संतूर वादन भारतीय लोक संस्कृति की पहचान रही है, लेकिन अब यह संस्कृति विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में कश्मीर के गुलाम मुहम्मद जाज वह शख्स हैं, जो इसे सहेजने की कोशिश कर रहे हैं। आइए जानते हैं विस्तार से।
कौन हैं गुलाम मुहम्मद जाज
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दरअसल, गुलाम मुहम्मद ज़ाज़ कश्मीर में रहने वाले जाने-माने कलाकार हैं, उन्होंने अपने हाथों से कई सारे संतूर और अन्य हाथ से बने पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र बनाये हैं और इसलिए पूरी दुनिया में वह लोकप्रिय रहे हैं। इन्हें कश्मीर का अंतिम संतूर निर्माता माना जाता है। बता दें कि पिछले साल ही गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2023 को भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। गुलाम का जन्म वर्ष 1941 में कश्मरी के श्रीनगर के जैना कदल इलाके में हुआ था और साथ ही साथ वह 1953 से संतूर, रबाब और सारंगी जैसे कई पारंपरिक कश्मीरी संगीत वाद्ययंत्र बना रहे हैं और लोग दूर-दूर से इनके पास उनकी यह कला देखने आते हैं।
20 साल की उम्र से संगीत से लगाव
बता दें कि गुलाम ने अपने दादा और पिता से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद 20 साल की उम्र में लकड़ी और तारों में संगीत डालने का हुनर सीखा था। उन्हें इस बात का अफसोस है कि उनके अलावा, अब कश्मीर घाटी में ऐसा कोई शख्स नहीं है, जो इस पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र को बनाना या इसकी मरम्मत करना जानता हो। गौरतलब है कि उनके परिवार की सात पीढ़ियां रबाब, संतूर और ऐसे ही कई संगीत वाद्ययंत्र बनाने की कला में माहिर रही है। इस परिवार में बनाये गए संगीत वाद्ययंत्र की यह खूबियां रही हैं या खासियत रही है कि यह वाद्य यंत्र लंबे समय तक चलते हैं। इनका रिकॉर्ड है कि इस परिवार द्वारा बनाया गया संतूर पिछले 35 साल से इस्तेमाल हो रहा है। एक दिलचस्प जानकारी और आपके पास होनी ही चाहिए कि भारतीय शास्त्रीय संगीत में संतूर की नींव रखने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित भजन सोपोरी ने गुलाम के इन संतूरों के खरीदार रहे हैं। हालांकि गुलाम को इस बात का अफसोस है कि उनकी अगली जेनेरेशन यानी पीढ़ी ने इस कला से मुंह मोड़ लिया है।
कैसे बनता है संतूर
बता दें कि कश्मीरी संतूर एक समलम्बाकार हथौड़े से बजाया जाने वाला डलसीमर होता है, जिसमें सौ तार होते हैं और इन्हें हथौड़ों से बजाया जाता है। आपको यह भी बता दें कि अखरोट जो कि कश्मीर में बहुतायात आम तौर पर अखरोट की लकड़ी से बने इस संतूर में 25 पुल होते हैं, जिनमें से प्रत्येक चार तारों को सहारा देता है और फिर इनके कुल 100 तार होते हैं। इन्हें बनाने में कम से कम पांच से छह महीने लग जाते हैं।
ईरान से आया था संतूर
हालांकि इसको लेकर मतभेद है, लेकिन माना जाता है कि संतूर आया है ईरान से आया। लगभग 1800 साल पहले फारस यानी आज के ईरान में हुई थी। दरअसल, इस बारे में प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में शता तंत्री वीणा का भी उल्लेख मिलता है, जो फारसी संतूर के समान 100-तार वाला वाद्ययंत्र माना जाता है।
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