भारत की सबसे खास बात यह है कि हर प्रान्त की अपनी लोकप्रियता है कि उनके शहर की साड़ियां काफी लोकप्रिय रही है और सभी अपने रूपों में अलग होती हैं, अब यह फैशन का रूप है, साड़ी की शुरुआत कॉटन साड़ियों से ही हुआ था ऐसा माना जाता है, लेकिन समय के साथ इसमें कई तरह से बदलाव आते गए और हर राज्य ने खूबसूरती से अपने शहर की साड़ियों का अंदाज बदला। आइए, जानें विस्तार से।
बनारसी साड़ियां
भारतीय संस्कृति की अपनी खासियत है और बनारस को कला और संस्कृति का ही शहर माना जाता है, इसलिए भारतीय संस्कृति में बनारस और वहां की साड़ियां काफी लोकप्रिय रही हैं, खासतौर से कई वर्षों से सास और माएं, अपनी बेटियों और बहू को धरोहर के रूप में बनारसी साड़ी देना पसंद करती हैं। इनके इतिहास के बारे में आपको एक दिलचस्प बात यह भी बताना चाहेंगे कि इन साड़ियों के बारे में कहा जाता है कि बनारसी साड़ियों का संदर्भ ऋग वेद में हिरण्य में मिलिया है, जहां देवताओं के कपड़ों को भी बनारसी साड़ियों से जोड़ने की प्रवृति रखी गई थी, खास बात यह भी है कि इन साड़ियों का सीधा संबंध सिल्क से रखा गया है। इन साड़ियों को बनने में लम्बा समय सिर्फ इसलिए लगता है, क्योंकि इसमें बारीक काम किया जाता है, इन साड़ी की बुनाई की बात करें, तो रेशम के ऊपर जरी के धागों से कढ़ाई की जाती है और इसे काफी मेहनत का काम माना जाता है। अच्छी बात यह है कि शादियों का मॉडर्न रूप में तब्दील होने के बावजूद लोगों की चाहत यही होती है कि वो शादियों में खासतौर से रिस्पेशन के दौरान बनारस की साड़ियां ही पहने। इसलिए बनारसी साड़ी का फैशन कभी भी पुराना होने वाला नहीं है।
कांजीवरम साड़ियां
तमिलनाडु की अगर कुछ खास बात है तो वहां की साड़ियां सबसे खास मानी जाती है और कम से कम एक कांजीवरम साड़ी तो लड़कियां पहनना जरूर पसंद करती हैं। तमिलनाडु के हर क्षेत्र में कांजीवरम की वेरायटी मिलती है और सेलेब्स से लेकर आम महिलाएं कांजीवरम साड़ियों की दीवानी हो गई हैं। गौरतलब यह भी है कि कांजीवरम साड़ियां का नाम कांजीवरम इसलिए भी हुआ, क्योंकि तमिलनाडु के ही कांजीपुरम नामक गांव में बनाया जाता है। यह साड़ियां मलबरी सिल्क और जरी के धागों से बन कर लोगों के सामने आती है और पूरे भारत में इसे बेहद पसंद किया जाता है। शादी-ब्याह में सिर्फ दुल्हन ही नहीं, दुल्हन के सगे-संबंधी भी इसे शौक से पहनना पसंद करते हैं।
जामदानी साड़ियां
पश्चिम बंगाल की बात करें, तो उनसे अच्छी साड़ियों का कलेक्शन किसी के पास भी नहीं होता है, वहां एक नहीं कई वेरायटी साड़ियों की मिल जाती है। जामदानी भी उनमें से एक है, खास बात यह है कि जामदानी ढाका की साड़ी है। यह साड़ियां ढाका में ही बनाई जाती हैं। इन साड़ियों को लेकर ये मान्यता है कि बांग्लादेश के नारायणगंज जिले के दक्षिणी रूपसी में जामदानी का उत्पादन होता है। इसे ढाकाई जामदानी या ढाकाई भी कहा जाता है। जामदानी के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि यह फारसी भाषा से आई है, इसमें 'जाम' का मतलब फूल और 'दानी' का मतलब फूलदान होता है। इसलिए इस साड़ी को फूलों की दानी वाली साड़ी माना जाता है। जामदानी को खरीदते समय असली और नकली जामदानी का ध्यान रखना जरूरी है, जामदानी साड़ी बहुत हल्की होती है, इसे कम्फर्टेबल तरीके से पहना जा सकता है। जामदानी साड़ियों का जिक्र चाणक्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
बालूचरी साड़ियां
बालूचरी साड़ी भी बेहद लोकप्रिय साड़ी में से एक मानी जाती है। ऐसे में आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के बालूचर गांव से इसके बनने की शुरुआत हुई थी। बता दें कि नवाब मुर्शीद अली खान ने 18वीं सदी में बालूचरी साड़ी की कला को ढाका से मुर्शिदाबाद ले आए थे, इसलिए यह बंगाल में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। बता दें कि बालूचरी साड़ियों पर महाभारत और रामायण के संदर्भ मिलते रहते हैं। इन साड़ियों को ऑफिस, किसी पार्टी फंक्शन और फॉर्मल मीट्स में भी आसानी से पहना जा सकता है, रेगुलर वेयर के रूप में भी यह साड़ियां काफी लोकप्रिय हैं। आपके लिए यह जानना भी दिलचस्प होगा कि गंगा नदी की बाढ़ में बालूचर गांव डूब जाने के बाद यह कला बांकुड़ा जिले के विष्णुपुर पहुंच गई थी। इन साड़ियों की खासियत यह है कि इन पर पौराणिक गाथाएं बुनी होती हैं और इन्हें देख कर आपको कहानी समझ में आएगी।
मूगा सिल्क साड़ियां
असम राज्य की अगर साड़ियों की बात की जाए, तो मूगा सिल्क तो सदियों से यूरोपियन देशों में लोकप्रिय रहा है। इस सिल्क या रेशम की साड़ी की खास बात यह है कि इस सिल्क को भारत के यूनिक फैब्रिक्स, हैंडलूम्स और बुनकरों की विशेषताओं के लिए जाना जाता है। यहां की साड़ियों की जो खूबी मानी जाती है कि इसे एक से ज्यादा अंदाज में स्टाइल कर सकती हैं, यह एक सस्टेनेबल साड़ियां भी मानी जाती हैं, जहां रेशमी कीड़ों को मारा नहीं जाता है, इसलिए यह जितनी पुरानी होती जाती हैं, उसकी चमक बढ़ती जाती है। मूगा सिल्क को
चंदेरी साड़ियां
चंदेरी साड़ियां भी हमेशा से लोकप्रिय रही हैं, ऐसे में आपको बता दें कि मध्य प्रदेश के चन्देरी जगह में ये साड़ियां खूब पहनी जाती हैं। यहां की साड़ियां भारत के साथ-साथ विदेश में भी काफी लोकप्रिय रहती है। इस साड़ी के इतिहास की बात करें तो मध्यप्रदेश के अशोक नगर जिले में चंदेरी एक जगह है, जो कि बुनकरों की नगरी है और यहां के जो काशीदार होते हैं, वो काफी लोकप्रिय होते हैं, इस साड़ी का जिक्र महाभारत में भी किया गया है। माना गया है कि वैदिक युग में भगवान श्रीकृष्ण की बुआ के बेटे शिशुपाल ने इसकी खोज की थी।
बांधनी साड़ियां
बांधनी साड़ियों की अगर बातचीत की जाए, तो गुजराती और राजस्थानी संस्कृति की यह खास पहचान हैं, बांधनी के बारे में आप जान लें कि इस खास प्रिंट की शुरुआत गुजरात में खत्रियों द्वारा की गई थी और इसको बनाने के लिए कपड़ों पर छोटे-छोटे गोले बना कर अलग डिजाइन में बांध दिया जाता है, फिर इन पर रंगों की होली खेली जाती है।