खादी एक खास किस्म का कपड़ा है और पूरे भारत में इसकी खूबी बहुत है। इसे पूरे भारत में लोग शौक से पहनते हैं, तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
खादी की खासियत
खादी हाथ से काटे हुए कपास के धागे से बनता है, फिर इसे बुना जाता है और फिर इसके बाद बनता है खादी। इसे हथकरगे पर बुन कर बनाया जाता है। खादी के बारे में बात करें, तो यह सिर्फ हमारी परंपरा का हिस्सा नहीं है, बल्कि हमारे इतिहास से भी इसका जुड़ाव गहरा रहा है। सबसे अहम बात यह है कि इससे हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम भी जुड़ा हुआ है और साथ ही साथ स्वदेशी आंदोलन का प्रतीक खादी है। गांधीजी ने हमेशा ही यह बात दोहराई कि खादी के कपड़े पहनना, सिर्फ देशभक्ति की भावना को दर्शाना नहीं था, बल्कि हमारी भारतीय एकता को भी यह दर्शाता रहा है। और खूबी यह भी है कि पिछले लम्बे समय से मेक इन इंडिया अभियान ने भी खादी की लोकप्रियता को बढ़ावा दिया है। यह आजादी के साथ-साथ एकता को भी दर्शाती है। खादी की यह भी खूबी रही है कि फैशन स्टेटमेंट के रूप में इसने हमेशा ही पहचान बनाई है और इसके महत्व में दिन ब दिन बढ़ावा ही हुआ है। एक खास बात यह भी है कि हर दौर में फैशन के साथ खादी का तालमेल बिठाया। साथ ही खादी की यह भी खूबसूरती होती है कि यह इंडियन लुक के साथ-साथ, वेस्टर्न लुक में भी चार चांद लगाती है।
खादी है पूर्ण रूप से प्राकृतिक
खादी को एक प्राकृतिक कपड़ा भी माना जाता है, क्योंकि इसे हाथों से ही काटा और बुना जाता है। फिर चाहे वे रेशम हों, कपास हों, जूट हों या फिर ऊन हों। तो खादी के रूप में प्राकृतिक कपड़ा आपके शरीर को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाता है।
आत्म निर्भरता को भी है दर्शाता
एक बात और खास रही है कि खादी भारत के लोगों के लिए आत्मनिर्भरता का भी प्रतीक है और इसकी शुरुआत वर्ष 1918 में अविभाजित भारत के लोगों के लिए खादी की शुरुआत की गई थी। खादी आंदोलन के बारे में एक जानकारी आपको यह भी होनी चाहिए कि यह मुख्य रूप से एक सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से गांधीजी द्वारा चलायी गई एक मुहिम थी। मई 1915 में गुजरात के अहमदाबाद जिले में स्थित सत्याग्रह आश्रम से शुरू किया गया था, जिसे साबरमती आश्रम के नाम से जाना जाता है। इसके बारे में एक और खास बात जो आपको जाननी चाहिए कि खादी ‘खद्दर’ शब्द से आया है और खादी एक हाथ से बुना हुआ सूती कपड़ा है, जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीकों में से एक बन गया। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने इन कपड़ों की खुरदरी बनावट के कारण उनके लिए खादी शब्द गढ़ा था। खादी को चरखे या भारतीय चरखे का उपयोग करके काटा जाता है। यही नहीं इसके साथ ही खादी इस तरह से भी अग्रणीय रहा कि इसी के साथ गांधीजी ने स्वदेशी उत्पादों के उपयोगों को बढ़ावा दिया और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया। साथ ही खादी राष्ट्रवाद के ताने-बाने के रूप में लोकप्रिय हो गई और माना जाने लगा कि यह 'स्वराज के धागों' से बुनी गई है। जैसे ही खादी की सोच पूरे भारत में फैली, महात्मा गांधी ने लोगों के बीच मौजूद अंतर को कम करके इस सामान्य व्यवसाय के माध्यम से सभी वर्गों के बीच एकता की अलख जलायी।
सस्टेनेब्लिटी के साथ रोजगार भी
लगातार खादी उद्योग को बढ़ावा मिलने से कई बुनकर समुदाय को रोजगार की गारंटी मिल रही है और साथ ही खरीदारी में भी लगातार इजाफा हो रहा है, इसकी सबसे बड़ी वजह यह भी है कि खादी उत्पादन में कार्बन फुटप्रिंट गौण है, इसलिए इसमें किसी भी मशीन के इस्तेमाल की जरूरत नहीं होती है, तो बिजली का भी गलत उपयोग नहीं होता है और साथ ही कम से कम पानी का इस्तेमाल होता है। इसलिए स्थायी फैब्रिक के रूप में खादी को बढ़ावा देना बेहद जरूरी है।
लगातार नए डिजाइनर बना रहे खादी को खास
खादी की अब खास बात यह भी हो गई है कि यह देसी होने के बावजूद मॉडर्न फैशन डिजाइनर का पसंदीदा फैब्रिक बन चुका है। कई बाद डिजाइनर इनमें न सिर्फ ट्रेडिशनल कपड़ों की डिजाइनिंग कर रहे हैं, बल्कि वे लगातार ड्रेसेज के साथ भी एक्सपेरिमेंट्स कर रहे हैं, जैसे हॉट पैंट्स या शॉर्ट्स से लेकर ब्लेजर में या फिर डेनिम शर्ट्स के रूप में या टॉप्स और जींस के रूप में भी डिजाइनर काफी एक्सपेरिमेंट्स कर रहे हैं, जो लड़कियों को काफी पसंद भी आ रहे हैं। स्टोल्स को लेकर भी कई सारे प्रयोग किये जा रहे हैं और आम लोग इसे काफी इस्तेमाल कर रहे हैं। खादी के सस्टेनेबल होने की वजह से भी इस फैब्रिक की डिमांड बढ़ चुकी है। इसे बनाने में चूंकि सारा काम हाथों से ही होता है, इसलिए भी यह काफी लोगों के लिए रोजगार का माध्यम भी बन रहा है और इसलिए लगातार इस फैब्रिक को पसंद किया जा रहा है। इसमें कार्बन प्रिंट के इस्तेमाल का नामोनिशान नहीं रहता है। डिजाइनर इस फैब्रिक में लगातार आकर्षक डिजाइन बना रहे हैं और पैकेजिंग को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि उपभोक्ताओं को यह पसंद आये। खादी की अगर सिल्क साड़ियों की बात की जाए, तो शादी के फंक्शन में महिलाएं इन्हें पहनना काफी पसंद करने लगी हैं और लगातार चाहती हैं कि अगर उन्हें खुद को एलिगेंट रूप में खुद को दर्शाना है, तो वे ऐसी ही साड़ियां खरीदना पसंद करेंगी। खादी साड़ियों के अलावा, लड़कियां अपनी शादी में लहंगों को लेकर भी एक्सपेरिमेंट कर रही हैं, अगर किसी ने भी सस्टेनेबल शादी का कांसेप्ट रखा है, तो सबकी कोशिश यही होती है कि खादी का इस्तेमाल लहंगे में भी किया जाए।
बदल गई है सोच
कुछ सालों पहले तक उस समय की जो भी नए जेनेरेशन के लोग होते थे, उन्हें यही लगता था कि यह ओल्ड फैशन है, लेकिन जब से लोगों ने इसे समझना शुरू किया है, इसके महत्व को समझा है, नयी जेनेरेशन ने इन्हें अपनाना शुरू कर दिया है और बेहद शौक से इसके बने मटेरियल्स खरीद रहे हैं। यह एक सकारात्मक सोच है कि अंतत: लोगों की सोच में बदलाव आया है और इसे अब एक स्तरीय पहचान मिल गई है।
कोई नहीं खादी जैसा
क्या आपने इस बात पर कभी गौर किया है कि खादी फैब्रिक कभी भी किसी और फैब्रिक से मेल नहीं खाता है, यानी इसकी अपनी पहचान है और यह भी वजह है कि खादी ने यूनिक या अद्वित्य होने का रुतबा हासिल कर लिया है। यही वजह है कि भारतीय डिजाइनर के अलावा इंटरनेशनल डिजाइनर्स भी इनका इस्तेमाल शौक से कर रहे हैं।
ये हैं खादी के खास प्रकार
कई बार हम यह मान बैठते हैं कि खादी केवल सूती कपड़ों में ही होता है, लेकिन ऐसा नहीं है। इसके कई प्रकार हैं, आइए जानें।
कॉटन खादी
सबसे ज्यादा प्रचलित खादी में से एक है सूती खादी। दरअसल, खादी सूती फैब्रिक कपास का उपयोग करके हाथ से बुना जाता है। साथ ही इसे मलमल भी कई जगहों पर जाना जाता है। गर्मियों के लिए इससे अच्छा फैब्रिक कुछ नहीं होता है। सबसे ज्यादा अगर बात की जाए, तो भारत में पश्चिम बंगाल बड़ी मात्रा में इसका उत्पादन होता है।
रेशम खादी
अगर बात रेशम यानी खादी सिल्क की की जाए तो सिल्क खादी मैसूर में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। इसके अलावा, पोंडुरु, आंध्र प्रदेश को खादी गांव के रूप में जाना जाता है क्योंकि वे पूरी तरह से हाथ से बुने हुए खादी कपास का उत्पादन करते हैं। खादी रेशम की बात करें तो यह शुद्ध रेशम को कताई करके या अन्य धागों को मिलाकर बनाया जाता है। वहीं मटका सिल्क या अहिंसा सिल्क खादी सिल्क के रूप में सबसे अधिक प्रचलित है। आपको जानकर हैरानी होगी कि इसे खासतौर से शहतूत वाले जो रेशम प्राप्त होते हैं और उससे जो कचरा निकाला जाता है, उससे इसे बनाया जाता है और मुख्य रूप से कर्नाटक और कश्मीर से यह बहुत निर्यात किया जाता है। सिल्क का एक और प्रकार टसर रेशम है। पश्चिम बंगाल में यह काफी लोकप्रिय है, इसके अलावा, बिहार के भागलपुर, झारखंड और मालदा में टसर सिल्क काफी लोकप्रिय है। वहीं चंदेरी रेशम भी भारत के प्रसिद्ध खादी रेशम में से एक है। इसका उत्पादन मुख्यतः मध्य प्रदेश के चंदेरी इलाके में होता है।
ऊनी खादी
जी हां, हैरानी आपको यह हो सकती है कि क्या खादी ऊनी कपड़ों से भी बना होता है, तो जी हां, ऊनी खादी भी एक प्रकार है। इसे बनाने में ऊन को हाथ से काता और हाथ से बुना जाता है। कश्मीर में इस्तेमाल किया जाने वाला ऊनी खादी के रूप में पश्मीना है, जिनकी कीमत लाखों में होती है।