कभी बचपन की जो किताबें होती थीं, उन्हें पढ़ने से अधिक इस बात में मजा आता था कि उस पर हैंडमेड बने जिल्द चढ़ाने होते थे। किसी को तोहफे देने के लिए भी जिल्द वाले कवर लिए जाते थे, मम्मी-पापा की एक खास जिम्मेदारी होती थी कि अगली कक्षा में जाते ही किताबों और कॉपियों में जिल्द लग जाए, इससे किताबें और कॉपियां सुरक्षित होती थीं। दरअसल, बचपन में ऐसी कई चीजें थीं, जो हमें सहेजना सिखाती थी, इस बात का एहसास कराती थी कि अगर कोई चीज एक बार खरीद ली है तो उसे लम्बे समय तक कैसे सहेजना है, दोबारा खरीदने के विकल्प होते ही नहीं थे। आइए जानें, क्यों सहेजने की कला का बरकरार रहना जरूरी है, ताकि भविष्य में आप हर कदम पर सहेजना सीखें, फिर चाहें वे रिश्ते हों या सामान। आइए जानें विस्तार से।
नानी-दादी से जुड़े बर्तन
इन दिनों चूंकि ऑनलाइन में इतने विकल्प आ चुके हैं कि आपको अपने घर की पुरानी रखी चीजों का इस्तेमाल करना अच्छा नहीं लगता है। आप यही सोचती हैं कि उसको सहेजने से अच्छा है, नया खरीद लें, फिर पीतल, ताम्बे के बर्तनों की देखभाल करना काफी महंगा और कठिन भी होता है, ऐसे में हल्के और फैंसी डिजाइनर बर्तन आप अधिक इस्तेमाल करने लगते हैं। लेकिन वास्तव में आपको इस बदलाव के बारे में कई बार सोचने की जरूरत है, चूंकि यह भी एक तरह से आपकी धरोहर को सहेजने जैसा ही होता है। बच्चें जब बचपन से देखेंगे कि घर में पुराने बर्तनों को भी सहेजने की संस्कृति है, तो वे भी इस कला में पारंगत होंगे और अपनी जेनरेशन को पुरानी चीजों को कबाड़ नहीं समझने देंगे।
पढ़ाई से जुड़ीं चीजें
बच्चों को कभी भी कॉपी, पेंसिल या उनके जो भी स्टेशनरी के सामान हैं, उन्हें जरूरत से ज्यादा खरीद कर न दें और एक टूटते ही अगर आप दूसरी देंगी, तो निश्चित तौर पर वे इसका फायदा उठाएंगे और आदत बना लेंगे, फिर वे चीजों की बर्बादी सीखेंगे, न कि कम में कैसे सर्वाइव करना है, इसका तरीका सीखेंगे, इसलिए उन्हें एक-एक करके चीजें दें और अपने सामान की बर्बादी करने की आदत न डालें, किताबों में जैसे जिल्द लगाना सिखाएं, ताकि किताबें और कॉपी फटे नहीं, हर बात पर नयी चीज खरीदने के बारे में न सोचें।
इलेक्ट्रॉनिक्स पर भी ध्यान
याद रखें कि अगर बच्चों में एक के बाद एक गैजेट्स खरीदने की लत लग गई, तो आपको यह लत काफी भारी पड़ेगी, उन्हें होश संभालते हुए, हर नए गैजेक्ट्स न दें, बल्कि उन्हें धीरे-धीरे तकनीक के करीब लाएं और धीरे-धीरे उन्हें समझाएं कि इन चीजों के लिए मेहनत करनी पड़ती है, घर में अगर पुराने रेडियो, टीवी, स्कूटर, कार या कोई भी गैजेक्ट्स हैं, तो कबाड़ समझ कर उनके इस्तेमाल से हिचकिचाए नहीं, बच्चे इससे ही समझ पाएंगे कि नयी चीजें हासिल करने के लिए मेहनत करनी होती है।
पुराने एल्बम का टूर
इन दिनों डिजिटल दुनिया में सब कुछ डिजिटल है, यादें भी, जज्बात भी। अब फोटो एल्बम भी नहीं रखे जाते हैं, अब लोग रखते हैं सारी तस्वीरें फोन में ही, लेकिन आप कोशिश करें कि अपने बच्चों को तस्वीरों का समय-समय पर कोलाज बनाने की संस्कृति विकसित करें, फैमिली ट्री बनाएं, उन्हें सिखाएं, ताकि भविष्य में वे भी सहेजें।
मरम्मत करने की कला
बच्चों को बचपन से ही किसी चीज की बिगड़ी हुई हालत को मरम्मत करने की कला सिखाएं, मरम्मत करने की सोच और समझ उनमें बचपन से आएगी, तो इससे वे मरम्मत करने की कला में पारंगत होंगे और फिर वे भविष्य में चीजों को बिगाड़ने की जगह संवारने वाली सोच से आगे बढ़ेंगे, इसलिए मरम्मत करना, फिर से रीयूज करने की कला के बारे में कला आपको सीखना जरूरी है। बच्चों को ज्यादा से ज्यादा DIY करने के लिए प्रेरित करें।