भारत एक ऐसा देश है, जहां विविधता में ही एकता है, यहां हर प्रांत की अपनी भाषाएं हैं, खान-पान और कला संस्कृति भी है। कुछ ऐसी ही संस्कृति में लोकप्रिय हैं यहां के शास्त्रीय नृत्य भी, गौर करें, तो विभिन्न कालों की खुदाई, उनके ऐतिहासिक वर्णन, मूर्तिकला और चित्रकला से भी इनके नृत्य के बारे में पूरी जानकारी मिलती है। पौराणिक कथाओं में भी नृत्यों का वर्णन मिलता है। वहीं साहित्य में भी नृत्य का संदर्भ वेदों में मिल ही जाता है। ऐतिहासिक महाकाव्यों में, पुराणों और नाटकों में भी इसका संदर्भ मिलता ही है। तो आइए आज हम भारत के कुछ महत्वपूर्ण शास्त्रीय नृत्य के बारे में विस्तार से जानते हैं।
भरतनाट्यम नृत्य
तमिलनाडु में होने वाला यह नृत्य खास माना जाता है और इसका उद्भव मंदिरों के आस-पास को माना जाता है, जो मंदिरों को समर्पित देवदासियों की नृत्य कला से उपजा है, यह एक एकल नृत्य फॉर्म है, जिसका प्रदर्शन मुख्यत : एक स्त्री करती है। भरतनाट्यम भारत का सबसे पुराना शास्त्रीय नृत्य है, यह शास्त्रीय नृत्य भरत के नाट्यशास्त्र पर आधारित है। खास बात यह है कि इस नृत्य कला को पल्लव और चोल काल में सबसे ज्यादा किया जाता था। यह 19 वीं शताब्दी में भारतीय मंदिरों में भी होता रहा। बाद में मंदिरों में होने पर इस पर रोक लगा दिया गया। इस नृत्य में दो भाग होते हैं, पहला भाग नृत्य और दूसरा अभिनय होता है, इस नृत्य का प्रदर्शन संगीत और गायक के साथ होता है।
कथक नृत्य
यह उत्तर भारत के महत्वपूर्ण शास्त्रीय संगीत में से एक माना जाता है। यह उत्तर प्रदेश के साथ-साथ मध्य प्रदेश और भारत के पश्चिमी और पूर्वी भागों में भी किया जाता है। यह तीन अलग-अलग रूप में होता है। यह बनारस, जयपुर और लखनऊ में अलग-अलग तरीके से होता है। बता दें कि कथा शब्द की उत्पति हुई है, कहानी कहना। इसका संबंध कथाकारों से हैं, जो प्राचीन समय से आम लोगों को रामयाण और महाभारत महाकाव्यों और पौराणिक साहित्य जैसे धार्मिक ग्रंथों की कथाएं सुनाया करते थे। इसका संदर्भ भगवान श्री कृष्ण के बचपन और उनकी कहानियों में मिलता है। गौरतलब है कि 19 वीं शताब्दी में लखनऊ और जयपुर के राज दरबार और अन्य स्थान कथक नृत्यों के केंद्रों के रूप में उभरे। कथक में पैरों की थिरकन और घूमने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
कथकली नृत्य
केरल राज्य का यह लोकप्रिय नृत्य है, इस नृत्य में रामायण और महाभारत की कहानियां नृत्य के माध्यम से दिखाए जाते हैं, इनके जो विशेष चरित्र होते हैं, उन्हें अभिनय के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इस नृत्य की सबसे खास बात यह है कि इसमें कहानी के रूप में अच्छाई और बुराई के बीच युद्ध को दर्शाया जाता है, इस नृत्य के गीत मुख्यत: संस्कृत और मलयालम भाषा में होते हैं। कथकली में जो नर्तक का रूप होता है और साज श्रृंगार होता है, वह बेहद खास होता है।
कुचिपुड़ी नृत्य
कुचिपुड़ी शास्त्रीय नृत्य का उद्गम मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में हुआ है और यह 7 वीं शताब्दी के आरम्भ में भक्ति आंदोलन के रूप में परिणाम स्वरूप अस्तित्व में आया। गौर करें तो 16 वीं शताब्दी के कई शिलालेख में इसका उल्लेख मिलता है। इस नृत्य का नाम कृष्णा जिले में स्थित कुचिपुड़ी गांव के नाम पर रखा गया है। प्राचीन समय में गांव के ब्राह्मण इस नृत्य का अभ्यास करते थे। इसकी वेशभूषा आमतौर पर भरतनाट्यम नृत्यशैली के प्रकार की होती थी।
ओडिसी नृत्य
ओडिशा, पहले उड़ीसा के रूप में जाना जाता था और वहां के नृत्य में इसका उल्लेख मिलता है। कोणार्क के सूर्य मंदिर के केंद्रीय कक्ष में इसका उल्लेख मिलता है। ओडिशा के उदयगिरि पहाड़ियों की राणीगुम्फा गुफा की मूर्तिकला से एक नर्तकी के इस नृत्य के प्रदर्शन का पता चलता है। इसके कलाकार विशेष मुद्राओं के साथ नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
मोहिनीअट्टम नृत्य
मोहिनीअट्टम मोहिनी नृत्य के रूप में की जाती है, हिन्दू पौराणिक गाथा की दिव्य मोहिनी, करेल का शास्त्रीय एकल नृत्य रूप है। पौराणिक गाथा की दिव्य मोहिनी, केरल का शास्त्रीय एकल नृत्य रूप है, पौराणिक गाथा के अनुसार भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन के संबंध में और भस्मासुर के वध की घटना के संबंध में लोगों का मनोरंजन के लिए मोहिनी का रूप धारण किया था। बता दें कि सिर्फ महिलाएं यह नृत्य करती हैं। केरल के इस नृत्य रूप की संरचना त्रावणकोर राजाओं महाराजा कार्तिक तिरुनल और उसके उत्तराधिकारी महाराजा स्वाति तिरुनल द्वारा आजकल के शास्त्रीय स्वरूप में की गई थी। एक उल्लेखनीय बात यह भी है कि भरतनाट्यम, ओडिसी और मोहिनीअट्टम की एक समान प्रवृत्ति है और उन सभी का उद्भव देवदासी नृत्य से हुआ। वहीं कुछ विद्वानों का मत है कि 19वीं शताब्दी ईसवी के आस-पास, तमिलनाडु के शासक पेरूमालों ने तिरुवनचिकुलम (वर्तमान में कोडुगंल्लुर, केरल) में अपनी राजधानी के साथ चेरा साम्राज्य पर शासन किया ।
सत्रीया नृत्य
सत्रीया नृत्य आठ मुख्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य परंपराओं में से एक है। इस नृत्य को असम का शास्त्रीय नृत्य माना जाता है। दरअसल, वर्ष 2000 में इस नृत्य को भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में शामिल होने का सम्मान मिला। इस नृत्य के संस्थापक महान संत श्रीमनता शंकरदेव हैं। सन्करदेव ने सत्त्रिया नृत्य को अंकिया नाट के लिए एक संगत के रूप में बनाया था। यह नृत्य सत्त्र नामक असम के मठों में प्रदर्शन किया गया था। सत्त्रिया नृत्य के मूल की बात करें तो आमतौर पर पौराणिक कहानियों होती हैं। यह एक सुलभ, तत्काल और मनोरंजक तरीके से लोगों को पौराणिक शिक्षाओं को पेश करने का एक कलात्मक तरीका था।
मणिपुरी नृत्य
मणिपुरी नृत्य भारत के प्रमुख शास्त्रीय नृत्यों में से है, इसका नाम मणिपुर के नाम पर ही पड़ा है, यह नृत्य मुख्य रूप से हिन्दू वैष्णव प्रसंगों पर आधारित होता है, जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम प्रसंग प्रमुख हैं। यह धीमी गति से होने वाला नृत्य है।