चंदेरी कपड़ा मूल रूप से पारंपरिक हथकरघा से बने कपड़ों में से एक है। इसका नाम मध्य प्रदेश के शहर चंदेरी से मिला है, जहां के अधिकतर घरों में हथकरघा से चंदेरी साड़ियों की बुनाई का काम किया जाता है। वहां पीढ़ियों से पारंपरिक कुशल बुनकर सूती धागे में जरी के जटिल विवरण के साथ रेशम और कपास में बुनाई करके चंदेरी फैब्रिक का निर्माण करते आए हैं, जो इस कपड़े बहुत खास बना जाता है। यही वजह है कि आम महिलाएं भी इसे अपने वार्डरोब में जरूर शामिल करना चाहती हैं। वैसे चंदेरी सिर्फ एक कपड़ा या फैशन स्टेटमेंट भर नहीं है, बल्कि एक विरासत है, जिसे आनेवाली पीढ़ियों तक सहेजे जाने की जरूरत है, क्योंकि यह हमारे हजारों साल पुराने इतिहास से जुड़ा है। आइए जानते हैं इस फैब्रिक के सफर के बारे में विस्तार से।
वैदिककाल से जुड़ा है चंदेरी का इतिहास
कहानियों की मानें तो चंदेरी के कपड़ों का इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। कहानीकार बताते हैं कि चंदेरी के कपड़ों की खोज भगवान श्री कृष्णा की बुआ के बेटे शिशुपाल ने की थी। चंदेरी में इस कपड़े की बुनाई की नींव पर इतिहासकार बताते हैं कि यह 7वीं शताब्दी के आस-पास की बात होगी, लेकिन 11वीं शताब्दी के आस-पास इसने गति पकड़ी। 15वीं शताब्दी में मालवा के सुल्तानों ने इसे संरक्षण दिया। मुगलों के शासन में इस फैब्रिक ने खूब लोकप्रियता हासिल की थी। इतिहासकारों की मानें तो रानियां अपने पोशाकों के लिए चंदेरी सिल्क के कपड़ों का ही सबसे ज्यादा इस्तेमाल करती थीं। काल में ही चंदेरी में राजकीय संरक्षण प्राप्त शाही कारखाना स्थापित किया गया, ताकि कपड़ा उत्पादन को और बेहतरीन बनाया जा सके। बदलते शासकों ने इस को अपने-अपने तरह से संरक्षण दिया।
इन बदलावों से भी है गुजरा
चंदेरी फैब्रिक बदलते वक्त के साथ खुद में बदलावों को भी जोड़ता गया है। वर्ष 1890 में बुनकरों द्वारा निर्मित यार्न के बजाय मिल द्वारा निर्मित यार्न इस्तेमाल में लाया जाने लगा। उसके बाद अंग्रेजों ने मेनचेस्टर से सूती धागों को चंदेरी लाकर इस्तेमाल में लाने लगे।जिससे कपड़े की मजबूती बहुत हद तक कम हो गयी थी। 1970 में बुनकरों ने कॉटन और सिल्क मिक्स किया, जिसके बाद कपड़ा और मजबूत होने लगा और इस बदलाव ने चंदेरी फैब्रिक में चार चांद लगा दिए, यह कहना गलत न होगा। सरकार और फैशन इंडस्ट्री समय-समय पर इस फैब्रिक के प्रचार-प्रसार में अपना योगदान दर्शाती रही है।
चंदेरी के कपड़ों की यह है खासियत
चंदेरी कपड़ों में मूल रूप से तीन तरह के मटेरियल में तैयार किया जाता है। ये प्योर सिल्क, कॉटन सिल्क और चंदेरी कॉटन हैं। इसमें से सबसे ज्यादा मांग प्योर सिल्क के बने परिधान की रहती है। चंदेरी के कपड़ों के बाद बात उनकी खासियत की, तो पारदर्शी चमकदार बारीक बुनाई इस कपड़े की सबसे बड़ी खासियत है। यह कपड़ा हथकरघा के जरिए बनाया जाता है, जिसमें मशीन का इस्तेमाल नहीं होता है। चंदेरी के कपड़ों को ऊपर से नहीं रंगा जाता है, बल्कि उसके धागों को रंगकर कारीगर हथकरघा पर इसकी बुनाई करते हैं।
ऐसे बनती हैं चंदेरी साड़ियां
चंदेरी से जुड़े कारीगरों की मानें, तो एक नॉर्मल चंदेरी साड़ी को बनाने में छह दिनों का समय लग जाता है और अगर डिजाइनर चंदेरी साड़ी की बात करें, तो इसमें 12 दिनों तक का वक्त लग जाता है। इसकी बुनाई की तरह ही चंदेरी साड़ी को बनाने का पूरा प्रोसेस बहुत मेहनत और धैर्य का होता है। सबसे पहले कारीगर एक डिजाइन तैयार करते हैं, धागे खरीदते हैं, उन्हें सही रंग में रंगते हैं और फिर उन्हें हथकरघे के लिए सटीक आकार देते हैं, जिसके बाद साड़ी की बुनाई के लिए धागा हथकरघे चढ़ाया जाता है, जिसे नाल फेरना कहा जाता है। इस काम को करने में दो कारीगरों की जरूरत होती है, जिसे वह लगभग पूरा दिन लगाकर पूरा कर पाते है, क्योंकि साड़ी की बूटी, बॉर्डर और किनारी के अनुपात में अलग-अलग रंगों के धागों को गिनकर करघे पर
चढ़ाये जाते है। अगला प्रोसेस साड़ी की बुनाई का होता हैं। साड़ी का जैसा डिजाइन वैसे उसकी बुनाई में समय जाता है, जो एक हफ्ते से कई बार एक महीने का काम भी हो सकता है। साड़ी की बुनाई पूरी होने के बाद उसे करघे से निकालने का प्रोसेस बहुत सावधानी वाला होता है।
साड़ी ही नहीं और भी आउटफिट्स में भी फिट है चंदेरी फैब्रिक
चंदेरी सिल्क का इस्तेमाल कुछ सालों पहले तक सिर्फ साड़ियों के बनाने में ही होती था, लेकिन फैशन इंडस्ट्री के बदलते समय के साथ चंदेरी फैब्रिक का इस्तेमाल दूसरे अलग-अलग तरह के आउटफिट्स बनाने में भी किया जाने लगा है। अब आपको साड़ियों के अलावा सूट के कपड़े, साफे, दुपट्टे, कुर्ते, सलवार शूट भी इससे तैयार किए हुए आसानी से मिल जाते हैं। इसके अलावा घर को सजाने के लिए वॉल डेकोरेशन, परदे और कुशन कवर भी चंदेरी के कपड़ों में मौजूद है।
सस्टेनबल फैशन भी
तेल उद्योग के बाद कपड़ा उद्योग दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाला उद्योग है। ऐसे में सस्टेनबिलिटी इस इंडस्ट्री की सबसे बड़ी जरूरत है और चंदेरी फैब्रिक इसका एक बेहतरीन विकल्प है। हथकरघा से बने कपड़े से अच्छा और क्या हो सकता है, क्योंकि इनकी बुनाई में कम से कम केमिकल्स का उपयोग होता है और पानी भी कम खर्च होता है। इसके अलावा, चंदेरी फैब्रिक खरीद कर ग्राहक लोकल कारीगरों के साथ-साथ भारत की हजारों साल पुरानी पारंपरिक कला को भी बढ़ावा दे रहे हैं।