मुझे याद है, जब मैं छोटी थी, मेरी ऐसी कोई छुट्टियां नहीं रहती होंगी, जब मैं किसी साल नानी, तो किसी साल दादी के घर पर जाया करती थी. वहां मैं काफी एन्जॉय करती थीं, लेकिन अब धीरे-धीरे मैं देखती हूँ कि पेरेंट्स इस बात में अधिक दिलचस्पी नहीं लेते हैं कि वह बच्चों को नानी और दादी के घर पर ले जाएँ. वह ज्यादातर अब, एक्सप्लोर करने के नाम पर ट्रेवलिंग डेस्टिनेशन की ही तलाश करते हैं. यह तो अच्छी बात है कि बच्चों को देश-दुनिया घुमाई जानी चाहिए, लेकिन अपने जड़ों से भी उनको मिलवाना बेहद जरूरी है, इससे न केवल वह अपने रूट्स को समझ पाएंगे, बल्कि इतिहास से जुड़ीं चीजों को भी एक्सप्लोर कर पाएंगे, साथ ही उन्हें ऑर्गेनिक फूड्स और स्वस्थ हवा में सांस लेने का भी मौका मिलेगा. आइये जानें इसके बारे में विस्तार से
अपने बड़े-बुजुर्गों से जुड़ने का मिलता है मौका
इन दिनों शहरी चलन और स्पेस कम होने की वजह से, शहरों में पेरेंट्स आपके साथ नहीं रह पाते हैं, जाहिर है कि आपके पास वक़्त भी नहीं है कि आप हर बार दौड़ कर, अपने पेरेंट्स के पास पहुँच जाएँ, ऐसे में बच्चे, बिल्कुल अपने नाना-नानी, दादा-दादी से जुड़ नहीं पाते हैं, इसलिए बेहद जरूरी है कि उनके बचपन में उनकी छांव हो, क्योंकि उनसे आपको बहुत कुछ नया और अनोखा सीखने को मिलता है, जो आपके स्कूली टीचर कभी नहीं बता पाएंगे, खाली पैर अगर घास पर चला जाए तो इसके क्या फायदे हैं या फिर जुकाम होने पर, केवल शहद और अदरक की एक खुराक से भी काम बन सकता है, यह नुस्खे आजमाने के तरीके आपको ग्रेंड पैरेंट्स के पास जाकर ही मिलता है.
खुली हवा में सांस और ऑर्गेनिक ताजा साग-सब्जियां
जब आप अपने गांव जाएँगी अपने बच्चों को लेकर, तो वहां उन्हें निश्चित तौर पर अपने बागीचे के साग-सब्जियां और ऐसी सब्जियां, जिनके बारे में वह जानते भी नहीं होंगे, उन्होंने नाम भी नहीं सुना होगा, वैसी सब्जियों को खाने का मौका, खुली हवा में सांस लेने का मौका, सीधे पेड़ से आम और बाकी फ्रूट्स को खाने के मौके, कभी भी ऐसा अनुभव आपको शहर में मिल ही नहीं सकता है, साथ ही झूलों पर झूलने का मौका भी आपको सिर्फ और सिर्फ गांव में ही मिल सकता है. मजे की बात यह है कि शहरों में जो ऑर्गैनिक फ़ूड के नाम पर महंगी सब्जियां, फ्रूट्स और अनाज खाने को बेचे और ख़रीदे जाते हैं, वह सबकुछ आप यहाँ कम दामों में या नामात्र खर्च में अनुभव कर सकती हैं.
बच्चों को अपने पेरेंट्स का अलग रूप देखने का मौका मिलेगा
जब आप अपने बच्चों को छुट्टियों में ग्रेंड पेरेंट्स के पास लेकर जाएंगी, तो जाहिर है कि उनके पास कहानियों का खजाना होगा, जो कहानियां वे बच्चों को सुनाएंगे, शायद उसके बाद, वह आपको किसी अलग ही रूप में देखने लगें, खुद आपको भी याद न हो, आपके कोई शौक जो, बचपन में आप खूब किया करती थीं, एक बार
फिर से उसके बारे में जान कर, उसे दोहराना पसंद करेंगी. आपके लिए इससे अच्छा नोस्टैल्जिक ट्रिप और क्या होगा. आपको खुद को एक बार फिर से खुद से जुड़ने का मौका मिलेगा.
देसी पकवान
आंवला का मुरब्बा, ढेर सारे पापड़, तिलौरी, अचार, इन सबका टेस्ट जो आप पूरी तरह पैक्ड फ़ूड खाने की वजह से भूल चुकी हैं, आपकी माँ या दादी या नानी के हाथों में अब भी वह जादू बरक़रार है, इसलिए बेहद जरूरी है कि उस स्वाद के लिए एक बार वापस गांव आया जाए और देसी खाने का स्वाद लिया जाये, देसी घी में बनीं मड़वे की रोटी, जिसे शहर में रागी का आटा कह कर, काफी महंगे दामों में बेचा जाता है, ऐसी चीजों का मजा लिया जा सकता है, वह भी बिना खर्च किये.
पुराने दोस्तों से मिलना, गांव की मिट्टी की खुशबू का मजा
आप जब अपने होम टाउन जाते हैं, तो यह आपके लिए भी इमोशनल जर्नी बन जाती है, आपके कई पुराने दोस्त, जो वहीं रह जाते हैं, उनसे मिल कर, आप फिर से एक बार अपने बचपन में लौट सकती हैं. गाय और बकरी का दूध दुहना देखना, गोबर के उपले, मिट्टी के बर्तन, जिसे शहर में टेराकोट्टा के नाम पर काफी महंगे दामों में बेचा जाता है, वैसी मिट्टी की हांडी में खाना, मिट्टी और लकड़ी का चूल्हा, घर का मिट्टी से लीपा जाना और उसकी खुशबू, लहलहाते खेत, यह सब अनुभव आप तभी कर सकती हैं, जब साल में कम से कम एक बार, अपने गांव जरूर लौटा जाये.