मां जैसा प्यार कोई नहीं कर सकता और मां यशोदा जैसा प्यार करना भी हर किसी को नहीं आ सकता। जन्माष्टमी कृष्ण के जन्म का उत्सव है, लेकिन कृष्ण के इस जन्म का सार यशोदा से ही शुरू होता है, जिन्होंने न ही सिर्फ उनका पालन पोषण किया, बल्कि वैसा ही प्यार दिया जैसा एक मां अपनी कोख से जन्मे बच्चे को देती है। कहते हैं कृष्ण ने हर युग में जन्म लिया है और हमें लगता है हर युग में कृष्ण के जन्म का सार बनने के लिए यशोदा मैया भी होती हैं। आइए, आपको बताते हैं ऐसी ही दो मां की कहानी जो इस युग में यशोदा बनीं। एक ने बेटी खुशी को घर लाकर न कि खुशी को बल्कि खुद को भी दिया नया जीवन, तो एक ने दो बेटों के होने के बाद भी असहारा बेटी को अपनाकर पूरे परिवार से लड़कर साबित किया कि वो आज की यशोदा हैं।
और यूं बेटी ने रौनक कर दिया हमारा संसार : उषा
एक भरा-पूरा परिवार, मां-पिता, दो बेटे, बिल्कुल हम दो हमारे दो की तरह। लेकिन बिटिया जब घर आयी, तो जिंदगी में जैसे बहार आयी। उषा राजस्थान की रहने वाली एक होम मेकर हैं, जो अपने बेटों को पालने-पोसने में व्यस्त थीं। उनके किसी दूर के रिश्ते में बहन लगने वाली की बेटी एनी (रितिका शर्मा) अक्सर उनके पास ही रहती थी । लेकिन एनी की मां आर्थिक समस्याओं के चलते उसका पालन पोषण नहीं कर पाती थी, इसलिए उन्होंने अनाथालय भेजने का फैसला किया। उषा ने हमें बताया, “ मैं उसकी मां के साथ ही एनी का हाथ थामें अनाथालय गई और वहां जाकर मानो, मुझे कोई झटका लग गया। मैं एनी की मासूम आंखें देखती रही। एनी इस वक्त कुछ 4-5 साल की थी। वो कुछ नहीं कह रही थी लेकिन, उसे ऐसे भेजना मुझे सही नहीं लग रहा था और मैंने फैसला किया कि मैं इस बच्ची को अपने पास रखूंगी।”
बिना यह सोचे कि समाज या उनका खुद का परिवार इस पर क्या प्रतिक्रिया देगा, उषा ने एनी को गले लगाया और उसे अपने घर ले आई। यहां उनके पति ने एनी को रखने से साफ मना कर दिया। उषा को कुछ नहीं सूझ रहा था और उन्होंने एनी को अपनी मां को सौंप दिया और एनी को अक्सर अपने घर लाती-ले जाती रहीं। कुछ सालों बाद जब उनकी मां भी एनी को नहीं संभाल पा रही थीं, तो इस बार उषा ने ठान लिया कि वो इस बच्ची को पूरी तरह से अपनाकर रहेंगी। उषा ने बताया, “मैंने अपने पति से कहा कि या तो एनी हमारे साथ रहेगी या फिर मैं एनी को लेकर घर छोड़कर जा रही हूं। यही नहीं, एनी इस घर में बेटी बनाकर आएगी और अब से हर चीज तीन हिस्सों में बटेंगी। मैंने मेरे बेटों से भी यही कहा कि एनी उनकी बहन है और अब से वो उनके साथ ही रहेगी। शायद मेरा गुस्सा था या राम जाने क्या था, मेरी इस जिद्द के आगे सबने घुटने टेक दिए।”
एनी कुछ 14 या 15 साल की थीं जब उषा ने उन्हें गोद लिया और घर ले आयी। उषा ने कहा, ”इस वक्त घर वाले तो मान गए थे लेकिन बाहर के लोग और कुछ रिश्तेदार ऐसे थे जो मेरे इस फैसले से खुश नहीं थे। मैंने जीवनभर समाज दुनिया देखी लेकिन इस बार मैंने एनी को इन सबके ऊपर रखा। जैसे यशोदा मैया ने अपने कान्हा को अपने बच्चे की तरह पाला, वैसे ही मेरी एनी मेरी लाइफ की कान्हा है। लोग बेटी पाने की दुआएं मांगते हैं, मुझे बिना मांगे ये मिली है। मेरे नसीब में बेटी का सुख था, यह साबित हो गया है। अब बीमार पड़ती हूं तो एक कप चाय अपने आप हाथ तक आ जाती है और यह देखकर मेरे बेटे भी बहुत कुछ सीख रहे हैं। मैं एनी को बहुत पढ़ाना चाहती हूं, मैं चाहती हूं कि उसे सबकुछ दूं। वैसे, एनी को कुकिंग का बड़ा शौक है और वो मलाई कोफ्ता बहुत अच्छा बनाती है, आप कभी राजस्थान आएं तो बताना,आपको जरूर खिलाऊंगी ”
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इत्ती सी नहीं, जिंदगी भर की खुशी लेकर आयी हमारी खुशी बिटिया : प्रीति
मुंबई में रहने वाले प्रीति और मनीष दोनों ही अपनी शादीशुदा जिंदगी में खुश थे, लेकिन उनके जीवन में कमी थी तो ‘खुशी’ की। यह खुशी उन्हें राजस्थान के एक अनाथाश्रम से मिली। खुशी उनकी 7 साल की बेटी है। खुशी महज 6 महीनों की थी जब प्रीति ने उसे पहली बार देखा। प्रीति ने कहा, “मैं वो दिन कभी नहीं भूल सकती। जब मैंने उसे पहली बार देखा तो मैं उसे देखती ही रह गई थी। उसे अपने गोद में लिया तो लगा जिंदगी पूरी हो गई है।”
प्रीति ने हमें बताया कि उनके पति और वो बहुत समय से बच्चे की आस में थे, लेकिन वो कंसीव नहीं कर पा रही थीं। ऐसे में उन्होंने पहले आईवीएफ के बारे में भी सोचा। लेकिन, फिर उन्हें खयाल आया कि इतने पैसे और मेहनत अगर वो किसी ऐसी बच्ची पर लगाएं जिसे उनकी जरुरत हो तो? बस, यही वो क्षण था जब उन्होंने बच्चा गोद लेने की बात अपने घरवालों से की। पहली बार में ही घर वाले इस बात को नहीं माने। आम पेरेंट्स की तरह उन्होंने भी यही सोचा की चार लोग क्या कहेंगे? लाखों जतन के बाद जब वो मान गए तो प्रीति अपने पति के साथ बच्ची की तलाश में लग गयीं।
प्रीति ने बताया, “मैं और मेरे पति ने हर जगह रजिस्टर किया। हमारे ताऊजी जो राजस्थान में रहते थे, उन्होंने हमें एक अनाथालय बताया था, वहां से हमें कॉल आया। कई साल से एक बच्ची की तलाश में रहे हमने जब ये कॉल रिसीव किया तो हमारी दिल की धड़कनें बढ़ गयी थीं। हमने तुरंत फ्लाइट बुक की और राजस्थान गए। मुझे आज भी याद है कि कैसे मैं रास्ते भर खुशी की फोटो को जूम कर-करके देख रही थी।’’ प्रीति ने बताया जब वो खुशी को लेकर वापस आ रही थी, तब वो बिलकुल अलग महसूस कर रही थीं जैसे आसपास की पूरी दुनिया ही बदल गई हो। वो घर वाले जो उनके बच्चा गोद लेने के खिलाफ थे वो आज खुशी के घर आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। जब वो घर आए, तो एक-एक सदस्य की आंखों में खुशी के आंसू थे। खुशी का उनकी जिंदगी में आने का पूरा श्रेय वो अपने भैया-भाभी गुलाब और पूजा को देती हैं, क्यूंकि यही वो लोग थे जिन्होंने प्रीति और उनके पति को शुरू से सपोर्ट किया और उनके घर वालों को मनाने के लिए भी गुलाब भैया और पूजा भाभी ने एड़ी-चोटी का दम लगाया था।
प्रीति ने कहा, ‘'मुझे कभी लगा ही नहीं कि यह मेरा खून नहीं है। कभी महसूस ही नहीं हुआ कि कब मैं प्रीति से मम्मी बन गई। आसपास के लोगों से आने वाले ताने अब भी सुनाई देते थे लेकिन खुशी की खिलखिलाहट के आगे सब फीके थे। मैं कृष्ण और यशोदा मैया की कहानी सुना करती थी लेकिन, पता नहीं था कि कभी मैं यशोदा बनूंगी।’’ बता दें कि, खुशी बड़ी होकर डॉक्टर बनना चाहती है, हालांकि पिछले हफ्ते उसे आर्टिस्ट बनना था।
उषा और प्रीति की ये कहानी वाकई दिल को छू लेने वाली है। दरअसल, हम अपने आस-पास देखें, तो ऐसी कई यशोदा मैया हैं, जिन्होंने ममता को किसी शर्त या बंधन में नहीं बांधा है, बस प्यार बरसाया है। ढूंढ कर देखें, तो यशोदा मैया आपके अंदर भी होगी, अगर है तो अपने कान्हा को ढूंढिए, वो नटखट भी आपको ढूंढ रहा होगा।