भारतीय साहित्य में लोक संगीत और लोक साहित्य की अपनी भूमिका रही है, हर पर्व-त्यौहार, जीवन की खुशहाली के हर मौके पर लोक संगीत को अहमियत दी गई है। किसी बच्चे के जन्म, शादी या किसी भी पर्व त्यौहार में या फिर फसलों की जब बुआई या कटाई होती है, तब भी महिलाएं खूब खुश होकर नाचती जाती हैं, दरअसल, साहित्य पूर्ण रूप से लोक साहित्य, गीत और संगीत के बिना अधूरा है। लोक साहित्य ही संस्कृति का दर्पण होती है, इसका अपना खास महत्व और अस्तित्व होता है, खास बात यह होती है कि जान समाज के साहित्य को लोक साहित्य कहा जाता है, क्योंकि इसमें लोक जीवन की अभिव्यक्ति होती है, इस बात को समझना भी बेहद जरूरी होता है कि राष्ट्र के बौद्धिक विकास का साक्ष्य उसका साहित्य ही होता है। लोक साहित्य की बात करें, तो किसी भी राज्य की अपनी कथाएं होती हैं, जिसके माध्यम से आप वहां की संस्कृति से अवगत होते हैं, इस संस्कृति का हिस्सा लोक संगीत, लोक नाट्य, लोक कला और वहां की आम जनता के जीवन के बारे में विस्तार से रूबरू होने का मौका मिलता है। ऐसे में आइए जानें, बिहार के खास लोक नृत्यों के बारे में।
सोहर- खिलौना नृत्य
बिहार में बच्चे के जन्म की खुशी में नृत्य किये जाते हैं, यह देश भर में कई पारम्परिक अनुष्ठानों के साथ मनाया जाता है, सोहर का यहां संदेश होता है कि बच्चे के आने की खुशी में किस तरह सबके जीवन में खुशहाली आने वाली है।
झिझिया नृत्य
बिहार का झिझिया नृत्य एक प्रसिद्ध लोकनृत्य है, जो कि फसल और बारिश के संगम होने पर किया जाता है, यह नृत्य फसल के मौसम के दौरान महिलाओं द्वारा किया जाता है, खासतौर से जो महिलाएं खेतों में काम करती हैं। इसमें सिर पर मटकी रख कर महिलाएं डांस करती हैं और समूह में डांस करती हैं।
कजरी नृत्य
कजरी गाना आमतौर पर मानसून के मौसम में सुनने को मिलते हैं, खासतौर से सावन महीने की शुरुआत में यह नृत्य शुरू हो जाते हैं, यह नृत्य पृथ्वी को सुंदर बनाने और लोगों के खुशहाल जीवन की कामना के लिए किया जाता है, यह नृत्य बिहार की संस्कृति की पहचान है।
जाट-जतिन नृत्य
उत्तर बिहार में सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक माना जाने वाला नृत्य है जाट-जतिन नृत्य, जो मिथिला और कोशी जिलों में युगल नृत्य के रूप में किया जाता है। यह नृत्य विभिन्न प्रकार के सामाजिक रूप से प्रासंगिक मुद्दों को सम्बोधित करता है, इसमें दो किरदारों के बीच रूमानियत होती है,
बिदेसिया नृत्य
बिहार में अगर भोजपुरी भाषी क्षेत्र की बात की जाये, तो नृत्य के साथ नाटक करने की एक लोकप्रिय शैली रही हैं, जिसकी शुरुआत 20 वीं सदी के लोक रंगमंच में हैं। इसकी रचना भिखारी ठाकुर ने की थी। इस शैली की खूबी यह रही है कि यह एक ऐसी शैली है, जो परम्परा और आधुनिकता और ऐसे कई विषयों की पड़ताल करती है। गौरतलब है कि इस नृत्य का पोशाक धोती और पतलून का जोड़ा है।