कभी तेल से जलने वाले लालटेन ने घरों की साज-सज्जा में जगह बना ली है, फिल्मों के सेट के एस्थेटिक में इनकी अहमियत बढ़ती जा रही है, ऐसे में विरासत से साज-सज्जा तक जगमगाती दुनिया के बारे में आइए जानते हैं विस्तार से।
100 साल पुराना लैम्प
अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर एक दोस्त की वॉल पर देखा, उन्होंने अपने पोस्ट में इस बात का जिक्र किया था कि किस तरह उनके घर में लालटेन के शीशे की उम्र 100 साल पुरानी हो चुकी है, इसे शीशे को अमेरिका की डिलाइट कंपनी ने बनाया था। हर लिहाज से यह लालटेन एक एंटिक ही माना जाएगा। इसे देखने के बाद मेरे जेहन में एक ही बात आई कि वाकई, विरासत को सहेजने वालों को इस बात का इल्म होता है कि यही पुरानी चीजें, दरअसल एहसास से भरपूर होती है और इस लालटेन के बहाने यह तफ्तीश करने की कोशिश हुई कि आखिर किस तरह से लालटेन ने जगमगाती दुनिया से लेकर घर की साज-सज्जा में एक खास जगह बना ली है, तो आइए इसके बारे में विस्तार से जानते हैं।
गांवों की पाठशाला का सच्चा साथी
किसी जमाने में यह घर के लिए सबसे जरूरी चीजों में से थी, खासतौर से गांव में जब बिजली की परेशानी अधिक रहती थी, तब लालटेन घरों में रखे जाते थे। लालटेन शब्द अंग्रेजी भाषा के लैंटर्न शब्द से ही उत्पन्न हुआ है। लालटेन का सबसे प्रथम रूप ढिबरी था, जो बाद में आधुनिक वर्जन का रूप लेकर लालटेन बना। ढिबरी आज भी कई छोटे गांवों में इस्तेमाल करते हैं। इसके ढक्कन में छेद करके एक लंबा सूती कपड़ा डाल दिया जाता था और डिब्बे के बोतल में केरोसिन तेल भर दिया जाता था, कुछ ऐसे ही ढिबरी तैयार की जाती थी। उस समय तो लालटेन को काफी खर्चीला माना जाता था। लेकिन उस वक्त इसकी जरूरत हर घरों में होती थी, क्योंकि कई परिवार वालों के बच्चे इसकी ही रौशनी में पढ़ कर कामयाब हुए। लालटेन में खास तरह की बत्ती होती थी और इसको भी केरोसिन के माध्यम से जलाया जाता था। लालटेन उन दिनों में परिवारों में होना, उनके घर में समृद्धि का भी प्रतीक होता था। धीरे-धीरे इन लालटेन की जगह इमरजेंसी लाइट्स ने और फिर चार्जेबल लैम्प्स ने ली, तो इन लैम्प्स की यूनिकनेस साज सज्जाओं में बदल गई। आप गौर करें तो ऐसे कई फिल्मी निर्देशक हैं, जो अपनी फिल्मों में रॉयल और क्रिएटिव ऐस्थेटिक को दिखाने के लिए लालटेन ही लगाते हैं।
कई देशों में संस्कृति के सम्मान का हिस्सा
वियतनाम एक ऐसा देश है, जहां लैंटर्न फेस्टिवल धूमधाम से मनाया जाता है। यहां दिवाली में जिस तरह से दीप जलाये जाते हैं, यह पर्व भी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। संस्कृति के सम्मान और आध्यत्मिक मूल्यों, अच्छी फसल होने पर और पूर्वजों को धन्यवाद कहने के लिए इस फेस्टिवल को मनाया जाता है। चीन में मनाये जाने रहे लूनर न्यू ईयर में भी लैटर्न फेस्टिवल मनाया जाता है। इस मौके पर पारम्परिक डांस के साथ लाइटिंग की जाती है।
घरों की साज-सज्जा का हिस्सा
लालटेन न सिर्फ अब जरूरत बन कर रह गया, बल्कि फिल्मों में प्रॉप के रूप में इस्तेमाल तो हुआ ही, घर की साज-सज्जा में भी इसकी अहम भूमिका हो गयी। अब दिवाली के अलावा भी पूरे साल भर लोग तरह-तरह के लैम्प्स की खरीदारी करते हैं और घरों में रंग-बिरंगे लालटेन सजाते हैं। लालटेन ने धीरे-धीरे कंडेल या कंदील का रूप लिया। पुराने आर्किटेचर में बेहद खूबसूरत नजर आते हैं, गौरतलब है कि कागज से बने लालटेन का दुनिया भर में चलन में है विशेषकर जापान और चीन में इनका उपयोग बहुत होता है। घर में खासतौर से फ्लोर लैम्प, सीलिंग पर लैम्प को सजाया जाता है, बांस और बेंत और ऐसी कई चीजें हैं, जहां लैम्प सजाये जाते हैं। भारत में कई जगहों पर महिलाएं साज-सज्जा वाले लैम्प बना कर भी बिक्री करती हैं और खुद को आत्मनिर्भर बनाती हैं।
कैसे आया लालटेन अस्तित्व में
जिस तरह युद्ध में सेना की आवश्यकता के लिए कई खोज हुए, ऐसे में लालटेन भी उन खोजों में से एक है। इसलिए मुख्य रूप से लालटेन का रंग हरा होता है।