भारत का अपना एक समृद्ध इतिहास रहा है, यही वजह है कि यहां कई सारे ऐतिहासिक स्थल हैं, जो संस्कृति, परंपरा और विरासत के लिए जाना जाता है। भारत के भवनों, मंदिरों, किलों और महलों में समृद्ध है, प्रसिद्ध भारतीय स्मारक गोवा के चर्च, ताज महल, कुतुब मीनार, चारमीनार, लाल किला और जंतर मंतर जैसी जगहें, भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं, इन ऐतिहासिक स्मारकों के अलावा भारत के अन्य विश्व धरोहर स्थलों में जंगली पार्क और दक्षिण भरत के प्राचीन मंदिर भी आते हैं। आइए इनके बारे में जानें विस्तार से।
इण्डिया गेट
इण्डिया गेट का निर्माण ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रथम विश्व युद्ध 1914-1918 और 1919 में तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में शहीद हुए 80 हजार से अधिक भारतीय सैनिक को श्रद्धांजलि देने के लिए बनाया गया था। इसका आधार 10 फरवरी 1921 को ड्यूक ऑफ कनॉट द्वारा रखी गई थी। यह प्रोजेक्ट 10 साल में पूरा हुआ था और 12 फरवरी, 1931 को वाइसरॉय, लार्ड इरविन ने इण्डिया गेट का उद्घाटन किया। आपको जान कर हैरानी होगी कि आज जहां पर इण्डिया गेट है, पहले वहां से रेलवे लाइन गुजरती थी। साल 1920 तक, पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पूरे शहर का एकमात्र रेलवे स्टेशन था, वहां से आगरा-दिल्ली रेलवे लाइन वर्तमान इण्डिया गेट के निर्माण स्थल से गुजरती थीं। बाद में इस रेलवे लाइन को यमुना नदी के पास स्थानांतरित कर दिया गया। फिर 1924 में यह मार्ग फिर से शुरू हुआ, तब इस स्मारक स्थल का निर्माण कार्य शुरू हो पाया। इण्डिया गेट का निर्माण मुख्य रूप से लाल और पीले पत्थरों का उपयोग किया गया है, जिन्हें खासतौर से भरतपुर से लाया गया था। भारत का राष्ट्रीय स्मारक होने के नाते, इण्डिया गेट भी विश्व के सबसे बड़े युद्ध स्मारकों में से एक है। जब इण्डिया गेट बना था, तब इसके सामने जार्ज पंचम की एक मूर्ति लगी हुई थी, जिसे बाद में अंग्रेजी राज की अन्य मूर्तियों के साथ कोरोनेशन पार्क में स्थापित किया गया। भारत के प्रधानमंत्री और भारतीय सशस्त्र बालों के प्रमुख 26 जनवरी, विजय दिवस और इन्फैंट्री डे पर अमर जवान ज्योति में श्रद्धांजलि देते हैं।
कुतुब मीनार
कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित एक विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक संरचना है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर है, दिल्ली के महरौली में स्थित यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर से बना हुआ है। इसे 1199 में दिल्ली सल्तनत के संस्थापक क़ुतुब उद दीन ऐबक द्वारा शुरू किया गया था। यह भी भारत में सबसे लोकप्रिय ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों में से एक है। कुतुब मीनार एक पांच मंजिला संरचना है, यह एक भूरे रंग की मीनार है। मुगल शासन संबंधित भारत की सबसे ऊंची मीनार भी है। इसका निर्माण कुतुब उद दीन ऐबक के शासन के दौरान शुरू हुआ था और बाद में इतुतुलमीश जैसे शाशकों द्वारा इसे बाद में जोड़ा गया था। यह भारत में मुगलों द्वारा किये हुए पहले निर्माणों में से है। बालकनी और बलुआ पत्थर की वास्तुकला के साथ बना यह मीनार अद्भुत है। इसका नाम कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर पड़ा है। इसकी पहली तीन मंजिलें इल्तुतमिश द्वारा लाल बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाई गई है, जबकि अन्य दो मंजिलों का निर्माण अलग-अलग समय में सम्राट फिरोज शाह तुगलक द्वारा निर्माण किया है। इस मीनार में 379 सीढ़ियां हैं। इस मीनार परिसर में लोह स्तम्भ, इल्तुतमिश का मकबरा, अलाइ मीनार और कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद जरूर देखना चाहिए।
लाल किला
लाल किला का रंग लाल है, लेकिन आपको यह बात हैरान कर सकती है कि किसी दौर में इसका रंग सफेद हुआ करता था। लाल किला मुगल सम्राट शाहजहां द्वारा बनवाया गया था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार, इमारत के कुछ हिस्से चूने के पत्थर से बने थे, लेकिन सफेद पत्थर जब जगह-जगह से निकलने लगे, तो अंग्रेजों ने इस इमारत को लाल रंग से रंग दिया। शाहजहां ने इस जगह का निर्माण उस समय करवाया था, जब उसने अपनी राजधानी को अगला से दिल्ली बनाने का निर्णय लिया था। उस वक़्त इस किले का नाम किला ए मुबारक थी। बाद में इसका नाम बदल दिया गया। फिर लाल रंग के पत्थर और ईंटों से इसका निर्माण हुआ, इसलिए इसका नाम लाल किला पड़ा। इसे बनाने में दस साल का समय लगा था।
चारमीनार
चारमीनार भारत की प्रमुख ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इमारतों में से है, जो हैदराबाद में स्थित है। चारमीनार को हैदराबाद का एक लैंडमार्क माना जाता है। यह मुसी नदी के किनारे स्थित इस मीनार को भारत की प्रमुख ऐतिहासिक स्मारकों का दर्जा मिला है। इसका निर्माण 1591 में क़ुतुब शाही राजवंस के पांचवें शासक सुल्तान मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह द्वारा करवाया था। ऐसी मान्यता है कि क़ुतुब शाह द्वारा इसका निर्माण इसलिए किया गया, ताकि गोलकोण्डा और पोर्ट शहर मछली के व्यापार मार्ग से जोड़ा गया था। यह चार मीनारों से बन कर बना है, जिसका अर्थ है चार खम्भे। ऐसी मान्यताएं हैं कि राजधानी गोलकुंडा में पानी की कमी की वजह से लोग हैजा रोग से पीड़ित हुए थे। उस वक़्त इस पीड़ा को कम करने को लेकर खुदा से विनती की थी और मस्जिद बनाने का निर्णय लिया था। इस मीनार के हर कोने में मेहराबनुमा शाही दरवाजा है। इसके मेहराब चार अलग-अलग सड़कों पर खुलते हैं, जिनमें से मक्का मस्जिद, तौली मस्जिद, चार मीनार, जामी मस्जिद हैदराबाद के प्रभावशाली चिन्ह में शामिल हैं।
विक्टोरिया मेमोरियल
भारत का विक्टोरिया मेमोरियल हॉल पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। ओल्ड ब्रिटिश राज की राजधानी कोलकाता में संगमरमर की चमचमाती इमारत विक्टोरिया मेमोरियल प्रसिद्ध है। यह ताज महल जैसा दिखता है और इसे भारत और यूनाइटेड किंगडम की महारानी विक्टोरिया के जीवन का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था। बता दें कि विश्वयुद्ध के दौरान इस इमारत को सफेद से काला रंग का कर दिया गया था। दरअसल, जापानी वायु सेना ने कोलकाता पर बमबारी शुरू कर दी थी, उस समय जापानी सेना द्वारा रात में हवाई हमले हुए थे। तो उसे बचाने के लिए यह ट्रिक अपनाया गया था।
कोणार्क मंदिर
ओडिशा राज्य में जगन्नाथ पूरी से 35 किलोमीटर की दूरी पर कोर्णाक शहर के अंदर चंद्रभागा नदी के पास कोणार्क मंदिर स्थित है। इस ऐतिहासिक मंदिर का नाम दो शब्द यानी कि कोर्ण और अर्क से मिलकर रखा गया है। इस मंदिर की खूबी यह है कि यहां पर सूर्यदेव रथ पर सवार हैं। लोग सूर्य भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। ज्ञात हो कि दुनिया में लोकप्रिय सूर्यदेव 772 साल पुराना बताया जाता है। यही वजह है कि कोणार्क मंदिर को देखने के लिए कई सारे सैलानी आते हैं। इसकी बनावट काफी अनोखी है,इसे पूरी तरह से बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट से साल 1250 में बनाया गया था। इस मंदिर का निर्माण 1250 ईसवी में गंगा वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने कराया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजा नरसिंह देव ने इस मंदिर का निर्माण करने के लिए अपने 12 साल के राजस्व को मंदिर निर्माण में लगा दिया था। इस मंदिर की भव्यता और लाजवाब शिल्पकारी के कारण इसे भारत का आठवां अजूबा भी कहते हैं। इस वजब से कोणार्क मंदिर क साल 1984 में यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज सूची में शामिल किया गया है। दिलचस्प है कि 1200 मजदूरों ने 12 साल तक मिलकर इस मंदिर को 229 फीट ऊंचा बनाया। इस मंदिर में सूर्य देवता की तीन मूर्तियां स्थापित की गई है। जहां पर सूर्य के उगने, ढलने और अस्त होने के साथ सुबह और शाम का नजारा, और सूर्य अस्त होने के सभी भावों को दिखाया गया है। कोणार्क मंदिर की सबसे बड़ी खूबी एक भव्य रथ है, जिसमें 12 जोड़ी पहिया और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे हैं। मंदिर में 12 चक्र मौजूद हैं, जो साल के बारह महीनों को दिखाने के साथ रथ में मौजूद आठ चक्र एक दिन के आठ पहर को भी दिखाता है। इस मंदिर की खूबी यह भी है कि मंदिर के सभी चक्रों पर पड़ने वाली छाया से समय का सही अनुमान लगा सकते हैं। ऐसा दिखाई देता है कि सूरज की लालिमा पूरे मंदिर पर बिखेर गई हो। यह भी कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर 51 मीट्रिक टन का चुंबक लगा हुआ था, जिसके कारण समुद्र किनारे से गुजरने वाले जहाज रास्ता भटक जाते थे, बाद में इसे मंदिर के ऊपर से हटा दिया गया है।
गेटवे ऑफ इंडिया
मुंबई की पहचान और शान गेटवे ऑफ इंडिया को माना जाता है। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में इसका निर्माण किया गया,जो कि मुंबई शहर में दक्षिण अरब सागर के तट पर स्थित पौराणिक स्मारक है। गेटवे ऑफ इंडिया स्मारक को किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी ने अपनी भारत यात्रा के दौरान 1911 ईस्वी के दौरान इसे बनाने का फैसला किया। हालांकि ऐसा नहीं हो पाया। फिर से इस स्मारक को बनाने की अनुमति 1941 ईस्वी के दौरान मिली, लेकिन फिर भी इस स्मारक को बनने में लंबा समय लग गया। ज्ञात हो कि 1920 ईस्वी के समय इसका निर्माण शुरू हुआ, फिर 4 साल बाद इसका निर्माण कार्य भी पूरा हुआ। इसके बाद भी लोगों को इसे देखने के लिए इंतजार करना पड़ा और आखिरकार 4 दिसंबर 1924 ईस्वी के दौरान आम जनता के लिए इस स्मारक को पूरी तरह खोल दिया गया। बता दें कि जब इसे पहली बार लोगों के देखने के लिए खोला गया, तो हर कोई देखता रह गया। इसकी वजह यह है कि 16 वीं शताब्दी की वास्तुकला को देखते हुए गेटवे ऑफ इंडिया स्मारक को आकार दिया गया। गेटवे ऑफ इंडिया के केंद्रीय गुंबद का व्यास 48 फीट और स्मारक की ऊंचाई 83 फीट है। मिली जानकारी अनुसार इस ऐतिहासिक स्मारक को बनाने के लिए भारत सरकार ने 21 लाख का खर्च उठाया था।