कहते हैं बचपन में कोई मिलावट नहीं होती। बचपन की मिट्टी को जिस भी आकार में ढाला जाए, वो ढल जाती है। ठीक इसी तरह बचपन के कई सारे ऐसे खेल हैं, जो कि मासूमियत और खिलखिलाहट से भरा हुई होती हैं, हालांकि बड़े होने के साथ ये सारे खेल हमारी याद में धुंधले हो चुके हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि बचपन के ऐसे कौन से चुनिंदा खेल हैं, जो कि जीवन के लिए बड़ी सीख साबित हो सकते हैं। बचपन में जब भी इन खेलों के खेला, तो कभी ये नहीं सोचा कि इन खेलों के बनाए गए नियम कैसे हमारे जीवन में सकारात्मक सोच का प्रवाह भी करती हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
छुपन-छुपाई
छुपन-छुपाई या फिर चोर पुलिस। बचपन के इस खेल के कई नाम है, जहां पर गली के सभी बच्चे शाम को एकजुट होकर इस खेल को खेलते हैं। कोई एक अपनी आंख बंद करके दूसरी तरफ खड़ा हो जाता है और बाकी सभी लोग किसी न किसी कोने में छिप जाते थे। एक दोस्त पुलिस बनकर बाकी के चोरों की तलाश करता है। बचपन का यह खेल अब जिम्मेदारी की पट्टी के नीचे हमारी आंखों में दब सा गया है, लेकिन इस खेल ने हमें यह सीख देती है कि जिस तरह आंख पर पट्टी बांधकर हम जीवन के अंधेरे को देखते हैं, वहीं आंख खुलने पर नए अवसरों की तलाश करने के लिए अपनी नजरें लक्ष्य पर बनाए रखनी चाहिए।
पर्वत-पानी (पहाड़-पानी)
पवर्त-पानी बचपन का सबसे मजेदार खेल है। इस खेल के लिए ऐसी जगह की तलाश की जाती है, जहां पर कुछ लोग ऊंची जगह पर खड़े हो जाते हैं और बाकी के दोस्त जमीन पर नीचे की जगह पर खड़े हो जाते हैं। इसके बाद पर्वत और पानी बोलने पर ऊंची जगह खड़े लोग जमीन पर आ जाते हैं और जमीन पर खड़े हुए लोग ऊपर खड़े हो जाते हैं, जो इस बीच अपनी जगह नहीं बना पाता, वह गेम से बाहर हो जाता है। बचपन का यह खेल हमें यह सीख देता है कि जीवन के कई सारे पड़ाव ऐसे होंगे जहां पर हमें कभी ऊपर खड़े रहने का मौका मिलेगा और कभी जमीन पर, लेकिन हर बार एक अवसर ऐसा आएगा, जो आपको नीचे से ऊपर आने का मौका जरूर देगा।
म्यूजिकल चेयर
बचपन की एक टूटी हुई चेयर भी एक कमाल का खेल लेकर आती थी। इस खेल को संगीत कुर्सी और म्यूजिकल चेयर के नाम से पहचाना जाता है। चाहे वह गर्मी के छुट्टी के साधारण दिन हो या फिर किसी के जन्मदिन की पार्टी, म्यूजिकल चेयर का खेल जरूर होता था। इस खेल के लिए जितने लोग होते हैं उसमें से एक चेयर कम रखी जाती थी। खेल के नियम अनुसार संगीत के बजने के साथ खेल में मौजूद लोग कुर्सी के चारों ओर चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं, जैसे ही संगीत बंद होता है, सभी को कुर्सी पर बैठना है। हर गाने के साथ एक कुर्सी हटा दी जाती है। आखिरी कुर्सी तक जो खिलाड़ी बचता है, वह विजेता बन जाता है। बचपन के इस मंनोरंजन से भरपूर खेल से यह सीख मिलती है कि कैसे भीड़ के बीच में रहकर सतत प्रयास करने से आप एक न एक दिन अपनी मंजिल की कुर्सी तक जरूर पहुंच सकते हैं, जरूरत केवल शोर को अनसुना करके अपने लक्ष्य पर ध्यान देने की है।
पिट्टू
इस खेल को लगभग सभी ने अपने बचपन में जरूर खेला होगा। इस खेल को खेलने के लिए एक खाली मैदान में पत्थरों को एक के ऊपर एक सजाया जाता है। गेम के नियम अनुसार दो टीम बनती है। पहली टीम का व्यक्ति गेंद के जरिए एक तय दूरी से पत्थरों को गिराने की कोशिश करता है, जैसे ही पत्थर गिर जाते हैं। दूसरी टीम गेंद लेकर पत्थर गिराने वाली टीम के सदस्यों को गेंद से मारने की कोशिश करती है, इस बीच पत्थर गिराने वाली टीम को सारे पत्थरों को फिर से एक के ऊपर एक लगाना है और अंत में पिट्टू गरम बोलना है। अगर वह ऐसा नहीं करते, तो गेम से उनकी टीम बाहर हो जाएगी। बचपन के इस खेल से यह सीख मिलती है कि कैसे अपने लक्ष्य को पाने के लिए आपको कई तरह से मुश्किल भरे गेंदों का सामना करना है लेकिन निडर होकर आपको अपनी कामयाबी की सीढ़ी तैयार करनी है।
रस्सा-कशी
बचपन का सबसे आसान और मजेदार गेम रस्सा-कस्सी है। यह खेल दो टीमों के बीच खेला जाता है। दोनों टीम एक रस्सी के दोनों सिरों को पकड़कर अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती है। नीचे जमीन पर एक लाइन खींची होती है, जो भी लाइन के पार दूसरी टीम को रस्सी के सहारे अपनी तरफ लेकर आएगा वह इस खेल को जीत जाएगा। बचपन के इस खेल से यह सीथ मिलती है कि एकता में बल होता है।