कभी सोचा है या पलट कर देखा है कि आखिर मॉम्स या हमारी मां ने कितनी शिद्दत से कुकिंग डायरीज बनाई होती हैं, इस वीकेंड एक बार उन्हें पलट कर देखें। यकीन मानिए सिर्फ खाते हुए नहीं, बल्कि पढ़ते हुए भी आपको आनंद का जायका मिलेगा।
मां की डायरी से बतियाती एक बेटी
उस दिन अचानक एक दोस्त ने बताया कि उनकी मां अब भी काफी सारी डिशेज बनाने के लिए अपनी डायरी का रेफरेंस लेती हैं और अब भी वह कोई नयी रेसिपी देखती हैं, तो उन्हें नोट करना या लिखना नहीं भूलती हैं, ऐसे में मैं अचानक से ठहर गयी और बरबस ही मेरे मन में ख्याल आया, अरे ऐसा तो मां भी करती थी। वे सारी डायरियां मां के जाने के बाद, मैंने सहेज कर तो रखी है, लेकिन अगर ईमानदारी से कहूं तो वर्षों बीते मैंने उनके एक भी पन्ने पलट कर देखा ही नहीं है। मगर अब जब एक बार फिर से पन्ने पलटे, तो मां से खुद को दोबारा कनेक्ट कर पायी और फिर मेरे जेहन में यह सवाल भी आया कि हमारा कुकिंग चैनल, सोशल मीडिया स्टॉप तो वहीं हुआ करती थीं। उस दिन मुझे फिर से उस डायरी की अहमियत समझ आयी। दरअसल, मां की डायरियों को हर बेटी को सहेज कर रखना ही चाहिए। यह सच है कि हो सकता है कि अमूमन डायरी लिखने या मेंटेन करने की कला के बारे में जब भी जेहन में बात आती है, हम यही मान बैठते हैं कि उन डायरियों में किसी कवि की कविताएं नजर आ जाएंगी या शायद जिंदगी का लेखा-जोखा, लेकिन हकीकत यही है कि छोटे शहर की मांओं की डायरियां आज भी कुकिंग रेसिपीज, स्वेटर बुनने के ढेर सारे तरीकों से रमी रहती है। ऐसे में कई बार मेरे जेहन में यह भी बात आयी है कि आखिर बड़े शहरों में महिलाएं, जिन्होंने ब्लॉग और वी ब्लॉग जैसे माध्यम अपनाएं, छोटे शहर में होम मेकर को ऐसी डायरियां मेंटेन करने में अब भी एक लुत्फ क्यों आता है, जबकि अब तो ऐसे कई माध्यम हैं, जिन पर सिर्फ एक क्लिक करके आप हजारों रेसिपीज से लेकर दूध से दही कैसे जमाएं तक के टिप्स मिल जाते हैं और जैसा कि मैंने आपको बताया, मैंने खुद वर्षों से न जाने ऐसी कितनी रेसिपी बनाई होंगी, जिसके लिए मैं मां की डायरी से मदद ले सकती थी, लेकिन मैंने उनकी डायरियों के पन्ने कभी पलट कर नहीं देखे हैं, हमेशा आसान तरीका ही चुना।
सो, तो हमने बात यहां शुरू की थी कि आज भी तकनीकी दौर में कुछ होम मेकर्स को डायरी वाला तिलिस्म क्यों भाता है। तो, उस दिन मेरी दोस्त की सास ने एक सवाल मुझसे किया कि कैसे कोई शादी के बाद बच्चे की प्लानिंग नहीं करके सारा पैसा मौज मस्ती और घूमने में गंवा सकता है, आखिर उन्हें भविष्य के बारे में तो सोचना चाहिए। मेरे पास न जाने कैसे, बस उस पल ही यह जवाब आया कि आंटी, हर इंसान को एक नशा होता है, किसी को सिर्फ पैसे जमा करने का, किसी को सिर्फ पैसे खर्च करने का, कोई घूमना चाहता है, कोई सिर्फ खाना चाहता है और किसी को परिवार का नशा होता है, जैसा आपको है कि आप अपने परिवार में ही लीन हैं और बस यही चाहती हैं कि परिवार की हर खुशी से आपकी खुशी जुड़ी है और आप इसे बेहद एन्जॉय भी करती हैं। तो इसमें न तो कोई गलत है और न ही सही और जाहिर है कि किसी को भी जज करना सही नहीं है। दरअसल, अब उस बात पर गौर करती हूं तो एक कनेक्शन इस डायरी के संदर्भ में भी महसूस करती हूं कि कहीं न कहीं वे होममेकर्स, जिन्हें अपने परिवार की हर छोटी-बड़ी जरूरतों के साथ, शौक पूरे करने का भी शौक है, वे जितनी शिद्दत से अपने परिवार के खान-पान की संस्कृति से जुड़ी हुई हैं, उतनी ही शिद्दत से उनका ध्यान रेसिपीज को मेंटेन करने में जाता है। ठीक बुनाई के साथ भी यह बात आती है। लेकिन बात यहां तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि यह हमारा अपनी हर होम मेकर्स और मांओं को कृत्यज्ञता दिखाने का फर्ज तो बनता ही है कि हम उनकी उस शिद्दत का सम्मान करें और सिर्फ अलमारी के किसी कोने में उनकी डायरी को महज रखने की बजाय, उन्हें निकालें, कभी उनकी रेसिपी बनाने की कोशिश करें, सोशल मीडिया और यू ट्यूब चैनलों से दूरी बना कर मां की डायरी का जायका लिया जाए, यकीन मानिए इस नयेपन का भी अपना मजा होगा और मैंने यह मजा अभी-अभी इसी वीकेंड पर उठाया है, लुत्फ में ताजगी भरी है, इसलिए आपलोगों से भी शेयर की। वैसे एक बात और बता दूं मां की हर रेसिपी में एक सीक्रेट जरूर होता है और वह कभी आपको किसी कुकिंग चैनल में नहीं मिल सकता। सो, मां की इस धरोहर को सहेजने के साथ-साथ हिस्सा बना लें जिंदगी में। यकीनन एक अलग मजा आएगा। तब तक मैंने तो वायदा किया है कि हर वीकेंड वन रेसिपी मां वाली बनाऊंगी। इस बार कटलेट ट्राई किया था, मजेदार चटनी के साथ।
और अंत में एक बार मैं स्वीकारना चाहूंगी कि मेरी मां की हैंडराइटिंग(लिखावट) तो बेहद खूबसूरत रही, सो आज भी वह पठनीय हैं, लेकिन मैं कभी कोई ऐसी डायरी लिखती तो यकीनन मेरी बेटी को पढ़ने में मशक्कत करनी पड़ती और थक हार कर वह फटाफट वाला चैनल माध्यम ही अपनाती।
हाहाहा !!