भारत के सबसे खूबसूरत परिधानों में से एक मानी जाने वाले परिधानों में साड़ी की गिनती होती है. अब यह फैशन का रूप है, लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता में, महिलाएं, इसका इस्तेमाल खुद को ढकने के लिए किया करती थीं. साड़ी की शुरुआत कॉटन साड़ियों से हुआ. लेकिन धीरे-धीरे कई रूपों में इसका विस्तार हुआ और अब तो भारत में जितने प्रदेश और प्रांत हैं, उतनी साड़ियां हैं. जैसे कांजीवरम, बनारसी, बालचुरी, माहेश्वरी, चंदेरी और ऐसी कई साड़ियों की वेरायटी है, जो उस प्रदेश की पहचान बन गयीं. आइए, जानें
कांजीवरम साड़ी के लिए मशहूर है तमिलनाडु
लड़कियों की शादी हो और उनके वार्डरोब में दो-तीन कांजीवरम साड़ियां न हों, ऐसा हो ही नहीं सकता है, सेलेब्स से लेकर, आम लड़कियों तक कांजीवरम साड़ियां पहनना पसंद करती हैं. कांजीवरम साड़ियां, तमिलनाडु के ही कांजीपुरम नामक गांव में बनाया जाता है. यह साड़ियां मलबरी सिल्क और जरी के धागों से बनती हैं. इसे बनाने में इतनी मेहनत लगती है, इसलिए इसके दाम भी बहुत अधिक होते हैं. दो-दो लाख तक बिकने वाली इन साड़ियों ने दक्षिण भारतीय संस्कृति का विस्तार, पूरे भारत में किया है. शादी-ब्याह में दुल्हन ही नहीं, दुल्हन के सगे -संबंधी औरतों की भी यह पहली चॉइस होती है. तस्वीरों में भी यह साड़ियां बेहद कलरफुल और ब्राइट नजर आती हैं.
बनारस के घाट और बनारसी साड़ियों का जवाब नहीं है
कहते हैं, भारतीय संस्कृति का अद्भुत नजारा देखना है, तो एक बार बनारस जरूर जाना चाहिए. यहां भारतीय संस्कृति का अद्भुत मेल, बनारस, जिसे अब वाराणसी कहा जाता है, वहां के घाटों पर नजर आता है और इसके साथ ही साथ, लड़कियों के लिए यह खास आकर्षण का केंद्र होता है कि बनारस जाकर. बनारसी साड़ी नहीं ली तो क्या ली. कई वर्षों से सास और माएं, अपनी बेटियों को बनारसी साड़ी एक धरोहर के रूप में देती आई हैं. बनारसी साड़ियों के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि ऋग वेद में हिरण्य का जिक्र है, ऐसे में देवताओं के कपड़ों को भी बनारसी साड़ियों से जोड़ा जाता था. इन साड़ियों का सीधा संबंध सिल्क से है. इन साड़ियों को बनाने में भी काफी समय लगता है, क्योंकि इसमें बारीक काम होता है, साड़ी की बिनाई के साथ-साथ, रेशम के ऊपर जरी के धागों से कढ़ाई की जाती है. माना जाता है कि मुगल काल से यह साड़ियां फेमस हुईं, बनारसी साड़ियां लड़कियों को खूब रॉयल लुक देती हैं. यही वजह है कि किसी भी ट्रेडिशनल ओकेजन में लड़कियां और महिलाएं इसे पहनना खूब पसंद करती हैं.
बांग्ला संस्कृति को और निखारती है जामदानी और बालूचरी साड़ियां
पश्चिम बंगाल की संस्कृति, संगीत के साथ-साथ परिधानों के लिए भी खूब जानी जाती हैं. खासतौर से वहां की साड़ियां पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, यहाँ की साड़ियों की खूबी यह होती है कि बनारसी और कांजीवरम साड़ियों की तरह, आपको इन साड़ियों को ओकेजनली नहीं, बल्कि कभी भी पहन सकती हैं. जामदानी और बालूचरी, यह दोनों ही साड़ियां ढाका में बनाई जाती हैं, नवाब मुर्शीद अली खान 18वीं सदी में बालूचरी साड़ी की कला को ढाका से मुर्शिदाबाद ले आए थे, इसलिए यह बंगाल में सबसे ज्यादा फेमस हैं. इन साड़ियों को बेहद आसानी से कैरी किया जा सकता है. बालूचरी साड़ियों पर महाभारत और रामायण के संदर्भ खूब बने मिलते हैं, वही जामदानी साड़ियों का जिक्र चाणक्य के अर्थशास्त्र में मिलता है. जामदानी में सबसे लोकप्रिय प्रकार दक्कई जामदानी हैं. इन साड़ियों को ऑफिस, किसी पार्टी फंक्शन और फॉर्मल मीट्स में भी आसानी से पहना जा सकता है, रेगुलर वेयर के रूप में भी यह साड़ियां काफी लोकप्रिय हैं.
असम की मूगा सिल्क साड़ियां हैं वर्ल्ड फेमस
असम राज्य साड़ियों की विविधताओं के लिए काफी जाना जाता है, मूगा सिल्क तो सदियों से यूरोपियन देशों के ट्रेंड का हिस्सा रहा है, इस सिल्क को भारत के यूनिक फैब्रिक्स, हैंडलूम्स और बुनकरों की विशेषताओं के लिए जाना जाता है. असम की इन साड़ियों की यह खासियत है कि आप इसे एक से ज्यादा अंदाज़ में स्टाइल कर सकती हैं, यह साड़ियाँ भारत के साथ-साथ विदेशों में भी खूब पहनी जाती हैं. इन साड़ियों की खासियत होती है कि इन्हें बनाने के लिए, रेशमी कीड़ों को मारा नहीं जाता है, इसलिए यह जितनी पुरानी होती जाती हैं, उसकी चमक बढ़ती जाती है. यह मुख्य रूप से असम के पश्चिम इलाकों में मौजूद गारोह हिल्स में तैयार की जाती है. मूगा सिल्क को असम के पारंपरिक पहनावे मेहेलगा सादर को तैयार करने के लिए भी किया जाता है.
बांधनी साड़ियां हैं गुजरात और राजस्थान की शान
साड़ियों की खूबसूरती को बरकरार रखने में गुजरात और राजस्थान की महिलाओं का मुख्य योगदान रहा है, उन्होंने अपने लगभग हर रीती-रिवाज में साड़ियों को अहमियत दी है, यही वजह है कि बांधनी साड़ियों का फैशन आज पूरे भारत में लोकप्रिय है. बांधनी साड़ियां, गुजराती संस्कृति की पहचान हैं, बांधनी का संदर्भ बंधन शब्द से लिया गया है. इस खास प्रिंट की शुरुआत गुजरात में खत्रियों द्वारा की गई थी, बांधनी को बनाने के लिए कपड़ों पर छोटे-छोटे गोले बना कर, अलग डिजाइन में बांध दिया जाता है और फिर कई सारे रंगों से रंगा जाता है. बांधनी की साड़ियां सूती, जॉर्जेट और शिफॉन में बनती हैं, इन दिनों बांधनी को कई डिजाइनर्स भी खूब पसंद कर रहे हैं और इसे कई मॉडर्न रूप देकर, वह अपनी मॉडल्स को भी रैम्प पर उतारते हैं.