चारों-तरफ हंसी-ठिठोली हो रही है, कोई किचन में तवे पर लौंग डाल कर, उसके धाह को मेहंदी लगे हाथों पर ले रही हैं। तो कहीं मेहंदी के डिजाइन ढूंढे जा रहे हैं। कहीं किचन में घी में गुझिया बन तली जा रही हैं, तो कहीं इसे खूबसूरत रूप दिया जा रहा है। कहीं इस बात की जल्दबाजी मची है कि हमारी हरी रंग की साड़ी में फॉल या पिको हुआ या नहीं। मेहंदी की भीनी खुशबू से लेकर, मीठे पकवान के स्वाद तक, हाथों में खनकती चूड़ियां और साड़ी में सजी महिलाओं के लिए तीज को किसी एक वजह में सीमित करना इस पर्व की तौहीन ही होगी। दरअसल, महिलाओं के सामूहिक उल्लास के पर्व तीज को सिर्फ पति की लंबी कामना करने वाला पर्व कहा जाना, इस पर्व के रंग-बिरंगे रूप को कमतर आंका जाना है, क्योंकि यह पर्व सिर्फ जहां एक तरफ प्राकृतिक हरियाली का स्वागत करना है, वहीं सामूहिक रूप से महिलाओं के बीच के अपनेपन को कम से कम एक दिन जश्न के रूप में मनाने का भी है। यही वजह है कि हमारे लोक गीतों में भी सिर्फ पति की कामना करने वाले शब्दों के जिक्र नहीं आते, बल्कि इसका कैनवास काफी विस्तृत है, आइए इसके बारे में विस्तार से जानें।
हमारे देश की संस्कृति की जब भी बात आती है, तो उसका जिक्र कई किताबों में भी यही है कि हमारा देश तीज-त्यौहारों के देश है। इसकी खास वजह यही है, क्योंकि एक ही साल में अलग-अलग जगहों पर अपने अंदाज में पर्व त्यौहार मनाये जाते हैं और इन सभी तीज त्यौहारों की खासियत यही रही है कि इसमें महिलाओं ने हमेशा ही बढ़-चढ़ कर न सिर्फ हिस्सा लेती हैं, बल्कि इसे अपने रंगों से भी सजाती हैं। ऐसे में तीज भी हमारे देश में एक ऐसा त्यौहार है, जिसे बिहार, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश में खासतौर से मनाया जाता रहा है। हरतालिका तीज से लेकर हरियाली और कजरी तीज भी मनाये जाते हैं। बिहार में हरतालिका तीज की धूम खूब होती है, जिसमें महिलाएं सामूहिक रूप से मिल कर हर्षोउल्लास मनाना पसंद करती हैं।
हरियाली प्रधान उत्सव है तीज
तीज के विस्तृत स्वरूप के बारे में बात करते हुए मशहूर संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित बिहारी लोकगायिका बताती हैं कि हमारे देश में हमेशा ही कृषि को अहमियत दी गई है और यह भी लोक परंपरा रही है कि उनका स्वागत किया जाए, ऐसे में तीज, सावन, भादो और आषाढ़ ऋतू के सेलिब्रेशन का समय होता है, जब एक तरह से महिलाएं प्रकृति को धन्यवाद कहती हैं। बिहार की तीज सावन महीने के अंत सेलिब्रेट किया जाता है। इसमें गौर करें तो एक बात समझने वाली है कि सावन के महीने में बारिश होने के कारण भी काफी काम नहीं हो पाते हैं, तो दूसरी तरफ इस समय महिलाओं का घर से निकलना मुश्किल होता है, पुरुषों को देखें तो वह तो कई बार आपस में मिल लेते हैं, जबकि महिलाओं के लिए यह एक दिन होता है, जब वे अपनी सखियों के साथ मिलती-जुलती हैं, झूला झूलती हैं और मेहंदी लगा कर एक दूसरे के साथ उल्लास मनाती हैं।
एक दिन होता है, जब सब दुख भूल कर सिर्फ खुशियां बांटती हैं
चंदन तिवारी यह भी दोहराती हैं कि इस पर्व को इस तरह से भी देखा जाना चाहिए कि महिलाएं, जो कि घर में कई तरह की मानसिक और घरेलू परेशानियों को झेल रही होती हैं, उन सबसे कम से कम एक दिन तो मिलता है उन्हें कि वह सुकून से जी सकें। यह जरूरी नहीं कि हर बार बातचीत से ही इसे दर्शाया जाए, कई बार ऐसे सामूहिक पर्व के जश्न में भी दूसरी महिलाओं से अपनेपन और बहनापा वाला एहसास बांट लेती हैं। इसलिए भी इस पर्व को विस्तृत परिवेश में देखा जाना चाहिए।
लोक गीतों में नहीं है केवल पुरुषों के ही उम्र की कामना
चंदन कहती हैं कि तीज में सुहागिनों के श्रृंगार की भी बातें हैं, तो साथ ही साथ उनकी आकांक्षाओं का भी जिक्र नजर आता है। आप इसे इस रूप में देखें तो कई लड़कियां जरूरी नहीं कि सिर्फ किसी पुरुष के लिए ही साज श्रृंगार करें। वह खुद की खुशी के लिए भी जीती हैं। साथ ही आपस में हंसी- ठिठोली करना भी एक खूबसूरत रूप है इनके अपनेपन का। तीज के गीतों में इन एहसासों का भी संदर्भ नजर आता है।
पकवान, खरीदारी सबकुछ साथ-साथ
तीज पर्व महिलाएं कभी अकेली सेलिब्रेट नहीं करती हैं। इसके जो पकवान बनाए जाते हैं, जैसे गुझिया और ठेकुआ। यह सब भी एक दूसरे के साथ बैठ कर, गीत गाते हुए, एक दूसरे से अपने मन की बातों को शेयर करते हुए भी वह अपनी जिंदगी के खास पल को जी पाती हैं। इसकी खरीदारी करते हुए भी देखें तो वह अपनी सखी सहेलियों से सलाह मशविरा या मिल कर खरीदारी करने जाती हैं। एक दूसरे के हाथों में कोई मेहंदी लगाती हैं, तो कोई तवे पर लौंग सेंक रही हैं कि उससे मेहंदी में रंग चढ़े, कोई नींबू और चाशनी लेकर तैयार है, सहेली के मेहंदी लगे हाथों में लगाने के लिए। यह सब उनकी जिंदगी में किसी बड़े जश्न से कम नहीं। ऐसे पर्व मनाए जाते रहना इन खूबसूरत कारणों से जरूरी है ।
बेटियां आज भी मायके का अहम हिस्सा हैं
चंदन तिवारी तीज पर्व की परंपरा की तरफदारी में एक बेहद खूबसूरत बात करती हैं। वह कहती हैं कि इस पर्व में माता-पिता बड़े ही प्यार से अपनी शादीशुदा बेटियों को पकवान, कपड़े और श्रृंगार का सामान भेजते हैं। इस बहाने वह यह भी दर्शाते हैं कि वह अब भी उनके जीवन का अहम हिस्सा हैं और अब भी उन्हें उनकी परवाह है और उनकी खुशियों में वह अपना छोटा सा योगदान देते हैं।
शादी जीवन की बड़ी परिघटना, एक नए जीवन की शुरुआत का जश्न
चंदन इस बारे में भी अपनी राय रखती हैं कि किसी भी लड़की के लिए उसके जीवन की बड़ी घटना होती है शादी, ऐसे में जब शादी के बाद सालगिरह होती है तो अमूमन वह एकल ही सेलिब्रेट होता है, जबकि तीज में सबके साथ साज और श्रृंगार को सेलिब्रेट करती हैं।
घर परिवार की महिलाओं में भी बढ़ती हैं नजदीकियां
यह संभव है कि आप अगर एक ऐसे घर का हिस्सा हैं, जहां कई महिलाएं साथ रहती हैं और उनके आपस में एक झिझक है कि वह बातें नहीं करती हैं। इस पर्व में एक साथ इतने सारे काम करने को होते हैं कि आपस में एक बातचीत के तार जुड़ेंगे ही और इसी बहाने हो सकता है कि आपको आपके परिवार में ही कोई अच्छा दोस्त मिल जाए, यह भी संभव है कि आपकी आपस में जो गलतफहमियां हैं, वे भी दूर हो जाएं।
तो इस लिहाज से भी यह पर्व महिलाओं को कई वजह देता है, उनकी आकांक्षाओं को जीने की आजादी, अन्य महिलाओं से मिल कर सामूहिक हर्षोल्लास मनाने का एक खूबसूरत मौका और अपनी जिंदगी में एक दिन सारे सुख-दुख भूल कर खुल कर मुस्कुराने का।