कहते हैं सोना जितना पुराना होता है, वह अपनी चमक और कीमत को उतना ही बढ़ाता जाता है। ठीक इसी तरह भारतीय संस्कृति की धरातल पर कई ऐसी अनमोल चीजें हैं, जो भले ही पुरानी परंपरा का हिस्सा है, लेकिन वे सभी बहुमूल्य हैं। इसी फेहरिस्त में अपने लाल रंग की चमक बिखेर रहा है आलता। खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और बंगाल के साथ मिथिला और असम में आलता की छाप आज भी उसकी भूमि पर जीवित है। वो भी केवल शृंगार के तौर पर नहीं, बल्कि अन्नदाता के कदमों से होते हुए आलता हाथों की कला से लेकर नृत्य तक में अपनी अमिट छाप बरकरार रखे हुए है। आइए जानते हैं विस्तार से कैसे आलता सिर्फ भारतीय परंपरा में शृंगार का हिस्सा नहीं है।
एक लाल रंग और उसके कई नाम
हिंदू मान्यताओं में आलता सोलह शृंगार में से सबसे जरूरी माना गया है। भारत में आलता का प्रचलन बंगाल, बिहार, ओडिशा से शुरू हुआ है। इसके बाद आलता उत्तर प्रदेश के साथ मिथिला और कला के क्षेत्र में पहुंचा है। यही वजह है कि आलता मुख्य तौर पर बंगाली शब्द है। हिंदी में इसे महावर कहते हैं। आलता को बनाने की शुरुआत कच्ची लाख को पीस कर और पानी में पका कर हुई, हालांकि बीते कुछ सालों से रंगों को पानी में मिलाकर आलता को मिलावटी रूप में बदल दिया गया है। यही वजह है कि जब भी आलता की गुणवत्ता की बात की जाती है, तो सबसे अधिक बंगाल और ओडिशा में आलता का उत्पादन सही माना जाता है। वहां पर वर्तमान में भी पुरानी पद्धति के अनुसार आलता का निर्माण किया जाता है।
आलता पर हो हर महिला का हक
आलता का विवरण केवल शादी के दौरान शृंगार के तौर पर अधिक किया जाता है, जो कि कहीं ना कहीं आलता के महत्व को सीमित करता है। इस बारे में लेखिका अणु शक्ति सिंह कहती हैं कि आलता को सोलह शृंगार में से एक माना जाता है। बंगाल में खास तौर पर विवाहित महिला आलता का प्रयोग हर त्योहार में करती हैं, जिसे खुशी का प्रतीक माना जाता है। मेरा सवाल यह है कि आलता केवल विवाहित महिला की पहचान के तौर पर क्यों संकुचित है? अगर यह शृंगार की ही चीज है, तो हर महिला का आलता के उपयोग पर अधिकार होना चाहिए। विधवा महिला हो या फिर कुंवारी लड़कियां हर किसी की जिंदगी में आलता का महत्व वहीं होना चाहिए, जो कि शृंगार से जुड़े दूसरे सामानों का होता है, जैसे तेल, कंघी और बाकी सब। आलता का रंग मनोहर और आकर्षक है, तो वह कुछ ही महिलाओं से घिरा हुआ क्यों है।
मधुबनी चित्रकारी में आलता का रंग
अणु शक्ति आगे कहती हैं कि आलता को लेकर मिथिला में मधुबनी कला भी बनाई जाती है। मधुबनी कला में भी आलता का रंग दिखाई देता है। इसलिए आलता के महत्व को चित्रकारी के तौर पर विश्व स्तर पर बढ़ाना चाहिए, क्योंकि आलता से रंगे देवी के पैर जितने सुंदर लगते हैं, उतना ही, मिथिला में कई जगह दीवारों पर इसके छापे भारतीय कला की दिव्यता का बखान करते हैं। मुझे खुद बहुत पसंद है आलता लगाना। मुझे ऐसा लगता है कि हम ही लोग हैं, जो आलता की परंपरा को आने वाली पीढ़ी तक लेकर जा सकती हैं। जब मैं छोटी थी, तो मां के पैरों में आलता की सुंदर चित्रकारी को देखा है। उसे देखकर आलता लगाने का शौक मेरे अंतर्मन में आज भी बसा हुआ है। पीढ़ी दर पीढ़ी इसी तरह इसका प्रचलन बढ़ना चाहिए। इसके साथ अगर आलता को मधुबनी चित्रकारी के उदाहरण के तौर पर भी जीवित रखा जाए, तो इसकी आने वाली पीढ़ी के बीच पहुंचने के आसार में इजाफा होता है।
आलता से किसानों के पैरों की सुरक्षा
जिस तरह मधुबनी चित्रकारी में आलता की महिमा रंगों के तौर पर दिखती है। ठीक इसी तरह मध्य प्रदेश में कई स्थानों पर आलता को महउरा बोला जाता है और वहां पर अनाज की उपज करने से पहले महिलाएं आलता से अपने पैरों को सजाती हैं। खासतौर पर बारिश के मौसम में आलता महिला और पुरुष किसानों की पैरों की रक्षा करता है। इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य यह है कि बारिश के मौसम में धान के साथ अन्य फसलों की खेती के दौरान पैरों के तलवे कट जाते हैं। ऐसे में महउरा लगाने से पैर की हिफाजत होती है। इसे बनाने के लिए पान के पत्ते या लाक का इस्तेमाल होता है।
पैरों में आलता लगाने का रिवाज
शादी के समय दुल्हा और दुल्हन दोनों के पैरों में आलता लगाने का रिवाज उत्तर प्रदेश -बिहार और बंगाल में हैं। जहां पर बंगाल में दुल्हन- दूल्हे के हाथ-पैर को खास तौर पर आलता से खूबसूरत कला के साथ सजाया जाता है। ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश-बिहार में भी दुल्हन- दूल्हे के साथ परिवार के कई सदस्य शादी के मौके पर आलता को लगाना शुभ मानते हैं। विज्ञान के अनुसार महावर को शादी के कार्यक्रम के दौरान पैरों में लगाने से एड़ियों को ठंडक मिलती है, जिससे तनाव कम होता है। यहां तक मेहंदी के चलन से पहले आलता को ही शुभ के तौर पर हाथों में लगाया जाता था।
आलता महिला के जीवन में बताती है रंग का महत्व
लाल रंग के महावर को महिलाएं पैरों में लगाकर अपने जीवन की खुशहाल शुरुआत करती हैं। आलता को लेकर एक पुरानी मान्यता ऐसी है कि जब भी पैरों में आलता लगाकर महिलाएं अशोक वृक्ष के पास घूमती थीं, तो वहां पर कलियां खिल जाती थीं। इसे ही वसंत का आगाज माना जाता था। यही वजह है कि वसंत पंचमी के दौरान यूपी, बिहार, बंगाल और ओडिशा में आलता के लाल रंग की रौनक के साथ वंसत का स्वागत किया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा के दौरान देवी की मूर्ति के पैरों में आलता लगाकर उन्नति , प्रगति और सुख की कामना की जाती है। साथ ही कई जगहों पर जब भी घर में लड़की पैदा होती है तो उसे सौभाग्य का प्रतीक मानते हुए पैरों में आलता लगाकर, उसकी छाप सफेद कपड़ें पर ली जाती है। इसे बेटी के आगमन का सुखमय चिन्ह माना जाता है। दुर्गा पूजा पर भी आलता पहनना बंगाली महिलाओं के लिए खुशियों भरा अनुष्ठान है।
भारतीय नृत्य कला में आलता का महत्व
भारतीय शास्त्रीय नृत्य कला यानी कि कथक और भरतनाट्यम में पैरों और हाथों में आलता लगाना शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी, ओडिसी, कथक और मणिपुरी के साथ असम का लोकनृत्य बिहू भी आलता के शृंगार के बिना अधूरे माने गए हैं। इन सभी नृत्यों के दौरान हाथों की मुद्राओं को आकर्षण बनाने के लिए आलता के लाल रंग की भव्यता अहम है। नैंसी ठक्कर, प्रोफेशनल भारतीय क्लासिकल डांसर और आर्टिस्ट बताती हैं बचपन से मैं कथक डांस से जुड़ी रही हूं। हमारे स्कूल में प्रार्थना नृत्य से पहले हाथ और पैर में आलता लगाना जरूरी होता था। आलता के साथ हम हाथ में दिया रखकर नृत्य करते थे। आलता भारतीय नृत्य की खूबसूरती को अधिक निखार देता है। मेरे पड़ोस में कई सारी बंगाली महिलाएं रहती थीं। मैं बचपन से देखती आ रही हूं कि बंगाली महिलाएं स्नान करने के बाद अपने बाल सुखाने के बाद आलता लगाती थीं। वह आगे कहती हैं कि कथक में हमें सिखाया गया है कि हाथ और पैर के जरिए नृत्य की मुद्राएं दिखाने के लिए आलता से उसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। आप पुरानी हिंदी फिल्मों को देख लें, अभिनेत्री मीना कुमारी से लेकर वैंजयती माला तक ने क्लासिकल डांस करने के दौरान आलता लगाया है। मोहे रंग दो लाल सांग में दीपिका पादुकोण के हाथों को आलता के लाल रंग से सजाया है। मेरा मानना है कि आने वाली पीढ़ी में आलता की महत्वता को जिंदा रखने के लिए हमें आलता को मॉर्डनाइज करना चाहिए। जैसे हमें जींस और टॉप के साथ आलता से अपने पैर को सजाना चाहिए, जिस तरह लोकप्रिय कोरियोग्राफर शामक डावर अपने डांसर को बिंदी जरूर लगवाते हैं, जो कि मॉडर्न और एथनिक का मेलजोल होता है। मैं भी आलता के साथ इस तरह मॉर्डन अप्रोच करने के साथ आज की पीढ़ी को आकर्षित करने की कोशिश करूंगी।
पौराणिक कथाओं में भी आलता
हिंदू पौराणिक कथाओं में भी आलता को सम्मान का प्रतीक माना गया है। कई ऐसे चित्रण हैं, जहां पर कृ्ष्ण अपनी प्रिय राधा के चरणों में आलता लगाते हुए दिख रहे हैं। इसे स्त्री के सम्मान से जोड़ा गया है। वहीं दुर्गा और लक्ष्मी की छवियों में भी आलता समृद्धि, ताकत और वैभव और धैर्य के स्वरूप के तौर पर दिखाई पड़ता है।
आलता पर किए गए हमारे इस छोटे से अध्ययन के दौरान यह ज्ञात हुआ है कि आलता केवल लाल रंग की गाढ़ी लकीरें नहीं हैं, जो कि हमारे पैरों और हाथों की शोभा बढ़ाती हैं, बल्कि यह हमारी धरोहर का ऐसा अमिट निशान है, जो कि सालों से हर व्यक्ति के जीवन में प्रेम, संघर्ष, शक्ति, उत्साह के साथ ताकत दर्शाने वाला सबसे शक्तिशाली रंग है और जब तक जीवन है, तब तक आलता के लाल रंग के साथ हमें हमारे जीवन के हर पड़ाव को पार करने के चिन्ह के तौर पर इसका आचरण करना चाहिए।