पर्यावरण, सस्टेनेबिलिटी और मानव जीवन, इनका जुड़ाव ऐसा ही जैसे एक सिक्के के दो पहलू। पर्यावरण की सुरक्षा को प्रबल बनाने के लिए ही सस्टेनेबिलिटी का जन्म हुआ है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि हम सभी बचपन से ही किसी न किसी वजह से अपने संस्कृति और सभ्यता के जरिए सस्टेनेबिलिटी को महसूस करने के साथ उसका अनुसरण अपने जीवन में करते आए हैं। आज इस लेख के जरिए एक बार फिर हम सस्टेनेबिलिटी के उस एहसास को छूने की कोशिश कर रहे हैं, जो हमारे जीवन के लिए बड़ी सीख है। आइए जानते हैं विस्तार से।
मिट्टी : एकाग्रता और धैर्य की सीख
कहते हैं किसी भी देश की संस्कृति की महक वहां की मिट्टी से आती है। पानी पीने के मटके से लेकर कुएं से पानी निकालने तक, यहां तक कि बर्तनों में भी मिट्टी का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जाता है। अभी भी ग्रामीण इलाके में मिट्टी की कई सारी चीजें दिखाई देती हैं, जो कि गांव की सभ्यता, संस्कृति को दर्शाती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए, तो मिट्टी के बर्तन का उपयोग खान-पान में करने से उसमें कई तरह के पोषक तत्व जैसे आयरन, कैल्शियम मिलते हैं, वहीं दूसरी तरफ अगर प्रकृति की इस सस्टेनेबिलिटी से जीवन की सबसे बड़ी सीख भी मिलती है। मिट्टी के बिखरे हुए टुकड़ों को जिस तरह एक करके धैर्य के साथ कई तरह की इस्तेमाल वाली चीजें बनाई जाती है, वो यह सीख देती है कि हमें जीवन के कई सारे अच्छे-बुरे अनुभवों को जोड़कर खुद को हमेशा एकाग्रता और आत्मविश्वास के साथ खड़ा रखना चाहिए।
चारपाई और तख्त : मजबूती की सीख
हाल ही में एक खबर सामने आयी थी कि जूट और रस्सी की बुनी हुई चारपाई अमेरिका के एक ई-कॉमर्स वेबसाइट में लाखों की कीमत पर बिक रही है। आप खुद ही सोचिए कि कैसे सालों पुरानी हमारी संस्कृति का हिस्सा रहते आ रही चारपाई ने अपने महत्व को बरकरार रखा है। लकड़ी की चारपाई और तख्त पर सोने से हड्डियों को मजबूती मिलती है। शायद, इसी वजह से वर्तमान में चारपाई और तख्त ने अपनी महंगे बेड के सामने खुद को कीमती बनाए रखा है। देखा जाए, तो चारपाई और तख्त यह सीख देते हैं कि कैसे सख्त जीवन आपको मजबूत बनाता है।
जूट और रस्सी : किसी को छोटा नहीं मानने की सीख
जूट एक तरह का रेशेदार पौधा है। इसके रेशे से बोरे, कपड़े, बैग, टाट, रस्सियां और कागज के साथ कई तरह के इस्तेमाल करने वाली चीजें बनाई जाती हैं। यह काफी दिलचस्प है कि जूट की खेती करने वाले किसानों को नकदी किसान कहते हैं, क्योंकि जूट की खेती नकदी होती है और इससे लोग सीधे नकद कमाई करते हैं। घर की चारपाई से लेकर सामान रखने वाली टोकरी तक सबकी बुनाई जुट से की जाती रही है। वक्त के साथ जूट की मांग फैशन इंडस्ट्री में बड़ी है। पैंट से लेकर साड़ी तक, यहां तक कि ज्वेलरी में भी जूट का इस्तेमाल किया जाता है। हमें यह समझना चाहिए कि जिस तरह जूट के पौधे का एक छोटा- सा रेशा उपयोगी बन जाता है, ठीक इसी तरह कभी-भी किसी काम या व्यक्ति को छोटा नहीं समझना चाहिए।
चूल्हे से मिली : साहस की सीख
वक्त के साथ आधुनिकता ने हमारे जीवन में ऐसे जगह ली है कि मिट्टी के चूल्हे शहर के साथ ग्रामीण इलाकों में भी दिखना बंद होते जा रहे हैं। स्टोव, गैस, माइक्रोवेव हमें वक्त की सहूलियत देते हैं, लेकिन वो सुख नहीं देते हैं, जो कि मिट्टी के चूल्हे से मिलता है। पुराने समय में यह माना जाता था कि मिट्टी के चूल्हे पर खाना स्वादिष्ट, स्वास्थ्यवर्धक और सुंगधित बनता है, तभी तो आप देखेंगे कि अभी भी कई बड़े रेस्टोरेंट में मिट्टी के चुल्हें का इस्तेमाल कुछ खास डिश बनाने के लिए करते हैं, वहीं देखा जाए, तो जिस तरह मिट्टी के चूल्हे के अंदर की आग में खाना धीमी आंच में पकाया जाता है, ठीक इसी तरह जीवन में किसी भी काम को करने के लिए साहस की आग पर धैर्य को रखते हुए कामयाबी का स्वाद चखना चाहिए।
एक्का गाड़ी ( हाथ गाड़ी) से मिली : प्रकृति से प्रेम की सीख
गांव की सबसे लोकप्रिय सवारी के तौर पर एक्का गाड़ी का चलन काफी रहा है। अभी भी ग्रामीण इलाकों में खेती का सामान उठाते हुए एक्का गाड़ी दिख जाएगी, लेकिन एक समय ऐसा था, जब लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए खुद के घर में मौजूद लकड़ी की एक्का गाड़ी का इस्तेमाल सवारी के तौर पर करते थे। बिना किसी प्रदूषण के प्रकृति की गोद में बैठ प्रकृति का नजारा लेते हुए एक्का गाड़ी अपनी सवारी को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाती थी। फिलहाल ई-रिक्शा, गाड़ी, और कई तरह की अन्य यातायात सुविधा और जल्दी पहुंचने की जल्दबाजी के कारण एक्का गाड़ी अपनी अहमियत खो चुकी है। एक्का गाड़ी पर्यावरण को सुरक्षित रखने की सीख के साथ प्रकृति से प्रेम करने की सबसे जरूरी सीख देती है।