसिद्ध हैं. हथकरघा साड़ी सदियों से शाही परिवारों की प्रमुख पसंद रही है और बनारस हथकरघा साड़ियों के उत्पादन का केंद्र है. हथकरघा बनारसी साड़ियाँ अपने शाही रूप के कारण चलन से दूर जाने के लिए इतनी चमकदार हैं.
बनारसी साड़ी के साथ किस तरह की ज्वेलरी पहननी चाहिए?
इस प्रकार की साड़ियों के साथ ऑक्सीडाइज़्ड ज्वैलरी और टेम्पल ज्वेलरी ज्यादा अच्छी लगती है.